बदहाल शिक्षा बदतर स्वास्थय २०२१ के आगे क्या ? ! - समझाविश बाबू
जब भी कोई नया वर्ष आने वाला होता है हर वो व्यक्ति जिसका वर्तमान कष्टप्रद बीत रहा होता है तो वो कामना करता है कि उसका नया वर्ष कष्ट से मुक्ति के साथ खुशियों से भरा हो,और जिसका मंगलपूर्ण बीत रहा होता है तो वो चाहता है कि आने वाला वर्ष भी उसका और अधिक मंगलकारी बीते।इसके लिए हर व्यक्ति अपने-अपने हिसाब से मेहनत और जतन करता है,और बेहतर परिणाम कि अपेक्षा रखता है।क्यूंकि जीवन चलते रहने का नाम है और हमारा सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ गीता भी ये ही सन्देश देता है कि कर्म ही सर्वोपरि है,जिस प्रकार से मनुष्य की नाड़ी जबतक चलती रहती है तबतक जीवन भी चलता रहता है अन्यथा जीवन मुर्दा शरीर में परिवर्तित हो जाता है,ठीक उसी प्रकार जब तक हम शरीर को गतिमान किये रहते हैं तबतक चलता रहता है और जब गतिमान करना बंद कर देते हैं तो शरीर रहते हुए भी मृतप्राय सा ही रहता है।यहाँ एक हिंदी फिल्म का पुराना गीत एकदम फिट बैठता है कि,"पार हुआ वो रहा जो सफर में,जो भी रुका,घिर गया वो भंवर में,नाव तो क्या,बह जाये किनारा बड़ी ही तेज समय की है धारा तुझको चलना होगा,तुझको चलना होगा "।जीवन को सकारत्मक दृष्टि प्रदान करना ही जीवन की सार्थकता है।
सन २०२० सम्पूर्ण विश्व को झंकझोर कर रख दिया जो आज भी हमारा पीछा किये हुए है,कोरोना ने जितना नुक्सान मानव समाज को पहुँचाया है उससे उबरने में एड़ी-चोटी का जोर पुरे विश्व को लगाना पड़ रहा है,इस त्राश्दी ने अबतक पुरे विश्व में लगभग 37 लाख से ज्यादा लोगों की मौते हुई हैं और अपने देश में तीन लाख पचास हजार से ऊपर मौते हुई हैं।जैसे ही अपने देश में लाकडाउन घोषित हुआ जीवन मानो थम सा गया,जो जहाँ पर था वहीँ पर जाम सा हो गया,भले उसका बजट उसे इसके लिए स्वीकृति दे रहा हो या नहीं,उसकी मज़बूरी बन गयी थी।उन दिनों को याद करके ही सिहरन पैदा हो जाती है, सबसे अधिक और दुखद कष्ट उन श्रमिकों ने सहा है जो जीविका के लिए दूसरे प्रदेशों में गए थे,और अपने प्रदेशों के लिए वापस हो लिए,न कोई साधन,न ही भोजन की व्यवस्था भूखे-प्यासे खुद और बच्चों सहित परिवार,बस पैदल चलते जाना,जीवन बचाने की जद्दोजहद,जो संघर्ष जीवन बचाने के लिए इनके द्वारा किया गया वो कभी भी भूल नहीं पाएंगे,उसी में रास्ते में कुछ को अपनों के खोने का दर्द भी महसूस करना पड़ा।कुछ सामाजिक संघटन और व्यक्तिगत लोगों ने इनकी इस त्राशदी के दौरान जो सेवा-भाव से मदद किया वो भी एक मिसाल रहेगी और असली भारतीय भावना की प्रतीक रहेगी।कोरोना की मार से अभी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी प्रभावित हैं।