लाकडाउन क्यों नहीं
स्थिति बिगड़ती जा रही है,अब एक लाख की बात छोड़िये अब तो दो लाख के आंकड़े को हम पार कर रहे हैं,मौत का आंकड़ा भी एक हजार के पार पहुँच रहा है,कई प्रदेश और उनके जिले डरावनी स्थिति में पहुँच गए हैं,ये तब है जब जांचे उतनी गति से नहीं हो पा रही है जितनी गति से होनी चाहिए,उसपर से स्वास्थ विभाग का चरमरा जाना,कहीं ऑक्सीजन तो कहीं बेड तो कहीं दवाओं का टोटा,तो कहीं भर्ती की समस्या,सड़कों पर भीड़ में कोई कमी नहीं,कोई मास्क लगा रहा है तो कोई नहीं लगा रहा है,बसों ,ट्रेनों में चढ़ने की जल्दबाजी भीड़ का रेला वहां पर ठीक से जांच का न होना,ये सब कोरोना की स्थिति को और भयावह बनाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं,इसी में प्रधानी का चुनाव और विधानसभा के चुनाव और वहां पर घोर लापरवाही ये क्या दर्शाता है हम तो नहीं ही बता सकते शायद इसके जो जिम्मेदार लोग हैं वो बता सकते हों क्यूंकि हम तो इतने दिमागदार हैं ही नहीं,इन चुनावों में सोशल डिस्टेंसिंग की तो खूब धज्जियां उड़ रही हैं और हम कोरोना के बचाव पर बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं,हमारे यहां बातो वादों और सब्जबाग दिखाने की बिमारी है,अब तो ये भी पड़ने को मिल रहा है की वैक्सीन की भी कमी पड़ जा रही है,लेकिन जितनी तल्लीनता से हम चुनाव में व्यस्त हैं काश उतनी कोरोना में भी होती तो बहुत अच्छा रहता ,लेकिन वहां तो किसी न किसी को गद्दी मिलनी है यहाँ क्या मिलना है,कोरोना अपने आगोश में ऊपर से लेकर नीचे तक ले ले रहा है फिर भी हम यही कह रहे हैं की अभी लाकडाउन लगाने की जरुरत नहीं है,क्यों भाई अब कब होगा रात के कर्फू से क्या होगा,जान से बड़ कर कोई चीज है क्या जरा पूछिए जिनके घर में कोरोना का मरीज निकल जा रहा है उसे कितनी दिक्कतों और मुश्किलों का सामना करना पद रहा है,आधा प्राण तो उसका डर से ही निकल जाता है,आप कहतें हैं की लाकडाउन की अभी आवश्यकता नहीं है तो आप इसके चेन को कैसे ब्रेक करेंगे,बताएं कौन सी विधि अपनाएंगे?यदि पिछले साल मार्च में लाकडाउन न लगाया होता तो क्या इसको काबू में कर पाते,ये भी मान लीजिये उस समय जितनी शिद्दत से और मेहनत से अधिकारी और कर्मचारी उस समय लगे थे आज उसमे थोड़ी कमी आ गयी है,एक बात और देखिये की एक वर्ष के समय में भी हम स्वास्थय विभाग को इस हद तक चुस्त-दुरुस्त नहीं कर पाए जैसा की होना चाहिए था,जब भी कोई ऐसी आपदा का समय आता है तो इसका पोल खुल ही जाता है,लेकिन हम यही कहते फिरते हैं की सब ठीक है लाकडाउन की स्थिति अभी नहीं है अरे भाई तो कब है कौन सा मानक है जब वो पूरा होगा तब लाकडाउन होगा एहि सबको बता दीजिये उसी का इन्तजार किया जाए,अब भी समय है गौर करिये।
अब तो लगता है की समाचारपत्र पड़ना बंद कर दें और न्यूज़ चैनल देखना बंद कर दें अन्यथा हम डर-डर के मरते रहेंगे और आप अभी स्थिति नहीं है यही बताते रहेंगे,मेरे पास तो कोई विकल्प नहीं है सिवाय इसके की घर से न निकलें ,अभी भी समय है एक ही सप्ताह सही लाकडाउन पर विचार करिये,जीवन से बड़ा मूल्यवान कुछ भी नहीं है जान रहेगा तब सब कुछ दुरुस्त किया जा सकता है नहीं तो कुछ भी नहीं,उम्मीद करते हैं की शायद इसपर विचार कर लिया जाये और लाकडाउन लगाया जाये।निर्देश पर निर्देश जारी हो रहें हैं किसी को कोई दिक्कत नहीं होगा जबकि स्थिति इसके विपरीत है,धरातल पर जिन समस्यायों का सामना जांच और भर्ती में करनी पड़ रही है वो निर्देशों के अनुरूप तो नहीं ही है,चुनाव ने और ही उसमे सोने में सुहागा कर दिया है,ये बताने से की यहाँ जाइये वहां जाइये इससे अच्छा है की वैक्सीन और जांच घर-घर करने पर विचार क्यों नहीं किया जा रहा है,दस-बारह टीम बनाइये और मोहल्ले-मोहल्ले भेजिए,देखिये इससे फर्क पड़ता है की नहीं,कम से कम लोगों को भाग-दौड़ और लाइन में धक्के खाने से बचत होगी और बहुत जल्दी कोरोना से प्रभावित व्यक्ति की पहचान हो जायेगी,और सही व्यक्तियों को वैक्सीन भी लग जाएगा,नहीं तो जो भयावह स्थिति देखने और पड़ने को मिल रही है वो आधी जान तो ऐसे ही निकाल दे रही है,प्रतिदिन का यही हाल है, आये दिन समाचार पत्रों में