हमारा गणतंत्र-अपना गणतंत्र - समझाविश बाबू [हिंदी ब्लॉग]
हमारा देश जहाँ आबादी में विश्व में दूसरा स्थान रखता है,वहीँ क्षेत्रफल में सातवां स्थान रखता है,आज हमारे देश की आबादी एक अरब से ऊपर पहुँच गयी है।हमारे देश में वर्तमान में २८ प्रदेश और ९ केंद्र शासित प्रदेश हैं।इसी लिए भारत देश विविधताओं का देश माना जाता है,यहाँ तमाम धर्मो को मानने वाले और विभिन्न भाषाओँ को बोलने वाले एक माले की तरह पिरोकर रहते हैं,लेकिन इसके कारण जहाँ सांस्कृतिक समृद्धता और समरसता पैदा हुई वहीँ समय-समय पर राजनीतिक अलगाव व बटवारे की भावना भी कभी-कभी प्रस्फुटित होती रहती है,ये भी कारण रहा है की हम सैंकड़ो वर्ष गुलामी के जंजीर में जकड़े रहे हैं।तमाम महान क्रांतिकारी और पूज्य आत्माओं के अथक और बलिदानी प्रयास से सं १९४७ में हमारा देश आजाद हुआ,हमें भी स्वतंत्र और अपना वातावरण मिला जीने के लिए,किन्तु स्वतंत्रता के साथ किसी भी देश को चलाने के लिए सविंधान की आवश्यकता होती है,क्यूंकि बिना सविंधान के हर व्यक्ति स्वतंत्र की जगह स्वछन्द और बिना अंकुश के हो जाएगा जो किसी भी सभ्य समाज के लिए उपयुक्त नहीं है।
भारत में जो सविंधान २६ जनवरी १९५० को लागू हुआ वो पिछले १०० वर्षों के संवैधानिक विकास की परिणित थी।इस परिपेक्ष्य में १८२९ का सती उन्मूलन अधिनियम,१८५६ का हिन्दू विधवा अधिनियम,१८६१ का इंडियन काउन्सिल एक्ट,भारतीय परिषद् अधिनियम १८६१,१८९२,१९०९,और भारत शासन अधिनियम १९१९ तथा भारत शासन अधिनियम १९३५ को देखा जा सकता है।१३ दिसंबर १९४६ को पंडित नेहरू द्वारा प्रेषित उद्देशय प्रस्ताव में सविंधान के मूलभूत सिद्धांतों और लक्ष्यों को इंगित किया गया था,जिसे २२जनवरी १९४७ को सविंधान सभा द्वारा स्वीकार किया गया था।सविंधान का वृस्तृत प्रारूप तैयार करने के लिए २९ अगस्त १९४७ को सविंधान सभा द्वारा एक प्रारूप समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष डाक्टर भीम राव अम्बेडकर को बनाया गया,उनके अतिरिक्त ६ और सदस्य बनाये गए,इनलोगों के अथक प्रयास और मंथन के बाद जो सविंधान बना उसे देश में २६ जनवरी १९५० को लागू किया गया।इसी कारण से इसदिन हम अपना गणतंत्र दिवस मनाते हैं।अबतक इस सविंधान में १०१ के लगभग संशोधन हो चुके हैं,लेकिनआज भी जो हमारे सविंधान की प्रस्तावना है वो उसकी आत्मा मानी जाती है,इसे हर नागरिक को न केवल पड़ना चाहिए बल्कि इसे अपने अंदर आत्मसात भी करना चाहिए,जो इस प्रकार है -----
हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा,
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए,
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
