आग ! - समझाविश बाबू - हिंदी ब्लॉग

आग की उत्पत्ति को लेकर अनेक मत है,सबसे प्रचलित मत है आदिमकाल में जब मानव जंगलों में घूमा करता था,तब कहीं न कहीं उसे पत्थरों की रगड़ से उत्पन्न चिंगारी ने उसे पहली बार आग का आभास कराया होगा,धीरे धीरे यही विकसित होकर आज के आधुनिक साधन का रूप धारण किये।

आज अत्याधुनिक से अत्याधुनिक विधि है आग लगाने के लिए,और ये एक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गयी है,कदम-कदम पर इसकी आवश्यकता महसूस भी होती है।आप देखें सुबह नाश्ते से लेकर रात के भोजन तक आग की जरुरत अनिवार्य है, बिना उसके हमारा जीवन निरर्थक हो जायेगा,ये अलग बात है की आप किस विधि को आग के लिए अपनाते हैं,ये आप पर निर्भर करता है,आप ये कह सकते हैं की बिना आग के भी हम भोजन कर सकते हैं,दूध,फल आदि की हमारे पास वैकल्पिक व्यवस्था है,लेकिन अन्य आवश्यकताएं भी तो है,आग का प्रयोग तो करना ही पड़ेगा,हम एक तरह से इसके आदी हो गए हैं,हाँ ये अवश्य है की यदि हम इसका उपयोग अपने लाभ के लिए या यूँ कहें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए करते हैं तो ये भी हमारी जरूरतों को पूरा करता है,लेकिन यदि हम दुश्मनी के लिए करते हैं या फिर लापरवाही से प्रयोग करते हैं तो इसका इतना विकराल रूप हो जाता है की संभाले नहीं संभलता है और इतना नुक्सान कर जाता है इसकी भरपाई जीवनपर्यन्त तक नहीं कर पाते  हैं।आग का मद्धम लौ जहाँ अच्छा लगता है वहीँ विकराल रूप अत्यधिक डरावना लगता है।मद्धम लौ में डिनर तो प्रसिद्ध  है। 