धीरे-धीरे लाकडाउन खुलता गया और जीवन पटरी पर रेंगने लगी,लोग कोरोना को पीछे छोड़ने का प्रयास करते हुए अपने जीवन को फिर से सजाने में लगे हुए थे,सरकारें भी बेपरवाह होकर और खुशफहमी पालकर की हमने कोरोना को अच्छी ढंग से हैंडल किया निश्चिंत होकर चुनाव में व्यस्त हो गयी और हम भी लापरवाह हो गए और इसी बीच जो दूसरी लहर कोरोना की आयी वो अत्यंत ही भयानक और बेहद पीड़ादायक थी जिससे अभी भी पूरी तरह से हमलोग उभर नहीं पाए हैं,जो पीड़ा और न मिटने वाला दर्द हजारों परिवार को मिला है उससे शायद ही कभी वो पूरी तरह से उबर पाएं,जिस तरह से सरकार की कमिया इसमें उजागर हुई वो बेहद ही शर्मनाक थी,इस दूसरी लहर में तो कई ऐसे परिवार सामने आये जो पूरी तरह से बिखर गए केवल नाबालिग बच्चे और बच्चियां ही जीवित रह पायीं जिन्हे हम सहारा तो दे सकते हैं पर उनकी उस पीड़ा को नहीं बाँट सकते जो उन्हें माता-पिता के खोने से मिला है।सरकार का दायित्व है की केवल इन्हे सुरक्षा और जीवनयापन की गारेंटी ही न प्रदान करे बल्कि बड़ियाँ से बड़ियाँ शिक्षा भी मुफ्त मुहैया कराये और प्रत्येक बच्चे की मॉनिटरिंग की सुदृण व्यवस्था भी बनाये,ऐसा न हो की जैसा की जिम्मेदार सरकारी मुहकमा करता है कि समय व्यतीत होते ही भुला बैठता है क्यूंकि सभी इस चीज को भूल चुके होते हैं और व्यवस्था अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ जाता है,ऐसा कदापि न होने पाए,सरकार की जो कमियां रही है उसका इस विषय पर बेहतरीन काम करना उनकी सबसे अच्छी प्रायश्चित होगा और उन्हें करना भी चाहिए।इसके साथ ही हर उस परिवार की देखभाल करना भी सरकार का परम दायित्व है जिन परिवारों में रोजी-रोटी का प्रश्न खड़ा हो गया है,ये उन्हें अवश्य ही करना चाहिए,इसका अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी समाधान खोजना होगा और उसे अमल में भी लाना होगा केवल नवंबर माह या उससे आगे तक मुफ्त अनाज देने से इसका स्थायी समाधान नहीं होगा,अतः इसे गंभीरता से लेना होगा।
इस कोरोना के त्राशदी ने ने हमें बहुत कुछ सीखने और बेहतर करने की चेतावनी दे दी है,इस त्राशदी ने हमारे स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल के रख दी है,बुनियादी संशाधनो की जो कमिया विकराल रूप से प्रगट हुई वो चिंतनीय था।हमें २०२१ और उससे आगे का भविष्य बनाना है।किसी भी देश का उन्नतशील बनने के लिए देश को स्वस्थ रहना होगा,यानी जब नागरिक स्वस्थ होगा तभी देश अच्छे से तरक्की करेगा,अर्थार्त स्वास्थ विभाग को मजबूत बनाना होगा।सन २०१९-२० में देश का स्वास्थ विभाग का बजट लगभग ६२६५९ करोड़ रुपया था,और २०२०-२१ में ६९००० करोड़ रुपया था।इतना बजट होते हुए भी जिस प्रकार से संसाधनों का टोटा सामने आया वो चिंतनीय था।क्यूंकि हर वर्ष बजट में अच्छी-खासी धनराशि मुहैया कराइ जाती है।इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में भी भारी-भरकम धनराशि उपलब्ध कराई जाती है,लेकिन रोना हमेशा बना रहता है,इसके साथ ही कई बार कुछ मदों में विश्व बैंक ने भी समय-समय पर मदद किया है।यहाँ यदि इस बात का आंकलन किया जाये की कितनी नयी बिल्डिंगे स्वास्थ विभाग की विगत बीस वर्षों में बनकर खड़ी हो गयी और जिनका कोई उपयोग नहीं हो रहा है केवल शोपीस के रूप में खड़ी हैं तो चौकाने वाले तथ्य मिलेंगे,बिल्डिंग बनाने में ज्यादा आनंद है वो क्यों है उसे बताने की जरुरत नहीं है,भाई यदि उपयोग में नहीं आ रहा है तो बनवाया क्यों ?