अरे नेता जी कुछ तो दिल से बोलो - समझाविश बाबू
आज पुनः चुनाव आते ही सदाबहार,ईमानदार,दिलदार,जनता के सबसे बड़े तीमारदार,सिद्धांतों के फर्माबरदार और सबसे उम्दा कलाकार नेताओं की लाइन लग गयी है,सब के सब प्रदेश को देश को अतिसुन्दर और जनता को सुख-संपत्ति से भरपूर बना देने का भरपूर और जोरदार वादा कर रहे हैं,सिद्धांतवादी तो इतने बड़े-बड़े हैं की सत्ता में पांच साल रहने के बाद अचानक उनकी आत्मा जाग गयी,उन्हें समाज को देखकर रोना आ गया,उनकी दुर्दशा उनसे देखी नहीं गयी और वो तुरंत दूसरी पार्टी ज्वाइन कर लिए जैसे की वो पार्टी तो मसीहा बनने के लिए ही चुनाव लड़ रही है,और अब ये पूरी जान लगा देंगे समाज को ऊँचा उठाने के लिए |डायलॉग तो ऐसे बोले जा रहें हैं की जैसे की हम जहाँ से खड़े होते हैं लाइन वहीँ से शुरू होती है,मतलब वो जहाँ जाते हैं जीत वही होती है,मेरी समझ में तो ऐसे नेताओं को बार्डर पर भेज देना चाहिए क्यूंकि ये रहेंगे तो जीत पक्की रहेगी,हर दल आज ये दिखाने में लगा है की मेरे दल में दूसरे दल से बड़े- बड़े कद्दावर नेता आ रहें हैं मैं ही सबसे ईमानदार दल हूँ जो जनता को तो सूखी रोटी छोड़ दीजिये रबड़ी-मलाई उपलब्ध कराऊंगा रोज दिन की तो गारेंटी नहीं लेता हूँ रात को सपने में हर सुख-सुविधा का न केवल उपयोग करेंगे बल्कि मीठी नींद भी आएगी,क्यूंकि हम सपने ही बेचते हैं और पांच साल की तो गारेंटी रहती है उसके बाद फिर आप के हाथ में रहता है,आप फिर और भी अच्छा सपना देखना चाहते हैं तो फिर प्रयास करेंगे |
आज-कल सभी दल और उनके दुलारे नेता समाज के समरसता की बहुत बात कर रहे हैं,समाज को जोड़ने की बात कर रहे हैं,और दूसरे दलों पर समाज को तोड़ने और जहर फैलाने का आरोप लगा रहें हैं,पर वास्तविकता क्या है ये हमलोग नहीं समझ पा रहे हैं,ये सभी दल और नेता क्या करना चाहते हैं उनकी कथनी और करनी में क्या अंतर है,उन्हें सत्ता चाहिए अब वो चाहे समाज को बाँट कर मिले,वैमनष्यता फैला कर मिले,समाज में जहर फैला कर मिले कोई फर्क नहीं पड़ता,ये तब और स्पष्ट हो जाता है जब वो जाति के भीतर जाति और धर्म दोनों के सबसे बड़े लम्बरदार और ठेकेदार बन कर बात करते हैं,साथ में अपनी अदाकारी और भाषा से ऐसा प्रदर्शित करते हैं की यदि वो हैं या वे सत्ता में नहीं आये तो उनपर आसमान टूट पड़ेगा |लेकिन सबसे बड़ी विडंबना ये है की हमे भी उनके भाषण सुनने में बहुत ही आनंद और जोश आता है और बड़े ही जोर-शोर से जिंदाबाद और धार्मिक नारे लगाते हैं,हमे लगने लगता है की यही है राइट च्वाइस,ये ही हमारा भला करेगा मैं अपने को महा मुर्ख मानता हूँ की ऐसे नेताओं के पीछे-पीछे भागता हूँ और बाद में सत्ता आने पर उन्हें गाली देता हूँ दोषी तो मैं हूँ जो इन्हे चुनता हूँ |मैं अपने को सबसे अक्ल वाला मानता हूँ पर हूँ सबसे मुर्ख,इनके लल्लो- चप्पो बातों में आकर कभी सांप नाथ तो कभी नागनाथ को जिताता रहता हूँ और अपने को गरीबी लाचारी और बीमारी से डंसवाता रहता हूँ,और वो पांच साल रहकर मक्खन-मलाई खाकर और बिना