यार कुछ तो गड़बड़ है ? - समझाविश बाबू
आज सी आई डी का वो डॉयलाग बहुत याद आ रहा है की कुछ तो गड़बड़ है,दया वही तो--।किसानो का आंदोलन लम्बा खींचता चला जा रहा है,शासन और किसान दोनों अपने-अपने तर्क देने में लगे हैं,जहाँ हजारों किसान और उनके अनेको नेता जहाँ कृषि कानून को किसान विरोधी बताकर सिरे से ख़ारिज कर रहे हैं वहीँ शासन की तरफ से उनके जनप्रतिनिधियों की एक लम्बी फ़ौज इसके फायदे बताने में जुटी है और इसे किसानो के लिए सबसे उपयोगी बता रही है,अब यहाँ देखने वाली बात है की यदि ये बहुत ही उपयोगी है,लाभकारी है तो इतना जबरदस्त विरोध क्यों,और यदि ये एकदम से अहितकारी है,अलाभकारी है तो बीच का रास्ता न निकालकर सिरे से ही ख़ारिज करने की मांग पर अंड़े रहना,ये दर्शाता है की कुछ तो गड़बड़ है।ये अजीब सी विडंबना है कि नीतियां बनाकर हम जोरशोर से प्रचारित करते हैं कि हमने एक क्रांतिकारी कदम उठाया है,इससे बहुत ही सुखद परिवर्तन आएंगे,पर मेरे ये समझ में नहीं आता है कि जिसके लिए ये नीतियां बनाई जाती है उनसे पहले ही क्यों नहीं वार्ता कर ली जाती है,क्यों नहीं धरातल पर सर्वे उनके बीच में कराया जाता है कि उनके लिए ये हितकर रहेगा या नहीं,बनने के बाद फिर तो इतना जबरदस्त विरोध नहीं होता,यदि होता भी तो आप के पास एक माकूल जवाब भी रहता कि मैंने तो सर्वे कराकर और आपलोगों से वार्ता कराकर ये नीतियां बनायीं है। इतनी विकट स्थिति तो नहीं होती।इसका सबसे दुखद पहलु एक और देखने को मिलती है कि अधिकाँश लोगों को नीतियों के बारे में मुक्कमल जानकारी नहीं रहती है फिर भी आंदोलन में बढ़चढ़कर शिरकत करते हैं,ऐसा लगता है कि ये ही सच्चे देश के रहनुमा हैं।
अब देखने वाली बात ये है कि किसान तीनो बिलों को सिरे से ख़ारिज करने कि बात कर रहे हैं,उनके तरफ से दो टूक कहा जा रहा है कि रद्द करने के अलावा हम उससे कम पर तैयार नहीं हैं।उनका कहना है कि कृषक उपज व्यापार और वाण्जिय(संवर्धन और सरलीकरण)कानून २०२०,कृषक(सशक्तिकरण व् सरक्षण)कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून २०२०,आवश्यक वस्तु(संशोधन)कानून २०२० तीनो निरस्त कर फिर वार्ता कि जाये,जहाँ सरकार इसके बहुत ही अच्छे फायदे बता रही है जैसे कि एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्राविधान है जहाँ किसानो और व्यापारियों को राज्य कि एपीएमसी(एग्रीकल्चर प्रोडूस मार्किट कमिटी)कि रजिस्टरड मंडियों से बाहर फसल बेचने कि आजादी होगी,किसानो को अपनी उपज एक राज्य से दूसरे राज्य में बेचने कि आजादी रहेगी,इस कानून के तहत किसान कृषि व्यापार करने के लिए बड़े व्यापारियों,खुदरा विक्रेताओं व् निर्यातकों से कॉन्ट्रैक्ट कर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर सकते हैंऔर अपने उपज को अच्छे दामों में बेंच सकते हैं,पांच हेक्टेयर से कम जोत के किसान भी इससे लाभ पा सकते हैं।इसके अतिरिक्त अनाज,दलहन,तिलहन,खाद्य तेल,प्याज,और आलू को आवश्यक वस्तुवों कि सूची से हटाने का प्राविधान है,असाधारण परिस्थितियों को छोड़ कर जितना चाहे भंडारण किया जा सकता है।किसानो के अपने तर्क है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से खरीद बंद हो जाएगी,मंडियां बंद हो जाएँगी,बड़े व्यापारी एक मोनोपोली स्थापित कर लेंगे और छोटे किसान न तो कीमत पा पाएंगे और न ही जमीं सुरक्षित रख पाएंगे।
