बेबस जिंदगी - समझाविश बाबू

आज हमे विश्व गुरु बनने का सपना दिखाया जा रहा था,बड़ी-बड़ी बातें की जा रही थी,ऐसा लग रहा था की अब तो अपना देश सभी संसाधनों से युक्त और अत्याधुनिक  हो जायेगा और हम ऐसे माहौल में आ जाएंगे की स्वास्थय शिक्षा में हम अत्याधुनिक सुविधाओं से लैश हो जाएंगे,क्यूंकि सब्जबाग हमें यही दिखाया गया था,हमारे यहाँ कोई भी सत्ता में रहे एक चीज मिलता-जुलता है की बातें बड़ी-बड़ी की जाती है,कोई गरीबी को जड़ से समाप्त करने की बात करता है तो कोई ये कहता है की हम सबको अमीर बना देंगे,किन्तु एक चीज दोनों में  कॉमन रहता है की दोनों में कहने वाले खुद तो बेहद अमीर बन जाते हैं जनता वहीँ की वहीँ रहती है,हाँ ये अवश्य है की दोनों जवाब में केवल और केवल एक-दूसरे पर दोष मढ़ते रहते हैं,जब सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा होता है तो कुछ समझ में भी नहीं आता,लेकिन जब विशेष परिस्थिति आती है तो पूरी तरह से इनकी पोल  खुल जाती है। 



                         आज कोरोना महामारी को ले लीजिये,मार्च २०२० में हम एक लम्बे लाकडाउन को झेले थे,कितने श्रमिकों ने दम तोड़ा था,हमें ये बताया गया था की ये जरुरी है और कोरोना के चेन को तोड़ना जरुरी है,किसी तरह वो समय इसी आशा में कट गया था,एक बात का बाद में संतोष था की ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ था,लेकिन हमारे स्वास्थय विभाग की पूरी पोल खुल गयी थी,उत्तर प्रदेश हो या फिर और वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की व्यवस्था तो न के बराबर था,चलिए ये एक खुशकिस्मती की बात थी की उस समय ज्यादा इसकी जरुरत नहीं पड़ी,उस समय ये भी जानकारी हो गयी थी की दूसरी लहर  भी इसकी आएगी और वो इससे खतरनाक होगी।तब हमें ये दिलासा दिया गया था की हम सब मिलकर दूसरे लहर  के पहले ऐसी मुकम्मल व्यवस्था कर लेंगे की कोई दिक्कत जनता को नहीं होगी।हम लोग भी इसी आशा में जी रहे थे की अब कोई दिक्कत नहीं होगी,और धीरे-धीरे सभी अपनी जिंदगी पटरी पर लाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे थे और इस आशा में जी रहे थे कि अब कोरोना का जो भी  वार होगा तो हमें भटकना नहीं पड़ेगा। 

