राष्ट्र से बड़ा कौन ? - समझाविश ब्लॉग - हिंदी ब्लॉग
आज समय आ गया है इसपर विचार करने को कि क्या किसी के विचार ऐसे हो सकते हैं जो राष्ट्र के लिए विधिसम्मत न हो,मात्र इस आधार पर कि अभिव्यक्ति कि आजादी है,आखिर इस वाक्य का सहारा लेकर कबतक जहरीले विचार खुलेआम व्यक्त किये जाते रहेंगे,जिसे जो मर्जी आये बोल देता है और गलत ठहराए जाने पर अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता की दुहाई देने लगता है,जो कि किसी भी दशा में उचित नहीं ठहराया जा सकता है,पहले इसके कम उदाहरण देखने को मिलते थे अब इसकी अधिकता होती जा रही है।ये एक बड़ा सवाल बनता जा रहा है कि राष्ट्र से बड़ा कोई व्यक्ति या उसके विचार हो सकते हैं?क्या अपने या एक वर्ग को साधने के लिए कोई ऐसा अभिमत व्यक्त कर सकता है जो राष्ट्र के प्रति या राष्ट्रीय भावना के विपरीत हो।
अभी दो ताजा प्रकरण देखा जा सकता है,एक फ्रांस का दूसरे कश्मीर का।फ्रांस कि राजधानी पेरिस से लगभग २० किलोमीटर दूर एक मिडिल स्कूल के बाहर एक इतिहास के शिक्षक द्वारा अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता के विषय पर चर्चा करते समय पैगम्बर मोहम्मद का कार्टून बनाया था जिस पर उनकी हत्या कर दी गई थी।ये तो बिलकुल माना जा सकता है कि किसी को भी धार्मिक देवी-देवताओं के कार्टून बनाने से परहेज करना चाहिए,लेकिन क्या इसका जवाब हत्या हो सकता है?इस हत्या के बाद भी जिस प्रकार से उत्तेजक प्रतिक्रिया आयी वो अपने में न केवल शर्मनाक है बल्कि निंदनीय भी है।सबसे बड़ी बात ये है कि अपने को देश के बुद्धजीवियों में शुमार समझे जाने वाले जिनकी लोग क़द्र भी करते थे वो भी इस चर्चा में उस हत्या को सही ठहराने के कारण ढूंढ़ते नजर आये।जिन्हे इस घटना कि निंदा करना चाहिए वो इसके समर्थन में आ गए।ये तथाकतित बुद्धजीवी अपने तरीके से अपने जवाबों को कुतर्कों का जामा पहना कर अपने को सही साबित करने में लग जाते हैं,और उस समय केवल और केवल कट्टरवाद के पोषक हो जाते हैं,ऐसे कई मामले आते हैं जो राष्ट्र के भीतर का होता है वहां भी राष्ट्र को ऊपर न रखकर अपने कट्टरता को ही सर्वोपरि समझ बैठते हैं और यदि कोई ये कह दे कि आप सरासर गलत हो आप के विचार राष्ट्र विरोधी है तो अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता कि दुहाई देने लगते हैं।ये तथाकथित बुद्धजीवी मेरी समझ से उससे श्रेष्ठ नहीं हैं जो भले पड़ा लिखा नहीं है लेकिन राष्ट्र के प्रति पूरी तरह समर्पित है।
दूसरी घटना देखिये जो कश्मीर से सम्बंधित है यहाँ पर जिस तरह सेकुछ तथाकथित राजनीतिक व्यक्तियों ने तिरंगे के विषय में और राष्ट्र के लिए व्यक्तव्य दिए उसे किस श्रेणी में रखा जाये?ये कहना कि हम तिरंगा तबतक नहीं उठाएंगे जबतक कि ३७० फिर से बहाल नहीं होगा,यहाँ पर बाहरियों को बसाया जा रहा है जो हम कत्तई बर्दास्त नहीं करेंगे,आखिर कोई जिस राष्ट्र में रहता है वहां रहकर इसतरह से कैसे स्टेटमेंट दे सकता है,वो भी एक जिम्मेदार व्यक्ति के द्वारा,क्या ये अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता है,क्या इसकी आंड लेकर कोई कुछ भी कह सकता,कबतक स्वतंत्रता के नाम पर हम हर जहरीले व्यक्तव्य पर खामोश रहेंगे?