अरे दीवानो मुझे पहचानो ? - समझाविश बाबू

आज सारा खेल पहचानने का ही चल रहा है,और हम इसी में ही धोखा खा रहे हैं।पहले के समय में पहचानना कुछ आसान था, लोग जल्दी में पहचान लिए जाते थे,घर,मुहल्लों,गांव,शहर में भी अच्छे लोगों की चर्चा आम हो जाती थी और वो वास्तव में अच्छे निकलते थे,अब तो ये स्थिति हो गयी है की घर में ही नहीं पहचान हो पा रही है कब बेटा बाप को आँख दिखाने लगेगा,कब साला  जीजा को दौड़ा लेगा,कब भाई ही भाई को ही मरने-मारने पर उतारू हो जायेगा कोई नहीं पहचान सकता है।अब इतना शातिराना चाल चलना शुरू हो गया है की सीधा-सादा आदमी तो धोखे पर धोखा खाता जा रहा है,जिसको वो समझ बैठता है की अरे ये तो मेरा सबसे बड़ा हितैषी है वही कब चूना लगाकर या यूँ कहें कब अपना काम लगाकर निकल जायेगा कि आप सोच ही नहीं सकते हैं,आज अर्थ युग का जबरदस्त दौर चल रहा है,यही धन ही आदमी को हैवान और बड़ों-बड़ों को खुदगर्ज बना दे रहा है,समझ ही नहीं आ  रहा है कि  क्या किया जाये,जिसे हम इंसान समझने कि भूल कर बैठते हैं वही बाद में शैतान का रूप धारण कर लेते हैं।आदमी के अंदर इतनी हवस बढ़ती जा रही है कि वो चाह रहा है कि बस बहुत जल्द अरबपति बन जाये,आदमी शब्द ही इनके लिए ठीक है क्यूंकि ये इंसान तो हो ही नहीं सकते अगर इंसान होते तो कुछ तो इंसानियत बची  रहती,जो कि बिलकुल  मरी हुई रहती है।

                    यही हाल सभी जगह कमोवेश देखने को मिलेगा,आप किसी भी ऑफिस में चले जाइए ज्यादातर बड़े मीठे शब्दों में आप को टरकाते रहेंगे कि अरे आप जाओं आप का काम हो जायेगा,और कब पलटी मारकर किसी और का काम कर देंगे कि आप बस देखते रह जायेंगे और जाने पर बड़ी मासूमियत से जवाब देंगे कि उसका काम आप से ज्यादा सही था हमने सही काम किया है,मज़बूरी थी,अब आप समझिये जिसकी  आपने सही व्यक्ति कि छवि मन में बैठाई थी वो कैसा निकला,आप नहीं पहचान पाए न।ये हाल एक नहीं लगभग सभी ऑफिसों में मिल जायेगा और हम बस इसी में परेशान घूमते रहते हैं कि हम सही से किसी को क्यों नहीं पहचान पा रहे हैं।हमी को लगने लगता है कि कि हमसे ही गलती होती है हम सामने वाले को क्यों नहीं पहचान पा रहे हैं,जब कि ऐसा नहीं है वास्तव में वे ही इतना चतुर होते हैं कि उन्हें अच्छे-अच्छे नहीं पहचान पाते हैं,अगर ये कहा जाये कि उनकी ऐसी फितरत रहती है कि उनके शातिराना अंदाज को स्वयं उनके पिताजी भी नहीं पहचान सकते,हमारी अपनी बात छोड़िये।यही कारण हैकि अधिकारीयों कि आलिशान कोठियां  बनती जाती है,बड़ी गाड़ियां ,और ऐशो-आराम के सामान भरते जाते है और हम-आप बस इसी में समय बिता देते हैं कि पहचान नहीं पाए।किसी कि इतनी हैसियत मात्र  तनख्वा से नहीं है कि वो इतनी ज्यादा शानो-शौकत कि जिंदगी जिए,हाँ ये अवश्य  है किएक आराम और शुकुन कि जिंदगी जी सकता है,पर उसमे उसे मजा नहीं आता है,उसे तो राजशी ठाट-बाट वाली जिंदगी ज्यादा रास आती है।आज भी कभी-कभी लगने लगता है कि वो अपने को शासक समझ बैठे हैं और प्रजा जिस पर उन्हें भलाई  करने का दायित्व सौंपा गया है यही मान कर चलते हैं की सब ऐसे ही चलेगा जैसा की वो चाहते हैं,उनकी पैनी आंखे तो हमारा एक्सरे कर लेती हैं,हम उन्हें रत्तीभर नहीं पहचान पाते हैं,इसका ये मतलब मत समझिये कि हम गलत है,इसका मतलब सिर्फ ये है कि हमारे अंदर अभी इंसानियत बाकी है उनके अंदर का बखूबी वो जानते हैं कि उनके अंदर क्या बचा है।हाँ ये जरूर है कि इन्हे नेता बहुत अच्छी तरह से पहचानते हैं क्यूंकि दोनों की  क्वालिटी लगभग काफी मिलती-जुलती है,दोनों का उद्देश्य और मंजिल एक होता है,इसी लिए दोनों एक दूसरे के पूरक भी बन जाते हैं और ज्यादातर उनकी निभ जाती है क्यूंकि दोनों एक दूसरे का सम्मोहन मंत्र रखे रहते हैं,दोनों कि एक्सरे रिपोर्ट एक दूसरे के पास रहती है,इसलिए दोनों एक दूसरे के विरोध से हमेशा बचते रहते हैं,ताल-मेल बैठा कर अपना-अपना उल्लू आसानी से सीधा कर लेते हैं।मुर्ख तो हम हैं जो पहचान नहीं पाते कि ये असलियत में क्या हैं।

