ये तो गलत है-ये तो निर्दोष है - समझाविश बाबू

कोई भी व्यक्ति जो भी काम करता है तो वो या तो सही होता है या गलत,या यूँ कहें की किसी भी व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य सही और गलत के पैमाने पर कसा जाता है,इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति जिसका नाम किसी ऐसे  गलत काम से जुड़ता है जो सविंधान के विपरीत होता है तो उसका परिक्षण भी इसी तरह होता है की वो दोषी है या फिर निर्दोष है और ये निष्पक्ष रूप से होना भी चाहिए,इसके लिए जो भी जिम्मेदार एजेंसियां  हैं उनकी ये जिम्मेदारी होती है की वो बिना किसी के दबाव चाहे वो सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष या कोई और अपनी निर्भीकता और निडरता तथा निष्पक्षता के साथ सत्य के साथ मजबूती और अडिगता से खड़ा रहे।यही  किसी भी मजबूत लोकतंत्र और सुरक्षित लोकतंत्र के लिए परम आवश्यक है,ये ही हमारे या किसी भी राष्ट्र के लिए भी मजबूती का ठोस आधार भी  है।क्यूंकि यदि ये आधार कमजोर होता है तो न केवल लोकतंत्र को प्रभावित करता है बल्कि राष्ट्र तक को व्यथित कर देता है। 



                                       आज हमारे देश में देखिये तो गजब की हवा चल रही है,सत्ता पक्ष और विपक्ष इस  तरह से दुश्मन के रूप में सामने आ गए हैं की हर आंदोलन,हर वो कृत्य जो देश में चल रहा है सबमे केवल और केवल यही हो रहा है की यदि सत्ता पक्ष की तरफ से सही  की आवाज आती है तो दूसरी तरफ से तुरंत ही गलत-गलत का शोर उठ जा रहा है,जनता को तो समझ में ही नहीं आ रहा है कि क्या सही है और क्या गलत,इसी में तमाम चैनल भी डिबेट कराते रहते हैं,जहाँ अपने को प्रकांड विद्वान् समझने वाले विभिन्न राजनीतिक दल के प्रवक्ता ऐसे-ऐसे कुतर्क रखते हैं कि कभी-कभी मन करता है कि टी वी ही उठा के पटक दें,क्यूंकि और तो कुछ हमारा बस चलेगा नहीं,उस डिबेट में हम भाग ले नहीं सकते क्यूंकि हम न तो प्रकांड विद्वान् हैं और न हमारी इतनी बिसात है।हमारे लिखने से भी कुछ नहीं होता,आजकल ब्रांडिंग और प्रचार तथा किसी का सहारा चाहिए,विशेष तौर से इसमें चैनल का सहारा चाहिए,वो जिसे चाहे मशहूर कर दे जिसे चाहे मशरूफ कर दे,आज का जो समय है ये चैनल जिसे चाहे अर्श पर पहुंचा दे और जिसे चाहे फर्श पर गिरा दे।

                         बहुत पुरानी घटना पर जाने से अच्छा है हम कश्मीर में हटाए गए धरा ३७० हो या फिर सी ऐ ऐ हो या फिर एन आर सी बिल हो जब ये आया तो विपक्ष ने इसे विरोध का एक मजबूत हथियार  बना लिया और ऐसी फिजा बनाने कि कोशिस की कि अब तो कश्मीर में प्रलय आ जाएगा,हालत ख़राब हो जाएंगे,इसी प्रकार सी ऐ ऐ/एन आर सी बिल को लेकर इस तरह का प्रचार किया गया की जैसे एक वर्ग असुरक्षित हो गया है,इसी की परिणीत शाइन बाग़ के धरने के रूप में सामने आया,खूब उसको तूल दिया गया और खूब हवा देने का प्रयास किया गया,एकबार चलिए मान लिया जाय  की सब बिल गलत था तो अब क्यों नहीं विरोध हो रहा है,इसे क्यों पीछे छोड़ दिया गया,विपक्ष क्यों नहीं सम्पूर्ण तथ्य के साथ जनता में  प्रस्तुत किया की ये पूर्णयता गलत है इसे बिना निरस्त किये देश का भला नहीं होने वाला है,इसी तरह देखिये जब जे एन यू विश्वविद्यालय में देश के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगे थे तब भी कई लोग उनलोगों के साथ खड़े दिखाई दिए थे जो इस नारे को या तो लगाने वाले थे या इसके साजिशकर्ता थे,तब भी जो साथ में खड़े दिखाई दे रहे थे उनको ये निर्दोष दिखाई दे रहे थे।जो साथ खड़े होते हैं किसी भी पक्ष के वो अपने को सबसे बड़ा बुद्धिमान और तर्कपूर्ण व्यक्ति मानते हैं। 