                                      ये जो हमने बात की वो आग दिखाई देने वाला है,जिसे हम समय रहते काबू में पा लेते हैं,इसे काबू में करने के लिए तरह-तरह के उपक्रम अपनाये जाते हैं,कहीं,बालू,कहीं पानी,और कहीं कम्बल या बोरा  का प्रयोग भी करते हैं,लेकिन इस लिए करते हैं की हमें आग दिखाई देता है।परन्तु यदि जो आग दिखाई न दे उसे कैसे बुझाएंगे,ये वो आग है जिसे हमारे ही बीच के लोग लगाते हैं,इसे षड्यंत्रों का आग कहा जाता है,इसे लगाने के लिए न तो माचिस,न ही गैस और न ही विस्फोटक पदार्थ चाहिए,इसे अपने शातिर दिमाग से लगाते हैं,इसका रॉ मैटेरियल इनके दिमाग से ही उत्पन्न होता है हाँ ये अवश्य है उसे अत्यधिक क्रियाशील करने के लिए अपनी जहरीली जुबान और जहरीले विचार को ज्वलनशील पदार्थ के रूप में प्रयोग करते हैं,जो आग प्राकृतिक  या मानवी भूलों से लगती है,क्यूंकि वो दिखाई पड़ती है तो उसे बुझाने का प्रयास हो जाता है और सरकारी मशीनरी के साथ आस-पास के सहयोग से इसपर काबू पालिया जाता है,इस आग में किसी का भी घर जल सकता है,किन्तु जिस आग की ऊपर बात की गयी है इसकी सबसे बड़ी विशेषता होती है की इसमें उस व्यक्ति को आग से नुक्सान नहीं पहुँचता है जिसके द्वारा आग लगायी जाती है,वो केवल दूसरों को ही नुक्सान पहुंचाती है,इसे लगाने में सबसे ज्यादा निपुड़ तथाकथित नेता,तथाकथित धर्म के ठेकेदार,और किसी भी वर्ग के तथाकथित स्वयंभू नेता,जिनको अपना फ़ायदा सबसे महत्वपूर्ण दिखता है,कभी-कभी तो देश को भी भुला बैठते हैं।यहाँ एक व्यक्ति भी हो सकता है,एक समूह भी हो सकता है और उसके पीछे एक झुण्ड भी हो सकता है।इसका सबसे बड़ा नुक्सान ये होता है की इतने सुनियोजित तरीके से ये आग लगायी जाती है की कोई भी भीड़ ये समझने को तैयार ही नहीं होता है की वास्तविकता क्या है बस हो-हो करके पीछे लग जाता है और जो आग लगाने वाले का मकसद होता है उसमे वो कामयाब हो जाता है,अब कभी-कभी मीडिया भी इसको हवा  देता है,अब चाहे जो कारण हो टी आर पी हो या फिर अन्य ये तो वही जाने,इस प्रकार के आग का उदहारण आप को कश्मीर से कन्याकुमारी तक मिल जायेगा।इसको लगाने वाली की सबसे बड़ी विशेषता होती है की वो अपने को ऐसा प्रदर्शित करता है की उससे बड़ा पुण्य आत्मा कोई हो ही नहीं सकता और देश का उससे बड़ा शुभचिंतक कोई है ही नहीं,जब की वही सबसे बड़ा दुष्ट और अपने घृणित मंसूबो को फलीभूत करने वाला होता है,कभी-कभी कुर्सी की लड़ाई में बहुत अहम् हथियार  बन जाता है,ये इसका सबसे घातक वर्जन आप को पश्चिम बंगाल में देखने को मिल जायेगा,एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप   लग   रहा  है  आग  लगाने  का,पर कुछ  परिणाम  नहीं  निकल  रहा  है, पहले  वाले  आग  के  प्रकार  में आप कई  तकनिकी का  इस्तेमाल  कर  के  आग  का  कारण  जान  लेंगे  पर इस  आग  में नहीं,हाँ  ये  हो  सकता  है  की  आधुनिक  माध्यम जैसे   सी  सी  टी  वी  आदि  से  कुछ  चेहरे  पकड़  में आ  जाएँ  पर परदे  के  पीछे  का  मास्टरमाइंड  नहीं  पकड़ा  जा  सकता  है,बहुत  ही  कठिन  ही  नहीं  असंभव  सा  है,यही चीज़  26 जनवरी  के  घटना  में भी  चरितार्थ  होगा, देखिये अभी आप के सामने कई विदेशी नाम रिहाना,मिया खलीफा जैसे लोगों का  सामने आया  और इसे लेकर हमारे यहाँ पक्ष-विपक्ष का वाद-विवाद शुरू हो गया,कुछ अच्छे लोग सम्मानित लोग देशहित में इसका विरोध किये तो कुछलोग इसके समर्थन में भी आ गए ,  लेकिन मास्टरमाइंड सामने नहीं आ पायेगा,इस  आग  की  एक और  विशेषता  है  की  हर  लाभ  लेने  वाला  व्यक्ति  दूसरे पर आरोप लगाएगा  और  यदि  कोई  पकड़ा  भी  जायेगा तो  बचाने  के  लिए  भी  इन्ही  में से  कई  खड़े  हो  जाएंगे,ये  आग -आग  का  खेल  अब  बढ़ता  ही  जा  रहा  है,ऐसा  न  हो  की  किसी  दिन  ये  ज्यादा  विकराल  रूप  ले  ले  और  बुझाये  न  बुझे,अभी देखिये एक नया शब्द आया हैं टूलकिट का जिसके माध्यम से आग फ़ैलाने की कोशिष