वैक्सीन का संग्राम - क्या है समाधान ! - समझाविश बाबू

वैश्विक महामारी कोरोना ने जिस तरह से समूचे विश्व को अपने गिरफ्त में ले लिया है और लाखों लोगों को मौत की नींद सुला दिया है वो अपने में एक ऐसी दर्दभरी दास्तान है जिसे इतिहास के पन्ने से कभी मिटाया नहीं जा सकेगा,


जिन-जिन परिवार ने अपनों को खोया है उनकी पीड़ा को केवल और केवल वो ही समझ सकते हैं,आज भी इस के प्रकोप से आमजन भयभीत हैं और आने वाले इसके चालों के बारे में सुन-सुन कर सहमे हुए हैं,कुछ देशों ने इसपर बहुत ही अच्छा काम किया और काफी हद तक इसको नियंत्रित कर पाया है,ये बात सभी देशों को समझ में आ गयी थी की इस महामारी से लड़ने का सबसे कारगर उपाय वैक्सीन ही  होगा,दवाएं,इंजेक्शन आदि तो केवल फौरी तौर पर ही कारगर होंगी,इसी कारण कई देशों ने वैक्सीन पर शिद्दत और मेहनत के साथ काम करना शुरू कर दिया और वहां के वैज्ञानिकों ने इस विषय पर बहुत ही गहनता से शोध किया और वैक्सीन बनाने में कामयाबी पायी,इसमें अमेरिका,ब्रिटैन,रूस,इजरायल,चाइना के साथ अपना देश भी था,अपने देश में दो तरह के वैक्सीन विकसित हुए एक कोवीसील्ड के नाम से जाना गया और दूसरा कोवैक्सीन है,सीरम इंस्टिट्यूट द्वारा बनायीं गयी वैक्सीन कोवीसील्ड है और भारत बायोटेक का टीका कोवैक्सीन है,जब इन टीकों की घोषणा अपने देश में हुई और इसे प्रभावी बताकर देश की जनता को न केवल आश्वस्त करने की कोशिस की गयी बल्कि उनके अंदर के भय को कुछ कम कम करने की भी कोशिस की गई,लेकिन जैसा की अपने देश में एक परिपाटी बन गयी है ठीक उसी तरह विपक्ष ने इसको लेकर सवाल खड़े कर दिए और आपत्तिजनक स्थिति तक इसको ले गए,यहाँ तक की एक विपक्षी दल ने तो इस टीके को दल विशेष का टीका बताकर लगवाने से साफ़ इंकार कर दिया और कहा की जब हम आएंगे तब अपना टीका लगवाएंगे।देश के लगभग सारे विपक्ष ने इसपर हल्ला बोल दिया और ऐसा प्रदर्शित करने लगे जैसे की कोरोना से बचाव का टीका नहीं जहर का टीका लांच हो रहा हो,चैनलों के डिबेटोँ में ऐसा लगता था की टीका आना ही नहीं चाहिए था पहले सभी विपक्ष के लोगों का उस टीके पर हस्ताक्षर करवाना चाहिए था तब जाकर टीका लाना चाहिए था,हाँ ये अवश्य है की विपक्ष को विश्वास में लेने का प्रयास करना चाहिए था,ये केवल श्रेय लेने का विषय नहीं था ये जनता की जिंदगी का सवाल था,इसमें क्रेडिट कोई भी ले भला जनता का हो मोटिव यही होना चाहिए था,पर यहाँ तो हर बात पर इतने निचले स्तर की राजनीति होती है कि जनता शर्मा जाए पर इनको शर्म नहीं आती है,यही हर विषय पर देखने को मिल रहा है।दुःख तो तब होता है जब चैनलों के डिबेटोँ पर या फिर अपने व्यक्तब्यों से हो रही मौतों पर और कष्टों पर घड़ियाली आंसू बहाते हैं,ये सत्ता और विपक्ष दोनों पर लागू होता है,जिस तरह से ये अपने दुःख और कष्टों को बयान करते हैं ईश्वर न करे किसी परिवार में इस तरह से दुखों और कष्टों पर आपस में इजहार हो अन्यथा सम्बन्ध ही मृतप्राय हो जाएंगे,ये जनता भलीभांति समझ गयी है कि किसी को भी जनता के सच्चे हितों से सरोकार नहीं है बल्कि सत्ता से सरोकार है,जिसके हाथ में है उसे बचाये रखने का जद्दोजहद है और जिससे छिन गयी है उसे पाने कि पीड़ा है,यहाँ एक गीत एकदम से फिट बैठता है कि "मैं तो सत्ता सत्ता चिल्लाऊंगा कुरता फाड़के",चलिए ये मान लिया जाता है कि विपक्ष को जनता कि बहुत पीड़ा है और सत्ता पक्ष कुछ नहीं कर रहा है तो आप ही कुछ उदाहरण पेश करते जो देश में नहीं विश्व में एक नजीर बन जाता,ये आमजन भी बेहतर से जानते हैं कि जब-जब देश या प्रदेश का चुनाव आता है तो सत्ता पक्ष और विपक्ष अरबों रूपया चुनाव में खर्च करते हैं हाँ ये अवश्य है कि सत्ता पक्ष कुछ ज्यादा खर्च करता है पर ये तो ध्रुव सत्य है कि खर्च करते हैं,तो फिर जनता कि जिंदगी को बचाने के लिए सत्ता कि जगह आप ही कोई सार्थक पहल किये होते तो जनता आप को सर माथे पर बैठाती,पर आप सभी तो सत्ता विरोधी लहर का इन्तजार करते हैं और अपनी बारी का इन्तजार करते हैं,सत्ता में कोई रहे पिसती तो जनता ही है,भला तो केवल और केवल आप का ही होता है।सत्ता मिलते ही पारस पत्थर मिल जाता है जो जाने के बाद खाली समय में भी काम आता है और अच्छे से समय सत्ता के इंतजारी में बीत जाता है।जिस तरह से जनता में अपने मरीजों को बचाने के लिए त्राहि-त्राहि मची थी और जिस तरह से उन्होंने अपनों को खोया ये सिर्फ और सिर्फ अच्छी तैयारी न करने का नतीजा था ये वैसे ही था कि बिना पढ़े शिक्षा में टॉप करने कि अभिलाषा हो,लेकिन आप विपक्ष में थे तो विरोध के अलावा और क्या किया,केवल और केवल बातें,जब-जब चुनाव होते हैं तो मतदाताओं को लुभाने के लिए पोलिंग स्टेशनो के बाहर बहुत टेंट लगाते हैं और उसे मतदाताओं के सहूलियत का जामा पहनाते हैं और आपके सक्रिय कार्यकर्ता पुरे समय बैठे रहते हैं,क्यों नहीं हर हॉस्पिटलों के बाहर आपने ऐसा करने का प्रयास किया जनता को थोड़ी राहत मिलती और आप का जो छुपा मकसद रहता है उसमे भी फ़ायदा होता पर नहीं आप दोनों तो बस ऐसे लड़ रहे हो जैसे दो दुश्मन लड़ रहे हों,लेकिन ये भी सच है कि ये केवल आप लोगों कि पब्लिक को दिखाने के लिए नूरा कुश्ती होती है बाकी तो सभी मौज में रहते हो,आप दोनों  को केवल और केवल सत्ता ही दिखाई देती है,ये सत्ता कि भूख ही थी कि तैयारी कोरोना से लड़ने के लिए बेहतर ढंग से नहीं हो पायी।चुनाव सर्वोपरि माना गया। 

