कौन जीतेगा ? - कोरोना काल - समझाविश बाबू
देश में कोरोना की दूसरी लहर कहर बन के टूटा है, ८०,००००,१,०००००, १,५०,०००, २,०००००, और अब २,७०,०००,के पार संक्रमित लोगो की संख्या एक दिन में हो जा रही है,मौत का आंकड़ा भी दिन-प्रतिदिन बढ़ता चला जा रहा है,कहीं से ये आशा नहीं दिख रही है की संख्या कम हो जाएगी,उसपर से स्वास्थय विभाग की चरमराती व्यवस्था न केवल भयावह स्थिति उत्पन कर रही है बल्कि मन में एक दहशत भी भरा हुआ है की ईश्वर कोरोना से बचाना,नहीं तो इलाज ढूंढते-ढूंढ़ते ही मर जाऊंगा।
इस आपदा की भयानक महामारी के बीच जिस तरह से सत्ता और विपक्ष चुनाव में व्यस्त है और रैलियों,रोडशो का रेलम-पेल व्यवस्था की जा रही है ये क्या दर्शाता है,यही न कि हम कोरोना के प्रति कितने सजग हैं,इतनी भीड़ और सट कर खड़े हुए लोग कोई दूरी या मास्क का पालन नहीं तो फिर कौन सा मैसेज देने में हम लगे हैं,क्या इन राज्यों में दो गज दूरी और मास्क है जरुरी का सिद्धांत नहीं लागू होता है,क्या ये कोई वर्षा कि सम्भावना है कि मौसम वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी कर दी है कि चुनाव वाले राज्य इससे प्रभावित नहीं होंगे,गजब का रवैया चल रहा है,देश खतरनाक स्थिति से गुजर रहा है,कोरोना पीड़ित व्यक्ति ही नहीं उसका पूरा परिवार हॉस्पिटल में भर्ती से लेकर ऑक्सीजन और दवाओं के लिए एक युद्ध कि तरह संघर्ष कर रहा है फिर भी कई इसमें बिना कामयाब हुए ही दम तोड़ दे रहे हैं,और यहाँ चुनाव कि जीत-हार प्रथम प्राथिमिकता बना हुआ है,कोई कह रहा है अबकी बार दो सौ के पार तो कोई कह रहा है तीसरी बार भी हमारी सरकार,ठीक है किसी न किसी कि तो बनेगी,लेकिन आप जनता के ही तो नुमाइंदे हैं और उस जनता जो कि आज दर्दनाक मौत से जूझ रहा है उसे क्या मिलेगा,उसके लिए कोरोना के रोकथाम और इलाज की जो बेहतर व्यवस्था करनी चाहिए थी और चुनाव से बढ़कर जो अति महत्वपूर्ण कार्य था उसे न कर हम सीट बढ़ाने में लगे हैं।
पक्ष-विपक्ष एक दूसरे पर नाकामियों का ठीकरा फोड़ने में लगे हैं,राज्य केंद्र पर और केंद्र राज्यों पर नाकामियों का आरोप मढ़ने में लगे हैं,सब जनता की नजर में अच्छा बनने का प्रयास कर रहे हैं,लेकिन इसबार जनता बड़े अच्छे से समझने लगी है खासतौर से वो जो इस महामारी से प्रभावित हो रहा है वो बेहतर जान रही है की कौन दोषी है,आप एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलिए इससे जनता का क्या लाभ,जनता तो त्राहि-त्राहि कर रही है,जिस तरह से वो दवा हॉस्पिटल और ऑक्सीजन के लिए जूझ रही है वो अपने में दर्दनाक स्थिति को बयां करने के लिए काफी है।हम केवल बड़े-बड़े दिशा-निर्देश देने में लगे हैं और बड़े सख्त कदम उठाने के संकेत देने में लगे हैं,पर जमीनी हकीकत इससे एकदम उलट है,जिस तरह से हॉस्पिटल में बीएड की किल्लत है,रेडमेसियर इंजेक्शन की जो कालाबाजारी है या फिर ऑक्सीजन की या फिर दवाओं की किल्लत है ये किसी से छुपा नहीं है,यदि विशवास नहीं है तो जो मरीज रेडमेसियर इंजेक्शन या फिर दवा की व्यवस्था कर ले रहे हैं उनसे पूछिए की कैसे और कितने में कर रहे हैं?अपने आप ही हकीकत सामने आ जाएगी,हम केवल आंकड़ेबाजी और कागजी व्यवस्था दुरुस्त करने में लगे हैं और ये तब है जब हम भरपूर तेजी से न तो जॉंच करा पा रहे हैं और न ही मुकम्मल व्यवस्था ही कर पा रहे हैं,फिर भी सब ठीक है या ठीक कर देने का जोर-शोर से दम्भ भर रहे हैं,हम भी उसी मुगालते में जीने के लिए मजबूर हैं क्यूंकि हमें सदैव से वादों और आशाओं में जीने की आदत डाली गयी और वही आज भी हो रहा है।
हमारे प्रदेश में भी प्रधानी के चुनाव का जोर है जिसमे न तो कोई दूरी और न ही मास्क का ही पालन हो पा रहा है और लोग संक्रमित भी हो रहे हैं और मृत्यु भी हो रही है लेकिन हम तो जीत के जुगाड़ में सब भूले हुए बैठे है।याद करिये मार्च २०२० का समय जब हमने एक लम्बी अवधि का लाकडाउन झेला था और बाद में इस बात से संतोष किया था की चेन तोड़ने में हम कामयाब रहे थे और हमारे यहाँ ज्यादा नुक्सान नहीं हो पाया था जब की अमेरिका और ब्रिटैन जैसे देशों में इसका अत्यधिक प्रकोप हुआ था।हमारे यहाँ ये भी कहा गया था की दूसरे लहर आने के पहले हम अपनी व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरुस्त कर लेंगे क्यूंकि हमारे स्वास्थय विभाग का पोल उस समय खुल कर सामने आ गया था,और हम इस बात पर विश्वास कर लिए थे उस समय भी तमाम कष्ट को सहते हुए भी की आगे हमें बेहतर व्यवस्था देखने को मिलेगी,पर हकीकत में क्या हुआ सभी देख रहें है कि और बदतर व्यवस्था हो गयी है और हम जीत-हार की गडित में और एक दूसरे पर लांक्षन लगाने में व्यस्त हैं,ये बात कत्तई समझ में नहीं आ रही है कि बिना लाकडाउन के इस चरमराती व्यवस्था में कैसे निजात पाएंगे,पर हम इसके लिए तैयार ही नहीं हो पा रहे हैं,मानिये या न मानिये पर एक हकीकत ये भी है कि व्यवस्था से जुड़े लोग जो २०२० में तत्परता और तेजी दिखाए थे वो अब नहीं है फिर भी हम लाकडाउन के लिए तैयार नहीं हो पा रहे हैं,नाईट कर्फू या फिर एक दिन के लाकडाउन से कुछ नहीं होने वाला है,इसमें कोढ़ में खाज की आमलोग भी लापरवाह हो गए हैं दूरी और मास्क को बोझ समझने लगे हैं,फिर ऐसे में क्या विकल्प है मात्रा चालान काट देने से कोई हल नहीं निकलने वाला है।
ये बात सभी जानते हैं की सत्ता में बैठे लोगों का सबसे महत्वपूर्ण दायित्व है की इस विकट महामारी में सबकुछ छोड़कर जनता के जीवन को बचाएं रोते हुए परिवारों के दर्द को समझें,उनके आंसुओं को पोछने का काम करें साथ में ऐसी सुदृण व्यवस्था करें की आगे कोई मौत न हो लोगों को दिल में ये पीड़ा न रहे की मेरे परिवार क सदस्य इंजेक्शन या फिर दवा या ऑक्सीजन या फिर हॉस्पिटल की व्यवस्था न होने कारण मौत के आगोश में चला गया,क्या उनके इस दर्द को कोई कम कर पायेगा।विपक्ष को भी ये समझना होगा की केवल कमिया बताने से आप का दायित्व इस महामारी में कम नहीं हो जाएगा आप भी कुछ व्यवस्था करिये अपने स्तर से कुछ ऐसा कर के दिखाइए की लगे आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं पर तो आप केवल और केवल कमियां निकालने में लगे हैं,ये जान लीजिये इसके लिए आप दोनों को जनता माफ़ नहीं करेगी,आप की लड़ाई से हमें क्या लेना-देना,सत्ता पक्ष को ये समझना होगा की हकीकत को समझें और उसे बेहतर करने का ठोस प्रयास करें मात्र
