समय है संभल जाएँ

हमारे यहाँ एक अजीब स्थिति रहती है की समय  रहते संभलते नहीं ,किसी न किसी भावना में बह जाते हैं। जब हम कुछ करने की स्थिति में रहते हैं तो कुछ करते नहीं ,विवेक का इस्तमाल भी नहीं  करते हैं और जब समय निकल जाता है तो केवल कुढ़ते रहते हैं और खीज में केवल यहाँ-वहां अपनी भड़ास निकालते रहते हैं,एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं।हमें आसानी से भरमा दिया जाता है और हम कुटिल चालों के शिकार हो जाते हैं।जब भी चुनाव आता है तो हम उम्मीदवारों का चयन जाति,धर्म से करने लगते हैं,चर्चा ये करते हैंकि फलां उमीदवार मेरी बिरादरी का हैं कुछ भी हो बिरादरी की नाक नहीं कटनी चाहिए ,कहीं धर्म ाण्डेय आ जाता हैं ,तब हम ये भूल जाते हैं की हमें योग्यता देखना हैं न की बिरादरी और धर्म।हमारी मानसिक्ता ऐसी बना दी गयी हैं और बन भी गयी हैं की आज राजनितिक दाल अपने उम्मीदवारों का चयन यह देख कर करते हैं की उक्त छेत्र में किस बिरादरी का दबदबा रहेगा ,और उसी रडनीत के तहत गुडा गडित लगाना शुरू कर देते हैं ,हम सब उसी में उलझ कर रह जाते हैं। 

                               


आज जहाँ कुछ राज्यों  में चुनाव होने जा  रहा हैं ,उत्तर प्रदेश में ग्राम  प्रधानों  का चुनाव होने वाला है ,यही सही वक्त है कि हम सही निर्णय लेने कि शुरुआत करें और सही व्यक्ति का चयन करें।यह दिखाने का समय है कि ''न जाति पर न पाती पर न धर्म पर न झूठे नारों पर वोट मिलेगा योग्यता और कार्यों पर ''।अगर अब भी इसकी शुरुआत नहीं कि जाएगी तो हमारी स्तिथि नहीं सुधरेगी और हम जहाँ हैं वहीं खड़े रह जायेंगे,हमारे पास केवल वही गीत गुनगुनाने के सिवा कुछ हाथ  नहीं लगेगा कि ''कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे ''।वर्तमान में प्रधानी का चुनाव किसी भी चुनाव से कम  नहीं है ,साम दाम दंड भेद सभी इस्तेमाल किया जाता है खूब दावतों का दौर चलता है ,उम्मीदवारों के श्रीमुख से शहद से टपका हुआ वाक्य निकलता है चाची पांव लागीं,चाचा पैर छुवत हइन कउनो  परेशानी होइ तो बतहिया   हम आपके ही घरे के हैइन,कहीं बिरादरी वाद तो कही पार्टीवाद से नाता जोड़ने का प्रयास किया जाता है।लकझक कुरता पैजामा या सफ़ेद पैंट सफ़ेद शर्ट पहनकर ऐसा निकलेंगे कि वाशिंग पाउडर का प्रचार किया जा सकता है।चेहरे पर इतनी मासूमियत कि छोटा बच्चा भी शर्मा जाये ,बातें इतनी सम्मान और आदर से कि अपना लड़का भी शर्मा जाये,लेकिन यही समय सबसे सही होता है जब हम उनकी असलियत को जान सकते हैं उन्हे एक सबक सीखा सकते हैं कि तुम्हारे भीतर क्या है उसे हम जान लिए हैं और तुम्हे अपने मतों से ऐसा सबक सिखा देंगे कि भविष्य में भरमाने कि हिम्मत नहीं पड़ेगी ,और जब भी चुनाव में वोट मांगने आओगे तो अपने कर्मो के द्वारा मांगोगे न कि जाति-धर्म लुभावने वादों और घोषणाओं से ,कहीं -कहीं तो चोरी छुपे कुछ बाटने का प्रयास भी किया जाता है ,हमें इन सब चीजों से बचना होगा। 

