रुत्बा-ए-जबरिया - Samjhavish Babu [Leading Hindi Blog]
आज के समाज में रुतबा का बड़ा महत्व है,यदि रुतबा नहीं है तो आप एक साधारण मनुष्य हैं और साधारण तरीके से जीने के लिए विवश हैं,क्यूंकि आज के समय के हिसाब से आप के पास रुतबा नहीं है,पहले के समय एक कहावत कही जाती थी की पावर या रुतबा आने पर इंसान को विनम्र होना चाहिए,सही भी था तब लोग विनम्र रहते भी थे,लोग देखकर कहते भी थे की इसे देखो इतना सब कुछ होते हुए भी घमंड नाम की चीज नहीं है,रुतबा बढ़ने से इसके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा,ये बात भी सही है की जितना भी पावर बड़े यदि आप विनम्रता भी उतना बढ़ाते जाएंगे तो आप न केवल अपने पावर का सही और सार्थक इस्तेमाल कर पाएंगे बल्कि लम्बे समय तक उसको स्थिर भी रख पाएंगे और उसमे बढ़ोत्तरी भी कर पाएंगे,इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है,कई प्राचीन शासक और आधुनिक युग के शासक इसके उदहारण के रूप में मिल जाएंगे,यह भी सही है की पावर का बेंजा इस्तेमाल बहुत लम्बे समय तक नहीं चलता है और एक न एक दिन उन्हें मुहकी खानी पड़ती हो,लोकप्रिय से लोकप्रिय नेता जो बहुत प्रशिद्ध और मजबूत रहा है बेंजा इस्तेमाल पर जनता ने उनको सबक सिखाया है,पर इन सब के बावजूद इसके गलत इस्तेमाल से लोग नहीं हिचकते हैं,क्या करे पावर/रुतबा सर चढ़कर बोलने लगता है और इंसान तो नहीं कहेंगे क्यूंकि इंसान तो वो है जिनमे इंसानियत बाकी हो,आदमी कहेंगे ये मदमस्त हो जाते हैं और सबको अपने से छोटा समझने लगते है,यही कारण है की जब कभी उनका पावर समाप्त होता है तो न वो घर के रहते हैं और न घाट के रहते हैं।रुतबा हटने के बाद जब उसी समाज में चलते हैं जहाँ लोग मिलने के लिए आतुर रहते थे,अब मुँह फेर लेते हैं,पर क्या करें आदमी इतना लम्बा सोचता नहीं है।
लेकिन आजकल कुछ अलग तरह की जमात इसमें शामिल हो गयी है,ये आप को बहुत आसानी से समझ में आ जायेगा की जब भी कही आप घर से बाहर निकलते हैं तो कभी न कभी जरूर देखते होंगे की कोई प्राइवेट कार,या मोटरसायकिल या फिर स्कूटर पर किसी सरकारी महकमे का विशेष तौर पर पुलिस या राजस्व विभाग का सिंबल लगा मिल जायेगा,इसपर वो लोग बैठे मिल जायेंगे जो सीधे तौर पर रुतबा/पावर के हकदार नहीं हैं किन्तु उनके परिवार के सदस्य के रूप में चाहे पुत्र,पत्नी,भाई,भतीजा,साला के रूप में हों इस रुतबे का इस्तेमाल करते हुए मिल जाएंगे।सबसे मजेदार बात ये होती है की बाजार आप भी या आपका परिवार भी गया है और इनका भी गया है आप शरमाते सकुचाते अपनी गाड़ी सही जगह ही खड़ी करना चाहेंगे और यदि कोई पुलिस वाला टोंक दिया तो घबरा जाएंगे ,किन्तु ये लोग तो नियम तोड़ने के आदि हैं,गाड़ी ऐसी जगह खड़ी कर देंगे की यदि इनसे कहो भी की भैया थोड़ा साइड में कर लें तो बड़े ही हिकारत से देखते हुए कहेंगे की बगल से निकाल लो,विशेष तौर से पुलिस विभाग के लोगो का इस्तेमाल करने वाले लोग।इनको पुलिस का भी ज्यादा भय नहीं लगता,ऐसा फूले रहते हैं की जैसे पूरे शरीर में रुतबे का हवा भर गया,इतना तो गैस का गुब्बारा भी नहीं फूलता हैं जितना ये फूलतें हैं ,इनके लिए एक बात एकदम फिट बैठती हैं की सैयां भये कोतवाल तो डर काहें का।