                                     अब किसान के लिए पास तीनो बिल को वापस लेने का आंदोलन चल रहा जो बिलकुल शांतिपूर्ण चल रहा था पर इसका भी जैसे ही राजनीतिकीकरण  हुआ यहाँ  भी किसान बनाम सरकार का आंदोलन विपक्ष बनाम सरकार बनता जा रहा है और इसी आंदोलन में सबसे तेजी से जिस किसान नेता का नाम उभरा वो हैं राकेश सिंह टिकैत जी,जिनके  नेतृत्व में सीधा-सीधा मांग है की तीनो बिल वापस हो और ऍम एस पी की गारंटी दी जाए,अब मेरे समझ में आज तक ये नहीं आया की जब आप की दो टूक मांग है और सरकार संशोधन करने और बिल को तबतक स्थगित करने को तैयार है तो वार्ता किस बात पर होगी और कैसे जब दोनों लोग अड़े हुए हैं,ये कैसा आंदोलन है जो बिलकुल जरा भी पीछे हटने को तैयार नहीं है,हाँ ये अवश्य है की सरकार से कहीं न कहीं चूक जरूर हुई है की इतना बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया,यदि ये सबसे अच्छा किसान बिल था तो लाने के पहले किसानो को क्यों नहीं समझाया गया,क्यों नहीं इनको विश्वास में लिया गया,यहाँ सरकार से ये कुछ प्रश्न बनते हैं जो उनसे पूछा जाना चाहिए-

१-छोटी सी चिनगारी एक बड़े आग का रूप लेलिया इसे शुरुवाती दौर में ही सम्मानजनक  ढंग से हल आपको करना चाहिए था,इतनी भीड़ को केवल एक प्रदेश या कुछ अन्य कहकर कैसे आप अपनी जिम्मेदारी से बचेंगे ?

२-आप अंतर्राष्ट्रीय साजिश तो करार देते हैं पर इतना विकराल रूप क्यों बनने दिया?आप कहते हैं की बहुत  अच्छा किसान कानून है तो फिर समझा क्यों नहीं सके ?

३-कील लगाना यदि सही था तो फिर निकाला क्यों जा रहा है ?ये कौन सा संकेत देना हुआ,आप अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं,आप नहीं ख़तम कराएँगे तो क्या इसे अंतराष्ट्रीय बनने में परोक्ष रूप से मदद कर रहे हैं,आप ये मौका क्यों दे रहे हैं ?

४-एक फोनकॉल की यदि दूरी है तो आप की तरफ से क्यों नहीं काल चला जाता क्या आप को काल करने की मनाही है ?आप के कृषि मंत्री ही काल कर दें क्या इसमें कोई हर्ज है ?

५-कोई भी बड़ी घटना घट  जाएगी तो सबसे पहले आप ही को लोग कटघरे में खड़ा करेंगे क्यूंकि आप सत्ता पर बैठे हुए हैं तो फिर क्यों नहीं अपने तरफ से पहल कर ही देते हैं ?

६-चक्काजाम सफल हो या असफल,यदि कहीं के किसान बैठे हैं तो दायित्व आप की तो है,आप क्यों किसी किसान नेता को ये मौका दे रहे हैं की आंदोलन वो अपनी मर्जी या दूसरे की मर्जी से खींचता चला जाए ?

 ७-अब जब ये १८ फरवरी को चार घंटे का देशभर में रेल रोको आंदोलन करने जा रहे हैं क्या इससे पूर्व इसे समाप्त करना जरुरी नहीं है? 