यहाँ सबसे बड़ी बात देखने वाली ये है कि एक तरफ से बिलकुल ही अलाभकारी बताया जा रहा है,तो दूसरे तरफ से बहुत ही उपयोगी और क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है,यदि दोनों तरफ से अड़ियल रुख रहेगा तो समाधान क्या निकलेगा,उसी में राजनितिक पार्टियां और कूद गयी हैं,अपनी-अपनी सादी,मिस्सी,रुमाली,तंदूरी,श्रीमाल जैसी हो पा रही है रोटी सेकने का प्रयास कर रही हैं,सुबह से शाम तक खूब हो-हल्ला मचाते हैं और शाम को बंद ऐ सी कमरे में लजीज खाने का लुत्फ़ लेते हैं,सभी चिल्लाते तो ऐसे हैं कि कितने फिकरमंद हैं और बस चलता तो किसानो को सिंहासन पर बैठा देते और उनकी जी हुजूरी करते,ये अलग बात है कि जब उनका बस था तो वो भी वही करते थे जो उनकी मर्जी होती थी,लेकिन यहाँ ये भी सत्य है कि जनप्रतिनिधियों कि जो फ़ौज उतारी जा रही है कृषि नीति का प्रचार-प्रसार करने के लिए यदि ये काम नीति लाने से पहले किया जाता तो कौन सा आसमान टूट पड़ता,ये मूछ कि लड़ाई नहीं है सभी अपने हैं,जिन्हे समझाना हो उन्हें समझाइये।एक रामायण का प्रसंग याद आ गया जो अपने आप ही बहुत कुछ कह देगा मुझे लिखने कि जरुरत नहीं पड़ेगी,क्यूंकि आजकल भगवन राम कि चर्चा सर्वत्र रहता है,जब भगवान् राम बनवास काट रहे थे,उसी समय भरत पूरी सेना अपने गुरु, माता के साथ राम से मिलने गए थे जिसे देखकर लक्ष्मण उत्तेजित हो गए थे और भरत को परास्त करने और न जाने क्या-क्या बक रहे थे,लेकिन जब भरत आये और जो अपनी भावना प्रगट की उसे देखकर स्वयं भगवान् राम ही नहीं सभी के आँखों में आंसू आ गए थे,आज भी यदि रामायण सीरियल का वो दृश्य आ जाये तो लोगों के आँखों में आंसू आ जायेंगे,जहाँ सत्ता सर्वोपरि नहीं प्यार और स्नेह तथा रिश्ता महत्वपूर्ण था,आज खुद सभी पैरोकार सोचें किसानो की सोच रहे हैं की सत्ता का द्वार खोज रहे हैं।
आज अहम् किसी में नहीं होना चाहिए,दो कदम आप बड़ो और दो कदम वो बड़े,बल्कि बड़े होने के नाते सत्ता पक्ष अगर दो कदम आगे बढ़ जायेगा तो ये उनका बड़प्पन कहलायेगा,पहल करनी चाहिए,जो आप अन्य जगह,इधर-उधर जनप्रतिनिधयों को भेज-भेज कर मीटिंग करा रहे हैं वो प्रयास वहीँ क्यों नहीं करते जहाँ वो बैठे हैं,उनके बैठे रहने से कोई अच्छा मैसेज जा ही नहीं सकता और ये अच्छा लग भी नहीं सकता की सर्दी में किसान खुले आसमान के नीचे बैठे रहें,और ये एक अंतर्राष्ट्रीय समाचार बने,किसान के प्रतिनिधियों को भी चाहिए की दो टूक जवाब पहले से ही न बता दें की नहीं पहले निरस्त हो तब कोई बात होगी,बिना वार्ता के कोई समाधान नहीं निकलता है,आप अपनी सारे संशोधन रख कर तो वार्ता कर सकते हो,यदि आप की शंका का समाधान न हो तब आप कोई रास्ता चुनो,लेकिन दो टूक ठीक नहीं है।ये आप भी समझ लो ये जो लोग बिल फाड़ने और जाने क्या-क्या अदा कर रहे हैं ये मेरी नजर में नौटंकी के अलावा कुछ नहीं है,कुछ तो बड़े लोग ट्यूटर से ही काम चला ले रहे हैं।