भगवान् मुझे कहाँ पैदा किया? - समझाविश बाबू - हिंदी ब्लॉग
हर आदमी कहीं न कहीं पैदा ही होता है,इसे लेकर भगवान् से शिकायत तो नहीं होनी चाहिए,जहाँ भी होता है माँ-बाप उसका बड़े ही उत्साह से लालन-पालन करते हैं,जितना सामर्थ्य होता है वो उसी के पालन में प्रयोग करते हैं,इसी तरह मैं भी एक मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुआ और मेरे माता-पिता ने अच्छे से पालने का प्रयास किया और जितना हो सकता था सुख सुविधा मुहैया कराया,ये अलग बात है की बहुत ज्यादा था ही नहीं तो जो हो सकता था उतना किया।मैं जब होश संभाला तो अपने उन दोस्तों को जो अमीरी में पल रहे थे उनके ऐशो -आराम देखकर मन में अजीब सा होने लगता था,कभी -कभी माँ से भी पूछ लेता की उनका जीवन वैसा तो मेरा जीवन ऐसा क्यों,मैंने या आप ने कौन सा गुनाह किया है,मेरे पिता तो उनके पिता से अधिक काम करते हैं तो फिर हम ऐसे क्यों वो वैसे क्यों?तब मेरे माता-पिता मुझे यही समझाते थे की बेटा अपनी मेहनत से ऊँचा मकाम हासिल करो,और कई महापुरषों का नाम सामने गिना देते थे जो गरीबी से उठ कर समाज में एक ऐसा मुकाम हासिल किये जो आज भी उदाहरण बना हुआ है,बात भी सही रहता था,अपनी पुस्तकों में पड़ने पर ऐसे कई उदाहरण मिल जाते थे,मुझे भी न केवल जवाब से संतुष्टि मिल जाती थी बल्कि प्रेरणा भी आगे बढ़ने को मिलती थी।जीवन चलने लगता था और धीरे-धीरे पढ़ने के बाद नौकरी मिल गयी,जिसमे ऐसा व्यस्त हुआ की समय का पता ही नहीं चला,लेकिन आज जब कुछ अपने आस-पास देखता हूँ तो घुटन होने लगती है की भैया हम क्यों नहीं पैदा हुए उन घरों में जहाँ करो कम और ऐश करो ज्यादा।या यूँ कहें की न के बराबर करो और प्राप्त हजार गुना करो,घुटन इसी बात की मेरी थी की ठीक है मेहनत करके वैसा बनो जैसा लोग गरीबी से उठकर बहुत ही बड़ा मुकाम हासिल कर एक अनुकरणीय उदाहरण पेश कर गए हैं,लेकिन इनके लिए अलग पैमाना क्यों है,इनके क्या चार हाथ-पैर हैदो चार दिमाग है,खैर दिमाग तो होना लाजमी है तभी तो सबको चरा रहें हैं।
मेरे मन में अक्सर ये विचार आता है कि काश हम किसी बड़े राजनितिक घराने में पैदा हुए होते तो क्या मजे रहते,हमारी योग्यता का पैमाना ही ये रहता कि हम वहां पैदा हुए हैं ये ही सबसे बड़ी बात थी,लोग हमारे आगे-पीछे घूमते कि भैया आप ही मेरे कर्णधार हो,आप ही खेवन हार हो,भले मुझे नाव चलाना तो दूर चप्पू पकड़ने भी न आता हो,हम चाहे कैसा भी परफॉर्मेंस दे रहे होते,पर मेरे लिए सब माफ़ रहता,कुछ लोग आलोचना करते लेकिन फिर घूम-फिर कर मेरी ही परिक्रमा करनी पड़ती,क्यूंकि मेरे नाम के आगे जो एक बड़ा घराना जुड़ा है,भले मुझसे गलतिया हो जाये उसे गलती न बताने वालों कि एक लम्बी फ़ौज खड़ी हो जाती थी।