                            चुनाव के वक्त सत्ता में रहने वाली और सत्ता से बाहर कि जिसे विपक्ष बोला जाता है ऐसे-ऐसे लुभावने वादे करेंगे कि लगने लगता है कि यही गाना गाने का मन करता है  कि ''बहारों फूल बरसाओ मेरा रहनुमा आया है ''।हम उनकी झाँसो में आ जाते हैं और बाद में उनमे से एक मलाई कि थाली ले जाता है और दूसरा विपक्ष बन जाता है जो लगभग तीन साल तक बस वक्तव्यों से काम  चलाता है और उसके बाद धीरे-धीरे चुनाव के लिए सक्रिय हो जाता है और यही क्रम बारी-बारी हम झेलते रहते हैं और वो बारी-बारी से मलाई काटते  रहते हैं ,फिर हम यही कहते हुए हाथ  मलते हैंकि ''तुमने किसी के भाग्य को लेजाते हुए देखा है वो देखो मेरा भाग्य ले के जा रहा है ''।आप सब देखिये जैसे ही चुनावी वर्ष करीब आता है तो ऐसे-ऐसे रहनुमा किसी न किसी पार्टी से खड़े हो जाएंगे और इतनी तेजी से ढोल पीटना शुरू कर देंगे की हमारी दुर्दशा देख कर उनकी छाती फटी जा रही है ,उनसे हमारी दुर्दशा देखीं नहीं जा रही है ,उसमे भी ज्यादातर कोई न कोई जातिगत या धार्मिक मुद्दा भी हो सकता है।आजकल देखिये हर ओर किसानो का मसीहा बनने की होड़ मची है ,जब सभी इतने संजीदा हैं तो भी आज किसान ७३ सालों से अपनी मजबूत स्थिति के सपने ही केवल क्यों देख रहा है ,सपने  पूरा क्यों नहीं हो रहा है ?

                               हम ये क्यों नहीं सोचते कि हम उनके भाग्य विधाता हैं वो नहीं ,हम अपना भाग्य विधाता उसी को बनाएंगे जो काबिलियत रखेगा सबको नहीं ,अब हम मायाजाल और झूठे वादों पर नहीं जियेंगे ,हमारे  लिए जाति-धर्म ये सब कोई मुद्दा नहीं है हमारा मुद्दा है हमारी रोजी-रोटी,हमारे बच्चों कि अच्छी शिक्षा अच्छा स्वास्थ्य और एक सर छुपाने के लिए जगह और मुफ्त कि नहीं रोजगार से पैदा कि गई मेहनत कि रोटी चाहिए।हमें यह नहीं सुनना कौन जिम्मेदार था या हम नहीं वो जिम्मेदार  है बदहाली का हमें तो परिणाम चाहिए।जो ये कर सकता है वही दरवाजे पर वोट मांगने का अधिकार रखेगा ,अन्यथा नहीं।आप सोचिये वोट कि भीख मांगने वाले लोग बाद में हमें ही उस स्थिति में छोड़ देते हैं ,बिरादरीवाद,धर्म ये सब हमारी जरुरत को नहीं पूरा कर सकतीं हैं आप आस्था रखें ये अच्छी बात हो सकती है पर एक अच्छे और खुशहाल राष्ट्र के लिए आवश्यक है योग्यता न कि कुछ अन्य। नियम बने या न बने हम अपने वोटों के द्वारा यह जता सकते हैं कि किसी भी अपराधी को हम नहीं जिताएंगे।आज आने वाले चुनावों में इसका प्रयोग करें और ये सिखा दें कि अब हम भ्रमित होने वाले नहीं हैं अब हम भाग्य विधाता हैं आप नहीं। आज ये कहने कि जरुरत है कि ''मेरे दर पर आये हो तो सेवक बन के रहो तभी कुछ पाओगे अन्यथा खली हाथ वापस जाओगे अब नहीं भरमा पाओगे ''

                                      जय हिन्द जय भारत जय राष्ट्रीय परिवार ।।  

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