                ये हमेशा ही जब भी कोई घटना घटेगी तो सरकार के सामने यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा होगा की आप ने क्यों नहीं पहल कर इसे समाप्त करवाया,क्यों इतना फैलने दिया।आज आप अपने नेताओं की फ़ौज उतार रहे हैं किसान बिल सही है इसको समझाने  के लिए यही पहले ही कर लेते,अब यह भी एक समस्या हो सकती है की यदि एक बार कोई बिल वापस हुआ तो फिर दूसरा क्यों नहीं?लेकिन कुछ भी हो इसे समाप्त तो करना ही होगा,ये जिम्मेदारी तो सरकार की है,आपको ही पहल करनी होगी कोई दूसरा नहीं।


                सरकार के साथ किसान नेता से भी ये पूछना जरुरी है की आप क्या चाहते हैं जब कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा है तो फिर बात क्या होगी,लेकिन आप क्यों विकल्प छोड़ेंगे आप ने तो घोषणा ही कर दिया है की अक्टूबर तक आंदोलन चलेगा,ठीक है चलाइये लेकिन इन कुछ प्रश्नो के जवाब आप से भी पूछे जाने चाहिए जैसे की------

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१-आप द्वारा २६ जनवरी के पहले कहा गया था की झंडा-डंडा साथ लेकर आना,और जब मीडिया ने पूछा तो बड़े ही मासूमियत से जवाब दिया गया की झंडे के लिए डंडा कहा था,लेकिन आप ने जो आगे कहा था की सरकार कर्री पड़ रही है जमीन न बचेगी,इसका क्या अर्थ था ?

२-आप ने २६ जनवरी के पहले आजतक पर ही डिबेट में बैठकर कहा था की सरकार ने पूरी प्लानिंग बना रखीं है गोली चलेगी और कम से कम १००० किसान मारे जाएंगे,गोली तो नहीं चली जब की मौका ऐसा बना की लालकिले पर गोली ही विकल्प बचा था,तो ये क्यों न कहा जाए की आप इस षड़यंत्र के सूत्रधार थे ?इसीलिए आप बार-बार गोली चलने की बात कर रहे थे ?

३-२६ जनवरी की जो घटना हुई मैं लगातार आजतक पर देख रहा था आप बहुत ही अच्छे थे तो आप ने अपील क्यों नहीं की ये सब गलत  हो रहा है,आप क्यों नहीं आई  टी oo चौराहा या लालकिले पर आकर समझाने का प्रयास किये?क्या केवल मीठा ही खाएंगे आप इस जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं ?

४-आप बिलकुल इस तरह जिद्द पकडे थे की यदि दिल्ली  पुलिस परमीशन न भी देती तो आप ट्रैक्टर रैली निकालने पर आमादा थे और  निकालते भी,तो फिर क्यों न माना जाए की आप पहले से सब प्लान किये हुए थे ?

५-क्या आप ये बताएँगे की यदि केवल और केवल निरस्त ही हल है तो फिर वार्ता का क्या मतलब ?

६-आप ईमानदारी से देश को बताएँगे की आप की और आपके परिवार की कुल कितनी संपत्ति है ?आप बार-बार ये क्यों कहते हैं की जांच करा ले सरकार,आप स्वयं बता डिजियेब जो भ्रम की स्थिति है वो ख़त्म हो।

७-क्या आप जो रेल रोको आंदोलन शुरू करने जा रहे हैं तो इसमें कोई हिंसा नहीं होगी इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी?

८-क्या आप विपक्ष का मंच नहीं बनते जा रहे हैं?