डकार लिए चले जाते हैं,और हम पीठपीछे केवल गरियाते रह जाते हैं |जाति और धर्म देखकर टिकट देने वाले लोग,हिस्ट्रीशीटर और गैंगेस्टर को टिकट देने वाले लोग जब थोड़ा भी विरोध के स्वर उठने लगता है तो बड़े ही अदाकारी से कहते हैं की हम उसी के परिवार के किसी व्यक्ति को दे देंगे,ये सभी दलों पर लागू होता है की सब अपने मन माफिक माफिया और अपराधियों की परिभाषा बना लेते हैं यदि उनके दल में है तो एकदम नेक बंदा है और दूसरे दल में है तो गुंडा और जघन्य अपराधी है,अब तो तेरा वाला गंदो और और मेरा वाला अच्छो का खेल खेला जाता है और हम इस कदर धर्म और जाति में उलझे हैं की जघन्य अपराधियों के मारे जाने के बाद भी उस धर्म और जाति के तथाकथित ठेकेदार उसे अपने दूषित चश्मे से देखने लगते हैं और उसे गलत ठहराने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ते,चैनलों के डिबेट में बड़े ही बेशर्मी से अपनी बातों को सही साबित करने का कुत्सित प्रयास करते हैं,हाँ ये सही है की किसी भी माफिया,गुंडे अपराधियों की जाती नहीं देखनी चाहिए और सबके साथ सामान व्यवहार होना चाहिए,पर ऐसा नहीं हो पाता है,लेकिन इसका मतलब कदापि ये नहीं है की हम किसी जघन्य अपराधी की पैरवी करें |सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न ये है की जब ये माफिया और अपराधी चुनाव में भौकाल बनाने के लिए असलहों का नग्न प्रदर्शन करते हैं तो भीड़ कहाँ से आती है,प्रदेश की शान देश के गौरव की नारा कौन लगाता है,हैं तो हममे से ही न,फिर जिम्मेदार तो मई ही हूँ,mai केवल अपने को ही कहूंगा क्यूंकि यहाँ तथाकथित वाले बुधजीवी बहुत हैं जो मेरे ही कथन का पोस्टमार्टम करने लगेंगे |
मुझे देखिये गलियों-चौराहों पर खूब चर्चा करता हूँ की अरे यार देखो फलनवा को टिकट दे दिया गया,वो तो बहुत ही बड़ा अपराधी है साला माफिया है,पर विरोध नहीं करेंगे वो जेल में भी है तो चुनाव जीत जाएगा,इतना प्रभावी और जनता में पकड़ रखने वाला व्यक्ति है कि लोग उसके बिना मर जाएंगे,इसी का फ़ायदा उठाकर आज सभी राजनैतिक पार्टियां अपराधी,माफियाओं को बढ़चढ़कर टिकट दे रही हैं और हम केवल और केवल चर्चा करते हैं,क्या गजब जमाना आ गया है,और उनकी जब असलहों से लैश बड़ी-बड़ी गाड़ियों का काफिला निकलता है तो लगता है जैसे कोई युद्ध में जा रहे हों और हम भी डर कर अपनी जाति और धर्म जोड़कर उनके पीछे-पीछे चलने लगते हैं और खूब जयकारे लगाते हैं,ऐसा लगने लगता है की हमारे समाज का सबसे बड़ा योद्धा वही है,उनके बिना तो हमारा समाज अधूरा है,उन्हें जिसे समाज का सबसे बड़ा विलन होना चाहिए और जहाँ भी निकले वहां उन्हें तिरस्कार और घृणा के दृष्टि से देखा जाना चाहिए पर होता एकदम उलट है हम उन्हें हीरो की तरह ट्रीट करने लगते हैं आज ७५ साल आजादी के बाद भी हमें अगड़ो-पिछड़ों और दलितों में ही बांटे हुए है,यही नहीं अब तो उससे भी आगे निकल गए हैं,कौन सी जातियों को किस तरह लुभाया जाय ,कितनी एक-दूसरे के प्रति नफरत फैलाई जाए,ये बताने में पूरी ऊर्जा लगा दे रहे हैं की आप की जाति इतने प्रतिशत है और आप उपेक्षित हैं मैं तो आप के लिए क्या-क्या न कर दूंगा आप सोच नहीं सकते भले उनके मन से ये आवाज निकलती है की एक बार मेरे चंगुल में फंस जाओ,सत्ता मिल जाए फिर कहाँ हम कहाँ तुम।