कोरोना-कोरोना-कोरोना - लॉक डाउन ?
आजकल प्रतिदिन समाचार चैंनल खोलिये या फिर सुबह-सुबह उठकर समाचारपत्र पढ़िए पहला समाचार ही कोरोना का होता है,आज ६५०००,फिर ७००००,फिर ८५००० फिर 100000 के पार,ये आंकड़े प्रतिदिन के रहते हैं,इसी प्रकार मौत के आंकड़े रहते हैं,१००-२००-३००-४००-५०० बढ़ता ही जा रहा है,समाचार पड़ते या फिर देखते ही दिल घबराने लगता है,ऐसा लगता है की कोरोना बस आस-पास ही है कभी चपेट में ले लेगा,पुरे परिवार के प्रति चिंता बन जाती है,लेकिन जब घर से बहार निकलते हैं तब समझ में ही नहीं आता है की कोरोना कहाँ है कौन घबरा रहा है,सब्जी मंडियों,बाजारों में बेतहासा भीड़,सिटी बस में रैलम पेल,उसपर भी ज्यादातर लोग बिना मास्क के,तो समझ में ही नहीं आता की कौन डर रहा है,लगता है कोई भय किसी को नहीं है,हमने कोरोना को नियत मान ली है,ये सोच लिया जब हमको होगा तब देखा जाएगा,एक और विडंबना देखिये चुनाव वाले राज्यों में तो सभी बेखौफ हैं,रैलियां देखिये,रोड शो देखिये कहाँ कोरोना है,एक मित्र ने एक जोक भेजा था की अभी कोरोना १८ साल क नहीं हुआ है इसलिए चुनाव रैलियों में नहीं जाता है,इसप्रकार एक और क्लिप देखने को मिला की कब कोरोना को मास्क से या फिर सेनेटाइजर से डराया जा रहा है तो नहीं डर रहा है लेकिन जब इलेक्शन की तख्ती दिखाया जा रहा है तो तेजी से भाग जा रहा है,ये एक सटीक व्यंग है,लेकिन कुछ फर्क नहीं पड़ता,होली हो या फिर जो भी फेस्टिवल पड़ रहा है हम अपनी मस्ती में सब भूल जा रहे हैं,उसी में कोढ़ में खाज तब होता है जब गाहे बेगाहे पड़ने को मिलता है की टीकाकरण के बाद भी कोरोना पॉजिटिव हो गए,एक-एक संस्था में ४५-४५ लोग एक साथ पोजटिव हो जा रहे हैं और हम बस पड़ रहे हैं।
सरकारें गाइड लाइन पर गाइड लाइन जारी कर रहीं हैं,ऐसे निकलिए ,इतने से ज्यादा समारोह में मत भाग लीजिये,मास्क पहनिए,दो गज की दूरी अपनाइये,बस इसी से सारी जिम्मेदारी ख़तम हो जा रहा है,बस अपनी-अपनी पीठ ठोक ले रहे हैं की अब कंट्रोल हो जाएगा,कैसे अब ऊपर वाला जाने,मरना-बचना सब तो ऊपर वाले के हाथ में है,राजनीति नहीं रुकना चाहिए,प्रचार धुंवाधार होना चाहिए,रोड शो जबरदस्त होना चाहिए यहाँ तो कोरोना जाने की हिम्मत ही नहीं कर रहा है,रेलम-पेल भीड़ चुनाव में इकठ्ठा कीजिये दिखाइए की किसने ज्यादा इकठ्ठा कर लिया,जबरदस्त दुश्मनी तक विरोध होने के बावजूद इस बिंदु पर सब एक हैं,इसमें कोई ये पहल नहीं कर रहा है की नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए,सबसे बड़ी बात की अब छोटे उम्र के लोगों को ज्यादा हो जा रहा है,अब कोई जरुरी नहीं है की ६० से ऊपर वाले को ही हो,कुछ जगहों के भीड़ का दृश्य दिखाया जाये तो लगेगा ही नहीं की कोरोना इतना भयावह स्थिति में पहुँच गया है,हाँ शहरों में चौराहों पे माइक से घोषणा होता रहता है की कोरोना से ऐसे बचिए,ऐसे चलिए,चाहे कोई सुन रहा हो या नहीं,केंद्र राज्य को गॉइड लाइन बताने में लगे हैं,राज्य केंद्र की कमिया बताने में लगे हैं,जिले के आला अधिकारी जनता की लापरवाही बताने में लगे हैं,बस ले दे के एक जनता बची तो वो भी बेपरवाह हो गयी है वो किसी को क्या बताये क्या सुझाये,अब तो हर ओर लोग कोरोना को नियति मान कर बैठ गए हैं।शहर हो जिला हो कुछ भी हो जो वास्तव में होना चाहिए क्यों नहीं हो रहा है ये कौन बताएगा?बड़े-बड़े चौराहों,मालों में सिटी बस को रोक कर हर भीड़ वाले स्थान पर प्रतिदिन कोरोना का परिक्षण होना चाहिए,कम से कम भीड़ से वो व्यक्ति तो अलग होता जाये जिनमे कोरोना का लक्षण हो,इससे और लोगों का होने का खतरा कम होगा और लोग भी जागरूक होंगे सतर्क होंगे की कहीं भी कभी भी जांच हो सकती है,इसी प्रकार मोहल्ले-मोहल्ले ४५ से ऊपर प्रत्येक व्यक्ति को पोलियो अभियान की तरह टीका लगाया जाए ,इस उसमे न रहा जाये की लोग आएंगे और शत-प्रतिशत लगवा लेंगे,ये बिलकुल संभव नहीं है।