देहात के क्षेत्रों में डाक्टरों और विशेष तौर से महिला डाक्टरों का टोटा हमेशा बना रहता है,संशाधनो का तो पूछिए ही मत,यदि एक्स रे मशीन है भी तो चलाने वाला नहीं,वो भी है तो एक्स रे फिल्म नहीं,तरह-तरह के बहाने मिल जाएंगे,कुछ जगह पर तो आप अपना सर पकड़ लेंगे की कोई अच्छी आधुनिक मशीन आयी तो है पर रखे-रखे जंग खा रही है की चलाने वाला नहीं,की कुछ और नहीं।इस कोरोना की त्रास्दी ने ये भी दिखा और जनता को रूबरू करा दिया की कई जिलों में तो वेंटिलेटर ही नहीं है,ऑक्सीजन के सिलेंडर की बेहद कमी भी परिलक्षित हुई जिसका सभी कोरोना पीड़ितों ने खामियाजा भी भुक्ता और असमय ही मौत के शिकार हुए, कहीं दवाइयों का तो कहीं बाहर से दवा का परचा लिखने की बीमारी।कहने को तो स्वास्थ्य विभाग जिस पर सबको स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी है वो ही कभी -कभी क्या प्रायः बीमार ही लगता है।स्वास्थ्य विभाग में सबसे बड़ा खाज रहा है यहाँ व्याप्त भ्रष्टाचार,सभी जिलों में यदि डाटा इकठ्ठा कराया जाये तो एक से बढ़कर एक कारनामे सामने आएंगे।बाहर से दवाइयों और जांचो में पैसा भी मिलता है।कभी-कभी चैनलों पर स्वास्थ विभाग को लेकर ऐसी-ऐसी खबरे चलेंगी की शर्मशार होने के अलावा कुछ नहीं होता।यहाँ पर भ्रष्टाचार की जड़ें काफी मजबूती से पांव पसार लेती है।आप उत्तर प्रदेश को ही लेलें तो भ्रष्टाचार की एक से एक किस्से और कहानिया सुनने को मिलेगी जिस पर आप विश्वास ही नहीं कर पाएंगे,यही कारण है की बजट पता ही नहीं लगता और आम इंसान कष्टों को झेलने के लिए मजबूर रहता है,इस विभाग में बाबुओं का एक पूरा का पूरा कॉकस काम करता है जो लगभग हर जिले में मौजूद रहता है और पुरे सिस्टम को अपने गिरफ्त में लिए रहता है जो भी अधिकारी आता है इनके चंगुल में फंस जाता है क्यूंकि ये हर कला में माहिर होते हैं।इनके कारनामे सुनकर हैरान रह जाएंगे,एक जिले में तो मृतक सी ऍम ओ के ही हस्ताक्षर स्कैन कर के पेमेंट निकालने का प्रयास किया गया था n h l r m स्कैम जो उत्तर प्रदेश में हुआ था जिसमे कई सी ऍम ओ की संधिग्द परिस्थितियों में मौत भी हो गयी थी कई बड़े अधिकारी जेल तक गए थे ये किसी से छुपा नहीं है, इसलिए देश के बेहतर भविष्य के लिए इसे सुधारना और इसकी सर्जरी करना बहुत आवश्यक है।
यदि स्वास्थ्य विभाग को चुस्त और दुरुस्त बनाना है तो निम्न बातों को अमल में लाना होगा-----
१-सभी मेडिकल पास कर निकलने वाले डाक्टरों के लिए तीन वर्ष कम से कम देहात क्षेत्र में सेवा देना अनिवार्य बनाया जाये।
२-सभी दवा जो भी हॉस्पिटलों में भेजा जाये उसकी त्रिस्तरीय सत्यापन हो और हर स्तर से सीधा सत्यापन मुख्यालय पहुंचे और सभी का मिलान हो।इसकी डाटा ऑनलाइन हो और पब्लिक डोमेन में भी हो।
३-प्रतयेक दिन जो भी दवा वितरण किया जाये उसकी ऑनलाइन फीडिंग हो और उसकी मॉनिटरिंग हो।
४-प्रतयेक मरीज का नाम,पता और मोबाइल नम्बर अवश्य लिखा जाये और उसे भी ऑनलाइन किया जाये जिससे रैंडम्ली पूछ-ताछ की जा सके और सत्यापन किया जा सके।
५-जो भी टेक्नीकल मशीने हैं उसकी भी प्रत्येक दिन की रिपोर्ट ली जाये,क्या प्रगति उसकी रही कितनी जांचे की गयी है और किसकी ?
