गम उठाने के लिए मैं तो जिए जाऊंगा
संसार में मनुष्य सबसे श्रेष्ठ प्राणी माना गया है ,एक तरह से सृष्टि का जो संचालन हो रहा है उसमे मनुष्य का ही सबसे बड़ा योगदान है। कहा भी गया है ''बड़े भाग्य मानुष तन पावा '। लेकिन जिस तरह से समाज का वातावरण चल रहा है ,मनुष्य ही मनुष्य के द्वारा सबसे ज्यादा छला जा रहा है ,समाज दो वर्गों में बंट गया है एक विशेष आदमी दूसरा साधारण आदमी। विशेष तो समाज में उपलब्ध सारी सुख-सुविधाओं का ठसक के साथ उपभोग कर रहा है ,जबकि आम आदमी अपने जीवन की गाड़ी चलाने के लिए संघर्षरत है और लगातार उसी में जूझ रहा है ,विशेष तो समाज की असली मक्खन और मलाई का उपभोग कर रहा है और साधारण आदमी को मठ्ठा भी नसीब नहीं हो रहा है।साधारण आदमी तो बस आस लगाए जीता है की कभी तो उसकी किस्मत सुधरेगी।
आज जो स्थिति है या जो आजादी के बाद से चल रही है उसमे आम व्यक्ति केवल वादों में जी रहा है ,इसका ये मतलब कदापि नहीं है कि कोई प्रगति नहीं हुई है कई क्षेत्रों में काफी प्रगति हुई है ,लेकिन आम आदमी आज भी योजनाओं-परियोजनाओं के मकड़जाल में ही फंसा हुआ है। झोली तो बड़े लोगों कि भर रही है। सरकारें आती हैं और जाती है ,पर मिलता है उनको लॉलीपॉप का झुनझुना ,जब भी चुनाव आता है तब इतने बड़े-बड़े वादे किये जाते हैं कि लगता है कि अब तो पूरा युग ही बदल जायेगा और सुनहरे दिन शुरू हो जायेगा ,पर जैसे ही सत्ता का गठन शुरू हो जाता है उसके बाद फिर वही ढाक के तीन पात। महंगाई पर चुनाव लड़ा जाता है और फिर सत्ता में आने के बाद महगाई बढ़ने के ऐसे-ऐसे कारण गिनाये जाते हैं कि जिससे ये लगे कि उनका कोई दोष नहीं है ,अगर कुछ न समझ में आये तो पुरानी सरकार पर दोष मढ़ दिया जाता है ,जनता को इससे क्या मतलब कि किसका दोष है या नहीं ,जनता को तो महंगाई कम होने से मतलब।
कभी-कभी तो ऐसा लगने लगता है कि न पुरानी न नए सारा दोष जनता का है ,जिसके कारण महंगाई बढ़ रही है ,हो भी क्यों न चुनते तो हमी हैं,उस समय हम मीठे-मीठे मोह जाल में क्यों फंसते हैं ,तब हम क्यों जाति-धर्म देखने लगते हैं ,पर क्या करे जनता के पास भी बढ़िया कोई विकल्प भी नहीं होता है जो ही सत्ता में आ जाता है वही अपनी ढपली अपना राग अपनाने लगता है। सभी सत्ताधीश यही कहते हैं कि ''अभी तो हाथ में सत्ता है उसका सुख भोग लें ,कभी मिली फुर्सत तो जनता के बारे में सोचा जायेगा '',ये फुर्सत सत्ता से हटने के बाद ही मिलती है ,और सही भी है विपक्ष में आते ही जनता के सबसे बड़े रहनुमा हो जाते हैं।एक चीज का अवलोकन करें कि जब सत्ता मिलती है तो चेहरा ४४० वोल्ट कि तरह चमकता रहता है और सत्ता जाते ही जीरो वोल्ट के बल्ब कि तरह हो जाता है ,आखिर ७३ साल बाद भी गरीब वहीँ का वहीँ खड़ा है ,बेरोजगारों कि फ़ौज बढ़ती जा रही है , चंद मुफ्त सुविधाओं से केवल अपनी पीठ नहीं थपथपा सकते।
अब समय आ गया है हम लोगों को चेतने का ,हम उन्ही को चुने जो सही हो ,जाती-धर्म अपना-पराया आड़े न आये ,जो सही काम न करे वो दुबारा चुन के कदापि न आये। हर चुनने वालों से ५ साल का हिसाब माँगा जाये सही काम करने वालों कि ही जीत हो ,बाकि को पराजय का मुँह देखना पड़े। समय कि ये भी मांग होनी चाहिए कि इनके भी चुनाव में भाग लेने कि योग्यता का पैमाना निर्धारित हो ,ये कौन सी बात है कि इनके यहाँ बिना पड़ा लिखा स्वास्थ्य मंत्री और शिक्षा मंत्री हो सकता है , उनसे किस लाभकारी योजना कि अपेक्षा रहेगी ? केवल ब्यूरोक्रेसी हावी रहेगी।
अब समय आ गया है कि गम उठाने के लिए केवल हम नहीं जिए जाएंगे ,इन्हे भी गम उठाना पड़ेगा ,अब ये नहीं चलेगा कि केवल चंद लोगों का घर भरा जायेगा ,जो ऐसा करेगा उसे कदापि नहीं चुना जायेगा। अब ऐसा वातावरण बनाना होगा कि वादों और सब्जबाग दिखने वाले सत्ता में कदापि न आ पाएं ,जब तक ऐसा नहीं करेंगे हम ऐसे ही पिसते रहेंगे।



टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें