८ मार्च - महिला दिवस

८ मार्च एक दिन या महीना को ही नहीं इंगित करता है बल्कि हमारी आधी आबादी को सम्मान और पहचान का भी प्रतीक है।जिनको सदियों से पुरषों ने दबा के रखा था,जिन्हे हमेशा अपने से निम्न समझने की हिमाकत की गयी,जुल्मों सितम जितना इन्होने सहा, शायद ही किसी समाज के और वर्ग ने सहा होगा,यही कारण था की इनके लिए महान कवियत्री महादेवी वर्माजी ने चंद पक्तियां लिखी थी कि''अबला जीवन तेरी है यही कहानी!आँचल में है दूध और आँखों में पानी "ये पंक्तियाँ इनके दर्द को बखूबी बयां कर देता है।



                                    प्राचीनकाल से देखा जाए तो सिंधुघाटी कि सभ्यता काल में महिलाओं कि स्थिति बहुत ही बेहतर या यूँ कहें कि सही सम्मानजनक और शानदार थी,इस काल में लोगों कि पहचान माता के नाम से होता था और स्त्री को पुरुष से ज्यादा ही सम्मान था,धीरे-धीरे ये सम्मान गिरता गया और प्रताड़ना कि ओर बढ़ता गया,मनुस्मृति काल से इसका प्रभाव होना शुरू हुआ और मुग़ल काल इसकी पराकाष्ठा रही,जो कमोबेश चलती रही।सती प्रथा,बालविवाह,पर्दा प्रथा,विधवावों कि अपमानजनक स्थिति ये सब देखने को इस काल में मिला,इसके साथ ही जौहर प्रथा भी खूब देखने को मिला,इन प्रथाओं के विस्तृत उलेख पर जाएंगे तो आज आँखों में आंसू आ जाएंगे,पुरुष के मरने के बाद उन्ही के साथ चिटा पर जल जाना कितना ही दर्दनाक मंजर रहता रहा होगा,कभी-कभी तो न चाहते हुए भी जबरदस्ती भी सती कराया जाता रहा था।यदि किसी का बालक के रूप में जनम हुआ है तो उसे सारी खुशियां  दी जाती थी और बालिका को मार देने जैसा कुकृत्य किया जाता रहा गया।भ्रूण हत्या तो बहुत बाद तक चलता रहा,इस कृत्या को अंजाम देने वाले पुरुष किसी भी दशा में पुरुष या इंसान या फिर आदमी कहलाने कि श्रेणी में तो आ ही नहीं सकते,इन्हे नरपिचाश और नरभक्षी के श्रेणी में रखा जा सकता है।इसी प्रकार बचपना कि हत्या कर बालविवाह भी किया जाता था जो स्वास्थ्य से लेकर सभी दृष्टी से अनुचित ही माना जाएगा।विधवाओं  को जिस तरह से रहने को मजबूर किया जाता था वो पुरुष कहलाने के अधिकारी नहीं हो सकते थे,ये उनका दम्भ बोलता था और उनकी इस विकृत मानसिकता का परिचायक था कि ये मेरी प्रॉपर्टी हैं मैं जैसा नियम लागू करूँगा वो ही मानना पड़ेगा।ये दम्भ ही स्त्रियों के प्रताड़ना का सबसे बड़ा कारण बना।महिलाओं पर अत्याचार बढ़ता ही रहा,और इसकी एक और दुखद और दर्दनाक पहलु सामने आया वो था दहेज़ हत्या,दहेज़ के लिए बहु,पत्नी को मौत के घाट सुला देना अत्यंत ही जघन्य अपराध था जो आज भी कमोबेश सुनने को मिल जाता है।आप कल्पना कीजिये किसी माता-पिता के जिगर के टुकड़े को आप बहु और पत्नी के रूप में घर लाते हैं और आप को इसके लिए पैसे से लेकर कीमती-से कीमती सामान चाहिए,जब कि माता-पिता तो खुद ही   खुशी से अपनी बिटिया को सामर्थ्य भर सामान देते हैं,लेकिन हमारा पेट नहीं भरता है,कोशिस ये रहती है कि इंजेक्शन लगा कर  इतना ब्लड निकाल लो कि बस  साँसे चलती रहे या फिर मरने के सामान हो जाये कोई फर्क नहीं पड़ता,अपने  लड़के को पड़ा कर लगता है कि बहुत बड़ा अहसान किये हैं और इसलिए ही पढाये थे कि दहेज़ में सूद सहित वसूल सकें,इतनी बेहयाई और बेशर्मी से दहेज़ कि मांग करेंगे कि जैसे उनका जन्मसिद्ध अधिकार है या फिर मंडी में अपने लड़के के लिए बोली लगा रहें हैं,लड़का भी बात तो बहुत आदर्श कि करेगा लेकिन अपनी गलती न रहे बड़े सफाई से यह कहकर निकल जाएगा कि अब यार माता-पिता के बीच क्या बोले ,लेकिन इससे उसका गुनाह बिलकुल ही कम नहीं होता है,कितना दर्दनाक और खौफनाक मंजर  होता होगा जब जलाकर या गला दबाकर बहुओं को मारा जाता है।मेरी समझ से इससे बड़ा हैवानियत कोई हो ही नहीं सकता है।ये सब उल्लेख करने का मकसद इतना ही है कि तथाकथित पुरुष समाज किस तरह से महिलाओं के साथ अत्याचार किया है और उन्हें बराबर का हक न मिले इसका पुरजोर कुत्सित प्रयास किया है।

