बाजार सजा है क्या खरीदोगे ? - समझाविश बाबू

आज पुराने दिन याद आते ही बरबस आंखे नम हो जाती है,तब किसी चीज को बेचने के लिए कोई सच्चा-झूठा प्रचार करने की आवश्यकता नहीं थी,लेकिन आप ये कहेंगे की तब इस प्रकार के संसाधन नहीं थे,लेकिन जो भी कोई सामान फेरी लगा के बेचता था तो भी आज की तरह भ्रम नहीं फैलाता  था।नीम के दातुन,मुल्तानी मिट्टी,रीठे की शैम्पू में दमक थी इसी लिए हमारे चेहरे पर ओरिजनल चमक थी।दादा,दादी,अम्मा,बाबू,भाई,बहन,चाचा,चाची सब  मिलकर रहते थे,तब बेसक रोटी कम थी पर रिश्ते में दम था,आज सब अलग-अलग हैं बेसक रोटी अधिक  हो पर रिश्ता बेदम है।आज तो हर चीज की बाजार सजी है,पेश करने के नए-नए ढंग हैं आप देखो आप को क्या खरीदना है। 



                         अब तो आटा,चावल,दाल,तेल,मसाला,मंजन,साबुन,ईंधन हर माल का एक से लेकर एक प्रचार है,आप ढूंढो कौन बेहतर है?प्रचार देखकर तो लगेगा की अगर किसी प्रोडक्ट का सामान आप घर ले आये तो आप का दाँत मोतियों सा चमक जायेगा,आप का शरीर चन्दन सा महक जायेगा,आप का शरीर हष्ट-पुष्ट हो जायेगा,बाल रेशम जैसे घने और काले हो जायेंगे,आप तो बस देवताओं सरीखे अति सुन्दर हो जाओगे।ये समझ में ही नहीं आता की किसका प्रोडक्ट क्यों और कैसे बेहतर है,एक से बढ़कर एक बड़ी हस्तियां इसका प्रचार करती हैं,हम दुविधा में ही पड़े रहते हैं की किसको बेहतर समझें,लेकिन प्रचार करने वाले लोग चाँद छड़ों में करोड़ों के वारे-न्यारे कर देते हैं बेशक जिस प्रोडक्ट का वो बड़े ही मोहक अंदाज में प्रचार करते हैं वो उसका इस्तमाल शायद  करते भी न हों,पर मरण तो साला हमारा है की किसको चुनू किसको न  चुनू ,वो मालामाल हो रहे हैं हम बस आजमाइश पर आजमाइश किये जा रहे हैं,कभी-कभी तो मेरा मन करता है की एक ही सामान के चार-पांच पैकेट लाऊँ और एक में मिलाकर और दमदार प्रोडक्ट तैयार करलूं,कम समय में ज्यादा फ़ायदा ले लूँ।अब तो वो समय आ गया है कि कि आप किसी भी चीज को अच्छी पैकिंग करके बड़ियाँ प्रचार करके बेच सकते हैं।सस्ते दामों में सामान खरीद कर ब्रांडेड का लेवल लगाकर महगें दामों में बेच दीजिये बाजार सजा है।क्यूंकि बेचने वाला माल से ज्यादा प्रचार पर ध्यान दे रहा है,इसी लिए देशी सामानो का फ़ायदा बताते-बताते उसकी ब्रांडिंग कर लोग मीलो आगे निकल गए,हम बस सांस लेते रह गए।