                                        अब जरा वैक्सीन पर मचे घमासान पर भी बात कर ली जाए,अब ये वैक्सीन सभी विपक्ष को भी अच्छी लगने लगी चलिए देर आये दुरुस्त आये,जो जनता में भ्रांतियां फ़ैल गयी थी वो कम तो हुआ अब वैक्सीन कि कमी का रोना है जब कि इस समय सबसे ज्यादा दरकार है।आज वैक्सीन कि उपलब्धता मांग के अनुसार बिलकुल नहीं है,केंद्रों पर भीड़ उमड़ रही है पर उपलब्धता न होने के कारण जनता को वापस जाना पड़ रहा है।आज मांग बहुत ज्यादा है और आपूर्ति बेहद कम,सब एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने में लगे हैं,लेकिन इससे पब्लिक का क्या भला होने वाला है?ये बात बिलकुल सही है की अपने देश की आबादी को देखते हुए जिस गति से टीका लग रहा है इसमें कोरोना के जितने लहर आने होंगे आ जायेंगे और हमारा टीकाकरण कछुए की चाल से चलता रहेगा हम केवल आबादी का रोना रोते रहेंगे।अभी तक जो सबसे सफल वैक्सीन विश्व में ज्ञात हुए हैं उनमे अमेरिका की फाइज़र कंपनी द्वारा बनाई गई वैक्सीन है जो ९०%असरदार बताई गयी है,इसी प्रकार रूस की स्पूतनिक वैक्सीन ९२% असरदार बताई गई है,इजरायल देश ने तो कमाल कर दिया और १००% टीकाकरण भी कर दिया,अपने देश की वैक्सीन भी काफी असरदार है,अब इसे किसको फ्री और किसको मूल्य चूका कर लगाना है इसकी एक पुख्ता स्ट्रैटजी बननी चाहिए था जो नहीं बना। 

