साजिश-साजिश - समझाविश बाबू - [हिंदी ब्लॉग]
हमारा देश सभ्यता और संस्कृत से समृद्ध देश सम्पूर्ण विश्व में माना जाता रहा है,और माना जाता रहेगा।हम यदि सहिषुणत्ता की बात करे तो अपना देश ही विश्व में सबसे सहिंष्णुं देश माना जाएगा,इसका सबसे बड़ा व जीता जागता उदाहरण है की तमाम धर्मो के मानने वाले,विभिन्न भाषाओँ को बोलने वाले विभिन्न संस्कृतियों को अपनाने वाले एक राष्ट्र एक देश के सिद्धांत को अपनाते हुए रहते हैं।भले ही किसी बात को लेकर विचारों में विरोध हो जाता है,थोड़ा तनाव भी हो जाता है,पर जब राष्ट्र की बात आती है तो सब कुछ भूल कर बस एक सूत्र में मजबूती से बंध जाते हैं और एक साथ देश की आन-बान-शान के लिए खड़े हो जाते हैं।यही पहचान हमारी चलती रही है,आज से कई दशक पहले ये बहुत ही सुन्दर तरीके से दिख भी जाता था।हम तो वो हैं जो दूसरे देशों के भले चाहे वो हमारे धुर विरोधी की क्यों न हों उनके आपदा के समय हम दिलखोल कर मदद को तैयार रहते हैं।इसका कारण भी ये है की हम अपने देश के लिए एक अरब तीस करोड़ लोग एक हैं इसी कारण से हम मजबूती से दुश्मन देश के खिलाफ खड़े हो जाते हैं और इसी मनोबल के कारण हमारी सेना दुश्मन के दांत खट्टे कर देती है।
लेकिन आजकल के हालत देख कर मन रो उठता है,क्या-क्या घटना घट जा रही है,चाहे वो २६ जनवरी की हो,या किसानो के आंदोलन की हो।घटना तो अपनी जगह है एक अजीब सा माहौल हो गया है,कोई भी छोटी से बड़ी घटना घट रही है तो उसमे एक दूसरे पर साजिश करने का दोष मडा जा रहा है,सभी घटनाएं पक्ष-विपक्ष की गन्दी राजनीत की शिकार हो रही है,कोई नित्य नए-नए तर्कों को गढ़कर एक दूसरे को आरोपित ही नहीं कर रहा है,बल्कि अपने तरीके से दोषी भी मान ले रहा है,बहुत सी पुरानी घटनाओं का जिक्र करें यदि तो भी यही तथ्य निकलकर आएगा,की पक्ष-विपक्ष की राजनीत ही खेली गयी है,एक दूसरे को दोषी सिद्ध करने के लिए।
२६ जनवरी की घटना को लीजिये देश की न केवल छवि बिगड़ी बल्कि जो सच्चे देशप्रेमी हैं जिन्हे राजनीत से कुछ नहीं लेना-देना वो सबसे ज्यादा आहात हुए,लेकिन असली मुद्दा की जिसने भी ये हिमाकत की वो चाहे कोई भी हो वो सलाखों के पीछे होना चाहिए,वो ढकता जा रहा है,खेल ये हो रहा है की कैसे एक-दूसरे को नीचे दिखाया जाए,और ये खेल फिर सत्ता और विपक्ष के बीच चल रहा है,विपक्ष पूरा जोर लगा दिए है की किसी भी तरह सत्ता पक्ष दोषी आमजनमानस में हो जाए और सत्ता पक्ष ठीक इसके उलट प्रयास कर रहा है।किसी को देश की चिंता नहीं है वो तो बस सत्ता का खेल बना बैठे हैं,सत्ता से बाहर वाले को बाहर रास नहीं आ रहा है,उसे हर हाल में सत्ता चाहिए तो वो माचिस,पेट्रोल,डीजल सब लेकर खड़ा है पीछे से हाथ में थमाने के लिए।सत्ता पक्ष विपक्ष को दोषी साबित करने के लिए सभी तरीके अपना रही है।इसका सबसे बड़ा पहलु है की जो दोषी हैं वो अपने ऐब को इसी राजनीत में बखूबी छुपा ले रहे हैं वो कोई भी हो वो चाहे पक्ष-विपक्ष के लोग हों या फिर किसान के नेता हों।