                                 आखिर वो अशुभ घड़ी आ गयी,कोरोना का प्रकोप इतनी तेजी से पुरे देश को खासतौर से महाराष्ट्र,दिल्ली,उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों में तो हाहाकार मचा दिया,एकबारगी अफरा-तफरी मच गयी,हॉस्पिटल के आगे लम्बी कतारें,बेड की अत्यधिक कमी,ऑक्सीजन की भारी किल्लत,दवाओं का टोटा,ऐसा माहौल हो गया की हर-तरफ चीख-पुकार लोगों का क्रंदन,फूट-फूट कर रोना,ऐसा तो कभी किसी ने नहीं देखा होगा,इसी बीच सारे दावों का पोल खुल जाना,ये स्पष्ट हो गया की लगभग सालभर समय मिलने के बाद भी हमारी तैयारी न के बराबर थी,आखिर हम झूठे वादे क्यों करते हैं,हमारी यही तैयारी थी की सैकड़ों जाने ऑक्सीजन,बेड और दवा समय से न मिलने के कारण हो गयी,कोरोना के पहले लहर में हमने अपना खूब पीठ थपथपाया था की अमेरिका जैसा देश भी गंभीर समस्या से ग्रस्त हो गया था,लेकिन आज दूसरी लहर ने तो पूरे देश को बेबस कर दिया,हमारी सारी कलई खोल के रख दिया,ऐसी बेबसी तो हमने अपने पूरे जीवन में नहीं देखा था,अपने परिवार के सदस्यों को सड़क पर लेकर बेड और ऑक्सीजन के लिए गुहार लगाना,अपने बीमार परिजन को इस कातर भरी  नजरों से देखना और ये महसूस करना की अभी साँसे चल रही है,लेकिन कब तक ये दोनों को पता नहीं था,दिल्ली में एक साथ कई-कई मरीजों की साँसे इस लिए बंद हो गयी की ऑक्सीजन की उपलब्धता समाप्त हो गया,इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है,सभी इलाज के सुविधा के बाद यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसके परिवार को ये संतोष रहता है की हमने कोई कसर नहीं छोड़ी अब किस्मत में  जो लिखा था वही हो गया,लेकिन यहाँ तो बिना इलाज के लोग मर रहे हैं ये कितनी दुःख की बात है,पर आज भी यदि सरकारी आंकड़ों की बात की जाए या फिर किसी जिम्मेदार से बात की जाये तो वो भी ये कत्तई स्वीकार नहीं करेगा की कोई कमी किसी भी चीज की है,देश,प्रदेश को चलाने वाले टॉप क्लास के ब्यूरोक्रैट ऐ सी में बैठकर सारी जमीनी हकीकत जान लेते हैं और वहीँ से नित्य नए-नए फरमान  जारी करते रहते हैं,इसको एक छोटे से उदहारण से समझा जा सकता है,उत्तर प्रदेश में एक आदेश हुआ कि किसी भी मरीज को भर्ती होने से पहले सी ऍम ओ से आदेश लेना होगा और कोरोना  रिपोर्ट कि भी जरुरत पड़ेगी,अब हकीकत में देखिये तो एक सी ऍम ओ से कैसे संपर्क हो पायेगा या तो फ़ोन मिलेगा नहीं या उठेगा नहीं,रिपोर्ट आने में सरकारी हॉस्पिटल में न्यूनतम तीन से चार दिन लग रहे हैं,आखिर बाद में इस आदेश को वापस लेना पड़ा ,अब प्रश्न यही उठता है कि ऐसे अव्यवहारिक आदेश किया ही क्यों गया,ये यही दर्शाता है कि जमीनी हकीकत को देख और परखकर आदेश नहीं किये जाते,बस इन्हे जो समझ में आता है उसी को अच्छा समझ लेते हैं,ये नहीं जानते कि यदि आपका आदेश उल्टा पड़ गया तो जनता को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा,आज भी यही हुआ ये जिम्मेदार इस चीज का आकलन ही नहीं किये कि दूसरी लहर जब आएगी तो क्या-क्या दिक्कतें संभावित है,हमारे यहाँ जब मुसीबत सर चढ़कर बोलती है तब हम निदान के लिए जोर लगते हैं और साथ में ये अवश्य करते हैं कि स्टेटमेंट पर स्टेटमेंट देते रहते हैं कि सब ठीक है कहीं किसी समान कि कोई कमी नहीं है,आप मौके पर कमी कहते रहिये,फिर धीरे-धीरे आंकड़ों का खेल शुरू हो जायेगा,फिर जब कभी स्थिति सामान्य हो जायेगी तो उसके बाद जनता भी भूल जायेगी और ये भी अपने ढर्रे पर आ जायेंगे और जब कभी फिर मुसीबत आएगी तब फिर तेजी पकड़ लेंगे।ऐसा क्यों नहीं होता है कि हम समय रहते संभल जाएँ और युद्ध स्तर पर पहले से तैयारी कर लें,पर ऐसा नहीं होता है। 