                     इसी प्रकार अपने रहनुमाओं जो आप के भाग्य विधाता के रूप में बैठे हैं या बैठते हैं,उनके बारे में भी आप जानते ही होंगे,सबसे ज्यादा इन्ही को पहचानने की भूल होती है,क्यूंकि इनका प्रस्तुतीकरण इतना चमकदार होता है की हम सब मन्त्रमुक्ध हो जाते हैं और उनके धुन पर नाचने के लिए विवश हो जाते हैं।कुछ भावनाओं का उभार ,कुछ लुभावने वादे,कुछ धरम-जाति का लालीपाप ये सब इतने अच्छे से थाल में सजोया जाता है की आमइंसान  भ्रमित हो ही जाता है,बातें ऐसी करेंगे की इसबार आपके सारे दरोदीवार को एकदम चमका ही देंगे बाद में भले ही जगह-जगह धब्बा ही पड़ जाये,हाँ ये अवश्य है की उनका सबकुछ चमक जाता है,और हम वैसे के वैसे रह जाते हैं।इन रहनुमाओं को पहचानना टेढ़ीखीर है,इनके अंदर अभिनेता,मदारी,खिलाडी,जाने क्या-क्या गुणों का भण्डार भरा रहता है,ये एक सम्पूर्ण पैकेज की तरह हैं,जहाँ जब जिसकी जरुरत पड़ती है उसी का इस्तेमाल कर लेते हैं।सबसे मजेदार तथ्य यह है की रहनुमा किसी भी दल का हो और सत्ता किसी का हो,लेकिन आपस में केवल गाल बजावन और नूरा कुश्ती चलती रहती है पर किसी को कोई दिक्कत किसी के समय नहीं आती है,केवल जनता को दिखाने के लिए खूब जोर आजमाइश होती है हमें लगता है की अब तो सभी भ्रष्ट धर लिए जायेंगे,किन्तु केवल दिखावा ही साबित होता है,क्यूंकि सबको पता है की आज हम हैं तो कल वो भी आ सकते हैं।ये दौर कमोवेश ऐसे ही चलता रहता है और हम ऐसे ही पहचानने में बार-बार भूल किया करते हैं।ये कुछ अलग  से बन के आते हैं,सामने से इनको समझना नामुमकिन है,क्या कह रहे हैं और अंदर क्या चल रहा है कोई जान ही नहीं सकता।

