एक खतरनाक संकेत - समझाविश बाबू - हिंदी ब्लॉग

अमेरिका विश्व का सबसे पुराना  लोकतंत्र  है,यहाँ १८०४ में चुनाव की शुरुआत हुई थी,जब की दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र राज्य का गौरव भारत को प्राप्त है।सच पूछिए तो सभी लोकतंत्र की खूबी प्रजा के हित  को सर्वोपरि मान कर कार्य किया जाना है।इसीलिए आज भी अब्राहम लिंकन द्वारा जो बात १८१८ में कही गयी थी की लोकतंत्र जनता का,जनता के लिए और जनता द्वारा शासन प्रामाणिक मानी जाती है,उसे ही आइडियल वाक्य माना जाता है।वर्तमान में सामान्यतया दो प्रकार के लोकतंत्र विद्यमान है,एक संसदात्मक और दूसरा अध्यक्षात्मक।लेकिन दोनों का मूल लोकतंत्र ही है।जहाँ लोकतंत्र पर कुठाराघात किया जाता है वहां के शासक और सत्ता द्वारा तो वहीँ पर देश खतरे में पड़ना तय हो जाता है।जब सत्ता की भूख सर्वोपरि हो जाता है तब लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाता है।प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक ये देखा जा सकता है,जब सत्ता स्वयं के लिए सर्वोपरि हो जाये तब लोकतंत्र कैसे बचेगा ?



                          आज जो अमेरिका में संसद में घटना घटी,इसे क्या कहा जा सकता है,एक बड़ी भीड़ का संसद में घुस जाना और उसे एक तरह से बंधक बनाने का प्रयास होना ये किस लोकतंत्र को दर्शाता है,और सबसे दुखद और आश्चर्य जनक पहलू ये है की सत्ता के लिए उकसाया जाना।राष्ट्रपति पद का चुनाव हार जाने के बाद सत्ता हस्तांतरण के पूर्व जनता को उकसाना ये लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता है।अमेरिकी संसद में कुछ समय के लिए जो अराजकता की स्थिति बनी थी वो पुरे विश्व को शर्मशार करने वाली घटना थी।इसका किसी भी तरह से समर्थन नहीं किया जा सकता है,अगर देखा जाये तो डोनाल्ड ट्रंप का पूरा कार्यकाल ही तरह-तरह के स्टेट्मेंटों के लिए विख्यात था,कभी -कभी तो लगता ही नहीं था की इतने बड़े देश के राष्ट्राध्यक्ष के द्वारा ये बात कही जा रही है,ये सब तो चल गया किन्तु सत्ता के लिए जनता को उकसाना,बार-बार चुनाव में बेईमानी की बात करना,ये सबसे दुखद और हास्यास्पद पहलू है।यदि आप को चुनाव में कोई अनियमितता लगता है तो आप न्यायिक प्रक्रिया अपनाएंगे की अपनी सत्ता के लिए गृह युद्ध की स्थिति तक पहुंचाने में नहीं हिचकेंगे।ये घटना ये दर्शाता है कि किसी  एक शासक को सत्ता कि भूख सबसे बड़ी लगती है,न कि राष्ट्र,सत्ता के हस्तांतरण के अंतिम समय तक उचित-अनुचित सभी प्रयास कर लेना कि सत्ता बची रह जाये चाहे देश शर्मसार हो जाये।यही डोनाल्ड ट्रम्प ने करने का प्रयास किया जिसे कहीं से भी जायज नहीं नहीं ठहराया जा सकता है,ये निंदनीय ही नहीं घोर अनुचित कार्य था,ये लोकतंत्र   पर एक काला बदनुमा दाग कि तरह सदैव चर्चा में रहेगा।

