जी आप तो अमर हैं??

आज जिस तरह से रिश्ते तार-तार हो रहे हैं , लोग ये कहने लगे हैं कि हमको तो गैरों ने नहीं अपनों ने लूटा, एक दूसरे से किसी भी तरह साम,दाम,दंड,भेद कुछ भी अपनाकर आगे बढ़ने कि होड़ लगी है ,सबसे बड़ी बात ये है कि अर्थ का भण्डार भरने के लिए कुछ भी हथकंडा अपनाने कि होड़ सी मची है, ऐसा लगता है कि एक दो पीढ़ी के लिए नहीं बल्कि दो-चार युग के लिए धन इकठ्ठा कर रहें हों,कई घर कई गाड़ियां भी तृप्ति प्रदान नहीं कर पा रहीं हैं ,एकदम नशा सा होता जा रहा है ,इस होड़ में यह भी नहीं सूझ रहा है कि किसका-किसका हक़ मारते जा रहें हैं ,किसके-किसके सपनो को कुचल कर वो अपना महल खड़ा कर रहे हैं ,इससे उनको फर्क नहीं पड़ता हैं ,चाहे वो किसी के आह या किसी के आंसू  से इकठ्ठा किये गए हों या फिर किसी के अरमानो को कुचल कर किया गया हो ,या फिर इसके लिए किसी के दर्द को और कुचला गया हो ,हाँ ये जरूर है कि वो ये डींगें जरूर मारते हुए नहीं थकते कि वो बहुत बड़े आदमी हैं उनके पास क्या-क्या नहीं है ,वो इसका प्रदर्शन भी ऐसा करते हैं कि वो सबसे अलग किस्म के प्राणदि हैं ,गाहे-बगाहे अपनी शानो शौकत का भोंडा प्रदर्शन करते रहते हैं ,उन्हें ये नहीं पता कि उनके पास सबसे अमूल्य चीज इंसानियत नहीं है। हाँ ये अवश्य है कि उनको इससे फर्क नहीं पड़ता क्यूंकि उसी का तो गलाघोंट कर इस मुकाम को हासिल किये हैं। 


                            आम इंसान को तो पता है कि वो जब इस धरा पर आया था तो नंगा आया था और जब जायेगा तो भी नंगा ही जायेगा ,लेकिन ये इस बात को भूल चुके हैं क्यूंकि शायद इनको ऐसा लगता है कि ये सबकुछ लेकर जाएँ ,हो भी सकता है क्यूंकि जो स्वर्ग-नरक कि कल्पना कि गयी है ,ये बताया गया है कि वहां बहुत कष्ट भोगना पड़ता है तो शायद  सोच रहें हों कि साथ लेकर जाएंगे तो वहां भी जिस तरीके को अपनाकर पृथ्वी पर सुविधा इकठ्ठा किये हैं शायद वही हत्कण्डा वहां भी काम कर जाये।क्यूंकि उनकी फितरत ही बन गयी है इसी तरह कि सोचने की और काम करने की।लेकिन  यही जो जीवन का सत्य है की वहां जाने में कोई वी आई पी कल्चर नहीं होता वहां तो राजा और रंक एक तरह से जाते हैं,आप के साजो-सामान अलग हो सकते हैं पर जलकर सभी को राख होना है,आप चाहे कितनी लम्बी कार में चलते हों ,शरीर पर कितना ही सोना लादे हों ,महल में रहते हों जाना तो बांस की अर्थी पर ही होगा।

                       सभी इस सत्य को जानते हैं लेकिन ये जो ततकथित लोग हैं ये जान कर भी अनजान बने रहने की कोशिस करते हैं,हाँ ये अवश्य है कि जब कभी इनको शमशानघाट जाने का मौका मिलता है तो कुछ छड़ के लिए ही सही इन्हे बौद्ध ज्ञान प्राप्त हो जाता है और ऐसी दार्शनिक बाटे करने लगते हैं की अब तो उनसे बड़ा मानवी हित का व्यक्ति कोई नहीं है और आज के बाद न केवल अपने को बल्कि समाज को भी बदल देंगे ,लेकिन जैसे ही वहां से निकलते हैं फिर सब ज्ञान धरा का धरा रह जाता है और फिर वही पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं।     आज जो समाज की स्थिति बनती जा रही है ,उसमे इन्ही जैसे लोगों का बोल-बाला है इन्ही का डंका बज रहा है और इस शोर में कमजोर वर्ग की आँहें दम तोड़ रहीं हैं,जिसे न तो कोई सुनना चाहता है और न ही समझना चाहता है ,उनके हिस्से में केवल गरीबी,लाचारी,बेबसी ही आता है ,उनके आंसू भी सुख चुके हैं ,कभी आसमान की तरफ तो कभी जमीन की तरफ निहारते हैं की शायद कोई फरिश्ता आएगा और उनके चेहरे पर भी मुस्कान बिखेर देगा ,लेकिन अभी तक तो फरिश्ता नहीं छलिया आते रहे हैं जो छल कर चले जाते हैं।जिनको जिम्मेदारी मिली है स्थिति को सुधारने की उसमे से अधकांशतः लोग अछरशःपालन करते हुए अपनी स्थिति सुधारने में लगे हैं ,इसी को अपना मूल उद्देश्य समझ बैठे हैं। कोरोना जैसी महामारी भी समझा नहीं पा रहा है की जीवन क्या है और मृत्यु क्या  है ,इसमे छोटे बड़े का कोई भेद नहीं है ,हाँ ये अवश्य है की पैसे वाले बेहतर इलाज पा जा रहे हैं ,लेकिन जिसको आनी है तो आ ही जा रही है।

                          यह जानते हुए भी की मृत्यु अटल सत्य है और सभी को आनी है ,सभी को एक ही तरह से जाना है ,वहां कोई शानो-शौकत नहीं चलनी है ,फिर भी हम छल,फरेब में लगे हैं।महगें मोबाइल फ़ोन तो खरीद लिया पर संदेशों का प्यार खो चुके हैं ,बड़े-बड़े बंगले तो बना लिया पर उसमे बहने वाली स्नेह और आत्मीयता को खो चुके हैं ,लम्बी गाड़ियां यहाँ तक की हेलीकाप्टर और जहाज भी खरीद लिए हैं पर उन रिश्तों को खोते जा रहें हैं जहाँ जानेपर रास्ते भर यह सोच कर मन प्रफ्फुलित रहता था की किसी आत्मीय के यहाँ पहुँच रहे हैं ,बड़े-बड़े डाइनिंग टेबल ,क्राकरी तो खरीद लिया पर उसपे  बैठ के खाने वाला पूरा परिवार  खो चुकें हैं ,न अपनों का प्यार मिल पा रहा हैं न गैरों का ,पैसे के बल पर क्षणिक रिश्ता कब तक बनोगे ?

                           अब्भी समय हैं लौट आओ उन फरेब की गलियों से जीवन का सफर बहुत छोटा और अनिश्चितता से भरा हुआ हैं तो फिर क्यों इतनी मगजमारी कर रहे हो ,अपने प्रेम से जीने के साथ दूसरों को भी प्रेम से जीने का मार्ग प्रसश्त करो ,किसी के चेहरे पर मुस्कराहट ला दोगे तो वो तुम्हारी जिंदगी की दसबसे बड़ी कमाई होगी ,खाओगे तो रोटी,चावल,दाल ही ,सोना,चांदी तो नहीं ,न ही कुछ लेकर जाओगे  फिर ये आपाधापी क्यों ? इस गीत को अपनाइये यही जीवन का सार है--''इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा ''या फिर ''न हिन्दू बनेगा न मुशलमान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा ''

                                   जय हिन्द जय भारत जय मानवतावाद।।  

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