योजनाओं का पूर्ण लाभ क्यों नहीं ? - समझाविश बाबू
यह एक सतत् प्रक्रिया है कि जनता के हितों को ध्यान में रखकर बड़ी -बड़ी योजनाएं बनायीं जाती हैं और सभी सरकारें ये दावा करती हैं कि अब आमूल चूल परिवर्तन होगा पर धरातल पर नहीं दिखता है ,इसमें दो महत्वपूर्ण तथ्य है ,पहला जो भी योजनाएं या नीतियां बनायीं जाती हैं ज्यादातर बंद कमरे में बैठ कर बनाई जाती हैं और जिससे सम्बंधित योजना या नीतियां होती हैं उनकी जमीनी हकीकत जानने का प्रयास नहीं किया जाता। दूसरे योजनाए और नीतियां जो बनाई गयी उसका क्रियान्वयन वास्तव में कितना हुआ इसकी न तो सही और भौतिक सत्यापन होता है कि अमल मौके पर कैसा हुआ। आज देखिये स्वास्थ विभाग कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में सच सामने आ गया। कई ऐसे जिले थे जहाँ वेंटिलेटर तक उपलब्ध नहीं था ,सुविधाओं का तो लगभग हर जगह कमी है।
ये तब है जबकि सबसे ज्यादा शिक्षा और स्वास्थय पर सरकारें ध्यान देती हैं ,फिर क्या कारण है कि आज भी उसमे गुणवत्ता पूर्ण सुधार नहीं हुआ।जबकि ये ध्रुव सत्य है कि डॉक्टर ही भगवान् के बाद होता है जो इंसान कि न केवल पशुओं कि भी जान बचाता है।
स्वास्थ विभाग में देखें तो तमाम ऐसी बिल्डिंगे बन गयी जिसकी कोई उपयोगिता ही नहीं है ,बजट का उपयोग किस तरह होता है ये किसी से छुपा नहीं है,सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार कि शिकायतें मिलती हैं, कहने का तात्पर्य यह है कि यदि बजट कि मॉनिटरिंग मात्रा नक्शों से न होकर भौतिक रूप में हो और जो उससे लाभान्वित हुए है उनसे सत्यापन हो तो सारी वास्तविकता स्वयं स्पष्ट हो जायेगी।
आज तो आधुनिक युग है आप ऑफिस में बैठकर भी मोबाइल से सीधे जनता से बात कर सकते हैं , कुछ का सत्यापन अचानक किसी को भेजकर किया जा सकता है पर निरीक्षण तो बताकर करने कि परंपरा बन गयी है ,जब आप बताकर करेंगे तो सब ठीक-ठाक ही मिलेगा। यही परंपरा लगभग सभी विभागों के निरीक्षण में है। जिलों में नोडल अधिकारी के रूप में बड़े-बड़े अधिकारी नियुक्त किये जाते हैं ,ये जब जिले में जाते हैं तो पहले से ही २-३-४ गांव तैयार कर लिए जाते हैं और वही दिखा दिए जाते हैं। ज्यादातर सड़कें बनती हैं तो प्रायः यह देखने को मिलता है कि एक बरसात भी सड़कें नहीं सह पाती हैं ,फिर मरम्मत का खेल चलता है। इसी प्रकार बाढ़ हर वर्ष लगभग आता है हर वर्ष बांधों की मरम्मत चलता बांध टूटते हैं और बनते हैं यही होता रहता हैं।
शहरों में सीवरेज का काम खूब चलता हैं बरसात के पहले नालियों की सफाई खूब चलती हैं ,लेकिन जब बरसात आती हैं तो वही पुरानी वाटर लॉगिंग की समस्या शुरू हो जाती हैं। ऐसे लगभग सभी विभागों का हाल क्यों होता जा रहा हैं ,जिम्मेदार इसकी जिम्मेदारी से क्यों मुकरते हैं। क्यों नहीं इसकी सही ढंग से मॉनिटरिंग करके जिम्मेदार को दण्डित किया जाता हैं ,क्यों केवल लीपा-पोती की जाती हैं।