आज तो हाल ये है की प्राइमरी स्कूल की पैरवी करने वाले लोगों के बचे विदेशों में पहले से पड़ने चले जाते हैं,सरकारी अस्पतालों की पैरवी करने वाले प्राइवेट इलाज पर ज्यादा जोर देते हैं,ये ही किसानो के भी सबसे बड़े हितैषी हैं।टी वी डिबेट पर बैठ कर केवल और केवल एक दूसरे की कमिया गिनाते रहते हैं या फिर लड़ने की मुद्रा में आ जाते हैं,इससे कौन सा भला आंदोलन का हो जायेगा कौन जाने,लेकिन मकसद तो हित साधना है,अपने को राजा हरिश्चंद्र साबित करना है।जब दोनों का मकसद एक है की किसान खुशहाल रहे तो गतिरोध फिर कैसा ,आप दोनों भला चाहते हो किसानो का तो फिर बुरा कैसे हो रहा है,एक चीज क्यों नहीं समझ में आ रही है की देश में शांति रहेगी तभी देश खुशहाल रहेगा,इसके लिए कोई भी जतन यदि आगे बढ़कर करना हो तो करना चाहिए,अब सबसे कारगर होगा की मौके पर समझाया जाये,इधर-उधर नहीं |यदि थोड़ा सा आगे बढ़ने से मुस्कराहट आ सकती है तो फिर हर्ज क्या है,इसे सत्ता पक्ष और विपक्ष का विषय न बनाया जाये ,आज तो कुछ विपक्ष के लोग भी ऐसे-ऐसे ज्ञान बाँट रहे हैं जिसे समझना मुश्किल है,लेकिन सत्ता में रहने पर न केवल सबसे बड़ी जिम्मेदारी रहती है बल्कि विनम्रता और पहल की भी जिम्मेदारी रहती है मात्रा पत्र से नहीं,उनका बैठे रहने और अड़े रहना तथा संवाद न होना कहीं से शुभ संकेत नहीं है,यहाँ अभिमान से इतर होना पड़ेगा और बात-चीत के लिए पहल करनी पड़ेगी,किसान प्रतिनिधि भी वार्ता को न ठुकराएँ,देख लें क्या-क्या मिल रहा है यदि सारे संदेह दूर हो जाये तो ठीक न सही तो आगे भी तो विकल्प खुला रहेगा,अब जिस तरह शीतलहर बड़ रही है पहल होना अति आवश्यक है,इसके लिए बड़े को बड़ा दिल रखना पड़ेगा और रखना भी चाहिए।किसान प्रतिनिधियों को भी थोड़ा नरम होना चाहिए,सिरे से मत नकारिये,आप देश के अन्नदाता हैं आप हैं तो देश है,पहल हो जाये अच्छा है।हर शासन की जिम्मेदारी है की किसी भी बड़े विरोध का समय रहते निदान कर दे तो रोज का समाचार न बने और आप यदि सही समाधान कर देंगे तो नाम और क्रेडिट भी तो आप को हिओ मिलेगा,मानकी विपक्ष एक से बढ़कर एक नौटंकी कर रहा है लेकिन मौका कौन दे रहा है,सबसे महत्वपूर्ण किसान हैं और कोई नहीं,पहल हो जाये तो अतिसुन्दर रहेगा।
आज जरुरत है की शासन सत्ता के प्रतिनिधि वहीँ जाकर बात की पहल करें और किसान भी एक कदम आगे बढ़ कर बात सुने और रास्ता निकालें जो सर्वमान्य हो,ऐसा पारदर्शी तरीके से करने पर जनता भी वाच करती रहेगी की क्या सत्यता है,जिसकी कमी होगी वो पब्लिक डोमेन में आ जायेगा।अब चिट्ठी-पतत्री से आगे बढ़ने का समय आ गया है,हमें विशवास है की आगे बढ़ कर पहल जरूर होगी और इस आंदोलन की एक सुखद अंत होगी।
न तेरा कोई अभिमान रहे
न मेरा कोई अहंकार रहे
तेरा भी यही देश है
मेरा भी यही वतन है
फिर हम क्यों पाले हैं बैर
कुछ तुम समझाओ हम समझें
कुछ हम समझाएं तुम समझो
फिर न रहेगा कोई द्वेष और क्लेश
मिट जायेंगे सारे भ्रम
निकल आएगा समाधान
चहुँ ओर फ़ैल जायेगा अपनापन
देश का बढ़ जायेगा मान
हम सब मिलकर बोलेंगे
जय जवान-जय किसान ।।



टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें