पावन दो अक्टूबर और हम
आज हमारे राष्ट्र के लिए एक गौरव का दिन है,आज ही के दिन हमारे राष्ट्र में दो महान और आदर्श विभूतियों ने जनम लिया था,जो हमारे राष्ट्र के लिए आज भी प्रेरणा श्रोत बने हुए हैं,और जैसा उनका व्यक्तित्व और कृतित्व है,जब तक धरा है तब तक बना रहेगा।क्यूंकि व्यक्तित्व और कृतित्व एक जैसा बनाये रखना,एक असंभव सा कार्य लगता है।दोनों सादगी के प्रतिमूर्ति,दोनों मनसा,वाचा,कर्मणा,में कोई भिन्नता न रखने के लिए जाने जाते हैं।एक ने जहाँ सविनय अवज्ञा आंदोलन को जनम देकर चरखा को कर्म और एकता का प्रतिक देकर,साथ ही सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाकर हिन्दुस्तान को गुलामी के बेड़ियों से मुक्त कराया,वहीँ दूसरे ने स्वेत क्रांति और जय जवान जय किसान का नारा देकर भारत को एक अलग पहचान दिलवाई। दोनों अपने सिद्धांतों के रक्षा के लिए डटकर खड़ा रहने वाले थे।
महात्मा गांधी का व्यक्तित्व इतना ऊँचा और विशाल है की लाल बहादुर शास्त्रीजी का व्यक्तित्व भी आज के दिन थोड़ा दब जाता है।दोनों ने जिस जिज्विषा और जुझारूपन का परिचय दिया वह अनुकरणीय और अतुलनीय है।दोनों के सादगी जीवन उच्च विचार की मूल भावना जिसे उन्होंने पुरे जीवन अपनाया,वो एक मील का पत्थर है।महात्मा गाँधी जी ने अस्पृश्यता,नमक सत्याग्रह,स्वराज अभियान जैसे महत्वपूर्ण आंदोलन का न केवल सूत्रपात किया बल्कि सफल भी बनाया। गांधीजी एक अच्छे विचारक और लेखक भी थे,उन्होंने हरिजन,इंडियन ओपिनियन,यंग इंडिया जैसे पत्रों का संपादन भी किया। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी।उनके लेखन में भी उनका व्यक्तित्व स्पष्ट रूप से झलकता है।उन्होंने देश को आजादी दिलाने में सबसे महत्वपूर्ण और महती भूमिका दिलाई,लेकिन किसी पद के लोलुप कभी नहीं बने,उन्होंने सदैव राष्ट्र को सर्वोपरि माना,व्यक्तिगत हित के बारे में सोचना तो दूर कल्पना भी नहीं की।
आज हम यह सोंचे की हमने उनसे क्या सीखा,एक चीज तो बहुत ही अच्छे से सीखा है उनके नामों को भुनाने का तरीका। उन्होंने चरखा को प्रतीक बनाया हमने चर्चा को बनाया,ज्यादा से ज्यादा चर्चा केवल ढोल पीटने जैसा ही रहता है,उन दोनों के सिद्धांतों से तो हमें दूर-दूर तक नाता नहीं है,उन्होंने अपने जीवन में अमल कर एक उदाहरण पेश किया और हमने और हमने केवल उसे इस्तेमाल करने का प्रयास किया।उनके तस्वीरों का सहारा हम सत्यता को प्रतीक बनाने के लिए कर रहे हैं,तमाम कार्यालयों में उनके तस्वीर लगे हुए रहते हैं,हाँ ये अलग बात है की उनकी तस्वीर लगाकर वास्तविकता में कार्यालयों में क्या करते हैं ये किसी से छुपा नहीं है।साफ़ सुथरे जगहों पर कोमलता से झाड़ू लगाकर फोटो खिचवा कर हम बड़े ही खूबसूरती से स्वच्छता का सन्देश प्रसारित कर देते हैं,क्यूंकि हमारा मकसद तो प्रचार और प्रसिद्धि पाना रहता है।