ये सब देखकर पुराना गाना याद आता हैं कि और यही कहने को विवश होना पड़ता हैं कि ''न बाप बड़ा न मैया ------'' चाहे राजस्व विभाग हो या पुलिस या विकास विभाग हो हर जगह विश्वसनीयता कि कमी आयी हैं।खेल में माहिर लोग जुगाड़ में भी महारत हासिल किये रहते हैं और खेल करके बचते रहते हैं।
अब समय आ गया हैं यह कहना भी बेमानी हैं लेकिन जब जागें तभी सवेरा को मानते हुए अब पहल इसकी की जानी चाहिये कि इसमें संलिप्त कोई भी हो उसका पर्दाफाश हो ,ये दबाव हर जगह बनना चाहिए। हमें आपको खास कर युवा वर्ग को ये पहल करनी होगी कि कोई भी यदि आपके आस-पास के कार्यालयों में यदि इस तरह का अधिकारी या कर्मचारी हो तो शांति पूर्ण ढंग से उसका विरोध इस तरह हो कि यदि उसे वहां रहना हैं तो ईमानदारी से ही कार्य करना होगा अन्यथा उसे उस सीट पर जिसे वह मलाईदार मानता हैं
वहां उसे रहने का कोई हक़ नहीं है। सरकार को भी चाहिए कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारीयों और कर्मचारिओं को चिन्हित करे और किसी भी तरह इनको बख्शा न जाये।एक और पहल किया जाना आज के समय में आवश्यक हो गया हैकि जहाँ जिस विभाग का जिस काम के लिए जो भी बजट आवंटित किया जाये उसे वहां पर प्रकाशित किया जाये सार्वजनिक स्थानों पर जिससे कि वहां के लोगों को स्पष्ट रूप से ये जानकारी रहे कि कितना बजट किस मद में आ रहा है और क्या खर्चा हो रहा है? साथ में मेरी और आपकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि किसी के विरुद्ध यदि भ्रष्टाचार का साक्ष्य मिलें तो उसे जाने न दें बल्कि उसको उजागर करें और तब तक लगे रहें जब तक कि कार्यवाही न हो जाये।
आज आधुनिक तकनीक का जमाना है कोशिश करें जो भी रिश्वत कि मांग करे उसका साक्ष्य आप को मिल जाये। आज जो ट्रेंड बनता जा रहा है कि दाल में नमक खाना रिश्वत नहीं है इसे तोड़ना होगा ,नहीं तो एक समय आएगा कि ये कोरोना से बड़ा रोग बन जायेगा। कोरोना के बारे में तो कहा जाता हैकि अमुक माह से प्रभाव कम हो जायेगा ,इसके बारे में तो आप ऐसा दावा भी नहीं कर सकते। कैंसर जैसे लाइलाज बनते जा रहे इस बीमारी का समय रहते उपचार किया जाना समाज के हित में है ,अन्यथा तो उन्ही कि मनमानी चलती रहेगी और जनता इसमें पिसती रहेगी सरकारें आती-जाती रहती है बस कार्यालयों में थोड़े किरदार ही बदलते हैं बाकी सब बदस्तूर चलता रहता है,ये जितना तीव्र गति से बढ़ेंगे उतना ही विकास पीछे जायेगा और जितना इनका कदम बांधा जायेगा उतना विकास आगे बढ़ेगा ,जरुरत है इनके कॉकस को रोकने का और समाज में इनकी प्रतिष्ठा को महत्वहीन करने का ,अन्यथा हम इसी तरह पिस्ते रहेंगे।



सब जगह करप्शन है सिस्टम बिल्कुल खोखला है
जवाब देंहटाएंlekin prayas to karna hoga
हटाएंहम खुद सुधार लाएं प्रेम की भावना लाये तभी शुरुआत होगी कही से
जवाब देंहटाएंbilkul sahi
जवाब देंहटाएंbilkul sahi
जवाब देंहटाएंहमें प्रयास करना ही होगा
जवाब देंहटाएंbilkul sahi
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