६-हर तीन माह पर प्रत्येक स्वास्थ केंद्र की ऑनलाइन रिपोर्ट ली जाये की वहां क्या जरुरत है,और उसकी पूर्ति की जाये।
७-तहसील में एस डी एम्,और बी डी ओ को जिम्मेदारी दी जाये अनिवार्य रूप से की माह मेंकम से कम दो सेंटरों की निर्धारित बिंदुओं पर गहन समीक्षा करें और रिपोर्ट करें,यदि बाद में उसमे कोई कमी पायी जाती है तो उनकी भी जिम्मेदारी फिक्स की जाये।अपने निरिक्षण की मोबाइल से विडिओग्राफी भी करे और रिपोर्ट ऑनलाइन भी हो।
८-डाक्टरों की हाजरी चेक करने के लिए या तो सारे स्वास्थ्य केंद्र को ऑनलाइन जोड़ा जाये या फिर जी पी एस प्रणाली अपनायी जाये।
९-डाक्टरों और कर्मचारियों के रहने की बेहतर व्यवस्था व सुरक्षा दी जाये।उनको बेहतर सुविधा प्रदान की जाए।
१०-सी ऍम ओ/डिप्टी सी ऍम ओ को अवश्य जी पी एस प्रणाली से जोड़ा जाये।बल्कि स्वास्थय विभाग में जितनी भी गाड़ियां हैं उसे इस प्रणाली से जोड़ा जाये।
११-प्रत्येक वर्ष जिले,मंडलवार व् प्रदेशवार अच्छे डाक्टर,नर्स,कम्पाउडर,वार्डबॉय और टेक्नीकल स्टाफ को पुरस्कृत कर उत्साहवर्धन किया जाए और जो अपनी ड्यूटी में अत्यंत लापरवाही बरत रहा है उसे दण्डित भी किया जाए,इसके लिए सभी का रिपोर्ट कार्ड उसके उच्च अधिकारी प्रत्येक तीन माह में बनाये और इसी आधार पर उनके कार्यों का मूल्यांकन भी हो।
स्वास्थय विभाग पर जिले में हर जनप्रतिनिधि और आला अधिकारी की निगाह रहती है खूब आकस्मिक और गैर आकस्मिक निरिक्षण होता है पर रिजल्ट वही ढाक के तीन पात,इसमें व्यापक सुधार की जरुरत है।तभी हमारा आने वाला वर्ष बेहतर और मजबूत बनेगा।
किसी भी राष्ट्र के मजबूती का एक सबसे बड़ा स्तम्भ शिक्षा भी होता है,हमारे यहाँ विशेष तौर से उत्तर प्रदेश में प्राइमरी की शिक्षा की गुडवत्ता ऐसा नहीं है जिस पर गर्व कर सकें,अजीब सा हाल रहता है यदि किसी भी प्राइमरी या जूनियर स्कूल अचानक जाइये तो वहां के बच्चों से पहाड़ा पूछिए या फिर सामान्य ज्ञान अधिकतर बच्चे बगले झाकने लगते हैं,इसमें उनका कोई कसूर नहीं है,कसूर है पढ़ाने वाले का,मन चाही पोस्टिंग के लिए मारा-मारी रहती है मिल जाये तो केवल फर्ज निभाना चाहेंगे,ऐसा नहीं है की सभी ऐसे हैं जो जिम्मेदारी से अपनी ड्यूटी निभाते हैं उनका स्कूल और वहां का माहौल अलग तरीके का दिखता है,ऐसे स्कूलों में जाने पर वहां के शिक्षकों पर गर्व महसूस होता है और पुरानी भावनाओं की याद ताजा कर जाता है,पर ऐसे कुछ ही स्कूल मिलेंगे।