थी,अज्ञात  के नाम प्राथमिकी भी दर्ज कर लिया गया,अब खोजते रहिये असली व्यक्ति को,कहते रहिये अंतर्राष्ट्रीय साजिश है पर असली चेहरा कब सामने आएगा,हमारे देश में भी इसे भुनाने वालों की कोई कमी नहीं है,क्यूंकि इसका परिणाम क्या होगा इससे उनको मतलब नहीं है,उनको तो अपना मकसद दिखाई देता है की उनका कितना हित सधेगा यही उनका मूल उद्देश्य होता है बाकी सब गौंड,ये आग की चिंगारी कब किस क्षेत्र में लावा बन जायेगा ये कोई नहीं जानता है,ये केवल लगाने वाला जानता है,यदि धीमी है तो अपने दिमागी टूल किट से उसको तरह-तरह से हवा देगा,और अंत में सफल होकर ही मानेगा।इस प्रकार के आग में सबसे माहिर राजनीतिक खिलाडी होते हैं,उन्हे मास्टर की डिग्री प्राप्त होती है या यूँ कहें वो डॉक्टरेट भी किये होते है,और अपने  बचाव में सबसे अधिक और बड़ियाँ तर्क गड़ेंगे और ऐसा प्रदर्शित करेंगे की वो ही सबसे बड़े वाले देश के शुभचिंतक हैं बाकी सब तो बेकार है।ये इतने सिद्धहस्त होते हैं की लगाने वाला आप के साथ भी खड़ा होगा तो उससे ज्यादा निर्दोष व्यक्ति कोई दिखेगा  ही नहीं,लगी हुई आग पर सबसे ज्यादा दुखी और आंसू बहाता हुआ वही मिलेगा,ऐसा लगेगा जैसे उसी का घर जल गया हो,इतना  मासूम चेहरा बनाएंगे की आप को ही रोना आ जाएगा,लोग कहते हैं क्यूंकि जहाँ भी इस तरह की आग लगती है वहां केवल एक-दूसरे पर दोनों तथाकथित लोग आरोप-प्रत्यारोप लगाते  मिल जाएंगे,लोग कहते हैं की बॉलीवुड के फलां कलाकार बहुत अच्छी एक्टिंग करता है लेकिन मेरा मानना है की वो भी इनसे अच्छी नहीं कर सकता है,क्यूंकि फिल्मो में तो रोने के लिए ग्लिसरीन आदि का प्रयोग करते हैं पर ये तो बिना ग्लिसरीन के बखूबी रो देंगे,आप को लगेगा की कितना दुखी आदमी है पर आप नहीं जान पाएंगे की कितना बड़ा शैतान है,इस आग की एक और ख़ास बात होती है की लगाने वाला ही सबसे अधिक शोर मचाता  है की आग लग गया-आग लग गया और अंदर ही अंदर उसके मन में लड्डू फूटता रहता है,और अंदर ही अंदर उसके आवाज आती रहती है की सफल हो गया-सफल हो गया।आप खुद देख लीजिये आजकल चल  रहा है की विदेश से  जो ट्वीट  किया जा  रहा है वो चिंगारी बन सकती है,और उन्हें हमारे देश के मामलों में बोलने का कोई हक़  नहीं हैजो की निष्पक्ष रूप से देखा  जाए तो सही भी है,किन्तु हमारे यहाँ समर्थन देने वालों की कमी नहीं है,और बढ़चढ़  कर तर्क  भी दे रहे हैं और देते रहेंगे,क्यूंकि इसी में उनका हित है जो उनका प्रथम लक्ष्य है,वो पूरा होना चाहिए चाहे जैसे हो विदेषी टॉनिक मिले तो वो ही सही,इसी लिए कह रहा हूँ की ये गजब की आग है इसे कोई न देख सकता है न समझ पायेगा,ये अदृश्य आग है,और इसे हमारे देश में सबसे ज्यादा राजनीतिक खाद और पानी और न जाने  क्या-क्या दिया जाता है,इसी के बलबूते पर ये ज्यादा फल-फूल रहा है,अजब आग की ये गजब कहानी है,हर तरफ धुंवा ही धुंवा और बेईमानी है,कौन बुझाये आग जब चिंगारी ही चिंगारी है।हमारे यहाँ एक और विशेष बात है की बहुत से ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवी  मिल जायेंगे राजनीति की तरह दो खेमो में बटकर एक से एक तर्क अपने पक्ष में गड़कर चासनी लगाकर प्रस्तुत करेंगे जब की बुद्धिजीवी का काम होता है की जो गलत हो उसको एकमत से सभी गलत कहें।इनके प्रवक्ता बैठ जाएंगे टी वी डीबेट पर और ऐसे रियेक्ट करेंगे की वो जो कह रहें हैं वो ध्रुव सत्य है,इतना ज्ञान बघारेंगे की लगेगा उनसे बड़ा धरती पर ज्ञानी कोई है ही नहीं,और सबसे बड़ी खासियत इनकी ये होती है गलत बात को भी इतने अच्छे से कुतर्कों द्वारा बचाव करेंगे की बड़े से बड़े ज्ञानी शर्मा जाएँ,मुझे खुद भी कभी-कभी लगता है की मेरी पड़े जीरो है,असली हीरो तो यही हैं इसी लिए मई सूखी  रोटी और वो दूध मलाई खा रहे हैं,मेरे अंदर से अक्सर एक आवाज निकलती है काश हम भी किसी दल के प्रवक्ता हो जाते तो मेरे भी चेहरे से नूर टपकता न की चिंताओं का अम्बार झलकता।सही है ये बोलने का ही कहते हैं। 