                          अब जो माहौल बनता जा रहा है ये तो हर विरोध को एक बहुत ही मुफीद अवसर दे रहा है,की यदि कोई हिंसा हो कोई अपराध हो जाए तो सरकार जिम्मेदार,कोई पकड़ा जाए तो मासूम है निर्दोष है क्यों पकड़ा गया इसे छोड़ा जाए कौन सा पहाड़ टूट गया,हम सभी उलझ कर इसी में बट  जा रहे हैं और एक तरफ होकर उसी की वकालत करते जा रहे हैं।चलिए अब इसको इस तरह से देखिये कि हर व्यक्यि किसी न किसी पार्टी कि विचारधारा से जुड़ा रहता है तो जो भी पकड़ा जाए कोई न कोई पार्टी उसके पीछे झंडा लेकर खड़ा हो जाए,तो कौन पकड़ा जाएगा,दोषी कौन होगा कोई नहीं,दबाव तो पुलिस पर भरपूर हो जाता है कि किसे पकडे जो वो सही लगे।२६ जनवरी कि ही घटना  को लेलीजिये जो देश को सबसे शर्मसार करने वाली घटना थी,लेकिन इसका दोषी कौन है,एक तरफ आप ये कहते हैं कि सरकार प्रायोजित था तो फिर जो पकडे जा रहे हैं उन्हे निर्दोष आप क्यों बता रहे हैं फिर इसका मतलब आप दोषी को जानते हैं तो पकडवाइये न क्यों नहीं पकड़वा रहे हैं?इसका अप्रत्यक्ष रूप से ये भी अर्थ निकलता है कि कोई भी किसान नेता दोषी हो ही नहीं सकता क्यूंकि उन्होंने पहले ही अपने को क्लीनचिट दे रखा है।अब जरा इसपर गौर करिये कि राकेश टिकैत जी ने २६ जनवरी के पहले देश के सबसे प्रतिष्ठित चैनल पर बैठ कर कहा था कि ट्रैक्टर रैली  में सरकार का प्लान है गोली चलेगी और कम  से कम  १००० लोग मारे जायेंगे,उस चैनल के ऐंकर के पूछे जाने पर कि आप को कैसे पता तो बड़े दावे से कहा गया था हमें पता है,अब बताइये गोली नहीं चाय जब कि लाकिले पर गोली चलने कि पूरी स्थिति पैदा हो गयी थी,अगर चल गयी होती तो फिर आप डंके कि चोट पर कहते कि मैंने सही कहा था ये खूनी  सरकार है इसे जाना चाहिए,लेकिन अब जब नहीं चली तो फिर आप बताएं आप से क्यों न पूछा जाए कि आप ने  स्थिति तो पूरी पैदा की  थी तो क्या ये आप के प्लानिंग में था,लेकिन आप से तो कोई पूछने कि जुर्रत भी नहीं कर सकता क्यूंकि आप तो उतने ही निर्दोष हैं जितना कि कोई पवित्र चीज हो सकती है सच बोलने के लिए तो आप कि कस्मे खायी जा सकती है।आप कि तो हरबात से पवित्रता झलकती है,वो चाहे बक्कल उतारने वाली बात हो या फिर झंडा-डंडा साथ लेकर आने वाली बात हो या फिर दिमाग ठीक कर लेने वाली बात हो,ये तो नासमझ लोग हैं जो इसका गलत अर्थ समझ लेते हैं,आप के रेल  रोको आंदोलन कि घोषणा भी उतना ही पवित्र है जितना कि ट्रैक्टर रैली,मुझे याद है कि २६ जनवरी को घटना के बाद जब उसी प्रतिष्ठित चैनल ने आप से आप कि जिम्मेदारी के बारे में पूछा था तो बहुत अच्छे से अपना पल्ला झाड़ लिए थे,इसी तरह आप आगे भी कर लेंगे क्यूंकि आप के तो दोनों हाथ में लडडू है,सफल हो गया तो आप को १००%क्रेडिट भगवान् न करे कोई अप्रिय स्थिति आती है तो सरकार जिम्मेदार।लेकिन एक चीज हम जरूर जानना चाहेंगे कि २६ जनवरी की घटना का दोषी कौन है?क्यूंकि कोई भी पकड़ा जाएगा तो वो आप सब के नजर में निर्दोष है।उसके लिए आप छोड़ने की मांग से लेकर वकीलों की फ़ौज भी खड़ी करेंगे।