                           चौथी श्रेणी में वो तथाकथित धरम,ग्रहों और भाग्य के ठेकेदार आते हैं जो सब ठीक करने का दावा करते हैं और इतना डरा देते हैं कि उसी के नाम पर अच्छी खासी जेब ढीली कर देते हैं,हम बस लुटे-पिटे अपना सबकुछ ठीक होने का इन्तजार करते रहते हैं,इन्हे भी हम-आप नहीं पहचान पाते हैं,इनकी भी जाल इतना मजबूत रहता है कि मछली की तरह फंस ही जाते हैं,ये भी सही है कि इनका भी पहला उद्देश्य बड़ी-बड़ी मछलियों का शिकार करना होता है,जितनी बड़ी  मछली उतना महंगा उपचार होता है।यदि एक कि स्थिति अपने से सुधर जाती है तो उसे अपनी उपलब्धि बताकर जोरशोर से प्रचार कराया जाता है,और दुक़ान चल निकलती है।हम-आप डरे सहमे पैसे के इंतजाम में लगकर बुरी ग्रहों कि डर से शरणागत हो जाते हैं और उनकी मौज आ जाती है,उनके कच्चे मकान पक्के हो जाते हैं गाड़ी भी आ जाती है,सुख-सुविधा के सब सामान भी आने शुरू हो जाते हैं,और हम बस अपने ग्रह सही होने और धनवान बनने का इन्तजार करते रहते हैं,यदि आप दुबारा उनसे पूछने कि हिम्मत भी करते हैं कि अभी कुछ नहीं हुआ तो एक और उपाय बता देंगे,कहेंगे कि ये भी होना जरुरी था लेकिन पूरी तरह से समय ही नहीं आया था,बस ऐसे ही आप चक्कर पे चक्कर लगाते रहते हैं और आपके पैसे से वो रबड़ी-मलाई खाते रहते हैं।हमें धर्म  के प्रति,ग्रहों के चाल से इतना डरा दिया जाता है कि न चाहते हुए भी हम जाल में फंस ही जाते हैं।ये एक कटु सत्य भी है कि  जितने लोग ये कहने वाले हैं कि पहचान कौन कि मैं कौन हूँ उनसे ज्यादा जिम्मेदार हम लोग भी हैं कि इनके द्वारा फैलाये गए राग-माला में हम लोग आसानी से उलझ जाते हैं और ये अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं,और ये हरबार इसी तरह कि हरकत करते हैं और मलाई काटते रहते हैं।  

                                 लेकिन ये भी सत्य है कि जब जनता इनको पहचान लेगी भले ही समय लग रहा हो तब वास्तव में इन्हे कोई नहीं पहचान पायेगा,इनकी दशा और दिशा दोनों बदल जायेगा।समय बहुत बलवान होता है और पूर्ण विशवास है कि वह  समय जरूर आएगा क्यूंकि झूठ की दिवार या रेत की दिवार पर महल ज्यादा दिन तक खड़े नहीं हो सकते हैं।इनको समय-समय पर जनता सबक सिखाती भी है पर इनकी चमड़ी इतनी मोटी  रहती है की पुनः ये अपना पुराना माल नए कलेवर में प्रस्तुत करने लगते हैं और हम धोखा खा जाते हैं और पहचान नहीं पाते हैं,यह अवश्य है की हमें यह बात तो अच्छी  तरह समझना होगा की जो हमारे जिले या तहसील लेवल पर अधिकारी आते हैं इन्हे भ्रष्टाचार कतई नहीं करने देना है,और इन्हे विवश करना है की जनता का काम ईमानदारी से करें अन्यथा चलते बने।इसके लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि आज के युग के आधुनिक साधन का बेहतर इस्तेमाल कर इनके भ्रष्टाचार को सार्वजनिक करें और जरुरत पड़े तो रंगे हाथों  इनको गिरफ्तार भी करवाएं,क्यूंकि जितना ज्यादा आप इनके खिलाफ विधिक कार्यवाही अमल में लाएंगे उतना ज्यादा ही इनकी हिम्मत टूटेगी,आप का सफल और विधिक प्रयोग ही न केवल इनके मनोबल को तोड़ेगा  बल्कि यदि इनको कहीं से ऑक्सीजन मिल रहा होगा,तो वहां से मिलना भी बंद हो जायेगा क्यूंकि पब्लिक से बढ़कर कोई नहीं है उसकी शक्ति के आगे सबको नतमस्तक होना ही है। 

                             आज से सभी को प्रण करने कि जरुरत हैं कि अपने ब्लॉक,तहसील, जिले में किसी भी अधिकारी,कर्मचारी को भ्रष्टाचार नहीं करने देंगे,उनके भ्रष्टाचार को उजागर करेंगे और उन्हें जरुरत हुआ तो रिश्वत में जेल भी भिजवाएंगे।भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाएंगे,और ढकोशलेबाज ढोंगी बाबाओं का भी पूरी तरह से बहिष्कार करेंगे। 

                                 जय हिन्द जय समाज ।। 

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