हमने उनसे सीखा नहीं गांधीजी का कभी ये मकसद नहीं था की चरखा के साथ उनकी तस्वीर प्रकाशित हो,लेकिन उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था की चरखा के साथ उनका तस्वीर स्वमेव प्रसिद्ध हो गया।दो हजार की नोटों पर हमने गांधीजी की तस्वीर छापी,जिसका मकसद उन्हे सम्मान देना था पर हम उन नोटों को ज्यादातर किस रूप में लेते हैं ये हम बखूबी जानते हैं।आज इसकी होड़ मचती है की कौन गांधीजी को कितना मानता है,जोर-शोर से इसे न केवल प्रदर्शित किया जायेगा,बल्कि कवरेज पर ज्यादा ध्यान दिया जायेगा।गाँधी जी के सिद्धांतों का पालन करने का दम्भ भरने वालों के कर्म से भले न झलके पर उनके ड्रेस और चेहरे से जरूर झलकता है,या यों कहें की ऐसा वो प्रयास जरूर करते हैं।आज के दिन सभी गला फाड़-फाड़ के भाषण देते हैं एक बारगी तो लगता है की अब तो रामराज्य आकर ही रहेगा,पर जो आता है वो आप सबके सामने है।यहाँ तो कुछ लोग यही बताते नहीं थकते की किसका स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ा हाथ था।आज हमने गांधीजी को अपने अवगुणो को छुपाने का ढाल बना रखा है,नाम उनका और काम हमारा चल रहा है,बस यूँ कहें की ''हमारी आप की कृपा से सब काम चल रहा है कर तो गए हो सब तुम मेरा नाम हो रहा है ''।हम किस मुँह से गांधीजी का नाम लेते हैं जब सारा काम हम उलट कर रहे हैं,आज कार्यालयों में,जगह-जगह जनप्रतिनिधियों द्वार और जो सत्ता में नहीं हैं उनके दवाई भी गांधीजी की मूर्ति पर माला पहनने की होड़ मची रहती और फोटो खिचवाने की,क्यूंकि यही तो एक दिन है जिस दिन हम उनके नाम का सही इस्तेमाल कर सकते हैं,आज गांधीजी और शास्त्री जी दोनों के एक भी सिद्धांत को हम अनुकरण वास्तविकता में नहीं कर रहें हैं,हाँ दिखने के लिए काम उससे भी आगे कर रहे हैं ।अगर हम उनकी बातों पर अमल नहीं कर सकते तो हमें ढिढोंरा पीते का भी कोई हक़ नहीं है।
हमने कितना सुन्दर है देश बनाया
कहीं बिटियों की इज्जत हो रही तार-तार
कहीं महिलाएं हो रहीं अत्याचार की शिकार
गरीबी और भूख को हमने बनाया है ढाल
साबरमती के संत आकर देख हमने भी किया है कमाल
तूने चरखा चलाकर एकता की मशाल जलाई
हिन्दू मुस्लिम सिख सबको सिखाया बन के रहे भाई-भाई
सत्य और अहिंसा पर चलकर आजादी दिलाई
हमने भी धर्म और जाति को वोटों का बनाया ढाल
चरखा की जगह चर्चा को किया इस्तेमाल
जहाँ जरुरत हुई तेरे फोटो का प्रतीक बनाया
अपनों को ही अपनों से लड़ाया
तेरे ही नाम की नैय्या कर रही इनका बेडा पार
साबरमती के संत ------
अब तुझे ही फिर से आना होगा
बुरा न कहो बुरा न देखो बुरा न सुनो
बुरा न सहो ये भी सिखाना होगा
जो काट रहे मलाई और हो रहे मालामाल
उनके चहरे से नकाब हटाना होगा
उन्हें उनकी औकात भी बताना होगा
तभी हम हो पाएंगे खुशहाल
साबरमती के संत आ फिर से कर कमाल
रघुपति राघव राजा राम ।।



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