                                 आप थोड़ा विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी पर भी बात होना चाहिए क्यूंकि जिस तरह से उनके तरफ से मात्र एक और एक अजेंडा चलाया जा रहा है किसी तरह सरकार को उखाड़ फेंका जाए,इसी लिए कोई भी घटना घट रही है जिससे देश शर्मिंदा हो रहा है तो भी सब निर्दोष ही बताये जा रहे हैं और डंके की चोट पर,इनके दल के जो अध्यक्ष हैं या थे जो भी माना जाए चीन से लेकर किसान आंदोलन तक बहुत ही बढ़चढ़कर बोल रहे हैं ऐसा लगता है की उनके दल के लगभग ५५ साल के शासन काल  को हमलोगों ने देखा ही नहीं है,चीन की बात करते हैं क्या कभी इतिहास पड़ा है की नहीं सबसे पहले कब चीन ने भारत की भूमि पर कब्ज़ा किया था,चलिए किया तो किया आप जबसे सक्रिय राजनीति में आये तो आप ने उस भूभाग को छुड़ाने का क्या प्रयास किया जरा जनता को बता दें,आप ने कितनी शक्ति से इसपर काम किया था एहि बता दें,पाकिस्तान में कितनी बार सर्जिकल स्ट्राइक किया था ये बता दें,रही बात किसान की तो आप ५६ साल में किसानो के लिए चाहते तो वो काम कर जाते की आज किसान आंदोलन की नौबत ही नहीं आती,जानते हैं जब व्यक्ति को कोई भी पद इस आधार पर मिलती है की ये पारिवारिक पृष्टभूमि है तो उसे उसका महत्व नहीं पता चलता है,आज ऐसी-ऐसी बातें की जा रही की जैसे लगता है की सभी पकडे जाने वाले सबसे अधिक निर्दोष हैं और मासूम हैं,कहीं निहत्ता कहा जा रहा है कहीं उम्र का हवाला दिया जा रहा है,अरे तो फिर आप तो देश के सबसे बड़े देश भक्त हैं और सक्षम भी हैं तो आप ही जो दोषी हो पकड़ कर दे दीजिये,जो खेल अब शुरू हुआ निर्दोष-निर्दोष का इसका असर अब दूर तक जाएगा,जब आप सत्ता में कभी आएंगे तो जो विपक्ष में रहेगा वो खेलेगा,इसका परिणाम ये होगा की देश विरोधी ताकतों के लिए हमेशा माकूल समय रहेगा क्यूंकि सत्ता की भूख के आगे कोई कुछ भी नहीं देखेगा,उसे तो सत्ता चाहिए चाहे कुछ भी अपनाना पड़े,अब आप ही देश को बताएं की जो जगह-जगह से लोग षड़यंत्र करते पकडे जा रहे हैं तो उनको भी निर्दोष बता दीजिये।इसी प्रकार से मैंने देखा की जब दिशा के पकडे जाने पर डिबेट चल रहा था तो उसी चैनल पर एक पार्टी के प्रवक्ता कह रहे थे की इसमें सी आर पी सी/आई पी सी की धारा का अनुपालन नहीं किया गया है,मैं पूछना चाहता हूँ जब संसद पर आतंकी हमला हुआ था तो या फिर ये पता लग जाए की कहीं  पर कोई आतंकी या देश के विरुद्ध साजिश करने वाला छुपा हो तो पुलिस आप के हिसाब  से पहले सी आर पी सी/आई पी सी की धारा पड़े फिर निर्णय ले की क्या करना है,तबतक चाहे कोई घटना ही घट जाए।ये जो खतरनाक ट्रेंड चल रहा है एक न एक दिन सबके लिए भारी पड़ेगा।ये मत समझिये की आज आप को अच्छा लग रहा है तो कल दूसरे को भी अच्छा लगेगा।

                           जिस चीज पर विरोध सबसे जरुरी हो सकता है वो पीछे छूट गया है वो है महगाई,लेकन आप क्या करेंगे क्यूंकि आप की समय भी यही होता था,आप जिस प्रदेश में हैं वहां भी तो कमोबेश यही हाल है,ये सत्ता की लड़ाई है उसके लिए मोहरे तमाम सजाये जाते हैं जो सजाये जा रहे हैं,आप हों या सत्ता पक्षः हो सबके लिए सत्ता सबसे जरुरी है मुर्ख तो हमेशा जनता को बनाया जाता रहा है और इन्ही को बरगलाया जाता रहा है,आप अच्छे से हर चीज का सहारा लीजिये क्यूंकि बिन सत्ता सब सून।और आप तो सत्ता के आदी हैं,दूसरे आप सत्ता की ही परिवार  की एक मुख्या बिंदु हैं,आप अपने ही  सरकार में अपने ही सरकार का पेपर मंच से फाड़ दे,आप संसद में आँख दबा दें या फिर गले पड़ जाएँ सब सही है क्यूंकि आप एक राजघराने से आते हैं।आपने  दो बड़े उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने की बात की है चलिए आप बताइये की आप की जब सरकार थी तो क्या उद्योगपति बहुत परेशान थे,या लिखित में एक वादा देश से करिये की आप जब आएंगे तो इन दोनों की आप सम्पूर्ण जांच कराएँगे और नियमानुसार कार्यवाही करेंगे।ये भी कहा जाता है की बोलने की आजादी नहीं है मेरे समझ में नहीं आया  की आप के कहे मुताबिक यदि नहीं है तो चैनल के डिबेट में और वैसे भी पता नहीं क्या-क्या कहा जाता है,ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है की किसी भी दशा में मर्यादित नहीं कहा जा सकता,तो और कितनी आजादी चाहिए?यूटूब खोलिये तो एक से एक प्रकांड विद्वान् मिल जाएंगे जो क्या-क्या नहीं प्रवचन देते हैं और क्या -क्या नहीं कहते अब कितनी आजादी चाहिए,सच पूछिए तो अपने देश में बोलने की ही तो भरपूर आजादी है वो चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष,लेकिन यहाँ पर जो विपक्ष है वो सभी घटनाओं पर प्रतक्रिया नहीं देता है,उसे जो अपने मतलब का लगफट है उसी पर देता है। 

