दीप कहाँ जल रहा है? - समझाविश बाबू - हिंदी ब्लॉग

एक बार फिर सबसे खूबशूरत त्यौहार दीपो का पर्व आ गया है,भगवन राम ने असत्य पर सत्य की विजय को स्थापित कर लोगों को ये सुखद अहसास कराया था की बुराई का अंत जरूर होता है सत्य कभी पराजित नहीं होता है,इसी के हर्षोल्लास में अयोध्या नगरी भगवान्  राम के स्वागत में दीपों से सजाया गया था,उसी उपलक्ष्य में ये दीपों का त्यौहार दीपावली मनाया जाता है।इसका मकसद कितना पवित्र और सुन्दर था,वास्तव में ये पर्व की बात थी भी,क्यूंकि आम जनमानस को ये एक जीता-जागता  उदाहरण  मिला था की सत्य को कोई नहीं हरा सकता है चाहे वह रावण जैसा बलशाली ही क्यों न हो,समय -समय पर यह स्थापित होता रहा है की सत्य पराजित नहीं होता।

                                दीपावली से पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है जिस दिन कुछ नया खरीदने की परम्परा होती है,अपनी सामर्थ्य के हिसाब से हर परिवार कुछ न कुछ खरीदता रहता है,पूरा बाजार गुलजार रहता है और आज के दिन सभी दूकानदार अपनी दुकानों को खूब अच्छी तरह सजाते हैं और कई-कई तो लुभावने  ऑफर भी देते रहते हैं,जम के खरीदारी होती है,इसी कारण से दोनों की अच्छी दीपावली मन जाती है,घर-परिवार मगन हो जाता है। 

                              सच पूछा जाये तो दीपावली में तीन महत्वपूर्ण तथ्य छुपे रहते हैं,जो आज के समय को देखते हुए और अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं।प्रथम सत्य की ही विजय अंत में होती है झूठ चाहे जितना भी इतरा ले या ग़दर मचा ले,आज के समय को देखते हुए जहाँ झूठ का बाजार ज्यादा गरम रहता है,मक्कारी,फरेब,रिश्वतखोरी,भ्रष्टाचार का  सबसे अधिक बोलबाला है,ऐसे में हम  कम से कम  दीपावली में खुश हो लेते हैं की बुराइयों का अंत हो जायेगा,और पुनः नए सालों का इन्तजार करते रहते हैं की नहीं अगली बार हो जायेगा,इसी खुशफहमी में जीते रहते हैं।

 दूसरा है कि दीपावली में ही घर ,दुकान,प्रतिष्ठान कि साफ़-सफाई होती है साल भर कि गंदगी साफ़ हो जाती है और एक बार फिर सबकुछ चमकने लगता है।ये एक बहुत ही अच्छा सन्देश होता है क्यूंकि स्वास्थय के लिए सबसे अच्छा सफाई होता है,ये सन्देश पुरे राष्ट्र के लिए नहीं बल्कि पुरे विश्व या यूँ कहें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिए भी आवश्यक है।लेकिन हमारी मनोवृत्ति कुछ अलग हट के है,सड़क पर कूड़ा फेकना हम अपना जनम सिद्ध अधिकार समझते हैं,क्यूंकि हमारे जेहन में रचाबसा है कि घर छोड़कर सड़क साफ़ रखना हमारी जिम्मेदारी नहीं है।कहीं भी गुटका,तम्बाकू खाकर थूकना तो हमारी अनमोल परंपरा है,यदि घर के आस-पास कोई प्लाट खाली  पड़ा है तो कब वो कूड़ाघर में तब्दील हो जाता है कोई नहीं कह सकता है,और वो तबतक रहता है जबतक कि उसपर उसका मालिक मकान न बनवा ले।ये भी हमारी शान है कि ट्रैन,बस में मूंगफली,केला आदि खाकर छिलका फेकना।रिक्शे पर या किसी सवारी पर या खुद के गाडी में निकले होते हैं और यदि कुछ  खा रहे होते हैं तो तुरंत बाहर सड़क पर फेकदेना हमारी आदत में शुमार हो चुका है,गाड़ी का शीशा खोलकर कर पच्च से थूकना हमें बहुत ही अच्छा लगता है फिर चाहे किसी के ऊपर ही क्यों न पड़ जाये,ठेले से चाय पीना और पीकर वहीँ कप फेक देना,दोना फेक देना हमारी आम आदत है।अब तो काफी कम हुआ है लेकिन अब भी ट्रेन  कि पटरियों पर,सड़क के किनारे शौच करना भी लोगों की  आदत में शुमार था,यदि भूले-भटके ट्रेन  में पानी नहीं आ रहा है तो शौचालयों,वाशबेसीनो को इस तरह गन्दा कर  देना कि दूसरा प्रयोग  ही कर न पाए ये भी एक आदत थी।कुलमिलाकर सच्चाई यही है की अपना घर छोड़कर कहीं भी कूड़ा फेकना एक जन्मसिद्ध अधिकार बन गया है।

