पारसमणि

 पारस पत्थर के बारे में किदवंती है की यदि ये किसी पत्थर को छू ले तो सोना बन जायेगा। लेकिन अभी तक ऐसा कोई पारस नहीं मिला जो ये चमत्कारी परिवर्तन कर दे। हांलाकि खोजने  की प्रक्रिया जारी है ,८वीं,१३वीं,१७वीं शताब्दी में  कई बहुमूल्य पत्थर का उल्लेख है लेकिन उसे पारस पत्थर से नहीं जोड़ा जा सकता है। सोचिए यदि आज के समय में वास्तव में ऐसा कोई पत्थर होता तो और एक ही होता तो क्या -क्या हो जाता इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है।सभी उसे पाने का प्रयास करते पर रहता किसके पास ये सब समझ सकते हैं। 



                          आज के समय में समाज के तीन वर्ग ऐसे हैं जिन्हे पारस से मिलता -जुलता पत्थर प्राप्त है क्यों कि इनकी सामाजिक स्थिति इतनी तेजी से विकसित होती है कि पारस पत्थर भी शायद इतना न कर पाता। ये तीन वर्ग हैं नेता+अफसर(नौकरशाह इसलिए नहीं कह रहा हूँ क्युकी अब नौकरशाह परिभाषा वाले अधिकारी विलुप्त होते जा रहें हैं अब तो राजशाही वाले अधिकारीयों कि भरमार है )+माफिया । आप खुद देखिये ये तीनो जब पैदल चलने वाले श्रेणी में रहते हैं तो बड़े ही साधारण सा जीवन यापन करते हैं और एक सामान्य सा रहन-सहन रहता है लेकिन जैसे ही अपनी स्थिति को प्राप्त करते हैं ऐसा रंग बदलते हुए अपनी स्थिति में आश्चार्यजनक परिवर्तन करते हैं कि पारस पत्थर भी शायद नहीं कर पाता ,क्यूंकि वह तो एक ही होता किसका-किसका परिवर्तन करता। इन तीनो में आपस में एक समानता भी है। नेता और अफसर का गठजोड़ मिल जाता है तो अफसर को भी छत्रछाया मिल जाता है और नेता भी मजबूत हो जाता है ,फिर दोनों मस्त होकर पारस पत्थर के बिना उससे ज्यादा तेजी से अपनी स्थिति सुधारने में लग जाते हैं। इसी प्रकार जब नेता और अफसर कि छत्रछाया किसी छुटभैया अपराधी को मिल जाता है तो वो भी इन दोनों के रूप में पारस पत्थर पा जाता है   और देखते ही देखते अपना साम्राज्य फैला लेता है और छुटभैया से माफिया डॉन का रूप धारण कर लेता है। विज्ञानं के सिद्धांत के अनुसार यहाँ भी क्रिया के बदले प्रतिक्रिया होता है ,जिस छुट भैया के लिए नेता और अधिकारी पारस पत्थर का काम किये थे वही बाद में नेता और अफसर के लिए  खुद पारस पत्थर का काम करता है ,फिर तीनो मिलकर खूब मलाई काटते हैं।  एक सामान्य सा जीवन जीने वाला व्यक्ति कैसे तेजी से धनवान,बलवान,ऊर्जावान,शक्तिमान बन जाता है कोई नहीं जानता है ,कौन सा पारस पत्थर काम करता है ? इनके रिश्तेदार भी काफी धनवान होते हैं क्यूंकि उन्हे बनना पड़ता है सम्पतियाँ उन्ही के नाम ज्यादातर खरीदी जाती है ,समाज में तो इनको ईमानदारी  का चोंगा ओढ़ना होता है ,जब किसी मौके पर इनको भाषणदेना होता है तो जो ईमानदारी का डंका ऐसा पीटते हैं जो कोई कर नहीं सकता है।समाज में अक्सर कोई घटना ऐसी घटती है कि इन तीनो का गठजोड़ स्वयं सामने आ जाता है।समाज को सबसे ज्यादा यही नुक्सान पहुंचा रहे हैं ,और समाज के प्रगति में बाधक बने हुए हैं। 

                                       सच में वास्तविक पारस पत्थर तो वह नेक इंसान है जो समाज के हित के लिए अपना सर्वस्व  निछावर कर दे ,किन्तु ऐसे लोगों कि संख्या कम होती जा रही है , ये जिनको छू दें वह सोने कि तरह निखर जायेगा ,लेकिन इनकी पूछ आज-कल नहीं है ,आज-कल तो झूट का संसार बनाया जा रहा है जिसमे ऊपर उल्लिखित किये गए लोग ही सफल हो रहे हैं। आज इनके गठजोड़ को तोडना बहुत जरुरी है ,ये अफसर जो लोकसेवक कि जगह राजशाही कि भूमिका निभा रहे हैं इनसे पूछने कि जरुरत है कि भैया इतना धन आया कहाँ से ,इनके रिश्तेदारों को सम्मिलित करते हुए। इसी प्रकार नेता से भी ,लेकिन माफियाओं को तो शक्ति से कुचलने कि आवस्यकता है तभी एक स्वस्थ समाज विकसित होगा जहाँ आम आदमी भी सुख-शांति से रह पाएंगे। 

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