बहुत ही अथक प्रयास और मंथन के बाद हमारा सविंधान बना,जिसका मूल उद्देश्य ही ये है की इसे हर नागरिक पालन करते हुए देश की समरसता और अखंडता को बनाये रखते हुए अपने अधिकारों के साथ दूसरों के अधिकारों को भी सुरक्षित रखे।गौर से देखें तो हमारा प्रस्तावना कितना सुन्दर उद्देश्य लिए हुए है लेकिन जरा वास्तविक स्थिति में देखा जाए तो ये देखने को मिलेगा की सक्षम व्यक्ति या फिर राजनीति में और तथाकथित सफेदपोश लोगों में ये अक्सर अनेको उदहारण मिल जाएंगे जहाँ वो सविंधान की व्याख्या अपने मतलब के अनुसार करते हुए मिल जाएंगे,कुछ इसमें तथाकथित बुद्धिजीवी भी मिल जाएंगे,सबसे अधिक ये अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के नाम पर होता है,इसे कुछ लोगों ने अमोघ अश्त्र बना लिया है,आज तक मेरे समझ में नहीं आया की किसी दूसरे समुदाय,धर्म,जाति,और राष्ट्रीयता की भावना को प्रभावित करने वालीं बातें कैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में आ जाती है,बोलने की तो कोई सीमा ही नहीं रह गई है,कुछ तो ऐसे बोलते हैं जैसे वो सविंधान से ऊपर हैं,उनके लिए कोई नियम-अधिनियम बाध्यकारी नहीं है।
पहले छोटी-छोटी बातों से शुरू करते हैं,लाल सिग्नल को अनदेखा करना,मोटर साइकिल,स्कूटर पर तीन या उससे भी अधिक सवारी बैठना, हेलमेट न लगाना,बायें-दायें का कोई ख्याल न करना और इन सारे नियमो को तोड़ने के बाद भी कोई आत्मग्लानि न होना,हूटर जो सबको अनुमन्य नहीं है उसका भी बेधड़क होकर उपयोग करना ये सब करते हुए हम बड़े शान से २६ जनवरी को सविंधान के पालन की कसमें खाते हैं।आज आप को जीता-जागता उदहारण पश्चिम बंगाल में देखने को मिलेगा कि आने वाले चुनाव में जीतने कि ललक को चरम सीमा पर लिए हुए कैसे-कैसे नारे लगाए जा रहें हैं,किस तरह से हिंसा हो रही है,एक दूसरे को चैलेंज किया जा रहा है कोई बड़े पद पर आसीन होते हुए भी अधिकारी के समर्थन में धरने जैसा माहौल बना देता है, कोई किसी अधिकारी को तलब करता है कोई कहता है कि नहीं जायेंगे ये अधिकार क्षेत्र के बाहर है,आखिर किसी न किसी के द्वारा तो सविंधान के पालन में कोताही कि जा रही है,आज जिस तरह प्रदेश और केंद्र को लेकर सविंधान पर बहस चलने लगती है तो आम आदमी तो केवल ये जानना चाहता है कि सविंधान के पालन कि कौन अनदेखी कर रहा है या कौन दुरूपयोग कर रहा है,जम्मू कश्मीर को देखिये कैसे-कैसे व्यक्तव्य दिए गए और लगातार दिए जाते हैं आखिर क्या ये सविंधान का पालन है या उलंघन,आज जिस तरह नेतागण वो चाहे किसी भी संस्था के क्यों न हों सविंधानिक संस्था को भी न मानने का दम्भ भरने लगते हैं और प्रदर्शित ऐसा करते हैं कि उनसे बड़ा सविंधान का रक्षक कोई नहीं है।आज देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि आप किसी भी कार्यालय या सार्वजनिक सभाओं में जब भी कोई इन राष्ट्रीय पर्वों पर माइक पकड़ता है तो इतने आदर्शों और सिद्धांतों कि बाते करता है कि जोरदार तालियां तो बजती ही है और ऐसा लगता है कि इनसे बड़ा देशभक्त और नियमो का पालन करने वाला कोई नहीं होगा,पर मंच से उतरते ही उनका असली चेहरा स्पष्ट हो जाता है।