                                          ऐसा नहीं है कि इन विपरीत परिस्थितियों में भी महिलायें अपना नाम रोशन नहीं की  हैं,प्राचीनकाल से ये प्रसिद्ध नाम मिल जायेंगे।ऋग्वेद और उपनिषदों में गार्गी और मैत्रेयी का नाम मिल जाएगा,इसके अतरिक्त शकुंतला,सावित्री ऐसे तमाम नाम मिल जाएंगे जिन्होंने इतिहास में अपना नाम अमर किया।गोंड कि महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफखां से लड़कर अपनी जान गवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया।शिवाजी  की  माँ जीजाबाई का भी बहुत नाम है।भक्तिकाल के सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम मीराबाई का ही है,इसके अतिरिक्त अक्का महादेवी,रानी जानाबाई आदि का नाम भी प्रसिद्ध है।महिलाओं में वीरांगना के रूप में रानी लक्ष्मीबाई का नाम तो जबतक मानव जीवन धरा पर है तबतक अमर रहेगा।स्वतंत्रता के आंदोलन में कैप्टन लक्ष्मी सहगल,डाक्टर एनीबेसेन्ट,प्रीतिलता वाडेकर,विजय लक्ष्मी पंडित,राजकुमारी अमृत कौर,अरुणा आसफअली,सुचेता कृपलानी,कस्तूरबा गाँधी को कोई भुला के भी नहीं भूल सकता है।किन्तु इसके बावजूद भी महिलाओं की स्थिति चिंताजनक बनी  रहती है।

                                  ऐसा नहीं की महिलाओं ने कोई ऐसा क्षेत्र छोड़ा हो जहाँ उन्होंने अपना परचम न लहराया हो।सबसे कठिन क्षेत्र सेना माना जाता है यहाँ भी पुनिता अरोरा को प्रथम महिला लेफ्टिनेंट जनरल बनने का गौरव प्राप्त है,इसी प्रकार पद्यावती बंदोपाध्याय को भारतीय वायुसेना की पहली महिला एयरमार्शल बनने का गौरव प्राप्त है,दिव्या अजित कुमार ने सेना की पहली महिला कैडेट बनने का गौरव प्राप्त किया था जिसने स्वार्ड ऑफ आनर हासिल किया था,भावना कंठ,अवनि चतुर्वेदी,मोहना सिंह देश की पहली महिला फाइटर पायलट बानी थी,गुंजन सक्सेना को कारगिल गर्ल के रूप में जाना जाता है।साहित्य के क्षेत्र में भी देखा जाए तो एक से बढ़कर एक प्रसिद्ध नाम आएंगे,महादेवी वर्मा,सुभद्रा कुमारी चौहान,अमृता प्रीतम,कमला सुरैया,झुम्पा लाहिड़ी,मृदुला सिन्हा,चित्र मुद्गल,इस्मत चुगताई,शोभा डे,के अतरिक्त तमाम ऐसे नाम भरे पड़े हैं जिन्होंने अपनी विधा का पताका देश-दुनिया में लहराया,आशापूर्णा देवी,कृष्णा सोबती,आदि भी उल्लेखनीय नाम हैं।इसी प्रकार भारतीय राजनीति में भी शक्तिशाली महिलाओं के नाम से भरा पड़ा है जिन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा समय-समय पर मनवाया,चाहे वो इंदिरा गाँधी जी रहीं हों या फिर पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल जी रहीं हो या फिर सुषमा स्वराज,मीरा कुमारी,शीला दीक्षित,जयललिता,ममता बनर्जी,महबूबा मुफ़्ती,मायावती,अगाथा संगमा,वसुंधरा राजे सिंधिया,उमा भारती ,वृंदा कारंत आदि अनेको नाम मिल जायेंगे।इसके अतिरिक्त इंदिरा नूयी,इंदू जैन,किरण मजूमदार शा,वंदना लूथरा,एकता कपूर,किरण बेदी,शाइना नेहवाल,पी वी सिंधु,मैरीकॉम,पी टी उषा,साक्षी मालिक,मिताली  राज,स्मृति मंडाना,सानिया मिर्जा,शांता रंगास्वामी,ये अनेक ऐसे नाम हैं जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में अपने नाम की खुशबु बिखेरा।

                                        आज वर्तमान में हम बहुत जोर-शोर से महिलाओं को उनका हक देने की बात करते हैं किन्तु देने में आनाकानी करते हैं,महिलाओं को सही माने में यदि बराबरी का दर्जा देना है तो उन्हें सभी क्षेत्रों में आधी भागीदारी देनी होगी,केवल कहने मात्र से नहीं होगा इसकी शुरुवात करनी पड़ेगी,चाहे वो लोकसभा  हो या फिर कहीं और हर जगह इसका पालन कराया जाए,आज हम महिला दिवस तो धूम-धाम से मन लेंगे लेकिन जो उनके साथ आज भी कुछ नपुंसक मानव के रूप में दानव वहशियाना हरकत कर बैठते हैं,उन्हें कैसे सलाखों के बीच पहुंचा कर त्वरित न्याय दिलाया जाय ये आवश्यक है,हर जिले में इसके लिए फास्टट्रैक कोर्ट बनाया जाय और कोशिस ये किया जाए ६ महीने में निपट जाए,जितना भी विलम्ब होगा उतना ही लड़ने वाली महिलाओं का मनोबल टूटता है,महिला थाना बनाया जाए जरूर पर उसे अत्यधिक गतिशील भी बनाया जाए।कोई भी बालिका पड़ने से वंचित न रह पाए इसके लिए स्त्री शिक्षा को निशुल्क कर दिया जाए चाहे उसे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए किया जाए।समाज के हर क्षेत्र में उन्हें उनका ५०%से अधिक वाला हक़ दिया जाए,इसे किसी भी भेद-भाव में में न बांटा जाए,कोई भी समाज का ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ महिलायें पुरुष से बेहतर काम न कर सके,मेरा विश्वास है की पुरुष से अच्छा ही काम करेंगी क्यूंकि महिलाएं जो काम करती हैं वो बहुत ही एकाग्रता से करती हैं।