                  मेरी समझ से तीन स्तर में जनता को विभक्त करना चाहिए था,१-वो जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं अगर संभव हो तो इसकी सीमा एक लाख आय तक कर देना चाहिए,इन्हे मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध होना चाहिए,२-एक लाख से चार लाख तक आय वालों को नामिनल चार्ज पर उपलब्ध कराना चाहिए,३-इसके ऊपर सभी व्यक्ति को निर्धारित मूल्य पर उपलब्ध कराना चाहिए,यहाँ एक बात और जिन फ्रंट लाइन वर्कर्स को फ्री में टीकाकरण किया गया ये मेरी समझ से बहुत तर्कपूर्ण नहीं था,ये सही है की वो अपनी जान को जोखिम में डालकर पब्लिक की सेवा किसी न किसी प्रकार से कर रहे हैं पर ये सभी वेतन भोगी थे और कुछ तो अच्छी आय वाले थे इनको मूल्य पर टीकाकरण करना चाहिए था उनके वेतन से कट जाता,आप इनकी सेवा को अन्य तरीके से सम्मानित कर सकते थे। 

                                    वैक्सीन के लिए सभी विकल्प खोल देना चाहिए इसमें विदेशी वैक्सीन भी है,सभी को भारत में लाने का कारगर प्रयास करना चाहिए,इसके बाद वैक्सीन को लगाने के तरीके पर बहुत ही फुलप्रूफ योजना बनाना चाहिए,जो मूल्य पर लगना है उसे निजी हॉस्पिटलों को भी सौंप देना चाहिए बस इतनी निगरानी अवश्य हो की निर्धारित मूल्य से ज्यादा न वसूला जाए,शेष दो कैटेगरी वालों को छोटे-छोटे सेंटर बनाकर जिस तरह से मतदान होता है उस तरह से लगवाने का प्रयास करना चाहिए इसमें आंगनवाणी, अध्यापक, रोजगारसेवक, पंचायत सेक्रेटरी, आशा कार्यकर्ता, लेखपाल इन सबकी मदद लेना चाहिए केवल गिने-चुने सेंटर बनाकर टीकाकरण कत्तई सही और कारगर ढंग से नहीं कराया जा सकता है,जब तक छोटे-छोटे सेंटर नहीं बनाये जाएंगे तबतक सफलतापूर्वक कामयाबी नहीं मिलेगी।

                            ये सभी चीज तभी सफल हो सकते हैं जब वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित किया जा सके और जो सुनिश्चित किया जाए वो धरातल पर सही उतरे उसमे कोई बहानेबाजी न हो,ये लड़ाई देश की जनता की जिंदगी बचने की है,बहुत मौतें देख ली गयीं अब और नहीं सभी सत्ता पक्ष और विपक्ष इस बात को समझ ले इसे राजनीतिक फायदे का विषय न बनाया जाए,देश सर्वोपरि है,जनता ही सबकुछ है सत्ता बाद में है,सभी को मिलकर इस लड़ाई से लड़ना राजनीति बंद करिये और ठोस कार्य करिये लड़ने के तो अवसर हमेशा आपलोगों को मिलते रहेंगे तब लड़ते रहिएगा देश के वास्ते अभी नहीं अभी अपनी साड़ी योग्यता और काबिलियत देश की जनता की जिंदगी बचने में लगाइये,यदि जनता निराश और हताश हो गयी तो आप भी सुकून से नहीं रह पाएंगे,आज उस चीज पर अमल करिये जो आप सभी झूठा ही सही कहते तो हैं सबसे ज्यादा चुनाव के समय की जनता हमारी माई बाप है या फिर जनता ही भगवान् है,इसी पर अमल करिये। 

                                        जय हिन्द जय जनता ।।

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