खूब भड़काऊ भाषण देने के बाद यदि वीडियो वाइरल हो गया तो ये भी राजनीति के सिद्धहस्त खिलाडी की तरह खूब अपने भाषण का अर्थ का अनर्थ समझाने लगे हैं और जब न समझा पाएं तो ये भी सत्ता पक्ष पर सारा ठीकरा फोड़ दे रहे हैं,इतनी वीभत्स स्थिति हो जाने के बाद भी सत्ता पक्ष को क्यूंकि वो सत्ता में है इसका समाधान निकालना ही चाहिए,समाधान निकालिये आंदोलन समाप्त कराइये और फिर जो भी २६ जनवरी का दोषी है या फिर आग में घी डालने का दोषी है उसे अवश्य उसकी जो सही जगह है वहां पहुंचाए जिससे भविष्य में कभी भी किसी दूसरे को हिम्मत न पड़े या दुबारा इस तरह की हिम्मत न कर सके,और दंड इतना शख्त हो की दूसरा कोई और सोच भी न सके।सत्ता में रहकर आप इतने बड़े आंदोलन की अनदेखी नहीं कर सकते वो भी तब जब की इसका वीभत्स पहलू भी सामने आ चूका है,आप जब सम्मानजनक ढंग से आंदोलन समाप्त कराएंगे तभी दोषियों के खिलाफ कठोरतम कार्यवाही कर पाएंगे,साथ किसान नेताओं को भी आगे आकर जो सबसे बेहतर विकल्प बीच का हो सकता है वो निकांनी पर जोर देना चाहिए,आप अपने विश्वासपात्र विशेषज्ञों से राय मशविरा कर सकते हैं,हाँ ये अवश्य है की उनसे बिलकुल नहीं जो राजनीतिक रोटी सेकना चाहते हैं,क्यूंकि अब सम्मानजनक ढंग से इसका हल निकलना बहुत ही जरुरी है,२६ जनवरी के लिए जो भी जिम्मेदार हैं या जिसका भी षड़यंत्र हो देश के माथे पर लगा धब्बा इतनी आसानी से नहीं मिटने वाला है।अब तो एक और अजीब स्थिति हो गयी है अब तो आतंकवादी हमलो पर भी राजनितिक रोटी सेकने को लोग तैयार बैठे हैं,आम जनता तो समझ ही नहीं पा रही है की क्या सही है क्या गलत है कौन दोषी है कौन निर्दोष है क्यों की सभी नेता एक्टर भी हैं कोई रो रहा है कोई कुछ कर रहा है,मेरा मानना ये है की किसान देश के अन्नदाता हैं,उनका स्थान कोई नहीं ले सकता, इनके लिए वही नीतियां बननी चाहिए जो वास्तव में उनके लिए हितकर हो,किन्तु उनकी लड़ाई लड़ने वाले को भी ये समझना होगा की देश से बड़ा कोई नहीं,मेरे आजतक ये समझ में नहीं आया की सविंधान को न मानकर कौन सा विरोध,ये भी देखना होगा की किसान का हित ही सर्वोपरि रहे कहीं छुपा हुआ अपना हित ही न सर्वोपरि हो जाए ,चलिए एक बात ये भी बताइये आप संसद मार्च कर रहे थे तो चलिए मान लिया जाए की आप देश के प्रतिनिधियों को अपनी बात सुनना चाहते थे,पर ये बताइये की आप २६ जनवरी को ही ट्र्रैक्टर रैली निकालने पर ही आमादा क्यों थे,क्यों कोई ये नहीं मान सकता की कुछ लोग थे जो इसके लिए प्रेरित कर रहे थे,आखिर इससे क्या हासिल होना था,आप अपनी जगह ही एक सुन्दर और विशाल गणतंत्र का पर्व मनाते और अपनी देशी संस्कृत की झांकी वही पेश करते तो हमारा ये मानना है की आप को सुनने और देखने वाले सबसे ज्यादा मिलते और आप की मांग ज्यादा मुखर होती,लेकिन आप की जिद और जिन्होंने भड़काऊ भाषण दिए वो इस दोष से कैसे मुक्त हो सकते हैं,मेरा मानना है की कत्तई नहीं हो सकते।लेकिन इनका साजिश-उनका साजिश बताकर सब पाक साफ़ हो रहे हैं।ये सभी परिस्थितियों को देखने के बाद समझ में ही नहीं आ रहा है की आखिर किसानो का सच्चा हितैषी कौन है?देश को कौन सर्वोपरि मान रहा है,कौन सभी का सच्चा हितैषी है?
