शिक्षक दिवस - 5 सितम्बर का महत्व - समझाविश बाबू [SAMJHAVISH BABU] ✪HINDI BLOG✪

 .. गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः ..



                                       आज शिक्षक दिवस है ,यह पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन ५ सितम्बर के रूप में मनाई जाती है ,उन्होंने स्वयं छात्रों से अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की अपील की थी ,जिसके कारण आज के दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु को भगवान तक का दर्जा दिया गया है ,वास्तव में प्राचीन काल से देखा जाये तो गुरुओं ने जो अपने शिष्यों के जीवन को निखारा है ,जिसमे उनका कोई व्यक्तिगत हित नहीं होता था बस उनकी दिल से ये चाह रहती थी की मेरा शिष्य बड़ा होकर अपना नाम अपने अच्छे कृत्यों से  रोशन करे और गुरु परंपरा को कायम रखे। इसी लिए प्राचीन काल में भी ''आचार्य देवोभव:'' कहा गया है।यदि प्राचीन इतिहास देखें तो गुरु   की महत्तता स्वयं स्पष्ट हो जाएगी ,चाहे आचार्य वाल्मीक को दस्यु कार्य से विरत होकर रामायण जैसी महत्वपूर्ण काव्य की रचना का उदहारण लें या फिर गुरु रामानंद के सानिध्य के बाद इतिहास में एक विरला कवी कबीर का जन्म हुआ हो या फिर आचार्य रामकृष्ण परमहंस के बाद स्वामी विवेकानंद का उद्भव हुआ हो ,इसी तरह शिवाजी के ऊपर उनके गुरु रामदास का भी अत्यधिक प्रभाव था। 

                                    प्राचीन काल में गुरु केवल किताबी ज्ञान नहीं देते थे बल्कि जो सबसे महत्वपूर्ण ज्ञान देते थे वह था सुन्दर और स्वच्छ चरित्र का निर्माण कैसे हो ,यह सबसे आवश्यक ज्ञान था जिससे केवल किताबी ज्ञान की योग्यता लेकर छात्र बाहर   नहीं आते थे अपितु चरित्रवान गुडवान बन के आते थे जो एक स्वस्थ समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे ,प्राचीन काल में गुरु माता पिता की भी भूमिका निभाते थे ,गुरुकुल में ये परंपरा साक्षात् देखी जा सकती थी ,तब शिक्षा का मोल नहीं होता था यह ज्ञान का विषय होता था।उस काल   की यदि परिकल्पना की जाये या जहाँ तक पड़ने को मिलता है गुरु के प्रति स्वयं आदर से सर नतमस्तक हो जायेगा। 

                          वर्तमान में शिक्षा का व्यवसायिकीकरण ज्यादा हो गया है ,किताबी ज्ञान तो मिल रही है पर चरित्र का विकास ,उसमे कमी आयी है ,यह एक धारणा सी भी बन गयी है की जितनी महगी शिक्षा उतना किताबी ज्ञान ज्यादा मिलेगा ,गुरुकुल का स्थान कोचिंगों ने लेलिया है जहाँ धन की ज्यादा महत्वता है ,वहां तो पैसे जमा करिये और जो शिक्षा लेना हो ले लीजिये ,हाइस्कूल से लेकर डॉक्टर,इंजीनयर ,और बड़ी से बड़ी सेवा में जाने के लिए शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं ,लेकिन नैतिक शिक्षा का आभाव देखने को मिलेगा ,सबकुछ धन आधारित  हो गया है। इसीलिए भ्रष्टाचार बढ़ने का भी इसे एक कारण माना  जा सकता है क्यूंकि नैतिक शिक्षा का जबरदस्त अभाव है ,आज डॉक्टर,इंजीनयर ,आई ए एस,पी सी एस तो बन जा रहे हैं पर नैतिक और ईमानदारी की शिक्षा के अभाव में वही चीज की कमी बहुत ही खल रही है ये आप सभी अपने आस-पास स्वयं अनुभव कर रहें होंगे की कितनी ईमानदारी चल रही है। 

                               आज जब भी शिक्षक की भर्ती होती है तो कोई न कोई स्कैंडल सामने आ ही जाता है ,हम योग्य शिक्षक चुनेंगे ही नहीं तो योग्य शिष्य का निर्माण कहाँ से कर पाएंगे ?कितनी  दुःख की बात है कि जब यह जानने को मिलता हैकि फर्जी प्रमाणपत्र के सहारे लोगों ने शिक्षक कि जॉब हतिया लिया है ,ये कैसे संभव हो पाता है ,जबतक इस तरह कि कमिया रहेंगी तबतक हम स्वस्थ समाज के निर्माण कि कल्पना कैसे कर सकते हैं ?आज जो प्रतिभावान शिक्षक हैं जो कुछ करना चाहते हैं निश्चित ही ये घटनाये उनको व्यथित जरूर करती होंगी। शिक्षण संस्थाएं शिक्षा का मंदिर  कही जाती हैं पर अधिकांश जो शिक्षण संस्थाएं हैं उनका उद्देश्य ज्यादा इसमें रहने लगा है कि किस तरह और कौन-कौन से तरीके अपनाकर धनार्जन किया जा सकता है यही कारण है कि प्रशासन का ज्यादा ऊर्जा नक़ल रोकने में लग जाता है फिरभी ये १००%तो कदापि नहीं हो पाता। 

                                 गुरु आदरणीय और पूजनीय हैं लेकिन ये चीज कहने से या नियमो मात्रा से नहीं उत्पन्न की  जा सकती है ,ये तो स्वयं उत्पन्न होता है ,ऐसा आदर्श पेश किया जाये कि स्वयं श्रद्धा से सर झुक जाये। यह दुःख का विषय है कि अब न तो प्राचीन काल के आदर्श गुरु मिल रहे हैं न वो आदर्श छात्र। आज सभी को ये प्रण लेने कि जरुरत है कि एक स्वस्थ शैक्षणिक माहौल का निर्माण करे जहाँ प्राचीन काल के आदर्श यदि नहीं भी स्थापित करते हैं तो कम सेम एक आदर्श वातावरण जरूर बनाये जहाँ गुरु-शिष्य कि परंपरा कायम हो और एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं ,यही आज के शिक्षक दिवस मनाने का सबसे सही तरीका होगा ,और वो दोहा चरितार्थ होगा की ----- 

                           "गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय  

                          बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो मिलाय"।                             

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