आप देखिये जिन वीर सपूतों ने अपनी जवानी देश के लिए कुर्बान कर दी,अपने माता-पिता कि भी चिंता न कर देश को सर्वोपरि माना,आज हम उन्हें किताबों से भी दूर करते जा रहें हैं,जिस तरह हम उन्हें भूलते जा रहे हैं,लगता है आने वाले समय में आने वाली जनरेशन उन्हे जान ही न पाए,सरफ़रोशी कि तमन्ना अब हमारे दिल में है अब बदलते हुए कुर्सी कि तमन्ना में तब्दील होता जा रहा है,जिन्होंने सच्चे अर्थो में देश के लिए कुर्बानी दी क्या कभी भी किसी ने ये जानने कि कोशिस की कि उनके परिवार के लोग कहाँ और किस हालत में हैं,उनका घर किस हालत में है,शायद नहीं,हमने तो उन्हें बस जयंतियों और पुण्य तिथियों तक सीमित कर दिया है वो भी सभी का नहीं।हर करम अपना करेंगे अय वतन तेरे लिए बदलता जा रहा है,अब तो लगता है की हर जतन अपना करेंगे कुर्सी के लिए,एक बार मिल जाए फिर देखेंगे क्या पालन करना क्या नहीं।इस समय की ज्वलंत समस्या देखिये जो किसानो का धरना है दोनों तरफ संविधान के सबसे बड़े रक्षक होने का दावा किया जा रहा है और नित्य नए-नए कारनामे भी करने को आतुर दिख रहे हैं,अब आम आदमी क्या समझे की कौन सही कौन गलत,राष्ट्र की अमन चैन जरुरी है या ये सब,दोषी कौन है?क्यों इसकी नौबत आ रही है,आखिर ये समाप्त क्यों नहीं हो रहा है,हाँ ये अवश्य है की बढ़ -चढ़कर बोलने की प्रतियोगिता हो गयी है,आखिर गलती किसकी है,क्यों नहीं सविंधानिक रूप से तथ्यों सहित ये बताया जा रहा है,आमजन इसमें पिस रहा है जिसे दोनों से कोई सरोकार नहीं है,अगर नियम सही है तो आंदोलन समाप्त हो नहीं है तो नियम समाप्त हो लेकिन अड़ने से नुक्सान किसका है,न इनका न उनका देश के गौरव का है,लेकिन ये बात तो बिलकुल नहीं समझ में आयी की हमें केवल और केवल निरस्त चाहिए,यदि आप सही हो तो आप ही बताओ भाई की ये नियम इन-इन कारणों से निरस्त ही अंतिम चारा है,और आप ये समझाओ की संशोधन ही विकल्प है।यहाँ ये भी सबसे अधिक विचारणीय प्रश्न है की सविंधान का कितना पालन दोनों तरफ से हो रहा है।
आज नेता जी सुभाष चंद्र बोष को जिस तरह से याद किया जा रहा है भले राजनीतिक फायदे को ही देखकर ही सही पर चलिए अच्छा लगा की उस महान व्यक्ति को जो इस सम्मान का आजादी के बाद से ही हकदार था उसे नहीं मिला,वो सबसे आगे आ गए जो उनके या अन्य बलिदानियों से बिलकुल ही बराबर नहीं थे।आज हम कोई भी काम कर रहे हैं तो राजनीतिक नफा-नुक्सान को देखते हुए,समय बदला और आदर्श भी बदलते गए,सविंधान का अपने मुताबिक परिभाषित होने लगा।आज आप देखिये सोशल मीडिया या फिर विभिन्न चैनलों में जिस तरह से सवेंदनशील मुद्दों का भी ट्रायल किया जाता है क्या ये नियम संगत है या फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आंड।