एक आश्चर्यजनक चीज यहाँ ये भी देखने को मिलेगा की जिन जातियों की गणना हुई ही नहीं उसकी भी जिलेवार,क्षेत्रवार संख्या नेता भी बता देंगे और प्रतिष्ठित चैनल वाले भी बता देंगे और इतने कॉन्फिडेंस से बताएँगे की आप को कहीं से झूठ लगेगा ही नहीं,और सारी की सारी बहस और गुना-गणित इसी पर चलता रहेगा |बात समरसता की और एकता की करेंगे पर कारनामे हमें कबीलों की तरह बाटने में करेंगे,आज भी हम २१वी और २२वी सदी की बात करेंगे और नेता हमें जातियों के ऐसे चंगुल में फंसाते जा रहे हैं की हम राष्ट्रीयता की तरफ नहीं कुनबियत की तरफ बड़ते जाएंगे,कुछ जातीयता के सिद्धांत को तो कुछ धर्म के सिद्धांत को पकड़ कर बैठे हैं,दोनों में जहर के तीर चलाये जा रहे हैं,धर्म में तो जो विष वमन किया जा रहा है वैसा तो कोबरा नाग भी नहीं कर सकता,कोबरा तो जिसे डंसेगा वही मरेगा पर ये जो विष फैला रहे हैं इसके बड़े ही दूरगामी प्रभाव पड़ेगा,इसमें समाज के समाज तिल-तिल के मरेंगे,और मरते भी चले आ रहे हैं,पर इन बेशर्म नेताओं को इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता,इन्हे तो किसी भी कीमत पर सत्ता चाहिए,इनके कारनामो को देखकर तो मुगलिया सल्तनत की याद आ जाती है की सत्ता किसी को भी मार के मिले कैसे भी मिले,बाप को भाई को किसी को कैद कर भी मिले बस मिलना चाहिए।कभी-कभी तो नेताओं के चालों को देखकर यदि दुर्योधन भी जिन्दा होता तो शर्मा जाता,आप देखिये कैसी-कैसी बातें बड़े-बड़े नेता करते हैं सुनकर ही लगता है की सत्ता के लिए कुछ भी बोलेंगे,एक बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एक प्रतिष्ठित चैनल पर बैठ कर अपनी जाति की दुहाई दे रहे थे की उनसे ये प्रश्न केवल इसलिए पूछा जा रहा है की वो अमुक जाति के हैं,वो ऐसा प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहे थे की जैसे की उनके साथ बहुत बड़ा भेदभाव किया जाता है,कौन सी सुविधा उन्हें नहीं मिली उन्हें बताना चाहिए था,काश उनकी जैसी जिंदगी मुझे नसीब में होती तो मैं भी आज ऐश कर रहा होता,और मंच से सताए जाने का नाटक कर रहा होता,इसी तरह एक प्रतिष्ठित पद पर बैठे व्यक्ति भी कभी-कभी अपनी जाति का दुहाई देते हैं,फिर किस मुँह से ये लोग छाती पीट-पीट कर सामाजिक समरसता की दुहाई देते हैं।भयमुक्त,अपराधमुक्त,दंगामुक्त,समाज का ढोल पीटने वाले लोग गैंगेस्टर,धार्मिक उन्माद फ़ैलाने वाले अपराधियों को डंके की चोट पर टिकट देने वाले लोग प्रदेश में अमन चैन स्थापित करने की बात बड़े ही दावे से करते हैं तो हमे आश्चर्य होता है,थाली में सजाकर सत्ता पाने वाले लोग भी जब संघर्ष की बात करते हैं तो बेमानी लगती है,राजनीति कितनी और कैसी चाल चलती है ये इसी से स्पष्ट हो जाता है की कोई सजा-सजाया पा जाता है तो कोई दूसरे की थाली बड़ी ही चतुराई से अपनी थाली बना कर खा जाता है।