सबक जो हम लेते नहीं - समझाविश बाबू
जिन पांच राज्यों के चुनाव के लिए हम कोरोना महामारी को भूल बैठे थे और जोर-शोर से प्रचार-प्रसार में लगे थे,हिंसा-प्रतिहिंसा का बोलबाला था,एक से एक कटु वचनो के प्रयोग हो रहे थे,एक दूसरे पर एक से एक वाक्यों का प्रयोग हो रहा था,ऐसा लग रहा था की चुनाव से बड़ा कुछ नहीं है कोरोना तो आया है एक न एक दिन अपने से चला जाएगा उसके लिए क्या माथापच्ची करना,जो देश के सभी नागरिकों के जीवन के लिए जरुरी था उसे ही हम भुला बैठे थे,जिसका खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा है,आज पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम ने कई सबक दिए हैं यदि समझ में आ जाए तो समझा जा सकता है,याद कीजिये २०१४ का लोकसभा का चुनाव जिसमे एक व्यक्ति को टारगेट कर कई आपत्तिजनक टिप्पड़ियां की गयी जिसका असर ये हुआ की जनता ने इस बात को अच्छा नहीं माना और टिप्पड़ी करने वालों को सबक सीखा दिया,इसी प्रकार २०१९ में भी कमोबेश हुआ,लेकिन जिसको इससे फ़ायदा पहुंचा वो ही ये गलत प्रयोग पश्चिम बंगाल में कर बैठे,नतीजा सामने है,जिस तरह से लोगों ने चौकीदार चोर है के नारों को नकारा था और नारा देने वाले को कड़ा सबक सिखाया था उसी तरह "दीदी ओ दीदी'' को लिया, नतीजा सामने है,एक बात और जिस तरह से २०१४ और २०१९ में सभी एक को ही टारगेट कर एक से एक कटु शब्दों का प्रयोग कर रहे थे जिसका नतीजा उनको उल्टा मिला वैसा ही पश्चिम बंगाल में हुआ,इसके साथ ही इसको भी नहीं नकारा जा सकता की जैसे-जैसे कोरोना का प्रकोप बढ़ता गया और पश्चिम बंगाल के दूसरे चरण नजदीक आये तो उसका भी खामियाजा भुगतना पड़ा,लेकिन दिक्कत यही है की हम इससे से कोई सबक शायद ही लें।
आज जिस तरह से कोरोना का कहर आम हो या खास के जिंदगी पर कहर बन के टूट रहा है वो जनता को भीतर तक हिला के रख दिया है,क्या हममें से किसी ने ये सोचा था की हम हॉस्पिटल में बेड पाने और ऑक्सीजन तथा दवाओं के लिए आंसू बहाएंगे और मिलेगा जिल्लत भरी मौत,हम अपनों को अपनी नजरों के सामने ही मरते हुए बेबसी में देखते रहेंगे और कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं रहेंगे,आज जनता के मन में जहाँ डर और बेबसी भर गयी है वही एक गुस्सा और क्षोभ भी भर गया है जब भी उसे निकाने का मौका जिस रूप में मिलेगा वो निकालेगा ही,और निकल भी रहा है जहाँ मौका मिल रहा है,फिर भी अगर समझ में न आये तो फिर क्या कहा जा सकता है।
आज के हालात को देखते हुए जब बड़े से बड़े चिकित्सक ये राय दे रहें है की लाकडाउन लगाना आवश्यक है,माननीय उच्च और सर्वोच्च न्यायलय भी निर्देश दे रहें है तो फिर क्यों नहीं विचार किया जा रहा है समझ से परे है,जरा व्यवहारिक रूप से इसे समझने की जरुरत है,बेड है नहीं,ऑक्सीजन जितनी चाहिए उससे अत्यधिक मात्रा में कम उपलब्ध है,रेडमेसियर इंजेक्शन की तो बात ही छोड़ दीजिये,जरुरी दवाओं के लिए पुरे शहर का चक्कर लगाइये सभी दवा मिल जाए तो आप खुश किस्मत हैं,प्राइवेट हॉस्पिटलों के ऊँचे खर्चे जो गरीब व्यक्ति के बूते की बात तो नहीं ही है,अब जब लाकडाउन नहीं होगा तो चेन टूटेगा नहीं और मरीज बढ़ते जाएंगे फिर आप कहाँ से उनको सुविधा देंगे,बल्कि और ख़राब स्थिति होती जाएगी,मरीज पर मरीज बढ़ते जाएंगे और हम बस कागजी घोड़ा दौड़ाते रहेंगे,उसी से हम सब कुछ सही मानते रहेंगे,और धरातल पर लोग बेबसी के हालात में मरते रहेंगे।मेरे ये समझ में नहीं आ रहा है कि क्या ऐसी विवशता है या मज़बूरी है कि लाकडाउन नहीं लगाया जा सकता है जब कि लगभग सभी एक्सपर्ट इसे लगाने को लेकर सहमत हैं,तो आप क्यों असहमत हैं,चलिए यही मान लिया जाए कि नहीं लगना चाहिए तो फिर सबको बेड,ऑक्सीजन,दवाएं उपलब्ध कराइये,क्यों नहीं करा पा रहे हैं,जब हो नहीं पा रहा है तो विचार करिये,जनता के बारे में सोचिये।
आज आंकड़ों पर जीने का समय नहीं है,संख्या कम हो रहा है इसे देखकर खुश होने का समय नहीं है,ये देखने कि जरुरत है कि जान बचाने के लिए इस समय क्या आवश्यक है,जिस तरह आमजन दहशत में जी रहे हैं उनको उससे उबरने और उनमे विश्वास पैदा करने कि आवश्यकता है ,जितना आप उन कार्यों को करेंगे जिससे जनता को रहत मिले उतना ही आप अपने विश्वास को कायम रख पाएंगे,आज उन सबके खिलाफ भी शक्ति करने कि जरुरत है जो अधिकारी या कर्मचारी या फिर प्राइवेट या सरकारी हॉस्पिटल के डाक्टर लापरवाही बरत रहें हों,यद्यपि डाक्टर बड़ी तन्मयता से काम कर रहे हैं पर कुछ एक इसके जो अपवाद है उन्हें कसने कि जरुरत है,साथ ही उन प्राइवेट हॉस्पिटल को भी कसने कि जरुरत है जो मनमाना पैसा वसूल कर रहे हैं,इसके अतरिक्त जो नालायक व्यक्ति इस आपदा को भी अवसर में बदल कर ब्लैक मार्केटिंग कर रहे हैं उनको जेल पहुंचाने कि भी आवश्यकता है।हर वो उपाय कारगर रूप से करने कि आवश्यकता है जिससे इस समय जनता को बेहतर चिकित्सीय सुविधा मिल सके और उसका असर जमीनी हकीकत के रूप में दिखने लगे तो ये आप और जनता दोनों के लिए बेहतर होगा।
जय हिन्द जय भारत ।।



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