इन सब में सोने में सुहागा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी हो जा रहा है,तरह-तरह के विश्लेषण चलने लगता है,कोई किसी को सही बता रहा है कोई किसी को,पल-पल स्थिति बदलती भी रहती है,इसी में एक नया शब्द भी गढ़ लिया गया है गोदी मीडिया,मेरे समझ में नहीं आया,लेकिन मेरे यहाँ बहुत ही बड़े-बड़े विद्वान् पड़े हैं जिनसे आप बकैती या विश्लेषण करवा लो,बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों को भी फेल कर देंगे,अब देखिये यहाँ भी वही खेल चल रहा है गोदी मीडिया और तथाकथित सच्ची मीडिया,दोनों एक दूसरे को गलत साबित करने में लगे हैं,दोनों ओर तड़का अच्छा लगाया जा रहा है, दोनों के लिए मूर्धन्य विद्वान् तरह-तरह का विश्लेषण पेश कर रहे हैं,यूटूब खोल लीजिये विश्लेषण भरा मिल जाएगा,कोई कह रहा होगा की अब तो कुछ भी नहीं बचेगा,गोदी मीडिया भी मिल गया है तो कोई कहेगा की ये देश में भ्रम फैलाकर सत्ता हथियाना चाह रहे हैं,यूटूब पर तो ऐसा नमस्कार करके फिर जो ऐसी-तैसी करते हैं की समझ में ही नहीं आता है की किसे सही मानू किसे गलत,हाँ ये अवश्य है की दोनों तरफ के कुछ नाम बहुत चर्चित हो गए हैं,लोग भी दो धड़ो में बंट जाते हैं,इतनी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गयी है की क्या सही क्या गलत पल्ले ही नहीं पड़ रहा,जनता पेंडुलम बनी घूम रही है,पूरा वातावरण दूषित होता जा रहा है।आज तो ये स्थिति बनती जा रही है की ईमानदार को अपनी ईमानदारी साबित करनी पड़ेगी वो भी भ्रष्ट लोगों के सामने,ईमानदार चुनाव लड़ नहीं सकता लड़े तो जीत नहीं सकता क्यूंकि न उसके पास धन है न बल है न छल है न कपट है न दिखावे का आंसू है न ही कलाकारी है,न उसके पीछे कोई बलशाली हाथ,हम छुरी लेकर भी सड़क पर नहीं निकल सकते खुले आम और यदि पकडे गए तो कोई क्षमा नहीं,जो सक्षम हैं वो आंदोलन के नाम पर नंगी तलवार लेकर निकल ही नहीं गए भांजे भी और हम दोषारोपण ही मढ़ने में लगे हैं,ये होता है आम और ख़ास आदमी।क्यूंकि इनके पीछे बहुत से लोग हैं बहुत से कारण बताने वाले,और सही-साबित करने वाले,सबका अपना-अपना स्वार्थ है,चलिए मान लिया जाता है की आप तो निर्दोष हैं ये १०० प्रतिशत आप को फ़साने के लिए किया गया तो आइये इसी की निष्पक्ष जांच की मांग की जाए इसके लिए उपवास रखा जाए और चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष हों या किसान नेता हों सबके सारे वीडियो/ऑडियो कथन और वीडियो फुटेज की निष्पक्ष जांच की मांग की जाए भले माननीय सर्वोच्च न्यायालय से रिट द्वारा उनके न्यायाधीश की अध्यक्षता में हो कम से कम दूध क दूध और पानी क पानी हो जाए।लेकिन हम ये नहीं करेंगे जो मजा साजिश-साजिश खेलने में आएगा वो इसमें कहाँ,खूब खेलिए क्यूंकि देश के माथे पर भले धब्बा लग जाए,आप को इसकी क्या चिंता है सबको अपना-अपना स्वार्थ महत्वपूर्ण दिखाई दे रहा है।
