देश का बेहतरीन उद्योग - समझाविश बाबू - हिंदी ब्लॉग
आप सोच रहे होंगे की आज हम किसी बड़े उद्योग की बात करेंगे जो बड़े परिश्रम से कैसे खड़ा किया जाता है ? बात भी सही है कि एक छोटे से लेकर बड़े उद्योग को स्थापित करने में अथक परिश्रम कि आवश्यकता होती है,और उसको कामयाब बनाने तथा विस्तार करने में एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है,उसे संचालित करने और सुन्दर मैनेजमेंट देने के लिए कुशल बुद्धि लगानी पड़ती है,साथ ही उससे निकलने वाले उत्पाद को खुले बाजार में स्थापित करने के लिए तरह-तरह के प्रयोग करने पड़ते हैं,तब कहीं जाकर एक मुकाम हासिल कर पाते हैं।इसमें बहुत ही प्रर्तिस्पर्धा का भी सामना करना पड़ता है,अच्छी किस्मत कि भी आवश्यकता होती है,देखिये कैसे एक व्यक्ति कुछ ही वर्षों में पुरे उद्योग जगत में छा गया और देशी का नारा देकर एक सफल उद्योगपति बन बैठा।आज लोगों के लिए एक उदहारण बन बैठा,इस उद्योग में समाज का नब्ज यदि आप अच्छी तरह पकड़ पाते हैं तो सफल होने में देर नहीं लगती है,मन कि क्रिया सीखने वाला व्यक्ति सबसे जल्दी नब्ज पकड़ सकता है ये साबित हो चूका है।
लेकिन आज हम कुछ अलग टाइप के उद्योग कि बात करना चाहते हैं,हमारे यहाँ राजनीति भी एक ऐसा उद्योग है कि जिसमे यदि आप सफल हो गए तो फिर पौबारह है,दसो उँगलियाँ घी में और सर कड़ाही में,इसमें कोई मशीनरी नहीं स्थापित करना होता है और न ही उद्योग जैसा श्रम या दिमाग लगाना पड़ता है,हाँ इसमें पब्लिक का नब्ज पकड़ने कि कला सबसे अधिक आना चाहिए,इस उद्योग को स्थापित करने के लिए चालाकी,औवल दर्जे कि चतुराई,छल-फरेब,सब आना चाहिए।स्थापित करने में थोड़ा मेहनत और शातिराना दिमाग लगता है,लेकिन एक बार स्थापित होने के बाद फिर तो जलवा ही जलवा।इसमें एक चीज और होता है कि हर वो व्यक्ति जो इससे जुड़ा होता है भले वो कुछ भी न हो पर एक कहावत उसके ऊपर चरितार्थ होती है कि''हमरे पास कुछ नाही बा पर बकैती भरपूर बा'',इस उद्योग कि एक अद्भुत खासियत होती है है कि एक बार अगर चल निकला तो फिर रेलम-पेल चलता है,यदि पूरा उद्योग अपने नियंत्रण में होता है किसी पार्टनर कि जरुरत नही पड़ता है फिर तो बुलेट ट्रैन के माफिक चलता है और छोटे-मोटे अवरोध तो स्वयं उखड़ जाते हैं,और जो अड़ने कि कोशिस करते हैं वो भी नही टिक पाते हैं,हाँ ये अवश्य है कि एक बार स्थापित करने में शाम-दाम-दंड-भेद सभी का अच्छे से इस्तमाल करना पड़ता है,ये स्थापित करने वाले कि कारीगरी पर निर्भर करता है।इसे स्थापित करने के लिए पब्लिक की भावनाओं से भी अच्छी तरह खेलना आना चाहिए,इमोशनल कार्ड खेलने की कला में महारत होना चाहिए।कुछ तो इतने माहिर होते हैं की चेहरे का एक्सप्रेसन इतना बड़ियाँ मौके के अनुसार पब्लिक में देते हैं की अच्छे से अच्छा कलाकार भी उनके आगे फेल हो जाये,यही कला उनको समाज में वाह-वाह करा देती है।इस उद्योग में रॉ मटेरियल के रूप में किसी खनिज या अन्य सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती है,न ही इसमें कोई पैसा खर्च करना पड़ता है,इसके रॉ मैटेरियल के रूप में जाती,धर्म,गरीबी,क्षेत्रवाद ,सम्प्रदायवाद,भावुकता,झूठे वादे,राष्ट्रवाद,आदि का इस्तेमाल बखूबी किया जाता है और जो जितना बड़ियाँ तरीके से करता है वही सबसे सफल उद्योग चलाता है,उद्योग की स्थिरता भी उसकी महारता पर निर्भर करती है।