जब संख्या इतनी ज्यादा बड़ गयी है लाख से पार जा रही है,पहले से ज्यादा विकराल रूप की ओर बढ़ रही है तो फिर कुछ दिनों के लिए ही सही सम्पूर्ण लाकडाउन क्यों नहीं लगाया जा सकता है?जान से बढ़ के कोई कीमत हो सकती है क्या?किसी भी समारोह में १०० या चार सौ की लिमिट क्यों?इस भीड़ में गॉइड लाइन कौन पालन कराएगा,शामिल होने वाला तो शायद ही करता हो,कर भी नहीं सकता सबको खाने की जल्दी रहती है,बफे सिस्टम में कौन सी सोशल डिस्टैन्सिंग का पालन होगा खाना खाना है तो मास्क तो या तो लगेगा नहीं या गले में लटका रहेगा,मेकअप भी ख़राब नहीं होना चाहिए।हा-हा-ही-ही-हूँ-हूँ भी होना चाहिए इसके बिना तो खाना पचता नहीं तो फिर चार-पांच लोग इकट्ठे होका खाएं तो ज्यादा मजा आता है,एक नया प्रचलन चल गया है साहेब लोगों का जन्मदिन स्टाफ द्वारा ऑफिस में मनाने का उसमे कोई कोरोना के गाइड लाइन का ध्यान नहीं देता है,कुल मिलाकर बस हम समाचार पड़ें और न्यूज़ चैनल देखें की बहुत ही भयावह स्थिति हो गयी है पर कुछ तो हम न सुधरें और सरकार गॉइड लाइन पर गॉइड लाइन देती रहे,और सब जगह भीड़ इकट्ठी होती रहे,कुछ शहरों में रात दस बजे से सुबह 6 बजे तक का कर्फ्यू लगाया गया है कुछ के लिए तो ठीक है लेकिन जिस सहर में रात दस बजे से नाम मात्र के लोग निकलते हैं यहाँ इसका क्या फ़ायदा,जिस रफ़्तार से दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है क्या उस तरह से हम उसके रोकथाम केलिए गंभीर हैं,मास्क,सोशल डिस्टैन्सिंग का पालन हर गली मोहल्ले में कौन कराएगा ,घर -घर टीकाकरण और जांच कौन सुनिश्चित करेगा,चुनाव की रैली और सभा तो कोरोना प्रूफ है, आज समय बिलकुल आ गया है सरकार के द्वारा सख्त निर्णय लेने का और लेना भी चाहिए जान से बढ़कर कुछ भी नहीं हो सकता कुछ भी नहीं।समाचारों में पड़ने को मिलता है की उद्योग जगत नहीं चाहता लाकडाउन ,ये नहीं चाहते वो नहीं चाहते लेकिन कोई ये बताये की जब पहले से भयावह स्थिति हो गयी है तो पहले लाकडाउन लगाया तो अब क्यों नहीं लग सकता और क्यों नहीं लगना चाहिए,क्या जिंदगी से बढ़ कर कोई चीज हो सकती है क्या ? हम ये क्यों भूल जाते हैं की पहले हमने लाकडाउन लगा कर ही कंट्रोल किया था फिर अब क्या हो गया है,अब कुछ दिन के लिए लाकडाउन के बारे में सोचना ही पड़ेगा,साथ में टीकाकरण और जांच का दायरा घर-घर कराना होगा अन्यथा हम ऐसे ही १५०००० और उससे ऊपर की संख्या रोज पड़ते रहेंगे और मौतों को गिनते रहेंगे,आज इसपर विचार के साथ हम सब का भी दायित्व है की मास्क अवश्य पहने और दो गज की दुरी का पालन करें,खुद भी करें और दूसरों को भी करने के लिए विवश करें,देर भले हो जाए पर सुरक्षित पहुंचें ये ज्यादा जरुरी है।एक ही बस में भर के जाना जरुरी नहीं है,हर जगह भीड़ लगाना जरुरी नहीं है,किसी भी चीज को बहुत जल्दी प्राप्त करने के लिए दो गज की दुरी न भूल जाएँ।
चहुँ ओर पुकार है कॉरोना की भीषण मार है
फिर भी हम न समझे कितने हम महान हैं
मास्क हमें बंधन लगे दूरी भी बेकार लगे
खुले घूमने में मजा आये कितने हम महान हैं
बसों में रेलम-पेल है मालों में बहार है होटल गुलजार है
सब्जीमंडी में लम्बी कतार है फिर भी हम कितने महान हैं
बचना है तो पर जाना होगा जहा चुनाव की बहार है
वहां न कोई कॉरोना न कोई उसका वार है
वहां तो रैलियों की सभाओं की भरमार है कॉरोना पस्त पड़ा बेकार हैं।



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