वास्तव में देखा जाए तो आज जो वातावरण है उसे किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता है,ये कितना दुर्भाग्य है की देश के किसी भी कोने में कोई भी अप्रिय या सविंधान विरोधी घटना घटे तो उसका सही निदान न होकर साजिशों में फसा दिया जा रहा है,हर जगह पक्ष हो या फिर विपक्ष अपनी तरह से बड़ियाँ शब्दावली गढ़ कर अपने को पाकसाफ बताने में लगी है,आजतक मेरे समझ में कुछ बातें नहीं आयी कि देश के सभी नेता चाहे पक्ष हो या विपक्ष हो यही कहते नहीं थकते कि देश के लिए हम कुछ भी कर गुजरेंगे फिर ये घटनाये कैसे हो जाती है,यदि हो भी जाती है तो एकजुट होकर दोषियों को क्यों नहीं ढूंढा जाता केवल साजिश-साजिश क्यों खेला जाता है ? दूसरे सभी आजादी के बाद से ही गरीबी मिटने के लिए कृतसंकल्प रहते हैं तो मिटती क्यों नहीं?सभी भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करना चाहते हैं तो और अमरबेल कि तरह क्यों पनपती जा रही है?सारे अधिकारी नौकरी में आने से पहले ईमानदारी कि कसम लेते हैं फिर कार्यालयों में भ्रष्टाचार मिटने कि जगह और तेजी से क्यों बढ़ रहा है ? सच पूछिए तो आज भ्रष्टाचार,छल,कपट,कलंकित करने वाले कारनामे सभी साजिश-साजिश के खेल में खूब फल-फूल रहे हैं,सच्चाई का दम घुट रहा है झूठ सच बनकर मौज कर रहा है,मन के काले सफेदपोश बनकर घूम रहे हैं,उनकी सफेदी देखकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है,गरीब तो गरीब बनकर घूम रहा है,रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है,जबकि मौजी लाल मौज कर रहे हैं,आज शब्दों के बाण चलाये जा रहे हैं उसी से काम भी चल रहा है।
आज एक बात हमें समझने की जरुरत है की ट्विटर,फेसबुक,इंस्टाग्राम,से काम चलने वाले लोग जो कहते हैं की हम देश के सच्चे रहनुमा हैं या फिर बहुत बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग हों सभी अपने आलिशान बंगलों में आराम की जिंदगी बसर कर रहे हैं,कुछ करने की ललक में अपना एक से एक रूप दिखा रहे हैं,इनका समाज के सामने असली चेहरा लाने की जरुरत है,आज हमें देश में ऐसा माहौल बनाना पड़ेगा की क्षद्मवेशी लोगों की पराजय हो और सच्चे लोगों की विजय हो,इसके लिए हमें धर्म,राजनीति,जाति-पाती सभी से ऊपर उठना होगा किसी को भी झूठा रहनुमा नहीं बनने देना है,और जो बनने की कोशिस करे तो उसे बेनकाब करना होगा,किसी को भी साजिश-साजिश नहीं खेलने देना होगा राष्ट्र पर जो भी धब्बा लगाने की कोशिस करे उसे उसके सही मुकाम पर पहुँचाना होगा,जो अपने को सच्चा रहनुमा बनने की कोशिस कर रहे हैं यूटूब को इस्तेमालकर नमस्कार कर उनको ये बताना होगा की आइये हमारे बीच आप बहुत सही हैं तो चलिए कैम्पेन चलाया जाये,झूठा नाटक किसी को नहीं करने देना होगा,तभी हम अपने राष्ट्र की अस्मिता को बचा पाएंगे,हम अमेरिका की घटना देखकर ये सोच रहे थे की मेरा लोकतंत्र बहुत मजबूत है,उसदिन भी मेरे द्वारा लिखा गया था की ये सभी देशों के लिए एक खतरनाक संकेत है,देखिये हमारे यहाँ भी कुछ तथाकथित लोगों ने शर्मसार किया न,इसलिए ये साजिश-साजिश खेलना बंद कर हर उस चेहरे को बेनकाब करना होगा जिसने भी ये गन्दी हरकत की है वो फिर चाहे कोई हो।
जय हिन्द जय समाज ।।




NIDHI RAJPUT
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