इसकी खूबियां बहुत है जिसका उद्योग तेजी से चल रहा होता है,उसका उद्योग एकदम पाकसाफ होता है इस भट्टी में बड़ा से बड़ा अपराधी,माफिया भी आकर शुद्ध व पाकसाफ हो जाता है और एक मसीहा बन जाता है,जिसके पीछे पुलिस भागती थी अब उसके पीछे सायरन बजाते हुए सुरक्षा में चलने लगती है,इतना तेज और द्रुत परिणाम देने वाला कोई उद्योग आप को अपने देश क्या विदेश में भी नहीं मिलेगा।इस उद्योग की एक और खासियत है की जो वर्तमान में चल रहा होता जिसने एक उद्योग जो सफलतापूर्वक अपने हथकंडों के द्वारा स्थापित की थी उसे दूसरे ने अपनी मजबूत रॉ मैटेरियल के सहारे विस्थापित कर दिया,तो जिस चीज को लेकर वो पहले के उद्योग के खिलाफ दुष्प्रचार करता था की इनका प्रोडक्ट समाज के लिए घातक है,अनुपयोगी है,गरीबों के लिए कष्टकारी है,अपना उद्योग स्थापित होने के बाद उन्ही सब चीजों को वो भी अपना लेता है नए फ्लेवर में और वो सब चीज इनके उद्योग में अच्छा हो जाता है,इसी तरह से जो व्यक्ति पुराने उद्योग में अपराधी,माफिया के श्रेणी में आता था वो अगर उनका उद्योग ज्वाइन कर लिया तो वो इस मशीन में धुल कर एकदम साफ़ हो जाता है,इतनी बड़ियाँ मशीन आप को कहीं नहीं मिलेगा,इसमें और एक विशेषता है की यदि आप का उद्योग मन्दी के दौर में चला जाता है और कोई दूसरा उधोग तेजी से विकसित हो जाता है तो कोई बड़ी बात नहीं है आर्थिक रूप से पुराना उद्योग भी इतना मजबूत हो जाता है की उसे किसी दूसरे का मुँह नहीं देखना पड़ता है क्यूंकि वो काफी समृद्ध हो जाता है,जो वास्तविक रूप से देश के बड़े उद्योगपति होते हैं वो भी इसे खाद-पानी प्रचुर मात्रा में देते रहते हैं और जो लहलहाती फसल तैयार होती है उसे वो भी काटने में सहभागी(पीछे के द्वार से)हो जाते हैं।इनका किरदार बहुत ही प्रभावशाली रोल अदा करता है इस राजनीतिक उद्योग में,बस अंतर ये रहता है की सब गुप्त रूप से होता है,हाँ चर्चा यत्र-सर्वत्र होता रहता है।वास्तविक उद्योग वाले समय और समय की धार देख कर फैसला लेते हैं और पीछे से मजबूत पिलर की भांति थामे रहते हैं। जैसे-जैसे आधुनिकता आती जा रही है वैसे-वैसे इस राजनीतिक उद्योग में भी अपना प्रोडक्ट बड़ियाँ बताने के लिए मीडिया का भरपूर सहारा लेना पड़ता है,ये इस समय एक सबसे शक्तिशाली जरिया बनता जा रहा है।इस उद्योग को अत्यंत नया व सफल कलेवर देने के लिए कई आधुनिक चाडक्य भी उभर आये हैं जो बड़े जोरशोर से ये दावा करते हैं की उनके हाथ में जादू है उनके छूने से और उनके बुद्धि कौशल से ये उद्योग चमक जायेगा,उनकी बड़ी पूँछ भी रहती है,हाँ ये अवश्य है की इस उद्योग में डाक्टर की तरह नाड़ी विशेषज्ञ होना पड़ता है और साथ में पूरे समाज को पड़ने की कला का पारंगत होना पड़ता है,इसी को पढ़कर अपने उद्योग से अपने रॉ मटेरियल से तैयार प्रोडक्ट को शक्तिशाली मीडिया के माध्यम से समाज में प्रचारित कर देना होता है।हाँ ये अवश्य है की एक बार सफलतापूर्वक उद्योग स्थापित होने के बाद यदि इसमें सहभागिता मिल जाता है तो फिर क्या बात है,फिर तो मौजा ही मौजा।इसमें एक और महत्वपूर्ण तथ्य होता है की जिसका उद्योग चल रहा होता है यदि उसके किसी प्रोडक्ट को लेकर आप नाखुश हो जाते हैं और कई खामिया गिनाते हुए विरोध शुरू कर देते हैं तो ये तत्काल इसका सारा दोष मंदी में चल रहे उद्योग को दे देते हैं की यही सबसे बड़े दोषी हैं और मंदी वाले से पूछिए तो वो वर्तमान उद्योग को दोषी ठहरायेगा,अब ये अलग बात है की हमलोग इसी में चकरघिन्नी की तरह घूमते रह जायेंगे की किसका दोष है किसका नहीं है।चैनलों पर भी डिबेट होने लगेगा जिसमे कभी-कभी सारे मर्यादा तार-तार हो जायेंगे।