इन सबका एक सबसे दुखद पहलु ये भी है कि हर चीज राजनीति कि भेट चढ़ जाती है,इसे आप दिल्ली के उदहारण से समझिये,दिल्ली में ऑक्सीजन कि भारी कमी कि वजह से कई मरीजों कि मृत्यु हो गयी,लेकिन वहां राज्य सरकार केंद्र पर और केंद्र सरकार राज्य पर दोष मढ़ रही है,सब चैनलों पर बैठकर आंकड़ें समझाने  में लगे हैं,सपोर्ट में एक से एक पेपर लेकर बैठे हैं,अरे भाई सीधी बात बताओ  आंकड़े लेकर जनता ओढ़े कि बिछाये,उसे ऑक्सीजन चाहिए कि कौन जिम्मेदार है ये चाहिए,एक सीधी सी बात ये भी समझिये कि ये यदि आमजन का मामला होता तो गैर इरादतन हत्या का ऍफ़ आई आर दर्ज हो जाता,लेकिन इसमें नहीं होगा,क्यूंकि ये राजनीतिक मामला है।आज ये भी समझने कि अत्यावश्यकता है कि राज्य सरकारें पूरी तरह से हाथ खड़ा कर दे रहीं हैं कि ये केंद्र का मामला है ये कत्तई उचित नहीं है,यदि विपदा के समय आप इतने भोले और मासूम बन जायेंगे तो क्यों सत्ता में बैठें हैं छोड़ दीजिये,केवल हाथ जोड़ने और पत्र पर पत्र लिखने से आप अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे,टी वी पर केवल आकर हाथ जोड़कर समस्या का समाधान नहीं हो जाएगा,सत्ता सुख चाहिए तो जनता के कष्टों का निवारण कौन करेगा,केवल सबसे हाथ जोड़कर ये प्रदर्शित करना चाहेंगे की आप बहुत दुखी हैं और बहुत चिंतित हैं तो इससे अब जनता का कष्ट तो दूर नहीं होगा और न ही आप का ये प्रदर्शन किसी काम आएगा,आप की जनता बेबसी और आपलोगों के नाकामी के कारण मर रही है,इसकी जिम्मेदारी कोई तो ले,कौन लेगा,टी वी पर बैठकर अंताक्षरी खेलने से नहीं होगा,इसी प्रकार केंद्र सरकार जो इतनी फास्ट अब दिख रही है,काश इतनी समय रहते हो गयी होती,जो ऑक्सीजन,रेडमेसियर इंजेक्शन,दवाओं के लिए अब प्रयास हो रहा है यदि इसके इंतजाम पहले से कर लिए जाते तो शायद आज जो जनता में कोरोना के मार का हाहाकार मचा है वो न मचता,ये मै मानता हूँ की मौते होतीं पर इतनी नहीं और दूसरे मरीज के घर वालों को ये संतोष रहता की इलाज में कोई कमी नहीं हुई,ये सही है की लाकडाउन अंतिम विकल्प होना चाहिए क्यूंकि इससे कमजोर वर्ग और देश के आर्थिक स्थिति पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है,लेकिन यदि चेन तोड़ने का और कोई विकल्प न दिखे तो इसे अपनाने में कोई हर्ज नहीं है क्यूंकि जिंदगी अनमोल है बिना इसके किसी चीज का कोई काम नहीं है और मौत के एवज में कोई भी प्रगति बेमानी है,आज जो कोरोना के कारण विकट स्थिति उत्पन्न हुई है इससे विश्व में हमारे देश की छवि अच्छी नहीं बनी है,इसने हमारी नाकामियों को उजागर किया है,आज जो मद्रास के माननीय उच्च न्यायालय ने तल्ख़ बात कही की चुनाव के कारण ,जिसने कोरोना महामारी को बढ़ाने में मदद की है,ये सही भी है की चुनाव में जिस तरह से कोरोना के नियमों की धज्जियां उड़ाई गयी हैं वो न केवल अफसोसजनक है बल्कि बेहद शर्मनाक भी है,सबसे बड़ी दुखद बात है की सभी जिम्मेदार पद धारण करने वाले और सभी राजनीतिक दलों के लोग समान रूप से इसके भागीदार  हैं किसी ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया,आज इतिहास के इस कथन को चरितार्थ किया गया की सत्ता के लिए सब जायज है,कोरोना लगातार जनता को काल का ग्रास बना रहा था और हम बड़ी-बड़ी रैलियों,रोड शो में व्यस्त थे,हम भीड़ जो आज के समय के लिए जानलेवा साबित हो रहा था,उसे देखकर गदगद हो रहे थे,बड़े-बड़े जयकारे लगा रहे थे और उधर की जगह इधर खेला हो गया,अब हम अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए जो भी कारण बताएं सब अर्थहीन और तर्कहीन है,कितने लोग तो इसी कारण से काल के मुँह में चले गए,हम महज  सत्ता पाने के सुख के लिए सत्ता विस्तार के लिए भागते-दौड़ते रहे,सारी ऊर्जा हम उसीमे खर्च करते रहे तबतक जब तक की कोरोना के विकराल रूप ने हाहाकार नहीं मचा दिया,जब चहुंओर अफरा-तफरी मच गई,लोग बेबस होकर अपनों की मौत देखते रहे तब जाकर हम भी तेजी पकड़ने को विवश हुए,लेकिन इस विकटतम परिस्थिति में भी सत्ता पक्ष और सभी विपक्ष एक दूसरे पर बढ़चढ़कर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में महारत हासिल किये रहे और हैं भी,कांग्रेस को तो लगता है की केवल और केवल विरोध ही उनका काम है,एक ट्विटर चल गया है घर बैठे ट्वीट कर दीजिये और ऐ सी का मजा लीजिये,बड़ी-बड़ी बातें तो ऐसा करते हैं की जैसे वो रहते तो पूरा एकदम से सब फिट-फाट होता,ऐसा लगता है की जब ये लगभग छप्पन साल सत्ता में रहे तो सब समस्याओं का समाधान कर दिए थे,आज जो स्वास्थय विभाग का हाल है इसकी जिम्मेदारी आप पर भी जायेगी,हाँ ये अवश्य है की इससे सत्ता में बैठे हुए लोगों की जिम्मेदारी कत्तई कम नहीं होती,आप को इसी लिए जनता ने सत्ता की चाभी थमाई थी की आप उनसे बेहतर करेंगे,आप पर अटूट विश्वास कर प्रचंड बहुमत इसी कारण से दिया था की अब उनका भविष्य अच्छा होगा,इसके लिए नहीं दिया था कि बेड और ऑक्सीजन,रेडमेसियर इंजेक्शन के बिना उनके अपने मौत के शिकार हो जाएंगे और वो बेबस होकर केवल देखते रहेंगे।लेकिन एक बात ध्रुव सत्य है और अटल सत्य है कि यदि आप सत्ता में हैं तो जिम्मेदारी भी आप ही की  है,और आप ही को करना ही होगा,इससे आप बच नहीं सकते,कभी आप सभी एकांत में उनके बारे में सोचिये जिन्होंने संसाधनों और हॉस्पिटल में बेड न मिलने के कारण अपनों को खोना पड़ा वो अपने को या फिर किसको इसके लिए जिम्मेदार माने,एक बात और आरोप-प्रत्यारोप के बीच ये भी सोचना होगा कि यदि घर में चार लड़कों में एक नहीं सुन रहा है या कोई नहीं सुन रहा है और घर पर मुसीबत आयी है तो पिता को तो जिम्मेदारी निभानी ही पड़ेगी भले बाद में लड़कों को घर से बेदखल  करे,कोई इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकता है।

                                       आज हमारी जिंदगी इतनी बेबस क्यों हो गयी है इसपर सोचना होगा,जो हमारी आधारभूत जरूरतें हैं उसी में हम आजादी के तिहत्तर साल बीत जाने के बाद भी पीछे हैं,कहाँ कमी रह गयी,किसके सर मढ़ा जाए,आप किसी को बताइये दूसरा किसी को बताये बताये इससे हल नहीं निकलने वाला है,जिम्मेदार तो वो सभी माने जाएंगे जो सत्ता में अधिकतम समय रहे हैं या फिर आप जो वर्तमान में हैं,आज बिलकुल इस चीज कि आवश्यकता है कि देखें हमारा स्वास्थय विभाग सबसे अधिक संसाधनों के विषय में पंगु क्यों है,लाचार क्यों है,बेबस क्यों है,सोचिये यदि आप देश के सम्पूर्ण बजट को और प्रदेश अपने सारे बजट को जो तिहत्तर साल में खर्च हुए हैं उसमे क्या-क्या हुआ तो समझ में आ जाएगा,ये भी देखें कि कहाँ-कहाँ हुआ,निश्चित ये निकल के आएगा कि एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ गया होगा,ये हाल तब है जब वर्ल्ड बैंक से भी भरपूर मदद मिला है,इसके बाद भी संसाधनों का जो टोटा है उसका प्रमुख कारण ही यही है कि हमको ये अंदाजा था ही नहीं कि कोई ऐसी भी विकराल आपदा आएगी जो हमें नंगा कर जाएगी,क्यूंकि हमें तो लस्टम-पस्टम चलने का शौक है,हमारी असलियत तभी खुलती है जब हमारे सामने  इसी तरह कि कोई परिस्थिति आ जाती है,जिस तरह से हम धनबल,साम,दाम,दंड-भेद से चुनाव जीतने की तैयारी करते हैं उसी तन्मयता से यदि जनता की मूलभूत सुविधाओं के लिए कर देते तो आज देश का नक्शा ही अलग होता और आज जो हम विकट रूप से संशाधनो का रोना रो रहे हैं,निश्चित रूप से इतनी बुरी परिस्थिति नहीं होती,सच कहा जाए तो आज शर्म महसूस होती है की हम अपने को विकसित  देश कहते हैं और ऑक्सीजन,बेड की इतनी किल्लत है,लोगों की मृत्यु इसके अभाव  में हो जाए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या है,और इससे भी ज्यादा  शर्म महसूस तब होता है और गुस्सा भी आता है जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के प्रवक्ता टी वी चैनलों पर बैठ कर बड़ी बेहयाई से इस विषय पर डाटा पर डाटा रखते और एक दूसरे पर नाकामियों का ठीकरा फोड़ते और अपने को बहुत अच्छा साबित करने की पुरजोर कोशिस करते,तेरे-मेरे की तू-तू-मैं-मैं में अपनी सारी ऊर्जा ख़त्म कर देते,उसके बाद अपनी पीठ थपथपाते होंगे और घर जाकर चैन की नींद सोते होंगे,क्यूंकि उन्होंने तो अपनी आकाओं के नजर में अच्छी ड्यूटी कर ली,जनता उसकी समस्या तो सब बाद में आता है,आज माननीय सर्वोच्च न्यायलय और उच्च न्यायलय चुनाव आयोग और सरकार को नोटिसें जारी कर पूछ रहीं हैं की चुनाव में कोरोना गाइड लाइन का पालन क्यों नहीं हुआ?इसके लिए कौन जिम्मेदार है?साथ ही ऑक्सीजन,बेड,दवाओं की कमी कैसे पूरी की जाएगी ये भी पूछ रहे हैं,यहाँ सबसे बड़ी बात ये है की माननीय न्यायलयों को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता क्यों पड़ी,क्या जो लोग सत्ता में बैठे हैं या जो जिम्मेदार लोग हैं क्या उनको ये बेसिक जानकारी नहीं जो आम नागरिक को भी है कि मास्क और दुरी बेहद जरुरी है,तब तो बड़ा अच्छा लग रहा था कि वाह देखो हमने कितनी भीड़ जुटा ली रेलम-पेल रेला चल रहा है,इसमें विपक्ष भी समान रूप से जिम्मेदार है,यदि वो भी कह देता कि हम जनता कि जिंदगी को सर्वोपरि मानते हैं,उसके मूल्यों पर हमें कोई सफलता नहीं चाहिए तो आज आपकी छवि कुछ और रही होती,पर आप हो या कोई आप सबको सत्ता से बड़ा कुछ भी नहीं दिखाई देता,यदि कही कोई ईश्वरी शक्ति है तो वो आप को कभी नहीं माफ़ करेगा,एक बात और इन मौतों के लिए क्या आपलोग मुजरिम नहीं हैं,यदि हैं तो क्या गैर इरादतन मुकदमा पंजीकृत नहीं होना चाहिए?नियम तो सबके लिए सामान है।यहाँ विपक्ष ख़ास तौर से कांग्रेस से भी जनता ये जानना चाहेगी की आप केवल और केवल कमिया ही गिनाये हैं या आप अपने स्तर से कोई सार्थक प्रयास भी किये हैं,मगर नहीं आप तो इसे भी अपना एक विरोध का आवारा बना लिए हैं,विरोध करिये,कमिया बताइये लेकिन साथ में अपने स्तर से भी कोई एक तो अच्छा प्रयास भी करिये,क्या केवल ट्विटर पर ट्वीट कर देने से सब सुधर जाएगा,या एक विकराल आपदा है इसमें जनता के भरोसे को जीतिए,आप कितने अच्छा वक्त हैं इससे जनता को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