क्या किसी को भी चाहे वो जितना भी ऊँचे कद का हो उसे राष्ट्र के बारे में तिरंगे के विषय में ऐसा कहने का अधिकार है?यह देश का दुर्भाग्य था कि अपने ही देश में कोई प्रदेश विशेष अधिकार के साथ चलता था,वो अपने को कभी-कभी राष्ट्र से भी ऊपर समझने लगता था,ये कभी नहीं होना चाहिए था राष्ट्र कि सम्पूर्ण सीमा अपने हर व्यक्ति का है जो यहाँ का नागरिक है सभी को कहीं भी बसने का अधिकार है कोई अपने राष्ट्र का व्यक्ति होने ही किसी प्रदेश में कैसे बाहरी हो सकता है,इसमें क्यों पेट में दर्द हो रहा है,इससे क्या परेशानी हो रही है?दुःख तो तब होता है कि छुद्र स्वार्थ के कारण कई व्यक्ति/दल समर्थन कि मुद्रा में आ जाते हैं।कई अपने को बुद्धजीवी कहलाने वाले व्यक्ति भी हिमायती बन जाते हैं और दूसरा ही शुर अलापने लगते हैं।सबसे हास्यास्पद तो यह होता है कि अनेको व्यक्ति/दल ऐसे भी होते हैं जिन्हे पूरी तरह से उस विषय कि जानकारी भी नहीं होती है जिसका वो विरोध कर रहा होता केवल विरोध में शामिल होना है बस इसके लिए अपना झंडा बुलंद करता है।हंसी तो तब आता है कि जब अपने को किसी बड़े राजनीतिक दल का पैरोकार मानने वाले जब अजीब-अजीब से तर्क देते हैं।एक टी वी डिबेट में अभी हाल में ही एक प्रतिनिधि ने अनुमति न होने के बावजूद भी फ्रांस कि घटना पर निकले जलूस को जायज ठहरा रहा था कि पुलिस साथ में थी और शांतिपूर्ण जुलुस था।इसे क्या कहेंगे केवल और केवल स्वार्थ कि राजनीति।सच पूछिए तो सबसे ज्यादा राजनीति ने ही बेड़ा गर्ग किया है,यही एक ऐसा उत्प्रेरक का काम करता है कि इससे इसप्रकार के लोग ऊर्जा प्राप्त करते हैं,पहले तो पोषित करके फ़न बढ़ाते हैं फिर जब डसने कि स्थिति में आ जाता है तो कुचलते हैं।आप सभी ने देखा होगा कोई अपना सम्मान लौटाने लगता है तो किसी का दम घुटने लगता है,मुझे ये समझ में नहीं आया आज तक कि यदि दम घुट रहा है तो वहां हो आइये जहाँ आप का दम बढ़ जाए और ऑक्सीजन भरपूर मिले।रहिये यहाँ,खाइये यहाँ का अन्न जहर उगलिये यहाँ और दम घुटे भी यहीं,क्या बात है,खैर कथन सही ही है क्यूंकि आप जो जहर उगलते हैं उसमे तो सबका दम घुटेगा,लेकिन आप का नहीं घुटना चाहिए क्यूंकि जहर में रहने वाला व्यक्ति जहर का आदी हो जाता है,इतनी स्वतंत्रता भी जी का जंजाल है हर कोई बोलता भी है और रोता भी है की बोलने की स्वतंत्रता नहीं है,अजीब सा माहौल बना दिया जाता है सब तरफ शोर उठने लगता है आजादी नहीं है,जहाँ आप अफजल जैसे दुर्दांत आतंकवादी के समर्थन में भी मुखर होकर बोलने की साहस पैदा कर लेते हैं,वहां किस स्वतंत्रता की बात करते हैं,कितनी चाहिए,जहाँ आप पाकिस्तानी झंडा उठाने का दुःसाहस कर सकते हैं वहां तो स्वतंत्रता नहीं है ये बोलकर आप खुद ही फंस जाते हैं।यहाँ ही आप इतना बोलने की साहस कर गए की अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिन्दा हैं और इसके बाद भी आप को स्वतंत्रता चाहिए जब की इस कृत्य के लिए तो आपको जेल चाहिए वो भी लम्बे समय तक।जब आप कहते हैं की हिन्दुस्तान किसी के बाप की नहीं है तो ये बिलकुल सही है की किसी की ये जागीर नहीं है लेकिन ये ऐसे राष्ट्र विरोधी लोगों के भी बाप की जागीर भी नहीं है और न हो सकती है जिसके जो मुँह में आये वही बोल दे।आप टी वी डिबेटोँ में बैठ कर राष्ट्र विरोधी बाते भी कर जायेंगे और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी मांगेंगे,दोनों कैसे चलेगा,आप अपने निहित स्वार्थ में यहाँ तक भूल जाते हैं की किसी बड़े न्यायिक फैसले का भी पोस्टमार्टम करने लगते हैं,यदि आप को गलत लगता है तो पुनः आपको पूरा मौका है,आप उसका इस्तेमाल करिये।लेकिन आज तो एक ट्रेंड सा बनता जा रहा है हरचीज में टांग अड़ाने का,करिये लेकिन सविंधान के दायरे में रहकर,ऐसा न करिये की भ्रान्ति फ़ैल जाये।अगर आप कोई भी विरोध कह रहे हैं तो सच्या सहित पब्लिक डोमेन में सलीके से आइये।वो भी निष्पक्ष होना चाहिए और संविधान के दायरे में,ये भी नहीं लग्न चाहिए की केवल आप का मकसद किसी खास का विरोध करना है।यदि सच्चाई है तो पब्लिक फोरम पर सबूतों के साथ इतने प्रबल तरीके से रखें की आप की सत्यता को जनता को स्वीकार करना पड़े।
अब समय आ गया है इसपर ठोस निर्णय लेने का,ये प्रवित्ति भी नहीं होना चाहिए की अपने करे तो ठीक दूसरा करे तो बुरा,बुरा तो सभी के लिए बुरा ही होगा वो चाहे किसी के साथ जुड़ जाये।अतः अब तो इतना कठोर कानून तो बनाना ही पड़ेगा कि किसी कि भी जुर्रत न हो इस तरह के कारनामे करने को,और आगे भी दुःसाहस न कर पाए।लेकिन इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए,क्यूंकि सबसे ज्यादा राजनीत ने ही लगभग सभी बुराइयों को समाप्त करने का बेडा गर्ग किया है,जितनी ज्यादा दृढ़ता होगी कार्यवाही करने में उतनी ही सफलता मिलेगी।ये ध्रुव सत्य था,है और रहेगा कि राष्ट्र से बड़ा कोई नहीं हो सकता,अतः हमें राष्ट्र को सर्वोपरि रखने के लिए हर संभव कदम उठाने ही पड़ेंगे,चाहे कुछ तथाकथित बुद्धजीवियों को ये बुरा ही क्यों न लगे।लेकिन क्या करेंगे सबसे ज्यादा बेडा गर्क किया है ओछी राजनीति ने,हर चीज में राजनीति घुस जाती है,भ्रष्टाचार से लेकर रिश्वतखोरी तक,धर्म से लेकर जाती तक,राष्ट्रभक्ति से लेकर राष्ट्रद्रोह तक,सत्ता पाने से लेकर सत्ता हथियाने तक,योजना बनाने से लेकर योजना लागू करवाने तक,ईमानदार की नियुक्ति से लेकर भ्रष्टाचारी के पोस्ट होने तक,अपराधी को अपराधी की तरह पेश करने तक,एक तरह से देखा जाये तो हर जगह राजनीति हावी हो जाती है,सकारात्मक नहीं केवल विरोधात्मक और स्वार्थपरक।अगर इन सभी बुराइयों को समाप्त करना है तो बिना राजनीति के ही निस्वार्थ रूप से ही किया जा सकता है। आज इसी की आवश्यकता है।
आज समाज देख रहा है की सच्चाई कहाँ से निकलेगी क्यूंकि कहीं से निकलती दिखाई नहीं दे रही है,हर तरफ स्वार्थ ही स्वार्थ भरता जा रहा है,सच्चाई बताने और उस पर अडिग रहने के बजाय अपने स्वार्थ और हिट की पूर्ति पर ही सारा ध्यान केंद्रित हो रहा है।अब जबतक जनता भी पुरजोर तरह से सही की तरफ बिना किसी भेद-भाव के खड़ा होगी तभी एक अच्छा समाज और राष्ट्र बन पायेगा,उसदिन का इन्तजार रहेगा।



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