कहाँ गुम हो गए हम - Samjhavish Babu - Hindi Blog
एक जमाना था जब हम खाली होते थे तो प्रेरणादायक पुस्तकें पढ़ा करते थे,जैसे की जयशंकर प्रसाद,महादेवी वर्मा,मैथलीशरण गुप्ता,रामधारी सिंह दिनकर,मुंशी प्रेम चंद,अरविन्द घोष,रबिन्द्र नाथ टैगोर,अज्ञेय,आदि ऐसे अनगिनत ऐसे महान लेखक जिनकी पुस्तकें पड़ते थे तो कुछ अच्छी बातें न केवल सीखते थे बल्कि एक सकारात्मक और गहरा प्रभाव हमारे मनो मशतिष्क पर पड़ता था,इन लोगों ने भी अपनी लेखनी से समाज को एक नई दिशा देने की कोशिस की।ये ऐसी प्रेरणादायक लेख हुआ करते थे की जिसके अध्ययन के बाद नकारत्मकता तो आ ही नहीं सकती थी। वो काल भी ऐसा था की समाज में हम की भावना विद्यमान था ,मैं की भावना को हतोत्साहित किया जाता था ,वो भी क्या दिन थे जब गांवों में सभी के अंदर एक अपनापन था सभी एक दूसरे के सुख दुःख के भागिदार होते थे वो भी प्रेम भाव से ,यह अवश्य है की शहरों में इसकी कमी शुरू हो गयी थी,लेकिन ग्रामो में जीवित थी। हम की भावना में सबसे बड़ी सुख यह रहती थी कि आप को अपने कष्ट में यह अहसास रहता था कि आपका दुःख बाटने वाले कई हैं।यह सही हैकि आप का दुःख अपना होता है लेकिन जिस तरह डाक्टर अपने मरीज से दो शब्द मीठे बोल देता है तो मरीज का आधा कष्ट दूर हो जाता है उसी तरह यदि आपके दुःख में कोई दो शब्द अपनेपन से बोल देता है तो वो एक मरहम का कार्य करता है।
आज का जो जमाना है वो हम से मैं में परवर्तित भावनाओं का जमाना है, सभी अपने-अपने को स्वयंभू मान बैठे हैं,उन्हें लगता है कि पुरे समाजरूपी टेंट का बम्बू वही उठाये हैं,वो न होते तो समाज चल नहीं पाता,हरओर ज्ञानियों का भण्डार पड़ा है सभी अपने को श्रेष्ठ बताने में लगे हैं,समझ में ही नहीं आता है कि कौन सही तथ्य पेश कर रहा है कौन बरगला रहा है।समाज कि महत्वपूर्ण जिम्मेदारी जो अपने कंधो पर लिए हैं उनके अंदर तो हम कि भावना तो कूट-कूट के भरी होनी चाहिए ,लेकिन दुर्भाग्य ये होता जा रहा है कि उनके अंदर मैं कि भावना कि बहुतायत होती जा रही है ,उनको ये लगने लगा है कि वो ही पूरे देश का भार उठायें हैं जो वो कह या कर रहे हैं सब सही ,उससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता।
आज के मॉडर्न टेक्निक के ज़माने में जब व्हाट्सअप,फेसबुक,यूट्यूब का जमाना है जिसके फायदे तो बड़े हैं पर कन्फ्यूजन कुछ ज्यादा हो रहा है ,यूट्यूब खोलिये तो एक से एक वीडियो मिल जायेगा ,जिसको सुनने के बाद समझ में ही नहीं आएगा कि क्या करें ,कभी-कभी तो लगता है कि हम बर्बादी के मुहाने पर खड़े हैं बस अब गए कि तब गए,सभी अपना-अपना ज्ञान बाटने में लगे हैं एक कहता कि सबसे बुरे दौर में चल रहे हैं सारी व्यवस्थाएं चरमरा जाएगी तो दूसरा कहता है कि हम स्वर्णिम काल में चल रहे हैं,कोई कहता है कि सब बिक रहा है या बिकने कि तैयारी में है तो दूसरा कहता कि नए भारत का निर्माण हो रहा है,अब आप सोचें जो कुछ सोचना है ,सबसे बड़ी विडम्ब्ना यह है कि जिम्मेदार लोग आकर सत्यता पुख्ता सबूत के साथ नहीं बताते ,न तो भ्रम दूर करने का प्रयास करते,वो तो मस्त होकर पड़े हुए हैं।यूटूब पर एक से बढ़कर एक लोग प्रगट होते हैं और ५-१० मिनट में हमारे दिमाग कि दही बनाकर चल देते हैं ,अब आप सोचते रहिये कि दही का क्या करें कड़ी बनायें कि लस्सी बनाये या खट्टी है ज्यादा तो फेंक दें ,ये भी पता नहीं कि किस दूध से दही बनाया गया है ,अब आप इसी कन्फ्यूजन में पड़े रहिये तबतक दूसरी स्टोरी तैयार हो जायेगा।कोई किसी को हीरो तो किसी को सुपर हीरो बना देगा तो कोई फ्लाफ कर देगा ,आजकल खुद बनने कि प्रक्रिया लगभग समाप्त हो रहा है ,आजकल तो ब्रांडिंग का जमाना है ,यही कारण है कि खूब मेकअप किये चेहरे के पीछे का असली चेहरा छुप जा रहा,और जबतक मेकअप धुलता है तबतक देर हो जाती है।
मैं और हम पर पूरा दर्शन लिख दिया गया है ,कहा गया है कि ''अहम् ब्रह्मास्मि '', अर्थार्त मैं कुछ नहीं है है लेकिन दुर्भाग्य देखिये आज जिम्मेदार लोग मैं ही ब्रह्म हूँ इसी में पड़ते जा रहे हैं और हम भी रस्सी और सांप का फर्क भूल कर उसी को सही मानते जा रहे हैं। इसीलिए समाज का ताना-बाना बिगड़ रहा है ऑल सामाजिक रिश्ते कमजोर होते जा रहे हैं ,आर्थिक रिश्ते मजबूत होते जा रहे हैं जो अस्थायी है ये तभी तक है जबतक अर्थ है उसके बाद कोई पूछने वाला भी नहीं मिलेगा। आज समय कि मांग है कि हम फिरसे हम में ही जीना शुरू करें मैं को भूल जाएँ ,अन्यथा समाज का अधिकांश भाग जो शोसित और वंचित हैं उनकी दशा वैसे कि वैसे रह जाएगी और मैं वाले भी सुखी नहीं रह पाएंगे।बुरे कर्म कभी भी सत्य को पराजित नहीं कर सकते परेशान अवश्य कर सकते हैं।
उठिये जागिये और समाज को बचाइए ये हम सब का दायित्व है।
जय हिन्द जय भारत जय समाज।।



Atii sundar lekhni
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