मैं बलवान या समय ??
आज का मनुष्य बहुत ही बुद्धिमान हो गया है ,इसमें तीन प्रकार है ,एक जो बिलकुल गरीब तपका है ,दूसरा मध्यमवर्गी ,तीसरा धनाढ्य लोग जिन्हे सक्षम लोग भी कहा जाता है ,इन्ही में से एक सुपर क्लास भी होता है जिसके लिए कहावत कहा जाता है की ''सक्षम को नहीं दोष गुसाईं '',ये लोग कुछ गलती भी कर देते हैं तो उसे गलती नहीं मानी जाती ,उनकी गलती को न मानना हम सभी का धर्म है क्यूंकि वही समाज के ठेकेदार बनते हैं ।सबसे मजबूत व्यक्ति ये ही हैं समाज के ,बाकी तपका समाज का एक प्रकार से शोसित समाज हैं जो किसी तरह से अपना जीवन यापन कर रहे हैं।नियम कायदे ,कानून बहुत बनते हैं पर असली मजा सभी सरकारों में यही लेते हैं,ये जैसी सत्ता आती है उसी के अनरूप अपने को ढाल लेते हैं ,कुछ सरकारें भी ढल जाती है।पड़ते समय एक कहावत सुनाया जाता था ''जिसकी लाठी उसकी भैंस '',तब उसका मतलब अच्छे से समझ में नहीं आता था लेकिन अब जब अपने चारो-ओर देखता हूँ तो बहुत ही बड़ियाँ से समझ में आता है।जहाँ भी जकता हूँ कहीं न कहीं ये कल्चर देखने और समझने को मिल जाता है।
कुछ जगहों पर सबका पाला पड़ता ही होगा,अब आप देखिये कहाँ कहा जाता है ईश्वर सबके लिए सामान है न कोई उसके लिए छोटा या बड़ा है ,ये सही भी है ,लेकिन आप देखिये जो भी प्रसिद्ध मंदिर हैं वहां पर आप जाएँ तो आप को अजीब से फीलिंग होगा ,लम्बी-लम्बी लाइनों में आप दर्शन के लिए घंटो खड़े रहेंगे ,तभी आप के नजरों के सामने ही कोई वी आई पी आता दिखेगा जिसके साथ कुछ असलाहधारी रहेंगे ,गाड़ियों का काफिला होगा ,आते ही ऐसा लगेगा की भगवान उन्ही की इंतजारी कर रहे थे और आनन्-फानन में सबकुछ छोड़ कर पहले उन्हे दर्शन कराया जायेगा फिर किसी और को सारे नियम कायदा -कानून कुछ छड़ के लिए टूट जाएंगे ,क्या ये उचित है?मंदिर देखिये उसके बाद स्वास्थ्य विभाग देखिये यहाँ भी आम आदमी लाइन में लगे धक्के कहते हुए जायेगा फिर जल्दी-जल्दी में डॉक्टर निपटाएगा ,उसके बाद आधी-अधूरी दवा मिलेगा ,लेकिन जब कोई विशेष पहुंचेगा तो सारी लाइन धरी की धरी रह जाएगी और डॉक्टर साहेब भी आवाभगत की मुद्रा में आ जायेंगे दवा भी उन्हे पूरी मिलेगी चाहे बाहर से ही मंगा कर ही क्यों न देना पड़े।यही हाल शिक्षा का है नामी-गिरामी स्कूलों में एडमिशन के लिए आप धक्के खाएंगे ,तमाम नियम बताये जाएंगे ,लेकिन विशिष्ट लोग इससे परे होते हैं ,उनके बच्चों का एडमिशन करना मज़बूरी है।
एक साधारण सा अनुभव आप सभी कार्यालयों में कर सकते हैं आप जाएँ और आप के सामने कोई सक्षम व्यक्ति आये ,उसे तुरंत बैठाया जायेगा हाल-चाल पूछा जायेगा ,समय भी पूरा दिया जायेगा ,क्यूंकि वो मालदार पार्टी होता है चाय भी उसी को पिलाया जायेगा जिसकी जरुरत बहुत है।हर जगह पर वी आई पी कोटा भी चलता है।कुछलोग जब सामान्य से वी आई पी बनते हैं तो अपनी जमीनी हकीकत भूल जाते हैं ,पहले वो क्या थे उनके दिमाग से निकल जाता है और ऐसा प्रदर्शित करते हैं की वो पहले से ही या यूँ कहें पैदा ही वी आई पी कल्चर में हुए थे।
आजकल एक ट्रेंड तेजी से चल रहा है की प्रचार-प्रसार कब किसी को फर्श से अर्श पर पहुंचा दे आप जान भी नहीं सकते ,एक व्यक्ति कब ज़ीरो से हीरो बन जाता है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। लेकिन वास्तविक व्यक्ति वही है जो अर्श पर या हीरो बनने पर भी अपनी जमीनी हकीकत पहचाने वही लम्बे रेश का घोड़ा होता है।आज जबकि वी आई पी कल्चर समाप्त हो रहा है ,ऐसे में सभी जगह समाप्त होना चाहिए ,ईश्वर के यहाँ ,डॉक्टर के यहाँ सभी बराबर हैं ,अन्य कुछ जगहों पर भी ,तभी समानता आएगी मात्रा कहने से नहीं।अन्यथा अच्छे वक्त में लगता है की मैं ही सबकुछ हूँ समय भी मेरे हिसाब से चलेगा ,ऐसा हरगिज नहीं है ,समय का पहिया जब घूमता है तो राजा से रंक बनने में पल भर भी नहीं लगते हैं , अतः समय को पहचानिये और वी आई पी और सामान्य का भेद ख़तम करिये।जब सभी वी आई पी कल्चर के खिलाफ हैं तो फिर क्यों?इतिहास गवाह है की किसी का घमंड टिका नहीं है चाहे समय जितना लगे।अब आधुनिक समाज में इस कल्चर का क्या काम
मनुष्य-मनुष्य एक है नहीं कोई भेद
मिटाऔ दिल की दुरी बन जाओ एक।।



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