दिशा-निर्देश देने से काम नहीं चलेगा बल्कि हकीकत आकस्मिक और बिना बताये हॉस्पिटलों और व्यवस्थाओं को चेक करना पड़ेगा और जो व्यक्ति या संस्था इस महामारी और विकट आपदा में भी कमाने का अवसर ढूंढ रहा है उसे जेल में डालने और रासुका लगाने का प्रयास करें।ये भी सोचना होगा की क्यों आज उत्तर प्रदेश में माननीय उच्च न्यायलय के द्वारा लाकडाउन लगाना पड़ा जब की ये शासन को करना चाहिए था।अब माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने ही इसपर रोक लगा दी है तो इसपर कुछ भी कहना उचित नहीं है, आज कुछ चीजें करने की अत्यंत आवश्यक है-
१-वैक्सीन लगाने का काम घर-घर पर जा कर करें एक अभियान चलाकर,टीम बना कर अभियान के तहत किया जाए और सभी के डाटा सुरक्षित रखा जाये।
२-कोरोना के जांच की भी डोर टू डोर करना पड़ेगा जिससे की पीड़ित लोगों को अलग कर उनके दवा आदि की व्यवस्था किया जा सके।
३-आकस्मिक रूप से न केवल सरकारी बल्कि निजी हॉस्पिटलों में गहनता से परिक्षण करना होगा की दवा,इंजेक्शन,ऑक्सीजन सही तरीके से उपलब्ध है और उन मरीजों से या उनके तीमारदारों से पूछना होगा की कैसे और कितने में उपलब्ध हुआ |
४-हर मंडल और प्रदेश स्तर पर पर्याप्त कंट्रोल रूम बनाना पड़ेगा बेहतर हो की आई जी आर एस में लगे आपरेटरों का उपयोग इसमें किया जाए जो लोगों की शिकायत सुन कर तत्काल हॉस्पिटल,दवा,इंजेक्शन,ऑक्सीजन की व्यवस्था सुनिश्चित कराएं, इसकी मॉनिटरिंग के लिए पर्याप्त जिम्मेदार अधिकारी लगाएं जाएँ,हर शिकायत की मॉनिटरिंग ही न हो उसके आगे समाधान क्या कराया यह भी लिखित में अंकित किया जाए |समाधान के बाद भी उस शिकायतकर्ता से कन्फर्म किया जाए की धरातल पर समाधान हुआ या नहीं |
5-आज इसपर गहन मंथन और समीक्षा की जाए की हमने एक वर्ष में भी क्यों व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त कर पाए।कहाँ चूक हो गयी,इतनी बदतर स्थिति कैसे कब हो गयी।आज सत्ता और विपक्ष ने कौन सी जिम्मेदारी निभाई,अब तो कम से कम बेहतर स्थिति बनाने का प्रयास कर दे।आप जनता के लिए हैं की केवल चुनाव की जीत-हार ही आपका केवल उद्देश्य है।
ये सभी जिम्मेदार जान लें की जनता सर्वोपरि है उसके हितों की जो अनदेखी हो रही है ये किसी को माफ़ नहीं करेगी,साथ ही हम लोगों का भी कर्त्तव्य है की हम जिस लापरवाही से जीने लगें हैं उससे बचना पड़ेगा।लेकिन आज वास्तविकता को समझना बहुत जरुरी है जिस तरह से स्वास्थय सम्बन्धी जरूरतों का टोटा लगा है,उसमे कैसे ये समझा जा सकता है की धरातल पर सब सही है या तो फिर ये माना जाए की जो दिक्कतें या दुश्वारियां समाचार पत्रों में निकल रहा है या न्यूज़ चैनलों पर दिखाया जा रहा है वो झूठ दिखाया जा रहा है की हॉस्पिटल की व्यवस्था नहीं हो पायी,इंजेक्शन,दवा,ऑक्सीजन की मारामारी या भीषण किल्लत है, और यदि सही है तो फिर एक सप्ताह ही सही लाकडाउन लगाकर न केवल चेन तोड़ा जाए बल्कि वो समय