कहाँ हो आप - हिंदी कविता - समझाविश बाबू - [HINDI POEM]
समय तेजी से बदल रहा
हर ओर अजीब सा मंजर दिख रहा
कहीं रिश्वतखोर और भ्रष्टाचारी हैं
कहीं हत्यारे और बलात्कारी हैं
नित्य नयी घटनाओं का शोर है
समाज के ठेकेदारों का बड़ा जोर है
जिसके यहाँ फैलता मातम का चादर
रोते बिलखते दर्द से तड़पते हैं वो परिवार
लड़ने-लड़ाने वाले खूब दिख जाएंगे
जाति-धर्म क्या-क्या बताएँगे
कहीं का रोड़ा कहीं का कुनबा जोड़ जायेंगे
तेरे गम को छोड़ कर अपना नम्बर बढ़ाएंगे
किसी और घटना का इन्तजार कर मस्त होकर सो जाएंगे
अब न रहा किसी पर भरोसा न विश्वास
सभी को आजमा लिया कई-कई बार
सभी का ठिकाना मोबाइल नंबर तलाश लिया
पर तेरा न ठिकाना मिला न नंबर
तुझे तलाश रहा हूँ कहाँ-कहाँ
मंदिर-मस्जिद गुरुद्वारा फिरता मारा-मारा
ज़माने का दस्तूर नहीं बदल रहा है
सत्य सिसकियों के साथ दम तोड़ रहा
झूठ ख़ुशी का दामन दामन थाम रहा
सुना है तू सब की सुनता है मन की भी समझता है
लेकिन अब हमने लिखने की भी ठानी है
आ जा कहीं अब देर न हो जाये
सत्य से विश्वास कहीं न उठ जाये
कर जा संहार इन रावणो का
अन्यथा तू भी देखता रह जायेगा
सच्चे इंसान को ढूंढ़ता रह जायेगा
दुशासन,दुर्योधन,रावण का भरमार होगा
चहुंओर हिंसा का व्यापार होगा
सुनले अब तो दरश हमारी
दम घुट रहा जीना हो रहा भारी
तू विश्वास न मेरा टूटने देना
इन मक्कारों को अब न जीतने देना
तेरे इन्तजार में दिन गिन रहा
पल-पल जीकर भी मर रहा
अब तेरे हाथ में मेरी डोर है
जिला दे या फिर मार दे ।।



बहुत सुंदर कविता है
जवाब देंहटाएंdhanyavaad,aap utsah badate rahen
हटाएंकृषक खन्नारर
जवाब देंहटाएंअच्ची कविता है और ऐसे ही कविताएँ लिखते रहें।
dhanyavaad ,aap ki tipadi mere liye tonik hai
हटाएंAtii sundar aise hi lkihte rahe.. lekh ho ya kavita sab par apki ek si, aur bahut acchi pakad hai
जवाब देंहटाएंhriday se aabhar,utsaah badana achha laga
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