                                आज सबसे बड़ी बात सभी  जिम्मेदारों को समझना होगा कि कागजी आंकड़ों और दिशा-निर्देश,आदेशों की दुनियासे निकल कर जमीनी हकीकत का सामना करना होगा,ऐ सी में बैठकर जो जिम्मेदार अधिकारी आंकड़ा-आंकड़ा खेलते हैं और आदेश,निर्देश की झड़ी लगा देते हैं उन्हें मौके पर भेजना होगा,वहां जाकर सच्चाई जानने के बाद तब कोई बात कहें तो ज्यादा कारगर होगा,संख्या घट रही है या नहीं इससे पीठ थपथपाने से काम नहीं चलेगा,बल्कि जांच और इलाज का दायरा बढ़ाने से काम चलेगा,इस महामारी में सबसे कारगर ऑक्सीजन,रेडमेसियर इंजेक्शन,दवाओं की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने पर ही भला होगा।इस चीज की भी मॉनिटरिंग होनी चाहिए की विभिन्न प्रतिष्ठित चैनलों द्वारा यदि दिखाया जा रहा है की अमुक जिलों में ऑक्सीजन,दवाओं की,हॉस्पिटल में जगह की कमी है तो तत्काल उन जगहों को और अन्य जिलों की भी ग्राउंड रिपोर्ट मगानी चाहिए,इसमें ये नहीं सोचना चाहिए की इससे कोई छवि ख़राब होगी बल्कि आप की छवि बहुत अच्छी बनेगी यदि आप उन कमियों को अच्छी तरह दूर कर लोगों की जान बचा लेंगे,आज समय की मांग भी यही है,येन-केन प्रकारेण कमी को ढकने से कोई भला नहीं होने वाला है,यहाँ एक सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है की ग्राउंड रिपोर्ट आने से आप आकलन कर पाएंगे की क्या चीज अपनायी जाए जिससे समस्या का समाधान हो पाए,इन्ही आधारों पर ही कोई आदेश,दिशा-निर्देश भी जारी किया जाएगा तो वो उपयोगी साबित होगा,अन्यथा कोई हल नहीं निकलेगा,आज समय की मांग है की हम अपने सीमित संशाधनो को कितने बेहतर और त्वरित ढंग से उपयोग कर ज्यादा से ज्यादा जिंदगी बचा लें और लोगो को चेहरे पर व्याप्त भय को दूर कर सकें,तथा जो भ्रम फ़ैल रहा है उसको ख़त्म कर सकें,ये सब तभी हो सकता है जब सभी अंग सिस्टेमेटिक ढंग से और द्रुत गति से निष्ठा और लगन से काम करें और वास्तविकताओं का सामना करते हुए आने वाले दिक्कतों को दूर कर पीड़ित व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा मदद पहुंचा सकें,इसके लिए आवश्यक है की कुछ  चीजों को सिस्टमेटिक रूप से अपनाना बहुत जरुरी होगा  जिससे की जनता को इस महामारी में परेशान न होना पड़े और अभावों में न मरना पड़े।मेरी समझ में यदि निम्न तरीके अपनाये जाए तो शायद कुछ प्रभावी सफलता मिले-------