यहाँ भी जो अधिकारी चाहे वो खंड शिक्षा अधिकारी हों या फिर बेसिक शिक्षा अधिकारी लगे हुए है वो अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन नहीं करते,निरिक्षण को तो केवल कोटा पूरा करने के लिए,यहाँ चिकित्सीय अवकाश हो या फिर कोई या फिर सस्पेंसन हो हर जगह दोहन की शिकायत मिलती है,स्वेटर से लेकर ड्रेस तक में एक से एक कारनामे देखने को मिलेंगे,कई स्कूल आपको ऐसे मिलेंगे की बच्चों की उपस्थिति ही जहाँ ४०-से ६० होगी या फिर रजिस्टर्ड बच्चे ही ७० या ८० होंगे वहां आप को तीन से चार गुरूजी मिल जाएंगे और जहाँ १५० से २०० बच्चे रजिस्टर्ड होंगे वहां दो मिलेंगे,इसके अतिरिक्त जहाँ बच्चे ज्यादा संख्या में रजिस्टर्ड होते हैं वहां उपस्थिति नाम मात्र की होती है,पढ़ने की गुडवत्ता चेक करने वाला सही माने में कोई नहीं मिलेगा,खंड शिक्षा अधिकारी जिसका मूल कार्य ही एहि है वो भी केवल फर्ज निभाता मिलेगा,यदि खंड शिक्षा अधिकारीयों से ये प्रमाण पत्र सही रूप में माँगा जाये की आप के अधीन आने वाले सभी विधायलों की गुडवत्ता ६०%से ऊपर है तो सही माने में नहीं दे पाएंगे , 100%की तो बात ही छोड़ दीजिये ये तो सपना है,आखिर ऐसा क्यों है,जबकि वेतन सबको अच्छा-खासा मिल रहा है वेतन तो सरकारी कर्मचारी और अधिकारी अपना जनम सिद्ध अधिकार समझ लेता है चाहे कुछ करे या न करे,ये ही प्रवित्ति जिसके अंदर घर कर जाती है वो ही सरकारी कामो के गुडवत्ता के लिए सबसे बड़ा बाधक हो जाता है।एक और भावना काम करती है की सरकारी सेवा कोई ले नहीं सकता चाहे कुछ करो।यहाँ फर्जी डिग्री के सहारे नौकरी करने वाले भी बहुत मिल जाएंगे,जिनकी छटनी अत्यंत आवश्यक है।यहाँ बच्चों को जो ड्रेस,स्वेटर,मोज़े,जूते दिए जाते हैं उसकी गुद्वात्ता की नमूना जो पास किया गया है उससे मिलान हो,मैंने बलिया जिले में पाया था की २८ नम्बर का स्वेटर ३२ नम्बर से बड़ा था और जो नमूना था उसके बराबर क्वालिटी नहीं थी,इसपर विशेष ध्यान देने की जरुरत है,ड्रेस ऐसा होना चाहिए या मोज़े जूते ऐसे होने चाहिए की एक वर्ष चले तो,केवल नाम के लिए देना चाहिए।
शिक्षा विभाग को सुधारने के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं--------
१-शिक्षकों को शिक्षा के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य न सौंपा जाये।
२-खंड शिक्षा अधिकारीयों का जिले में कार्यकाल पांच वर्ष से ज्यादा न हो और किसी भी ब्लाक में एक वर्ष से ज्यादा न हो।
३-खंड शिक्षा अधिकारीयों का जो भी निरिक्षण हो वो अपने मोबाइल से क्या-क्या पूछे बच्चों से व् क्या देखे सबका वीडियो बनाया जाये और उसे एक साइड पर अपलोड भी करें जिसकी गहनता से समीक्षा उच्च अधिकारी करें।सप्ताह में कम से कम पांच विद्यालयों का निरिक्षण अवश्य करें।
४-बेसिक शिक्षा अधिकारी भी इसी प्रकार निरीक्षण करें और इनका भी कार्यकाल जिले में तीन वर्ष से ज्यादा कत्तई न हो।
५-प्रत्येक खंड शिक्षा अधिकारियों और बेसिक शिक्षा अधिकारियों की हर तीन माह पर उनके कार्य के आधार पर रिपोर्ट कार्ड बनाया जाये यही उनके पोस्टिंग और पुरुष्कार तथा दंड का आधार बने।