राजस्व की गाड़ी में आपको बड़े से या छोटे से मजिस्ट्रेट लिखा मिल जाएगा,इसका अर्थ ये हैं की जिसके परिवार में एक मजिस्ट्रेट हो गया उसका पूरा परिवार बिना मेहनत के मजिस्ट्रेट हो जाता हैं,असली मजा तो यही लेते हैं,क्यूंकि असली तो काम,दाम,जीहुजूरी में ही व्यस्त रहते हैं।इनके परिवार वाले बीच बाजार में कहीं अपने गलती से फंसते हैं तो सभी को सबसे पहले ही बता देते हैं की हमारे फलाने फलां तोप हैं समझे की नहीं,मजा तो तब आता हैं जब कोई पुलिस वाला भाव नहीं देता या प्राइवेट में भी कोई शेर का सवा शेर निकल गया,फिर तो इनका मुँह देखने लायक होता हैं और उस समय ये असली रुतबे वाले को फोन पर फोन घुमाते हैं और वो भी अपने रुतबे का जहाँ तक चल पाता हैं चलाते हैं नहीं तो मिन्नतों से काम चला लेते हैं।इसमें एक और जमात शामिल हैं वो हैं साहेब बहादुर के अर्दली/गनर/गार्ड जो असली पद धारक हो जाते हैं,ये भी सड़कों पर अपनी गाड़ियों को आड़े तिरछे खड़ा करने से नहीं हिचकते और कोई टोकता भी हैं तो उसे ऐसा हड़काने का प्रयास करेंगे की जैसे उसने टोंक कर कोई अपराध कर दिया हैं,साहेब के अंडर में आने वाले दुकानों/मातहतों/काम कराने आने वाले व्यक्तियों से अपना काम बड़े ही रुतबे से निकाल लेते हैं,वहां ये असली अफसर बन जाते हैं,हों भी क्यों न कहीं कहीं पर असली रुतबे वाले अफसर भी इन्ही को अपना माध्यम बना लेते हैं,जिससे इनका दिमाग सातवें आसमान पर चला जाता हैं।कहीं किसी गाड़ी से इनकी हलकी टक्कर भी हो जाती हैं तो भले इनकी गलती हो ये ऐसा चढाई करते हैं की सारी गलती दूसरे की निकल जाए,ये अपने को आम आदमी नहीं समझते बल्कि दो सींगो वाला आदमी समझते हैं।ऑफिस में भी अन्य कर्मचारियों पर ये अपना रुतबा बनाये रहते हैं और प्रदर्शित ऐसा करते हैं की साहेब बिना इनके कहीं एक कदम नहीं बढ़ाते और इसी का फ़ायदा उठा कर ये अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं।हो भी क्यों न किसी भी साहेब के आने पर यही फिजा बनाते रहते हैं की साहेब बड़े कड़क हैं,बड़े सख्त हैं पर चिंता मत करिये हम सब देख लेंगे।साहेब सिर्फ हामी से बात करते हैं,और इसके बाद कुछ न कुछ काम बता देगा और अपने मकसद में कामयाब हो जाएगा।
अब एक और रुत्बाए जबरिया की बात करना जरुरी होगा क्यूंकि बिना इनके इस टॉपिक का मकसद ही अधूरा रह जाएगा,ये होते हैं विभिन्न पार्टियों के झंडाधारी रुतबा वाले लकझक कुरता-पैजामा धारी नेता जो अपने चार पहिया वाहन में अपने पार्टी का झंडा लगाकर चलते हैं और अपने को भीड़ से कुछ अलग स्पेशल दर्जा प्राप्त समझते हैं जो वो अपने हाव-भाव से प्रदर्शित भी करते हैं,अब अत्याधुनिक काल में हो सकता है की कुछ आपको पैंट-शर्ट धारी भी मिल जाएँ,इसमें सबसे ज्यादा अधिकता सत्ताधारी पार्टी के झंडे की रहती है क्यूंकि उसी का जलवा कायम रहता है,कई तो बरसाती मेढक की तरह उभर आते हैं जो बिना जबरिया रुतबा के रह नहीं सकते वो अपना झंडा समय की नजाकत को देखते हुए बदल लेते हैं,इनमे से कुछ तो बड़े ही खास अंदाज में घूमते हैं,गाड़ी से उतरेंगे तो लगेगा जैसे कितने महत्वपूर्ण आदमी हैं ये रुक कर और उतर कर अहसान कर रहे हैं,और उतरेंगे तो एकदम फ़िल्मी स्टाइल में आँखों पर महंगा चश्मा,गले में सोने की जंजीर,जंजीर ही कहेंगे क्यूंकि