                                   आज इस घटना को लेकर जहाँ पुरे विश्व में चर्चा हो रही है वहीँ हमारे देश में खूब चर्चा-परिचर्चा हो रही है,तमाम चैनलों पर डिबेट हो रहे हैं सभी अपनी-अपनी तरह से व्याख्या में लगे हैं,क्यूंकि हमने देखा है की डिबेट में बैठे लोग अपने को पूर्णरूपेण पारंगत समझते हैं क्या-क्या व्याख्या किन-किन विषयों पर करते हैं,सुनकर कभी-कभी यही लगता है की जैसे कोई मसालेदार  सीरियल देख रहे हों जिसमे एक्शन,ड्रामा और इमोशन सभी भरा पड़ा है।अमेरिका की घटना हमें एक खतरनाक संकेत दे रही है,और ये भी कहा जा सकता है की पुरे विश्व को दे रही है।हमें तो अपना घर देखना है,आप सोचिये विगत मात्र ४०-५० वर्षों में ही धीरे-धीरे किस तरह से से पक्ष-विपक्ष का सम्बन्ध बिगड़ता जा रहा है जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है,जो-जो तरीके अपनाये जा रहे हैं क्या ये एक शुभ संकेत है?एक दूसरे को नीचा दिखाने में जिस तरह मर्यादयों को तार-तार किया जा रहा है,क्या ये एक शुभ लक्षण है,किसान आंदोलन जिस तरह से लम्बा खिचता जा रहा है और पक्ष-विपक्ष का मैदान बनता जा रहा है क्या ये एक शुभ लक्षण है,हर छोटी-बड़ी घटना जिस तरह से  नाक का बाल बनता जा रहा है क्या ये एक शुभ लक्षण है,वैक्सीन को लेकर जो राजनीति शुरू हुई है क्या ये एक शुभ संकेत है,हर घटना के पीछे दो महत्वपूर्ण व्यक्तिओं का नाम उछलना की इनके ही लाभ के लिए सब ताना-बाना बुना जा रहा है ये एक शुभ लक्षण है,किसी भी देश हित की समस्या के समाधान की जगह उसे अपने-अपने फायदे के लिए राजनीतिक जामा पहना  देना क्या हम इसे एक अच्छा संकेत मान सकते हैं,अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों तक को जिस तरह से तर्कों-कुतर्कों,और जाने क्या-क्या बात कह कर उसे भी राजनीतिक बना देना क्या अच्छी बात है,याद करिये चाहे सर्जिकल स्ट्राइक रहा हो या फिर पुलवामा जैसी वीभत्स घटना रही हो सभी में खुलकर राजनीति हुई,सारे मर्यादाओं को तार-तार कर दिया गया।जब भी चुनाव होते हैं तो रिजल्ट के बाद ई वी ऍम मशीन को लेकर इतना हाय-तोबा मचता है समझ में ही नहीं आता है की चुनाव सही हुआ या गलत।जिस तरह से सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहा है जिस तरह से एक माहौल गरमा रहा है तो दूसरा भी न झुकने की जिद्द इस कारण से कर रहा हो की ये पक्ष-विपक्ष की हार जीत का प्रश्न बन जायेगा तो फिर इस संकेत को क्या मानेंगे।कब छोटी सी घटना ही धीरे-धीरे बड़ी घटना का रूप ले लेती है,ये कोई नहीं बता सकता है,हमारे यहाँ एक पहलू निश्चित ही गंभीर और शोचनीय बनता जा रहा है कि कहीं भी कोई समस्या पर  बात हो रही है है तो तुरंत वो सत्ता और विपक्ष का बन जा रहा है और समस्या  का मूल गायब हो जा रहा है दोनों ऒर से कमर कस  लिया जा रहा है और एक दूसरे को शह और मात देने और न झुकने का खेल शुरू हो जा रहा है,सब एक दूसरे को नीचे दिखाने के लिए १०० साल तक के पुराने इतिहास एक दूसरे का बताने से नहीं हिचक रहे,समस्या अपनी जगह पड़ी है।इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण किसान आंदोलन है,जिस तरह से वार्ता पर वार्ता चल रही है कोई झुकने को तैयार नहीं है और विपक्ष इसे हवा दे रहा है,दोनों ऒर से तीर पर तीर चलाये जा रहे हैं,किसान पीछे हो गया है सत्ता और विपक्ष आमने-सामने हो गया है।मुझे  अभी  तक ये समझ  में नहीं आया  कि जब  किसान नेता  कह  रहे हैं कि तीनो  कानून  निरस्त  हो और सरकार  कह  रही है कि संशोधन  हो सकता है वापस नहीं,तो वार्ता किस बात पर हो रही है,फिर तो वार्ता का मतलब क्या,मात्र  वार्ता के नाम पर वार्ता हो इसका अभिप्राय नहीं समझ में आ रहा है,यहाँ एक चीज तो हो सकता है कि संशोधन बना  के रखा जाये और किसान भी उसपर गौर करें कि क्या इससे उनका मकसद  पूरा होता है तब तो सार्थक प्रयास माना जायेगा,और एक चीज तो अवश्य करना चाहिए कि वार्ता में केवल और केवल किसान नेता हों किसी भी दल का कोई नेता सम्मिलित न किया जाये जिससे सत्ता पक्ष को ये कहने  का मौका  न मिले  कि ये राजनितिक  हो गया है और अपना मंच भी किसी भी राजनीतिक दल को शिरकत न करने दें ।अब यहाँ ये भी समझने कि बात है कि ये जो चिंगारी के रूप में आंदोलन बढ़ रहा है यदि इसे सही ढंग से हल नहीं किया गया और केवल प्रेस्टीज कि लड़ाई बनाई गयी तो ये ही सब विकराल रूप धारण करती है।यहाँ भी सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि सत्ता और विपक्ष के मूछ कि लड़ाई नहीं बनानी है,इसे जो सही वो करना है।इसका सबसे दुखद पहलू तब हो जाता है जब बाहर के लोग इसपर जाने-अनजाने टिप्पड़ी करते हैं जो बिलकुल अनुचित है।

                                     आज जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप ने माफ़ी मांग ली चलिए ये लोकतंत्र के लिए ठीक है,लेकिन आग लगाकर माफ़ी मांगना उनके दोष को कम नहीं करता,इसके लिए उन्हें दोषी माना ही जायेगा।सबसे सुखद पहलू ये है कि डोनाल्ड ट्रंप के साथ काम करने वालों ने जिस तरह से इस्तीफे कि झड़ी लगा दी वो लोकतंत्र के लिए शुभ लक्षण है।इन  घटनाओं  से हमें भी सबक  लेने  कि जरुरत है कि सत्ता पक्ष विनम्र  और विपक्ष अच्छे  कार्यों  में सहयोगात्मक  रवैया  अपनाये तभी  देश सही ढर्रे  पर चलेगा,अन्यथा जो कटुता का माहौल सत्ता पक्ष और विपक्ष में बनता जा रहा है ये अपने  राष्ट्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।यह अवश्य है कि हमारे लोकतंत्र कि जड़ें बहुत ही मजबूत है लेकिन इसे खोदने का प्रयास न किया जाये अन्यथा खतरा कहीं भी उत्पन्न  हो सकता है हमें सावधान  रहने कि जरुरत है।देश हित ही सर्वोपरि है ये सोचना सभी का धर्म है।हर दल और हर व्यक्ति से बड़ा देश है यही सभी को सोचना होगा ये ही हम सभी का मूलमंत्र भी होना चाहिए।

                                     जय हमारा देश जय हमारा समाज ।।   

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