१-प्रदेश के प्रत्येक हॉस्पिटल सरकार और निजी की अलग-अलग ऑनलाइन ब्यौरा उपलब्ध हो जिसमे सभी चीजों की चाहे वो बेड हो,ऑक्सीजन हो रेडमेसियर इंजेक्शन हो या फिर दवा हों सबके विवरण दिए जाएँ,साथ ही प्रतिदिन इसकी फीडिंग की जाए।

२-जांचो के लिए मोहल्लेवार टीम बनायीं जाए जो घर-घर जाकर जांच करे,जिससे संक्रमित लोगों की पहचान कर उन्हें जैसी आवश्यकता हो आइसोलेशन या हॉस्पिटल की किया जाए।

बड़े-बड़े चौराहों रेलवे स्टेशनों,बस स्टेशनो पर आकस्मिक रूप से टीम द्वारा कोरोना की जांच की जाए,इससे भी संक्रमित लोगों को अलग करने में मदद मिलेगी। 

३-सभी ऑक्सीजन सिलेंडर विक्रेताओं,और दवा विक्रेताओं के लिए अनिवार्य किया जाए की वो जिसको भी दे रहें हैं उनका नाम और मोबाइल नंबर अनिवार्य रूप से लिखें और मूल्य भी,जिसका आकस्मिक रूप से जांच कर मोबाइल नम्बरों से वेरीफाई भी किया जाए,मूल्य की भी जानकारी ली जाए,साथ ही अपने दूकान के बहार प्रतिदिन इसके लिए जो जरुरी दवा है बोल्ड अक्षरों में इसकी उपलब्धता लिखें जिससे अनावश्यक भीड़ न लगे।इसका शाट-प्रतिशत वेरिफिकेशन मोबाइल नम्बरों से होने पर सच्चाई सामने आ जाएगी। 

४-प्रतिदी सरे हॉस्पिटलों की डाटा कम से कम तीन बार चेक किया जाये और देखा जाए कहाँ ऑक्सीजन की ,रेडमेसियर इंजेक्शन की,दवाओं की जरुरत है तत्काल पहुंचाया जाए।

५-किसी भी हॉस्पिटल में यदि कोई गंभीर मरीज पहुँचता है तो उसे वापस न किया जाए बल्कि उसे तत्काल जरुरी ट्रीटमेंट शुरू करते हुए अपनी समस्या से पोर्टल पर जिम्मेदार लोगों को अवगत करा दें और जिम्मेदार तत्काल उसकी व्यवस्था सुनिश्चित करें यदि किसी स्तर पर कोई लापरवाही करता है तो सख्त कार्यवाही हो,जरुरत पड़े तो ऍफ़ आई आर भी कराया जाए। 

६-जिले में चुनाव की तरह सेक्टर में बाँट कर सेक्टर मजिस्ट्रेट लगाकर उनके क्षेत्र में पड़ने वाले प्रत्येक हॉस्पिटल की दिन में तीन बार रिपोर्ट ली जाए की कहीं कोई दुर्व्यवस्था नहीं है और उनके किसी हॉस्पिटल के बाहर कहीं को मरीज भर्ती के लिए नहीं खड़ा है जिसे भर्ती के लिए इंकार किया जा रहा है,साथ में ऑक्सीजन की उपलब्धता,रेडमेसियर इंजेक्शन की और दवाओं की उपलब्धता भी सुनिश्चित करें और उसकी कमी हो तो दूर कराएं।सभी सेक्टर मजिस्ट्रेट का क्षेत्रवार मोबाइल नंबर सभी समाचारपत्रों में प्रकाशित करवाया जाये।