व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त करने में उपयोग किया जाए,ये मत आ रहा है की लाकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में ही रक्खा जाये,ये बात बिलकुल सही मान लिया जाए क्यूंकि तर्क ये है कि रोज कमाने और रोज खाने वाले व्यक्ति के जीविका का संकट और देश के इकोनामी पर दुष्प्रभाव पड़ेगा,लेकिन ये भी तो बताया जाए कि वो अंतिम विकल्प कि सीमा क्या है,कब माना जाए कि अब समय हो गया है,ऑक्सीजन,बेड,रेडमेसिअर इजेक्शन,दवाओं कि किस हद तक मारा-मारी होने लगे,या कितनी मरीजों कि संख्या और मौते होने लगे तब लाकडाउन को अमल में लाया जाये,स्वास्थय विभाग कि चरमराती व्यवस्था,लोगो के दुखद क्रंदन,चीख,पुकार लगातार बढ़ती संख्या ये यही इंगित कर रही है कि इसपर विचार किया जाए कि अल्प अवधि का ही सही लाकडाउन लगाकर चेन तोडा जाये और व्यवस्था को मुकम्मल किया जाये,ये मेरा मत है लेकिन ये आवश्यक नहीं कि मेरा मत सही ही हो नहीं तो फिर ईश्वर का ही सहारा तो है ही |ईश्वर ही हमारी रक्षा करेगा,"होइयें वही जो राम रची राखा----",इसी पर चला जाए क्यूंकि कागज़ पर तो जिम्मेदार सब सही ही बताने का प्रयास करते हैं,और धरातल पर जनता त्रस्त रहती है और ढूंढ़ती रहती है की कहाँ साड़ी व्यवस्था है,कितने दुर्भाग्य का विषय है की आजादी के तिहत्तर साल बीत जाने के बाद भी हम अपनी स्वास्थय विभाग को दुरुस्त नहीं कर पाए आज इस आपदा में सारी चीजें स्पष्ट हो गयी है,अब से ही सुधर जाया जाये तो भी बेहतर है,जिंदगी बचाना सबसे परम कर्त्तव्य है जिम्मेदार लोगों का,यदि सभी को प्रॉपर इलाज मुहैया समय से हो जाए,उसके बाद यसदि दुर्भाग्य से मृत्यु हो जाए तो परिवार वालों को मन में ये संतोष तो रहेगा की हम ने सारे प्रयास किये,ये कसक तो नहीं रहेगा की हम कुछ कर ही नहीं पाए,आइये आज हम आप मिलकर इस महामारी से लादेन जो सक्षम हैं वो मदद को हाथ आगे बढ़ाएं।जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी समझें और ऐसी सरलीकरण व्यवस्था करें की आमजन को सुविधा के लिए भटकना न पड़े,विपक्ष भी अपने स्तर से मजबूर लोगों की जिंदगी बचाने में अपने स्तर से भरपूर प्रयास करे न की एक्सपर्ट बनकर कमिया निकालने में मशगूल रहे,आप के इस विरोध से जनता का कोई भला नहीं होने वाला है,आज समय की यह भी मांग है की जो समाज के बहुत ही धनाढ्य और सक्षम कहे जाने वाले लोग या फिर चमक-दमक वाले दुनिया के लोग अपनी मदद का मजबूत हाथ बढ़ाएं तभी इस महामारी की विकट स्थिति से निपटा जा सकता है,अन्यथा तो आमजन सह ही रहा है,अपनी तकलीफों को बयां भी नहीं कर पा रहा है।आइये इस समय हम आपस के सारे भेद-भाव को भूलकर एक-दूसरे की मदद के लिए हाथ बढ़ाएं,और इस महामारी से मजबूती से लड़ने को तैयार रहें।हर उस भारतीय परिवार के सदस्य को जो इस महामारी का असमय ही शिकार हो गया उसे अंश्रूपुरीत श्रद्धांजलि देते हुए ईश्वर से हाथ जोड़कर प्राथना करते हैं की उनके परिवार को हिम्मत और साहस दे इस दुःख की घड़ी को सहने के लिए।
जय हिन्द -जय मेरा भारतीय परिवार ।।



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