बेशर्मी तो इस कदर है की चैनलों पर बैठकर ३६-३६ मुकदमे वाले तथाकथित नेता जो अपराधी हैं उनके बारे में भी पूछे जाने पर भी बड़ी ही मासूमियत से रटा-रटाया जवाब देते हैं की ये सब मुकदमे राजनीतिक विद्वेष से लिखाये गए हैं भले ही वो हत्या,बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के हों,विषैले,जहरीले भाषण देने वाले,माफिया डॉन आज राजनीति के सिंघम बने घूम रहे हैं,हम आप एक से एक महगें वाशिंग मशीन घर लाते हैं फिर भी रोना रहता है की अच्छी तरह कपडा साफ़ नहीं कर रहा है,बहुत ही तेज वाशिंग पाउडर भी इस्तेमाल करते हैं फिर भी दाग नहीं छूट पाता है,पर इन राजनीतिक दलों के पास इतना बेहतरीन वाशिंग मशीन होता है की जो भी माफिया,अपराधी इनकी शरण में आ जाता है उसके सारे अपराध मिंटो में धूल जाते हैं,लेकिन ये मशीन केवल उन्ही के दलों के लोगों के या फिर उनमे आने वालों के ही अपराध धो पाते हैं,और जैसे ही उनकी पार्टी छोड़ कर जाते हैं तुरंत पुनः दागदार हो जाते हैं,इस मशीन की एक और खास विशेषता है की जब भी कोई नेता जिस दल में रहता है और अपने नेता के शान में एक से बढ़ कर एक कसीदे पड़ता है और दूसरे दल के नेताओं को झोली भर-भर के गाली देता है,पर जैसे ही वो दूसरे दल में जाता है वैसे ही उस मशीन के संपर्क में आते ही ठीक उसके उलट होने लगता है और एक से बढ़ कर एक गाली जिस दल को छोड़कर आया है उसके नेताओं के लिए निकलने लगता है और एक सूत्र वाक्य अवश्य बोलते हैं की जहाँ से छोड़ के आये हैं वहां उनका दम घुट रहा था,दलितों और पिछड़ों के साथ अन्याय हो रहा था,इनसे सहा नहीं जा रहा था ये मलाई खाये जा रहे थे पर अंदर से इन्हे दुःख बहुत था।
जैसे-जैसे चुनाव पीक पर पहुंचेगा वैसे-वैसे नेताओं के मुँह में बर्रे काटते जाएंगे,वो-वो भाषा निकलेगी जो दुनिया के किसी डिक्शनरी में नहीं मिलेगी,और धर्म-जाति को भड़काने वाली भाषाएँ तो चरम सीमा को लांघ जाएंगी,न गरीबी न महगाई न बेरोजगारी और न ही शिक्षा-स्वास्थय की बात की जायेगी,बस केवल और केवल अगड़ा-पिछड़ा,दलित और हिन्दू-मुस्लिम पर बात आकर टिक जायेगी,यही सभी दलों को सूट करती है क्यूंकि सबसे आसान तरीका भी यही है,हम आसानी से बंट भी जाते हैं,हमारी सोच हो ऐसी बना दी गयी है जब की रोटी,रोजगार,शिक्षा,स्वास्थय सबको चाहिए उसमे कोई भेद नहीं कर सकते क्यूंकि इन सब चीजों का कोई जातिगत या धर्मगत रंग नहीं होता है,पर ये कोई दल देना नहीं चाहेगा,देंगे क्या मुफ्त की बिजली,मुफ्त का राशन,वो भी ऐसे जैसे कोई बहुत बड़ा अहसान करेंगे और अपने निजी बजट से देंगे।खीज तो तब आता है जब वो भी नेता हमे ज्ञान देते हैं जो यदि नाम न किसी का जुड़ा होता तो किसी लायक भी नहीं थे।