इतना वजनी पहनते हैं की चेन कहना बेमानी होगा,कहो गाड़ी बीच सड़क पर ही रोक दें,इससे चाहे कितनी भी किसी को असुविधा हो उनको कोई फर्क नहीं पड़ता क्यूंकि इसे ही तो भौकाल कहते हैं,यदि कोई पुलिस वाला आगे बढ़ता है टोकने के लिए तो वो ऐसा प्रदर्शित करते हैं की जैसे कुछ हो ही नहीं रहा है,हाँ ये भी सच्चाई है की सत्ताधारी झंडा देखकर पुलिस वाले की चाल की गति जरूर धीमी पड़ जाती है,ये भी एक सच्चाई है की जो सत्ता में नहीं रहती है उस पार्टी का झंडा अपना पुराना रुतबा नहीं कायम कर पाती है,और कभी ऐसी परिस्थिति आ भी जाए की की दोनों पक्षों के बीच सड़क पर किसी बात को लेकर विवाद हो जाए तो जीतता तो फिर सत्ताधारी झंडा ही है।सत्ताधारी का झंडा देखकर लगता है की कोई विशेष व्यक्ति आ रहा है,नए की खुशबु आती है,और पुराना झंडा देखकर पुरानेपन की ही याद आती है,लगता ही नहीं की ये वही झंडा जो कुछ समय पहले अपना जलवा कायम किये हुए था,इस बेचारे को भी सत्ताधारी झंडा देखकर मन में एक बहुत तेज से हूक उठती है की वो भी क्या दिन थे जब इसी सड़क पर लोग सलाम ठोका करते थे,अब क्या समय आ गया है सलाम तो दूर लोग मुँह फेर ले रहे हैं,अब तो कुछ रोक लगी है नहीं तो हूटर का बेधड़क इस्तेमाल होता था,समझ में ही नहीं आता था की कोई अधिकारी/वी आई पी जा रहा है या कोई छुट भैया जा रहा है,ये झंडा धारी नेता कमाल के होते हैं,इसमें कुछ तो मौसमी होते हैं जो अपने मतलब से ये झंडा लगाते हैं और अपना काम निकालते हैं,ये वो लोग हैं जो सत्ता बदलते ही अपना झंडा बदल लेते हैं और पुरानी पार्टी को टाटा बाई बाई कह देते हैं।दूर से देखो तो एक छोटा सा झंडा और नजदीक से देखो तो कमाल ढाता है,हाँ जो कुछ अधिक उत्साही होते हैं वो अपना पदनाम भी लिखवा लेते हैं और ऐसा प्रदर्शित करते हैं की जैसे इसको पड़ना सभी को जरुरी है,झंडा के साथ पद नाम सोने में सुहागा का काम करता है।ऐसा लिखवाये रहते हैं की लगता है कि सबसे बड़े पद धारक यही हैं और अहसान कर रहे हैं पद नाम लिखवाकर जिससे हमलोग जान जाएँ कि बड़े रुतबा धारी पधार रहे हैं,बामुलाहिजा होशियार हो जाइये,अन्यथा गजब हो जायेगा,इनके सम्मान में बट्टा लग जाएगा।
इधर लगभग २०-२५ वर्षों से कुछ चंद अधिकारियों की जमात भी हर सत्ता में बन जाती है,भले ही ये उँगलियों पर गिने जाने वाले हों लेकिन हर सत्ता में इनका भौकाल गजब का हो जाता है,ये पुरे प्रदेश में छा जाते हैं।सभी अधिकारीयों में इनके जलवे के कसीदे और चर्चे पढ़े और सुनाये जाते हैं,इनके माथे पर लेवल लग जाता है कि ये जनाब इस सत्ता के सबसे खास प्यादे हैं जो शेर का भी शिकार कर लेते हैं,इनकी तूती बोलती है,चहुओर इनके जलवे कि खुशबु यत्र-तत्र-सर्वत्र फैलता रहता है,मिलने के लिए लोग तरसते हैं,साहेब का भी एक तरह से दरबार सजता है,जहाँ आसानी से एंट्री नहीं मिल पाती है,साहेब के आँखों का इशारा लोग समझने का प्रयास करते हैं वो भी इसलिए कि कोई भूले से गलती न हो जाए और साहेब नाराज हो जाएँ,क्यूंकि साहेब एक तरह से सरकार बन चुके होते हैं,लेकिन ऐसे अधिकारियों के जमात में आने वाले लोग सत्ता बदलते ही अँधेरी गली में गुम हो जाते हैं,जो सत्ता का गलियारा कहा जाता है उसके लिए उनके मुँह से यही निकलता है कि ''तेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद तेरे मिलने को न आएंगे सनम आज के बाद '',एकदम से ऐसी स्थिति परिवर्तित होती है कि साहेब कहाँ चले गए लोग ढूंढ़ते हैं,एक और चीज हो जाता है जिससे मिलना लोग अपना गौरव और किस्मत समझते थे,अब यदि दूर से भी साहेब गलती से भी दिख जाएँ तो लोग रास्ता मुँह छिपाकर बदल लेते हैं और पूरी सावधानी बरतते हैं कि इस समय के जलवेदार अधिकारी या उनका कोई कारखास इनसे मिलता हुआ न देख ले।इसी को कहते हैं "वक्त के दिन और आज,वक्त के कल और आज,वक्त का हर शह गुलाम,आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे,न जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज,"एक समय जिसके नाम का सिक्का चलता था आज उनका नाम लेने से भी डरते हैं,आज के जलवेदार अधिकारी के सामने यदि कभी जाते भी हैं तो पूरा एहतियात बरतते हैं कि भूले से भी पुराने वाले का नाम मुख से न निकल जाए।जिनके हनक से दरो-दीवार जहाँ हिल जाता है अब उनकी आवाज से पत्ता तक नहीं हिलता है।
इसके अतरिक्त एक और रुत्बाए जबरिया होते हैं जो माफिया सफेदपोश का चोला पहन लेते हैं,इनका तो गजब हाल रहता है,इनकी गाडी पर कोई न कोई झंडा मिल जाएगा,यदि न भी मिले तो शहर को इनकी बड़ी गाड़ी पहचानने कि आदत पद जाती है,इनका भौकाल तो नम्बर एक का होता है,लोग खुद ब खुद साइड देने लगते हैं,यदि कही ये रूककर गाड़ी से उतर भर जाते हैं तो पाँव छूने और सलाम करने वालों कि लाइन लग जाती है,सोने में सुहागा तो तब हो जाता है जब इन्हे सत्ताधारी पार्टी का वरदहस्त प्राप्त हो जाता है तब तो इनका जलवा नहीं आतंक चलता है,जिसे चाहें वो बीच सड़क भरपूर बेइज्जत कर सकते हैं,और करते भी हैं,ये अपना एक सामानांतर सरकार चलाने लगते हैं,किसी के बोलने कि जुरर्रत नहीं होती सब बचना और चुप रहना चाहते हैं,सबको अपनी इज्जत और जान प्यारी होती है।इनकी गाड़ी कभी अकेले नहीं निकलती है जब भी निकलती है तो पुरे लावा-लश्कर के साथ,और ये बताने कि जरुरत नहीं कि भरपूर असलहों के साथ।हाँ इनके साथ भी यही है कि सत्ता बदलते ही यदि सेटिंग नहीं हो पायी और सरकार कहीं ज्यादा सख्त हो गयी तो इनका जीवन किसी न किसी सरकारी घर में कटता है,और वहीँ ये अपने आपको सुरक्षित भी समझते हैं,उनके लिए सबसे महफूज स्थान वो सरकारी घर ही होता है।
ये जितने भी प्रकार के जबरिया रुतबा वाले होते हैं ये इसलिए सफल होते हैं क्यूंकि हम डरे सहमे रहते हैं हम इनका विरोध नहीं करते,यदि ये किसी दूसरे को बेइज्जत कर रहे होते हैं तो हम ये सोचकर कि हमसे क्या मतलब नजर बचाकर निकल लेते हैं,और हमारी यही प्रवित्ति उनके जबरिया बल को टॉनिक प्रदान करती रहती है और उनके मन में यह बात अच्छे से घर कर जाती है कि कोई बोलने वाला नहीं है,हमें और आप को ये प्रवित्ति बदलनी होगी,मैं भी उसी श्रेणी में हूँ,अतः अब हिम्मतकर ऐसे लोगों का डट कर सामंने करना होगा तभी समाज में सुधार होगा और इनके जबरिया बल पर कुठारघात होगा।आइये आज से प्राण लें कि इनका डट कर सामना करना होगा,इस गाने के साथ कि "हम होंगे कामयाब,हम होंगे कामयाब एक दिन मन में है विश्वास हम होंगे कामयाब एक दिन"।
जय भारत जय समाज ।।



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