                                           आज समय आ गया है ऐसे लोगों को बेनकाब करने का,ये चाहे जो भी हों या कितने भी प्रभावशाली हों,ये भीड़ में मासूम बनकर न छिप पाएं यदि भीड़ में आएं तो गुनहगार तुरंत समझ में आ जाएँ,भीड़तंत्र बनकर हमें इनके पीछे नहीं घूमना है,इन्हे समाज में नंगा करना है और बेइज्जत  करना है,किसी को भी इस तरह का आग लगाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है,कोई भी हो वो चाहे  भाषण  से,या फिर मैसेज से,या किसी भी अन्य   प्रकार से आग लगाने की कोशिष करे  तो उसे  किसी भी दशा  में भीड़ का सहारा  न मिल पाए  वो चाहे कितना भी सक्षम  क्यों  न हो उसे  बेनकाब कर सहीमुक़ाम  पर पहुँचाना  होगा अन्यथा जो हालात चल रहे हैं वो हमारे सच्चे लोकतंत्र और समाज के लिए अच्छा नहीं रहेगा।आग लगाने वाले चारो ओर घूम रहे हैं इन्हे जल्द से जल्द पकड़ना और पहचानना होगा,और सख्त कार्यवाही करनी होगी,अन्यथा हम केवल विदेशी हाथ है और ये है और वो है इसी में उलझे रह जायेंगे,अपने बीच में उपस्थित विभीषण को पहचानना होगा,तभी देश का भला हो पायेगा।ये भी हमें आपको सोचना होगा की आज के समय में रावण की बहुतायत हो गयी है यहाँ ये निर्विवाद सत्य है की आग चाहे जैसे भी लगे या किसी के द्वारा लगे उसे बुझाने का  पूर्ण  दायित्व  सत्ता पर बैठे लोगों  का ही है,उन्हें चिंगारी  को आग नहीं बनने देना चाहिए,यही  कौशल है की किस तरह से सही ढंग से और सही विकल्प और सही तरीके से इसे बुझाने का पहल करते हैं की आग भी बुझ जाए और नुक्सान भी कम  से कम  हो और घृणित लोग अपने मनसूबे में कामयाब न हो पाएं,इसमें कोई अहम् आड़े नहीं आना चाहिए,तभी अमन चैन भी स्थापित हो पायेगा।जब  तक हम गिरगिट  के  सरदारों  को बेनकाब नहीं करेंगे तब तक हम देश में स्थायी रूप से अमन चैन नहीं स्थापित कर पाएंगे।इनके मकसदों को समझना होगा और इनके नापाक इरादों को कुचलना होगा तभी हम सुख-शांति  से रह पाएंगे।   

                                            जय हिन्द जय समाज ।। 

टिप्पणियाँ

  1. कृष्ण वैध अच्छा लेख है , सच तोह ये है कि मोदी सरकार सबको सम्मान दे रही वरना भूले ही है एक सरकार वो भी थी जिसने रात में बाबा रामदेव पे हमला करवाया था। सभ्य सरकार है मोदी सरकार हर सच्चा इंसान साथ हैं हमारे मोदी जी के साथ।

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