अब राजनीति में एक नया ट्रेंड जो पहले बहुत सीमित था जोर पकड़ने लगा है,परिवारवाद का,अपने परिवार के लिए टिकट मांगने का प्रचलन बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है,हो भी क्यों न मेरे जैसी जनता है जो परिवार के नाम पर जिता देगी,जब ये स्थिति है तो फिर हम नेताओं की योग्यता की बात क्यों करते हैं,विश्वास मानिये यदि उत्तर प्रदेश एक छोटा सा प्रदेश होता और कुल ६०-७० सदस्यों वाला विधानसभा होता तो एक आध राजनीतिक परिवार ही पूरा सदस्य जिता देता,भले वो विधानसभा-विधानसभा परिवार कहलाता।जो सबसे ज्यादा परिवारवाद का विरोध किये उन्होंने ही प्रदेश में सबसे ज्यादा परिवारवाद बढ़ाया है।यही कारण है की परिवार जिस तरह से राजनीत में मान्य होता जा रहा है जिस तरह से योग्यता हो या न हो हम उन परिवार के सदस्यों को हाथो हाथ ले रहे हैं,आने वाले समय में इन्ही की भीड़ नजर आएगी और पुराने राजशाही परम्पराओं की तरफ बढ़ते जाएंगे तथा एक सुन्दर २१वीं और २२वीं शादी का भारत बनाएंगे |
हम तो ये चाहते हैं की हमे ये नेता कुछ न दें बस हमे वो मशीन दे दें जिससे ये २०-३०००० रुपया पाने वाले से कैसे करोङो के मालिक बन जाते हैं,उसे हम जनता भी प्रयोग कर लें।न कोई उद्योग न कोई धंधा फिर भी आलिशान बंगले एक नहीं कई-कई और अरबों की संपत्ति,आखिर कौन सा पारस पत्थर है भाई हमे भी दो न भाई |आज हमे इन विषैले और मौकापरस्त नेताओं को पहचानना होगा और इन्हे सबक सिखाना होगा,पर ऐसा कुछ होगा नहीं,क्यूंकि हम अफीम की तरह जाति और धर्म के नशे के आदी हो चुके हैं।मेरी स्थिति तो एक चरसिये जैसी हो गयी है जब थोड़ा सँभलने का प्रयास करता हूँ तभी जाती और धर्म का नशा दे दिया जाता है|आज टिकट भी जब ख़रीदे और बेचे जाने की खबरे अंदरखाने से आती है है तो आप खुद सोच लें की खरीद के आने वाला नेता जीतने के बाद किसका विकास करेगा ?मेरी समझ में आना चाहिए की ये टिकट भी यदि ख़रीदा जाता है तो फिर इसका मूल्य क्या होगा
लेकिन हम क्यों सोचेंगे हम तो बस ऐसे ही हँकते जाएंगे और जिंदाबाद करते जाएंगे,मुफ्त की चीज का गुणगान करते जाएंगे। प्रतिष्ठित चैनलों पर भी बड़े से बड़े बुध्जीवी भी यही गुणा-भाग समझाते रहेंगे की वहां इस धर्म के तो इस जाति के लोगों की इतनी प्रतिशत है और वो उनकी तरफ जा रहे हैं तो उनकी इतनी सीट आ सकती है।कहीं ये बात भूले से नहीं होती की नहीं वो उम्मीदवार बहुत अच्छा है उसके बिरादरी के लोग वहां न के बराबर हैं फिर भी जीतेगा क्यूंकि उसका काम बहुत अच्छा है पर ऐसा नहीं होगा।चैनल भी अपनी टी आर पी बढ़ाने के लिए उन-उन चीजों को ज्यादे तेजी से पकड़ता है जिसमे थोड़ा मिर्च मशाला लगा कर और उसे गरमाया जा सके,उससे उसकी भी दूकान चल निकलती है |यदि किसी जहरीले नेता नेता ने कोई जहरीली बात कही तो चैनल वाले इसी पर पूरा डिबेट निकाल देंगे की सही था की गलत था इसी में सबसे ज्यादा मिर्च-मशाला भी रहता है |