७-इसी प्रकार से जोनल मजिस्ट्रेट नामित किये जाएँ जो हर घंटे पर सेक्टर मजिस्ट्रेट से बात करें और डायरी में नोट करें,यदि किसी का मोबाइल बंद मिले तो तत्काल अवगत कराएं,जिले में दो या तीन ऐ डी ऍम स्तर के या फिर और कोई बड़े अधिकारी को नोडल बनाया जाए जो जोनल की मॉनिटरिंग हर घंटे पर करता रहे।इन सभी अधिकारियों के वहां को जी पी एस प्रणाली से जोड़ा जाये। 

८-जिलाधिकारी प्रत्येक दिन कम से कम दो बार इसकी समीक्षा करें और सारी चीजों पर गहन दृष्टि बनाये रखें।

९-पुलिस विभाग भी टीम बनाकर मास्क और दूरी का पालन कराएं,इनके भी इस तरह से सेक्टर बनाये जाएँ की सभी मोहल्ले कवर हो जाएँ। दो या तीन टीम इस उद्देश्य से बनाये जाएँ जिसमे एल आई यू की भी मदद ली जाये जो इस चीज को सुनिश्चित करे की कहीं किसी जरुरी दवाओं,इंजेक्शन,ऑक्सीजन की कालाबाजारी नहीं हो रही है,और ये भी देखे की हॉस्पिटलों के आस-पास दलाल तो नहीं सक्रिय है।

                                       इस आपदा से निजात मिलने के बाद अब भी समय है की स्वास्थय विभाग को इतना मजबूत बना दिया जाये और पारदर्शी बना दिया जाए की भ्रष्टाचार की कोई गुंजाईश न हो ,की आने वाले समय में इस तरह की बेबसी का सामना न करना पड़े।अभी इसका समय नहीं है इसके उपाय एक अन्य लेख में लिखे जाएंगे। 

                              एक पीड़ा मेरे मन में और है जो न चाहते हुए भी लिख रहा हूँ,हमारे बॉलीवुड के जो प्रसिद्ध कलाकार हैं जिनके लिए जनता दीवानी रहती है,जिन्हे अपने पलकों पर बैठती है जहाँ धनो की बारिस होती है,काश वो भी अपने रिसोर्सेस से दो ही चार सर्वसुविधा संपन्न हॉस्पिटल दो ही चार बनाये होते तो कुछ तो मदद मिलती,बस व्यक्तव्य देने में सबसे आगे रहते हैं,इसी तरह हमारे जो सबसे संपन्न क्रिकेट के खिलाड़ी  है वो भी कुछ बड़ा करते तो कुछ तो मदद मिलती,बुरा तो तब लगा जब दूसरे देश के खिलाड़ी  ने सबसे पहले मदद के  हाथ आगे बढ़ाये जब की हमारे यहाँ से तो होड़ मच जानी चाहिए थी मदद के लिए,पर अपनी-अपनी सोच है कोई जबरदस्ती तो नहीं हैं। 

                            अंत में केवल एक अपील है कि आइये अब से सभी भेद-भाव भूलकर,पक्ष-विपक्ष कि राजनीति से ऊपर उठकर एक साथ कोरोना कि महामारी का सामना करें इस भावना के साथ कि हम लड़ेंगे और जीतेंगे,यही उन व्यक्तियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी जो इस बीमारी के कारण अब हमारे साथ नहीं हैं और उनके परिवारों को भी शुकून दे पाएंगे कि अब पूरी कोशिस करेंगे कि कोई इलाज के आभाव में या जरुरी दवाओं के आभाव में नहीं मरेगा,आज लड़ने का नहीं मिलकर बढ़ने  का वक्त है,हम सब एक हैं एक परिवार हैं मेरा देश कभी नहीं हारेगा इस भावना से बढ़ना होगा। 

                                            जय हिन्द जय भारत कोरोना हारेगा हम जीतेंगे   ।। 

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