६-ड्रेस,स्वेटर,जूता जो सप्लाई किया जाता है उसके नमूने और आपूर्ति किये गए सामानों का मिलान जिले पर किया जाये और वहां से जिलाधिकारी स्तर से प्रमाणपत्र लिया जाये की कोई अंतर नहीं है और गुडवत्ता तथा नाप सही है।
७-प्रत्येक शिक्षकों का भी रिपोर्ट कार्ड हर तीन माह पर बने उन्हें भी इसी आधार पर पोस्टिंग,पुरुष्कार व दंड मिले।
८-शिक्षकों की सारी छुट्टियां ऑनलाइन स्वीकृत किया जाये और विलम्ब हुआ तो कारण भी दर्शाया जाये।
९-परीक्षा का स्तर सुधारा जाये,ऐसा बनाया जाये की केवल औपचारिक मात्र न बन जाए।ऐसी विधि अमल में लायी जाए जिससे की गुडवत्ता और सुचिता दोनों बानी रहे केवल प्रमोट न किया जाए।इसके लिए न्याय पंचायत स्तर पर परीक्षा का आयोजन किया जा सकता है।
२०२१ व उसके आगे देश का भविष्य उत्तम और उत्कृष्ट बनाने के लिए तीन और महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसे व्यापक स्तर पर सुधारना होगा,जैसे प्रशासन के दोनों अंग(राजस्व व् पुलिस),विकास विभाग और राजनीति का क्षेत्र,लेकिन इसके सुधार के लिए एक पूरी किताब लिखी जा सकती है,क्यूंकि यहाँ पर भी भ्रष्टाचार बहुत ही मजबूती और गहरे से पाँव पसार चुकी है,इसे अलग से लिखा जायेगा क्यूंकि इसके लिए अलग ही टॉपिक होना चाहिए।यदि इन विभगों की ओवरहालिंग नहीं की गयी तो निश्चित ही बेहतर भविष्य की परिकल्पना नहीं कर सकते हैं,आप बाहर से कितना ही रंगपोत लें अंदर से खोखला ही नजर आएगा।दिक्कत यही है की लिखे को कोई पड़ेगा नहीं और जो नीतिनिर्धारक ब्यूरोक्रेट बैठें है टाप पर वो अपने से अधिक किसी को भी काबिल मानने को तैयार किसी भी दशा में नहीं है,उनसे बुद्धिमान कोई हो ही नहीं सकता ये उनकी प्रबल धारणा है,अतः वो जो सही समझते हैं वही क्रियान्वयन करवाते हैं,अब देखना है की कितना सुधार करते हैं की जनता का भला हो सके,जिस देश की स्वास्थय और शिक्षा व्यवस्था सुदृण हो जायेगी वह देश न केवल उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ेगा बल्कि एक सही विकल्प भी चुनाव में चुनेगा।इसमें बिना किसी राजनीति के और स्वच्छ मन से निर्णय लेना होगा तभी एक सही और ठोस रास्ता निकल कर आएगा,केवल बड़ी-बड़ी बातों से नहीं होगा भ्रष्ट लोगों के साथ कड़ाई से पेश आना होगा और उन्हें सलाखों के पीछे भेजना होगा,ये प्रक्रिया हर जिले में गहनता से जांच करवाकर करना होगा,जांच अधिकारी का चयन उसकी ईमानदारी और विश्वसनीयता के आधार पर हो क्यूंकि अक्सर ये होता है की जांच भी क्लीनचीट देकर या थोड़े मोड़े कार्यवाही कर अपना पिंड छुड़ा लेती है और वो भी उसी मलाई का हिस्सेदार बनकर लौट आती है।अब देखना ये है की शासन इसे कितनी गंभीरता से लेती है और क्या ठोस उपाय अमल में लाती है।अन्यथा ये जान लीजिये की हम एक कमजोर नीव के घर में रह रहे हैं जिसे बाहर से रंग पोत कर चमकाए हुए हैं जो कभी भी गिर सकता है।



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