हमारे निजता से सम्बंधित डाटा को भी चोरी-चुपके जिस प्रकार से उसे यूज करने की तैयारी की जा रही थी क्या ये संवैधानिक है या उल्लघन,आज डिबेटोँ में बैठे ऐंकर कभी-कभी तो ये लगता है की ये सभी विषयों के सबसे बड़े ज्ञाता हैं,वो अपनी बातों को ऐसे रखते हैं की उनका ही कथन सार्वभौमिक सत्य है,बीच-बीच में विभिन्न प्रकार की टोका-टाकी टीआर पी के चक्कर में गजब दृश्य प्रदर्शित करती है।कभी-कभी भाग लेने वाले सारे सीमाओं को लांघ जाते हैं,तो क्या ये संवैधानिक दायरे में माना जायेगा,या फिर अभिव्यक्ति की आजादी में या फिर कुछ और,महान क्रांतिकारी,देश के वीर सपूत अपनी बलिदान देकर एक परतंत्र भारत को स्वतंत्र भारत में बदलकर चले गए ये परिकल्पना करते हुए की फिर से एक सुन्दर भारत का निर्माण होगा और भारत विश्व गुरु बनेगा।हम उन्हे भूलते जा रहे हैं और अपने तरीके से जीते जा रहे हैं,शोर मचाने के ज्यादा आदि होते जा रहे हैं।प्रदर्शित तो ऐसा कर देते हैं की जैसे अब सब कष्ट मिट गया है,पर परिणाम क्या निकलता है ये सब जानते हैं।
आज हमारा गणतंत्र राजतंत्र और भीड़तंत्र के मध्य पिसता जा रहा है,आज हम सविंधान को जानने व् समझने की जरुरत को भूलते जा रहे हैं,कभी उसे भूल से भी पड़ने की जरुरत नहीं समझते,हम इसमें ज्यादा विश्वास करने लगें हैं की ऐसा ही होना चाहिए न की ये की ऐसा नहीं होना चाहिए,अपनी प्रस्तावना को ही पड़लें और उसी का अक्षरसः पालन कर लें तो बहुत कुछ अच्छा होने लगेगा।आज जो भीड़ तंत्र जो राजधानी दिल्ली में किया जा रहा है ये किस सविंधान और राष्ट्र की मर्यादा का काम किया जा रहा है,ये कौन सा किसान आंदोलन है जो लालकिले पर तिरंगा की जगह कोई और झंडा फहरा देना ये कहाँ का आंदोलन है,आज इसे शक्ति से निपटने का अवसर है वो फिर चाहे कोई भी हो,आज उन्हे भी जवाब देना चाहिए जो विपक्ष की राजनीति कर रहे थे और आग में घी ही नहीं बल्कि ज्वलनशील पदार्थ डालने का काम कर रहे थे अब वो कहाँ हैं,उन्हें भी स्पष्ट करना होगा जो टी वी डिबेट में बैठकर बड़े जोर-शोर से कह रहे थे की शांतिपूर्ण ट्रैक्टर रैली की इजाजत देने में क्या दिक्कत है,अब बताएं आज विश्व में कौन सा सन्देश हम दे रहे हैं,क्या किसी का विरोध इस स्तर पर होना चाहिए की देश की शांति-सुरक्षा को ही धता बता दिया जाये,आज जो कुछ हो रहा है इसके लिए जो भी जिम्मेदार है उसे कत्तई बख्सा नहीं जाना चाहिए,देश से बड़ा कोई नहीं है, हम ये समझ लेंगे की सत्ता आनी जानी है,देश को बेहतर बनाना सबसे बड़ा उद्देश्य है तो सब कुछ अच्छा होने लगेगा,आज समय है की देश के लिए कुछ भी करेगा न की सत्ता के लिए कुछ भी करेगा।
जय हिन्द जय संविधान ।।



राहुल अनुयायी
जवाब देंहटाएंबर्दाश्त नही करेंगे तिरेंगे का अपमान करो इन देश द्रोहियों पे कठोर प्रहार, अब बस मोदी उसके3 बाद योगी।
कविका ऋतुराज
जवाब देंहटाएंआज तक और भी बहुत से चैनलों के सर्वे में भी यही आया है मोदी जी के बाद योगी ही प्रधानमंत्री की पसंद। है।
उत्तर प्रदेश में अगले 10 साल योगी जी ही रहेन्गे।
whicktor
जवाब देंहटाएंHappy republic day
dhanyavaad
हटाएं