                 तीसरा है कि हम दीपावली के दिन दीप जलाकर जहाँ अन्धकार को भगाने का प्रयास करते हैं वहीँ पटाखे जलाकर अपनी खुशियों का इजहार करते हैं,पूरा देश प्रकाशमय हो जाता है,देश क्या विदेश में भी जहाँ हमारे वतन के प्यारे लोग रहते हैं वो ज्यादा ही उत्साह से प्रकश फैलते हैं और अच्छी तरह से दीपावली का पर्व मनाते हैं,कितना सुन्दर और मनोहर त्यौहार है कि अन्धकार को कुछ समय के लिए ही सही दूर भगा देता है।

                                देखिये दीपावली का मकसद कितना पवित्र और संदेशात्मक है लेकिन हम क्या त्यौहार मनाते समय उसके मूल उद्देश्य को पूरा कर पाते हैं।झूठ,असत्य,हिंसा पर सत्य कि ही विजय होती है,सत्य ही सार्वभौम है,इसे कोई पराजित नहीं कर सकता है,ये मूल सन्देश था दीपावली पर्व का,किन्तु आज क्या है,आज तो जगह-जगह सत्य पराजित हो रहा है,भ्रष्टाचार,रिश्वतखोरी चरम सीमा पर है,क्या एकदिन त्यौहार मना लेना ही हमारा उद्देश्य है,जब हम इन चीजों में लिप्त हैं तो ऊपरी दिखावे से क्या फ़ायदा होता है,हम हर बुराई के अंत के लिए ईश्वर कि तरफ ही क्यों निहारते हैं,जबतक हम अपने आस-पास हो रहे भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी,महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को ख़त्म नहीं करेंगे तो कहाँ से दीपावली का मकसद पूरा हो पायेगा । हम अपना घर रौशन करके,मेवा-मिष्ठान का सेवन करके क्या दीपावली का मकसद पूरा कर लेंगे,जबतक कि हर घर में रौशनी न हो और हर घर में मिष्ठान न हो।आज के दिन बड़ा से बड़ा अधिकारी इन्तजार कर रहा होता है कि कितने लोग कितने महगें गिफ्ट लेकर आ रहा है,उसी से उस व्यक्ति कि पहचान होती है जो जितना मॅहगा गिफ्ट लाता है वो उतना ही सम्मान पाता है,घर भर जाता है पर पूछिए कितने अधिकारी उसे गरीबों में भी बाटते हैं ? पर्सेंटेज निकालेंगे तो एक से ज्यादा नहीं आएगा।रिश्वत और भ्रष्टाचार के सहारे जीने वाले लोग आज के दिन अच्छे कामो और विचारों का ढकोसला जरूर करते हैं।इसी प्रकार आस-पास कूड़ा करके केवल अपने घर कि सफाई करके हम कौन सी दीपावली मनाते हैं ?तेज शोर के पटाखों और सामान्य पटाखों में कितना रुपया फूँक देते हैं और वातावरण को दूषित कर देते हैं।आज दिल्ली और बड़े शहरों को देखिये धूप मयस्सर नहीं हो रहा है और कोरोना अलग कहर बरपा रहा है। ,क्या यही हमारा मूल उद्देश्य है दीपावली मनाने का,मात्र दिखावे से क्या होगा,ये विचारणीय प्रश्न है। 

                           उस दीपावली का इन्तजार रहेगा जब मन के दीप घर-घर जलेंगे,कोई जाति-पाति,धर्म का भेद न होगा,कोई भ्रष्टाचारी,रिश्वतखोर नहीं रहेगा,हम अपना घर ही नहीं बाहर भी सफाई में सहयोग देंगे,प्रदूषण ख़त्म करने में सहयोग करेंगे न कि बढ़ाने में,किसी के आँखों में गरीबी के आंशू न हो,वो दिन ही सच्ची दीपावली होगी,हमें विश्वास है कि वो दिन जरूर आएगा।काश कभी ऐसा होता कि हमारे प्रवाशी भारतीय भी एक साथ मिलकर अपने देश में सच्ची दीपावली मनाते।

                            आज दीपावली सबको शुभ हो इसका सभी मिलकर प्रयास करें।

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