मुझे भी प्रसिद्ध कर दीजिये

प्राचीनकाल से लेकर आधुनिक काल तक तमाम ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने अपनी वीरता से ,अपने बलिदान से अपने लेखन  से और निश्छल समाज के लिए किये गए त्याग से तथा एक उत्कृष्ट और सुन्दर समाज बनाने के लिए अपना पूरा जीवन निस्वार्थ सेवा के रूप में समर्पण कर देने से न केवल प्रसिद्धि पायी अपितु उनका  नाम आज भी अमर है और बड़े ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता रहा है।सबसे विशेष बात ये है की ऐसे लोग अपने कार्यों को इस लिए अंजाम नहीं दिया की वो प्रसिद्ध हो जाएँ और इसके लिए उन्होंने रत्तीभर भी प्रयास नहीं किया ,उनके कार्य ही ऐसे थे की वो न केवल प्रसिद्ध हुए बल्कि हमारे जीवन पर एक अमिट छाप भी छोड़ते हैं।ये लोग जब तक जीवन है तबतक अमर रहेंगे।इनको प्रसिद्ध होने में किसी को अथक प्रयास नहीं करना पड़ा है ,इनके सुकृत्यों की खुशबू स्वयं फिजा में फैली है ,किसी को गाला फाड़-फाड़ के चिल्लाना नहीं पड़ा है ,उनके प्रसिद्धि में उनका त्याग ,सत्यकाम,एक सकारत्मक सोच,दूसरे के मुस्कराहट के लिए अपने आंसू को पी जाना स्पष्ट झलकता है।



                            आज के समय में तो समझ में ही नहीं आता की क्या हो रहा है कब कौन आकर क्या कह दे और इतना प्रसिद्ध हो जाये की सोचने वाला सोच ही न पाए की क्या ऐसी बात हो गयी ,और आज की प्रसिद्धि में साधनो का बड़ा योगदान हो रहा है ,आज तो गाली देकर भी प्रसिद्ध हो जा रहे हैं। लेकिन एक अंतर है ये प्रसिद्धि नहीं है ये केवल चर्चित हो रहे हैं ,ये अवश्य है इसमें भी हम उनको महिमा मंडित करने में लगे हैं और उनकी तुलना भी महान विभूतियों से कर देते हैं  ,जो मेरी दृष्टि में कतई उचित नहीं है।आज तो अपने को पॉपुलर करने के लिए और चर्चित होने के लिए तरह-तरह के हथकण्डे अपनाये जाते हैं ,और इतने तड़क -भड़क  से प्रस्तुत  किया जाता है कि सच्चाई पता ही नहीं लगती है ,झूठ और सच इस तरह घालमेल हो जाते हैं की आप सोचते रहिये क्या हो रहा है कौन सच है कौन झूठ ? ये जो नया प्रचलन चल गया है इसमे बहुत सुधार की जरुरत है ,समाज सही चीज समझ ही नहीं पाता कोई कुछ प्रचारित कर रहा है कोई कुछ ,एकदम से कन्फ्यूजन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। 

                               आज ये सोचने पर विवश होना पड़ता हैकि फिर कोई ऐसा व्यक्ति क्यों नहीं उत्पन हो पा रहा जैसे की पहले लोग होते थे ,आज छलिया ज्यादा उत्पन्न हो रहे हैं ,तमाम ऐसे लोग उत्पन्न हो जा रहे हैं जो पहले तो २४ कैरेट का सोना लगते हैं लेकिन परखने के बाद पीतल निकल रहे हैं ,हम इसी मुगालते में रह जाते हैं की सोना ही निकलेंगे। इसलिए आज जाति-धर्म वंशवाद-छेत्रवाद सभी से ऊपर उठकर सुनना और परखना सभी को है लेकिन प्रसिद्ध उसी को करना है जो निस्वार्थ बिना अपना हित सर्वोपरि रखे समाज का हित करे ,अन्यथा हम इसी तरह फैलाये गए भ्रम में जीते हुए अपने जीवन का अमूल्य समय खो देंगे और हाथ में कुछ नहीं लगेगा। 

                                  जय हिन्द-जय भारत-जय स्वस्थ समाज।। 



    

                                 

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