और न्यूज़ चैनलों पर पड़ने और सुनने को मिल रहा है की रेमडेसिविर इंजेक्शन और ऑक्सीजन की किल्लत हो रही है,सबसे ख़राब स्थिति रेमडेसिविर इंजेक्शन की है,ब्लैक में ज्यादा दामों पर बिकने की ख़बरें आ रही है,अब बताइये ऐसी स्थिति में चेन तोड़ने के लिए लाकडाउन से अच्छा विकल्प क्या है,कोई और हो तो बताइये,मौतों पर रोक लगाने और बढ़ते हुए संख्या को नियंत्रित करने के लिए अब इस पर विचार करना परम आवश्यक है, इससे बचने के लिए और कोरोना पर प्रभावी नियंत्रण के लिए मेरी समझ से कुछ दिन का लाकडाउन लगाना कोई बुरी बात नहीं रहेगी,डर से बचाने के लिए जान को सुरक्षित करने के लिए ये अब जरुरी प्रतीत हो रहा है,साथ ही जो इससे जुड़े अधिकारी और कर्मचारी है उन्हें और जागरूक तथा जिम्मेदार बनाना होगा क्यूंकि उन्ही पर सारा दारोमदार टिका है,सड़कों पर,गलियों में प्रशासन की मोबाइल टीम राउंड ले और मास्क तथा दूरी को चेक करे और शक्ति से पालन कराये चाहे इसके लिए प्रतीकात्मक रूप से कुछ को थाने पर ही क्यों न बैठाना पड़े,चुनाव में भी इसका पालन शत-प्रतिशत कराया जाए,अन्यथा केवल निर्देशों से कुछ ऐसा प्रभावी ढंग से नहीं होने वाला है जिसकी हम कल्पना किये हुए हैं,आज की परिस्थितियों को गहनता से समझना होगा और लाकडाउन पर विचार करना होगा,जिंदगी न मिले दुबारा ये सबको समझना होगा,हाँ ये अवश्य है की केवल सरकार के भरोसे नहीं रहना होगा,क्यूंकि मास्क और दूरी का पालन तो हमें ही करना होगा,लापरवाही कत्तई न करिये आपकी लापरवाही पूरे परिवार पर भारी पड़ेगी इसलिए खुद सुरक्षित रहिये और दूसरे को भी सुरक्षित रखिये,जीवन अनमोल है इसे मत खतरे में डालिये।
"मास्क और दूरी जीवन के लिए है जरुरी"इस को अपने दैनिक जीवन में एक सूक्तवाक्य की तरह अपनाएं,एहि आज की मांग है इससे दूर न भागें।
हाँ एक चीज और है ये भयानक कोरोना हमें कई ऐसे सबक दे रहा है की जिससे अगर हम सबक ले लें तो बहुत कुछ अच्छा भी हो जाएगा,सबसे पहले तो प्रकिति से खिलवाड़ करना बंद करें,वातावरण को सुध बनाने में पूरी मदद करें और जो इसमें भड़क बने उसके साथ शक्ति से निपटें,दूसरा जो हम आज रिश्तों को तार-तार किये बैठें हैं आज वही रिश्तों की याद सता रही है,बहुत धन-दौलत भी काम नहीं आ रहा है,आप देखिये की इस महामारी से मरने के बाद आप के साथ घाट पर जाने से भी लोग कतरा रहें हैं,तो फिर ये दौलत और शोहरत किस काम के,आज उन भ्रष्ट नेताओं और माफियाओं के लिए भी एक सबक है की कोरोना काल में कौन साथ दे रहा है देख लें,जिंदगी सबकी एक सामान खतरे में है कोई भी कहीं भी चपेट में आ जाएगा,अतः रिश्तों को पहचानिये,मानवता को अपना नैतिक कर्त्तव्य मानिये अपने टूटते रिश्तों को बचाइए,वही प्रेम ही आप को इस बीमारी से लड़ने के लिए संजीवनी का काम करेगा।
जय हिन्द जय भारत परिवार
आज का गीत
जिंदगी में एहि सीखना है उम्मीद कायम रखना है
सबको मिल कर कोरोना को हराना है
न हो कोई धर्म-जाती का भेदभाव न ही अमीरी-गरीबी का चक्कर हो
सब मिलकर दुःख-दर्द को बांटे किसी को न शैतानी करने दें
जो इस महामारी में भी कालाबजारी कर रहा लोगों के जीवन से खेल रहा
उसको समाज में नंग्गा कर सरे बाजार घुमाना है
जिंदगी में एहि-----------------
हम खुद भी सुरक्षित रहें औरों को भी सुरक्षित करें
जो इसमें अपनी ड्यूटी न निभाए सवेंदनहीनता को अपनाये
उसे मजबूर करना है उसे जिम्मेदारी बताना है
फिर भी न माने तो सबक सिखाना है समय को समझाना है
हर हाल में टूटती जिन्दी को बचाना है लोगों के आंसू पोछना है
जिंदगी में एहि-------------------
भ्रष्ट नेता भी देख लिए गुंडा-माफिया भी समझ लिए
रिश्वतखोर दलालों ने भी समझ लिया कुछ काम नहीं आ रहा
कोरोना की महामारी ने सबको एक सामान घेरा है
न धन न बल और न छल ही काम आ रहा
जिसकी आ रही मौत एक सामान आ रही
अब तो घाट पर भी साथ नहीं कोई जा रहा
अब तो समझ लो रिश्तों को बचाना है एक साथ हराना है
जिंदगी में एहि----------------
आप सभी से अनुरोध है की अपने विचार से अवश्य अवगत कराएं जिससे की यह जाना जा सके की मेरी सोच सही है या गलत है,
धन्यवाद।


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