                                      मेरा तो ये मानना है की सत्ता ही सर्वोपरि है,सत्ता बिना आप हो या सत्ता पक्ष  हो किसी का काम नहीं चलना है,लेकिन इसके लिए क्या देश के सम्मान के साथ खिलवाड़ होगा,क्यूंकि यदि कोई दोषी नहीं है तो फिर घटना होने दिया जाए क्या करेंगे कार्यवाही करके,अब तो नए ट्रेंड पर काम किया जाए,की न न्यायलय  का मानना पुलिस का तो बिलकुल नहीं,सरकार तो सवाल ही नहीं फिर तो आप सब ही निर्णय लें की क्या सही है क्या गलत है,एक बात उन प्रसिद्ध टी वी चैनलों से भी कहनी है की इस समय सबसे बड़ी जिम्मेदारी आप के ऊपर है आप टी आर पी का चक्कर छोड़कर यदि कोई भी नेता चाहे वो सत्ता पक्ष का हो,विपक्ष का हो या फिर किसान नेता ही क्यों न हो यदि दोषी  प्रथम दृष्टया अपने व्यक्तव्यों या फिर कर्मो से है तो कृपया करके उसको इतना महत्व मत दीजिये की गलत से सही या फिर विलेन से हीरो नजर आने लगे,क्यूंकि यदि आप के चैनलों की प्रसिद्धि है तो वो भरोसा न टूटे।

                     अंत में सत्ता में बैठे लोगों से भी आशा है की वो आगे बढ़कर तुरंत बिना छोटा-बड़ा के भेदभाव के किसान आंदोलन समाप्त कराएं और देश में इसके आंड में किसी भी प्रकार से कोई देश विरोधी हरकत करने की किसी को भी इजाजत न दें,क्यूंकि कोई भी हरकत होगी तो इसके छीटों  से आप भी बच नहीं पाएंगे,आप इस जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ पाएंगे की आप ने इस आंदोलन को इतना लम्बा क्यों खींचने दिया।सबसे बड़ी जिम्मेदारी ये आप की ही है,किसान आंदोलन का शांतिपूर्ण समाधान देश के लिए बहुत आवश्यक है,इसे किसी को भी लाभ लेने के अवसर में न बदलने दिया जाए।मेरा देश ही सर्वोपरि है इसी को सर्वोपरि माना जाये,और निष्पक्ष होकर उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही हो जो भी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो लेकिन पूरी पारदर्शिता के साथ,और इसमें किसी भी दशा में न झुका जाए चाहे कोई कितना भी प्रोपोगंडा ही क्यों न करे,तभी किसी की भी हिम्मत नहीं पड़ेगी की वो दुबारा ऐसी गतिविधि कर पाए।मेरा भी स्पष्ट मानना है की जो वास्तव में किसान हैं वो देश के सच्चे सिपाही हैं,उनकी तुलना जवानो से इसीलिए की जाती है लेकिन नेता भी वैसे तभी रह पाएंगे जब उनका अजेंडा बिलकुल निष्पक्ष हो।सबसे मेहनतकश और छोटे किसानो के नाम पर राजनीतिक एजेंडा न बनने दे ये सरकार की जिम्मेदारी है।

                                                   जय जवान-जय किसान ।। 

                                  

                                   

                                  



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