अभी भी समय है जाति-धर्म से ऊपर उठने का,इन नागनाथ और सांपनाथ जैसे नेताओं और माफियाओं,अपराधियों का पूरी तरह से बहिष्कार करने का,हमे शिक्षा,स्वास्थय और रोजगार का अधिकार छीन के लेना होगा,ये ही हमे आगे ले जाएगा और सामान रूप से ले जायेगा। ये ही हमे जिन्ना,चीन,पाकिस्तान की सोच से ऊपर उठने में मदद करेगा,अन्यथा हमे वो नेता भी परम ज्ञान देने लगते हैं जो बिना सोचे-समझे अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए अनर्गल प्रपंच करते हैं और ऐसे-ऐसे ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत करते हैं की अपना सर फोड़ लें।लेकिन वो भी सुने जा रहे हैं और उनकी भी टी आर पी बड़ी तेजी से बढ़ती है,उनके दल की एक बेशर्म फ़ौज भी खड़ी हो जाति है उन्हें सही साबित करने के लिए।अब सब मेरे ऊपर निर्भर करता है की हम कैसा नेता चाहते हैं?आप देखिये किस कदर से हर दल विकास की बात करते-करते किस तरह अंत में जाती-धर्म,राष्ट्रवाद,पाकिस्तान,चीन पर आकर टिक जाएगा और हम भी उसी में उलझ कर रह जाएंगे,वोट हमारा भी इन्ही सब में पड़ जाएगा |अंत में केवल यही कह सकता हूँ की "नेता रे नेता तेरा रंग कैसा जिसमे लगा दो लगे बदरंग जैसा",इनके बदरंग चेहरे से नकाब हटाने की जरुरत है और परिवारवाद को तोड़ने की जरुरत है,परिवार का यदि कोई योग्य चेहरा होगा तो स्वयं आ जाएगा जैसे कम्पटीशन देकर एक आई ए एस का पुत्र भी आई ए एस बन जाता है,लेकिन यहाँ तो होड़ मची है की किसी तरह बेतवा विधायक,सांसद बन जाए फिर मंत्री,हमार विरासत संभाल ले,देश,प्रदेश तो चलते बा,और चालत रही,परिवरवा चल जाए,वंश सुरक्षित हो जाए बाकी से का मतलब बा।लेकिन ई जान ले सब नेतवन की जउने दिन जनता जाग गइल और सब जाति-पाति,धरम-वरम भूल के मानवी एकता बना लेलस वही दिन तुहार सब करम हो जाई और भागे के कहीं जगह न मिली बस कउनो चोर दरवाजा खोजे के पड़ी,ई मत सोचिहा नेता जी ऊ दिन न आई,जइसन तू लोगन के चाल बा बहुत जल्दी ऊ दिन आई,तब सब नरवा भूल जाबा और जबान सुख जाई,अबहु समय बा संभल जा नाही तो भाव गिन न पउबा,आगे तुहार मर्जी।
नेता आ रहे शहर-शहर
नेता आ रहे शहर-शहर
घूम रहे गाँव गाँव गली गली
बाँट रहे धर्म जाति का जहर
एक दूसरे को गालियों से नवाज रहे
और हम सड़क पर खड़े खड़े
जाती हुई बहार देख रहे
गाड़ियां गुजर रही धूल का गुबार देख रहे
नींद भी खुली न थी गलियां भी सूनी पड़ी थी
और वो दरवाजे पे खड़े खड़े पुकार भी लगा रहे
अपराधी माफिया भी संग हो लिए
ऐसा लग रहा हमे उनका पाप दलों ने धो लिए
जो लाशों के सौदागर थे शांति के विनाशक थे
वो अमन चैन का पाठ पढ़ा रहे
जिंदगी जीने का राह भी दिखा रहे
हम आंखे बंद किये हुए खेवनहार मान रहे
सत्ता के कर्णधार भी लग रहे
वो खुलेआम असलहों का प्रदर्शन कर रहे
और हम झुके झुके नम आँखे लिए हुए
सत्ता की लड़ाई देख रहे
नेता जी चले गए और हम लुटे पिटे अपनी बदहाली देख रहे
जो हैं वो भी लूट रहे
जो आने की चाह हैं लिए हुए
वो भी लूटने वाले हैं
और हम गली गली शहर शहर
टूटे छप्पर खाली डिब्बों की तड़प देखते रहे
वो तो लड़ लड़ के भी मालदार हो गए
गाड़ियों बंगलों के सरकार हो गए
महफ़िलें सजने लगी जाम भी छलकने लगे
रात भी दिन सा गुलजार हो गया
हम फटी धोती फटी साड़ी लिए हुए
बच्चों के नंगे बदन देखते रहे
भूख की आग आंसुओं के सैलाब में बह गए ।।


🙏
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