                                        आज भी जो इतने आधुनिक समाज में हम उनको वो अधिकार नहीं दे पाएं हैं जिसकी वो हकदार हैं,इसका सबसे बड़ा कारण है की हर मनुष्य के भीतर कहीं न कहीं एक शैतानरूपी कीड़ा छुपा रहता है की महिलायें हमारे बराबर नहीं हो सकतीं,बाहर  से हम प्रदर्शित तो करते हैं की हम कितने मन से इनको बराबर का दर्जा देने के लिए आतुर हैं लेकिन किन्तु,परन्तु में उलझा के ही रख देते हैं।आज हर महिलाओं को पुरजोर उस प्रणाली का अर्थार्त उस पुरुष श्रेष्ठ है की मानसिकता का विरोध जोरदार तरीके से करना होगा जो पत्नी को जनप्रतिनिधि बना देने के बाद उनको ज्यादातर घर में रखकर सारा काम अपने करते हैं और इस प्रकार से करते हैं की ज्यादातर तो लोग उन्ही को जनप्रतिनिधि समझ बैठते हैं,एक नया शब्द बहुत चलन में हो गया है प्रधानपति,मेरे समझ में आज तक नहीं आया की ये कौन सी बिमारी है,ये पति हर मीटिंग में भाग लेने की कोशिस करते हैं,यहाँ तक की उनके हस्ताक्षर तक करने में भी नहीं हिचकते और बेधड़क रूप से करते हैं,यदि जांच करा लिया जाए तो निश्चित रूप से ७० से ८०%जगह यही मिलेगा,इस चीज का विरोध महिलाओं को ही करना होगा,जल्द से जल्द इस प्रथा को बंद करना होगा,सरकार को भी चाहिए की बहुत ही शक्ति से न केवल हतोत्साहित  किया जाए बल्कि इसके लिए सख्त कानून बनाया जाए।आज सभी महिलाओं को अपने अंदर आत्मविश्वास भरना होगा की वो हर शैतानी ताकत से लड़ने में सक्षम हैं और उसे नेस्तनाबूत करने में भी  सक्षम हैं,जिस दिन ये बात उनके मन में घर कर जायेगी निश्चित ही कोई भी शैतानी पुरुष किसी भी स्त्री की अस्मत लूटने की या गन्दी हरकत करने की हिमाकत नहीं करेगा।सभी को अपनी सुरक्षा के लिए हर वो एक्सेरसिजे करना चाहिए जिससे मानसिक और शारीरिक मजबूती बड़े।

                                 कितना अजीब लगता है न की जिनसे ये धरा है ये अम्बर है,ये जल है वायु है,उन्ही को हम पल-पल अपमानित करने से नहीं चूकते,क्यूंकि जब ये ही जननी हैं तो आप कहाँ से इस धरा पर आ सकते हैं।कितनी शर्म की बात है की हम विद्या,धन,शक्ति सभी अपने इष्ट देवियों से मांगते हैं और धरा पर विद्यमान उनके रूप को अपमानित और लज्जित करते हैं,इसके लिए हम ही शर्मसार हैं वो नहीं,आज महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए स्वयं आगे आना होगा,पुरुष के नेतृत्व में उनके अधिकार की लड़ाई सही ढंग से नहीं हो सकती,हमें ये कभी नहीं भूलना चाहिए की जिसे हम ईश्वर से भी बड़ा दर्जा देते हैं जो माँ कहलाती है वो भी एक स्त्री है।अगर माँ पूज्य हैं तो हर नारी पूज्य और सम्मान की हकदार हैं,महिला दिवस मनाने  मात्र से नहीं बल्कि दिल से उनको अधिकार और सम्मान देने से होगा।आज नारी को कोमल मात्रा नहीं समझना चाहिए बल्कि वो मानसिक और बौद्धिक रूप से पुरुष भी अधिक शक्तिशाली हैं।नारी सम्मानीय और आदरनियाँ  हैं।आज ये आवश्यक  हो गया है की हर व्यक्ति की पहचान केवल पुरुष से ही न हो बल्कि उसमे माँ का नाम भी जोड़ा जाए,ऐसा होना आज की मांग हैं। 

                                       जय हिन्द-जय नारी समाज ।।      

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट