राष्ट्रभक्ति - समझाविश बाबू [ SAMJHAVISH BABU ] ★Trending Hindi Blog★
राष्ट्रभक्ति बहुत ज्यादा अब चर्चा में रहने लगा है ,आजकल इसे लेकर अक्सर चर्चा-परिचर्चा होने लगती है और ऐसे सवेंदनशील मुद्दे को भी तर्कों-कुतर्कों से परिभाषित किया जाने लगता है ,जबकि ये सभी तर्कों से परे महसूस करने का विषय है ,कुतर्क की तो कोई गुंजाईश नहीं है ,पर इसपर किसी का एकाधिकार भी नहीं है ये सभी नागरिकों के लिए एक समान एकरूप भावना है जो उसे राष्ट्र के प्रति समर्पित करती है। भक्ति का शाब्दिक अर्थ होता है प्रेम, विशवास,पवित्रता,आसक्ति ,जैसे अपने-अपने इष्टदेव के प्रति रहती है वैसे ही राष्ट्र के प्रति भी होनी चाहिए। राष्ट्र के प्रति समर्पण आप को एक ठोस पहचान देती है जब आप देश से बहार जाते हैं तो राष्ट्र ही आपको एक पहचान और एक सम्मान देती है।हमारा अस्तित्व भी राष्ट्र से जुड़ा हुआ है।
वर्तमान में इसपर कुछ ज्यादा ही शोर मच रहा है ,ये बताने की होड़ मची है की कौन सबसे बड़ा देशभक्त अर्थार्त राष्ट्रभक्त है ,कुछ तो ऐसा प्रदर्शित करते हैं की पूरी राष्ट्रभक्ति की दारोमदार उन्ही के कंधो पर टिका है यदि वो न हों तो राष्ट्रभक्ति शायद न बचेगी जब की ऐसा कुछ नहीं है ,ये राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना है ,जो स्वमेव आती है।''मेरा रंग दे बसंती चोला माये ----'',इस गीत को जो मतवाले गाते हुए स्वतंत्रता आंदोलन के लिए निकल पड़े थे ,वो राष्ट्रभक्ति किसी के कहने से नहीं बल्कि स्वयं उपजी थी ,''सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ,देखना है जोर कितना बाजुएं कातिल में है '',ये गीत गाते हुए अपने प्राणो की आहुति देने वालों की राष्ट्रभक्ति एक मील का पत्थर है ,इसी प्रकार ''कर चले हम फ़िदा जाने वतन साथियों ---'' गाते हुए जो सैनिक देश की सुरक्षा आन,बान शान के लिए क़ुरबानी दे देते हैं ,वो ही सच्ची देशभक्ति है ,इन्हे किसी से देशभक्ति सीखनी नहीं पड़ी या पड़ती है ये स्वयं का जज्बा है। जिस ठंडे या गरम वातावरण में हम कुछ देर पिकनिक तो मना सकते हैं पर लगातार वहां रह नहीं सकते ,ऐसे जगहों पर हमारे वीर सैनिक अपनी देश की सुरक्षा के लिए लगातार डंटे रहते हैं उन्हें ये जज्बा सिखाने की जरुरत नहीं पड़ती है। दुःख तो तब होता है जब इसे चर्चा -परिचर्चा का विषय बनाते हुए अपनी सीमाओं को भी लाँघ जाते हैं और एक दूसरे को देशद्रोही और जाने क्या-क्या कह देते हैं। क्या वास्तव में यदि कोई देशद्रोही है तो उसपर मुकदमा चलना चाहिए और जो आरोप लगाते हैं उन्हे साक्ष्य सहित ऐसा करना चाहिए ?मात्र भाषण देने और लम्बरदार बनने से देशभक्ति या राष्ट्रभक्ति का प्रमाण नहीं मिलता है ,बल्कि कहीं न कहीं ये ऐसे सवेंदनशील मुद्दे को बेमतलब चरचा का विषय बना देता है ,जो नहीं होना चाहिए। जिस तरह अपने देश में रहने वाले हर धर्म के लोग अपने -अपने त्यौहार को बहुत ही उल्लास से मानते हैं वैसे ही राष्ट्रीय त्यौहार को मनाये। हर त्यौहार भाईचारे और सदभावना का सन्देश देता है ,वैसे ही राष्ट्रीय त्यौहार राष्ट्रीय एकता और भाईचारे का सन्देश देता है ,अपने त्यौहार चाहे दशहरा हो ,दीपावली हो ,होली हो या फिर ईद ,बकरीद हो फिर बैशाखी ,सभी हमे प्रेम और सद्द्भाव का ही सन्देश देते हैं, जैसे की आज दक्षिण भारत में ओणम का त्यौहार हर्षोउल्लास से मनाया जा रहा है जो भाईचारे के सन्देश को ही प्रसारित करता है।
मेरा मानना हैकि लम्बी-लम्बी बाते करने से या बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाने से किसी प्रकार की लम्बरदारी करने से किसी का भला नहीं होता है क्यूंकि एक न एक दिन सच्चाई सबके सामने आ ही जाती है ,देर भले लगे। कहा गया है न ''ये पब्लिक है सब जानती है ----'',जो भी राष्ट्र के अंदर रह रहा है सबके अंदर राष्ट्रभक्ति का जज्बा है यदि कोई इससे विमुख होने का प्रयास भी करेगा तो हमारे राष्ट्र के सच्चे नागरिक उसको स्वयं सबक सीखा देंगे। किसी भी मुद्दे को अपने निहित स्वार्थ के लिए अपना भला करने के लिए कत्तई इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ,खासकर ऐसे संवेदनशील मुद्दे को । हर नागरिक के भीतर स्वयं ये जज्बा हों की ''हर करम अपना करेंगे ऐ वतन तेरे लिए ,हम जियेंगे और मरेंगे ऐ वतन तेरे लिए--'। ये भावना और प्रेम राष्ट्र के लिए स्वयं आता है कोई इसकी ब्रांडिंग नहीं कर सकता ,ये तो ऐसा प्रेम है जो देश के लिए प्राणो की आहुति भी हँसते-हँसते सिखाती है। यह अवश्य है की सभी को राष्ट्र की प्रत्येक सम्पति को अपनी सम्पत्ति समझना चाहिए और राष्ट्रहित को सर्वोपरि समझना चाहिए।
जो भरा नहीं है भावों से जिसमे बहती रसधार नहीं
वह ह्रदय नहीं पत्थर है जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं ..



Ramdhari yadav
जवाब देंहटाएंKuch masaledar topic pe b lekh jo jaaye
ravi dubey
जवाब देंहटाएंShi baat h
बहुत अच्छा लिखते हैं ऐसे ही लिखते रहे ��
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