                        हद तो अब हो गई है जनाब आदमी भी बिक रहा है उसकी भी ब्रांडिंग वैल्यू है,कोई नारों और वादों में बिक रहा,कोई बाहुबली के दम पर बिक रहा कोई जुगाड़ से बिक रहा ,इसी लिए इस बिकने-बीकाने  के दौर में बिक कर कोई मालामाल हो रहा पर हमारी बेचैन जनता आज और परेशां हो रही है।दूल्हा,रिश्ता,घर-बार सरे बाजार बिक रहा,इसीलिए रिश्ता भी व्यापार होता जा रहा,हम दम्भ में भरकर बड़े मगरूर होकर चल रहे,सभी भावनाओं को ठोकर मारते चल रहे,हमें एक नशा सा हो गया है खुद को बेचने का और रुपयों के बदौलत सभी चीज को खरीदने का।यही कारण है कि आज अंगूठा टेक भी पड़े लिखों पर राज  कर रहा,अपराधी-माफिया भी सिंघासन के सपने देख रहे और पूरा भी कर रहे हैं,क्यूंकि इस बाजार में दौलत कि कमी नहीं है।शिक्षा भी बिक रहा,स्वास्थ्य भी बिक रहा,काम भी बिक रहा ऐशो-आराम भी बिक रहा,दम हो तो खरीद लो नहीं तो घर बैठ कर किश्मत पर रोते रहो,सुनने वाला कोई नहीं है     कोई बंगलों,कारों,ऐशो-आराम के सामानो का अम्बार लगा रहा है हाँ ये जरूर है की वो अपने जमीर को बेचने में जरा भी संकोच नहीं कर रहा है,जो नहीं बिक रहा है सिद्धांत को पाले बैठा है जमीर और उसूलों को जिलाये बैठा है वो फटेहाल घूम रहा है।इस बिकाऊ दौर में फर्क इतना है की कोई फुटपाथ पर ५ रूपया की चाय पी रहा है तो कोई फाइव स्टार सेवन स्टार में हजारों की चाय पी रहा है,किसी को फुटपाथ नसीब है तो कोई आलिशान होटलों में पचास हजार के रूम में रुकता है।कभी-कभी पड़ने और देखने को मिलता है की फलां के बंगले में पचासों कमरें हैं नौकरों की फ़ौज है,तो ये भी मिलता है की कितने घर ऐसे हैं जिन्हे ठीक से दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं है।

                             ये जानते हुए भी की जिस दिन इस संसार से जाना होगा उस दिन अकेले ही जाना होगा,कोई चीज साथ लेकर जाना नामुमकिन है,शरीर सबका एक तरह से ही जलेगा हश्र सबका एक होगा,जबतक जिन्दा हो तबतक तुम्हारे कई महल क्यों न हो सोओगे तो एक ही  कमरे में,लाख साजो-सामान इकठ्ठा कर लो जाओगे तो अर्थी पर ही वहां भी जलाये ही जाओगे,राख तुम्हारा भी होगा राख हमारा भी होगा,न तुम जानते हो उसके बाद तुम कहाँ जाओगे न मैं जनता हूँ,फिर किस लिए ये जिंदगी को बाजार बनाये बैठे हो,मन तुम्हारा यहाँ बड़ी जबरदस्त सेटिंग है तुम खूब बिक रहे हो,पर मरने के बाद की सेटिंग कर पाओगे क्या,अगर वहां भी कर लेते तो फिर तो तुम त्राहि-त्राहि मचा देते।अभी वक्त है सुधर जाओ नहीं तो जब अंत समय आएगा और तुम्हे तुम्हारे कर्म याद आएंगे तो रोने के अलावा कुछ नहीं कर पाओगे।माना की तुम दुनिया के सबसे रईश व्यक्ति हो,तुम सबके पास धन कुबेर मेहरबान हैं लेकिन क्या मौत को हरा सकते हो अपने धन से उसे भी खरीद सकते हो,अगर नहीं तो सुधर जाओ,अभी भी वक्त है समाज के लिए सोचो समाज का हित करो,यहाँ से जाने के बाद वही पुण्य बचता है जो यश बनकर तुम्हारा गुणगान करेगा।

                         आज दशहरा का पर्व है जिस दिन मर्यादा पुरषोत्तम राम ने अहंकारी रावण का सर्वनाश किया था,और सत्य को स्थापित किया था,लेकिन आज क्या इन मनुष्यता का लबादा ओढे अनेकानेक रावणो का अंत हो पायेगा,काश वो दिन आ जाता तो मेरा देश सुधर जाता। 

            

                              जय हिन्द-जय समाज ।।  

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