कितने ऐश कि जिंदगी मैं काटता जब जैसे चाहता विदेशों कि सैर करता जब देश में कुछ बोलने का समय आता तो महान दार्शनिक अंदाज में बोलता,भले केवल हाव -भाव मैं वैसे दिखता क्यूंकि वास्तव में तो मेरी योग्यता मैं खुद जनता था पर उसकी जरुरत ही कहाँ पड़ती,मेरी बचकानी हरकत भी मुझे प्रसिद्ध कर जाती।पद और प्रतिष्ठा तो मेरे आगे पीछे घूमती,मैं न न करता वो जबरदस्ती मेरे गले पड़ती,मौजा ही मौजा ही रहता,काम कुछ हो न हो नाम बहुत रहता,कौन सी गलती मारे से हो गयी की मैं पैदा ही नहीं हो पाया वहां,बस अपनी किस्मत में केवल उनकी कहानिया पड़ना और पढ़-पढ़ कर कुड़ना भर रह गया है,वहां के बाबू ऐश कर रहे हैं और हम उनका जब कभी कारवां गुजरता है तो बस यही गाते रह जाते हैं की कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे,उनके लिए तो विदेश घूमना ऐसा है की जैसे मेरे लिए अपना गाँव,हम साला पूरा जीवन बैलों की तारतः मेहनत करने के बाद भी विदेश का सैर केवल किताबो और टी वी से ही पूरा कर लेते हैं,बाकी तो हमारे नसीब में कहाँ है?हम यदि अपना काम ठीक से न कर पाएं तो चारो तरफ से डांट ही डांट है,और नौकरी में भी दिक्कत,और वो जो भी करें तो भी सब माफ़,वाह रे जमाना।
अरे भगवान् जी वहां नहीं किये तो कम से कम किसी उद्योग के घराने में ही पैदा कर देते,हम भी सोने का चम्मच लेकर पैदा होते,मेरे परवरिश से लेकर जीवन भर नौकरों की फ़ौज लगी रहती,यहाँ साला दो कमरे में गुजर-बसर करना पढ़ रहा है,रिश्तेदार आ जाएँ तो सोचना पड़ता है कौन कहाँ सोयेगा,कैसे एडजस्टमेंट होगा,कभी-कभी लगता की शिफ्ट वाइज सो जाएँ,ऊपर से दिखाते रहते हैं रिश्तेदारों को की हम बहुत खुश हैं उनके आगमन पर भले अंदर ही अंदर सोचते रहते की जल्दी चला जाए चैन से सोने को तो मिले और वहां पर तो ये सोचना पड़ता है की भाई कौन सोयेगा इतने बड़े घर में,इतने कमरे khali रह जाते हैं की हमारा गांव पूरा रुक जाए,यहाँ पत्नी की हाथ घिस जाती है खाना बनाते, नाश्ता बनाते और सफाई करते,वहां पर जबान हिलाना होता है,क्या चाहिए भारतीय, ,कॉन्टिनेंटल कौन सा सब फ़ूड मिलेगा,हुकुम भर करना है,यहाँ लड़की की शादी में कमर टेडी हो जाती है और उनलोगो के यहाँ जब पड़ता हूँ या देखता हूँ तो आँखे फटी की फटी रह जाती है,शादिया मेरे लिए तो एक किद्वंती बन जाती है,जितना अनुमानित खर्चा इधर -उधर ख़बरों में चलता है तो सुन कर ये लगता है की क्यों भगवान् जी हम कौन सा गुनाह किये बैठे हैं,बता दीजिये प्लीज,कम से कम संतोष तो हो जाये,बाप रे बाप जितना पैसा खर्च किया जाता है उतना तो मेरे अबतक के पुस्तों की सारी कमाई जोड़ लें तो भी अभी कितने पोस्ट और जनम लेना पड़ेगा ये गर्भ में है। हेलीकाप्टर ,जहाज , उनके लिए ऐसा ही है जैसे की मेरे लिए साइकिल ,आखिर इतनी असामानता क्यों भगवान्,चलो असामानता हो गया ठीक है लेकिन आज भी चलती उन्ही की है,हम तो पयादें भी नहीं हैं,ऐसा क्यों ,ये लोग पारस पत्थर हैं मिट्टी ,पत्थर कुछ भी छू लें तो सोना ,हीरा ,सब हो जायेगा , बड़े से बड़े कद्दावर लोग घूम रहे हैं की कुछ छू लें तो सोना हो जाये ,और एक हम हैं की यदि हीरा भी छू लें तो मिट्टी हो जाये ,हम जिस चीज को 20,30,100,200,रूपया किलो खरीद कर ज्यादा में बेचकर लाभ कामना चाहें तो साला 10-20 रूपया में भी न बिके और यदि वो हाथ डाल दें तो मौजा ही मौजा,इसी तरह राजनीतिक घराने वाले जिसे छूं लें तो बड़ा नेता बन जाए और हम चप्पल घिस जायेगा कार्यकर्ता ही बने रहेंगे,बताइये भाई ऐसा क्यों हैं या तो मैं मुर्ख हूँ टैलेंट रत्ती मात्र भी नहीं है,या फिर मैं घिसने के लिए ही पैदा हुआ हूँ ।इतना अंतर क्यों है कोई बताएगा,चलो भाग्य को मान लिया, लेकिन आज के समय देखा जाये तो चंद लोग ही धरती पर कैसे भाग्य विधाता बनते जा रहे हैं बाकी क्या केवल खटने के लिए पैदा हुए हैं,वो चलें तो रेड कार्पेट और हम चलें तो कीचड़,मिट्टी,क्यों भाई क्या मेरे पैर में गंदगी लगी है?वो लोग ऐ जी ओ जी सुनो जी करके क्या-क्या बेच दे रहे हैं हम बाबू-भैया करके भी कुछ नहीं बेच पा रहे हैं बस धक्के खा रहें हैं,हम तो साला साहेब भी नहीं बन पा रहे हैं और उनके यहाँ तो बड़े से बड़ा साहेब नौकरी और चाकरी करने के लिए तरस रहा है।
अतः प्रभुजी आप से हाथ जोड़कर विनम्र निवेदन,प्राथना,गुजारिश सब कुछ है की अब तो जहाँ आप को पैदा करना था कर दिए,अब दुबारा या तो मनुष्य जीवन मत दीजियेगा या फिर देना मज़बूरी हो तो उन्ही घरो में दीजियेगा,अच्छा तो रहेगा उद्योग वाले घराने में दीजियेगा क्यूंकि वहां भी राजनितिक घराने वाले हाजिरी लगाते हैं तो अच्छा तो वहीँ रहेगा,यदि वैकेन्सी न हो तो मनुष्य से अच्छा एक अच्छे नस्ल का कुत्ता बना दीजियेगा तो भी मनुष्य से ज्यादा मेरे ठाट रहेंगे,आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की इस बार आप हमारी जरूर सुनेंगे,इस जनम में तो साला पूरा जीवन कुढ़ते हुए बीत रहा है,साला अपने को दोष देते और कोसते हुए पूरा खून जल जा रहा है,इसलिए प्लीज भगवान् जरूर सुनियेगा,इसी कामना के साथ आप की आश में शेष जीवन जी ले रहा हूँ।
सत्ता रे सत्ता रे तेरे बिना लागे नहीं जिया रे
तू जब-जब मिल जाये पूरा जीवन मोरा भाये
तेरे बिन मोहे चैन न आये तेरे बिन जी घबराये
तेरे लिए हम कुछ भी कर जाएँ
चाहे कोई मरे या जी जाए
मेरी कुर्सी मोहे मिल जाये
सत्ता रे सत्ता रे ------------
जब-जब चुनाव आये जिया में हुक उठ जाये
गरीबी,और मजहब जाति में भरमावें
मसीहा बन के खूब उल्लू बनाये
जब कुर्सी मिल जाये तो हंस-हंस के मर जाएँ
सत्ता रे सत्ता रे ----------------
जब कोई कुर्सी की ओर बढ़ता दिख जाये
मेरा कलेजा मुँह को आये धड़कन बढ़ जाये
कहीं ऐसा जतन हो जाए कभी कुर्सी हाथ से न जाए
फेविकोल से हम सदा के लिए चिपक जाएँ
सत्ता रे सत्ता रे -------------------- ..



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