इसमे जो उद्योग चल रहा होता है वो हर प्रोडक्ट को २४ कैरेट का सोना ही बताता है और चलता भी खूब है,जनता भी चमक देखकर भ्रमित होती रहती है,लेकिन जिस दिन उसे पता लगता है की २४ कैरेट का सोना सोना नहीं पीतल का पालिश है तो उसी दिन से उद्योग के मंदी का दौर शुरू हो जाता है और जो उद्योग मंदी के दौर में चलरहे होते हैं वो फटाफट अपने प्रोडक्ट चमका कर नए-नए तरीके से प्रस्तुत करने लगते हैं।इस उद्योग को चलाने के लिए पहले दीन-हीन,मासूम,बेचारगी सा चेहरा बनाना पड़ता है,सफल हो जाने के बाद स्वमेव राजा बाबू और लॉट साहेब जैसा चेहरा हो जाता है,स्थापित न होने के पहले प्रोडक्ट के प्रचार के लिए द्वार-द्वार जाना पड़ता है और मिमियाना पड़ता है,लेकिन चल निकलने के बाद उनके दरवाजे जाकर लोग मिमियाते हैं।इस उद्योग में सबसे मजेदार और महत्वपूर्ण बात होती है कि इसको स्थापित करने के लिए किसी भी प्रकार कि डिग्री या तकनिकी ज्ञान कि आवश्यकता नहीं पड़ती है,अंगूठा छाप भी हो तो चलेगा और यदि कोई प्राथमिकी दर्ज है तो अतिरिक्त योग्यता मानी जाएगी,ये उसे गहने कि तरह शुशोभित करता है।जब उद्योग चल निकलता है तो यही लोग हर विषय के मर्मज्ञ बन जाते हैं ऐसा लगता है कि इनसे बड़ा तो विशेषज्ञ तो कोई हो ही नहीं सकता ये सर्वज्ञता हासिल कर लेते हैं,इसमे सब कुछ संभव हो जाता है अशिक्षित व्यक्ति शिक्षा को सँभाल सकता है और कभी डाक्टरी न करने वाला स्वास्थय विभक्त को शुशोभित कर सकता है और एक और बड़ी अच्छी विशेषता रहती है कि जब कोई इनके अपने सामूहिक हित कि बात होती है तो चल रहे उद्योग के करता-धर्ता और मन्दी में चले गए उद्योग के करता-धर्ता सब एक हो जाते हैं और ध्वनिमत से सारा काम चला लेते हैं,कोई लेकिन,परन्तु नहीं होता है,लेकिन जब जनता के हित कि बात होती है तो खूब लेकिन,किन्तु,परन्तु और जाने क्या-क्या होता है।एक बार यदि आप चल रहे उद्योग के सक्रिय सहभागी बन गए तो मन्दी में जाने पर भी तमाम सुविधाएँ मिलने कि गारंटी हो जाती है।आप को भविष्य की ज्यादा चिंता करने की जरुरत नहीं होती है।कुछ लोग इसे पैतृक रूप से भी स्थापित किये हुए हैं,और इसे अपना अधिकार मान बैठे हैं,पहले इसका बड़ा मुखर विरोध होता था पर अब कुछ और लोग भी उसी पदचिन्हों पर चलने का प्रयास करते हैं,हो सकता है की आने वाले समय में ये और तेजी से जोर पकड़े।यह इस लिए भी सफल हो जाता है क्यों की इसमें योग्यता का कोई पैमाना नहीं है आप के ऊपर बहुत बड़ा लेवल लगा है यही सबसे बड़ी योग्यता है।इस उद्योग में एक और बड़ा फ़ायदा है कि इसे चलने के लिए फंड भी बहुत मिलते हैं जिसे हम और आप नहीं जान सकते जबकि मेरा आप का मिलने वाला हर फंड सभी जान सकते हैं।सुनने में आता है कि कभी-कभी ये शक्तिशाली विटामिन के रूप में काम करता है।
अंत में यही कहा जा सकता है कि इनके सभी के प्रोडक्ट का झुनझुना आम जनता समय-समय पर लेकर झुंझुनाती रहती है और उसी के धुन में मगन हो जाती है,लेकिन समय के बाद झुनझुने कि आवाज बेसुरा हो जाता है और एक झुनझुने को छोड़कर दूसरा झुनझुना पकड़ लेता है,और यही क्रम चलता रहता है और जनता भ्रमित रहती है,काश हम सब अच्छी तरह समझ लेते इनकी सच्चाई तो कोई नकली प्रोडक्ट नहीं बिकता और सही उद्योग ही स्थापित हो पाटा,योग्यता का क़द्र होता,एक पुरजोर मांग होना चाहिए कि इसमें भी न्यूनतम योग्यता का निर्धारण हो और अपराधी के लिए निषिद्ध हो,तभी एक सही और शुद्ध प्रोडक्ट सामने आ पायेगा और समाज का भरपूर भला कर पायेगा,साथ में एक बड़ियाँ वातावरण भी बना पायेगा।
जय हिन्द-जय भारत ।।



bhot acha lekh hain
जवाब देंहटाएंdhanyavaad
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