जिया बेकरार था - समझाविश बाबू - हिंदी ब्लॉग

जब भी चुनाव आता है सभी का जिया बेकरार हो जाता है,फिर चाहे वो राजनीतिक पार्टियां हों या फिर जनता ही क्यों न हो,सभी बेकरार रहते हैं,लुभावने वादों और हमदर्दी का कार्ड तो खेला ही जाता है साथ में इमोशनल कार्ड भी भरपूर खेला जाता है,जनता को लुभाने का कोई भी हत्कण्डा जाने नहीं दिया जाता है।इसके अलावा चरित्र चित्रण और चरित्र हरण भरपूर तरीके से किया जाता है,कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा जाता है,कहाँ-कहाँ से भानुमति के पिटारे में बंद प्रकरण खुलने लगते है। कोई लाग-लपेट नहीं रहता है,बस मछली की आँख की तरह सत्ता की कुर्सी दिखाई देती है,जिस तरीके से आम आदमी के लिए कहावत कही जाती थी की लड़की की शादी और घर बनवाना बहुत ही भाग दौड़ का काम है,आदमी थक के चूर हो जाता है वही बात राजनीति  में भी लागू होती है,यद्यपि मकान  और लड़की की शादी में आधुनिक संशाधनो ने थोड़ा भाग-दौड़ हल्का कर दिया,लेकिन चुनाव में तो वही हाल रहता है नेता और उनके लोग पूरा शरीर का तेल निकाल देते हैं,ये अलग बात है की जो जीतता है वो सिकंदर की तरह सारी थकान भूलकर खुशी के रथ पे सवार होकर पांच साल ऐश ही ऐश करता है और जो हारता है उसको अपनी थकान ज्यादा खटकती है।यही एक ऐसा समय होता है कि जिसमे कार्यकर्ताओं कि बहुत पूछ होती है,कई लोगों के दिन बहुर जाते हैं,वो कहावत चरितार्थ होता है कि ''घुरऊ के भी दिन बहुर गइल '' ,कार्यकर्ता कहता है कि भईया जी अमुक मोहल्ले या अमुक बसती में चलना है तो नेताजी उसे आदेश मानते हुए तुरंत चल देते हैं,रात में सभी बैठ कर बताते हैं भईया जी अमुक बसती में आप का वोट पक्का है,फलनवा को हमने अपने पाले में कर लिया है,हर नेताजी को  यही बताया  जाता है कि बस इसबार तो बस आप ही आप हैं कोई नहीं है टक्कर में।जीतने  के लिए सबकुछ भूल कर जाती,धर्म का कार्ड और बिरादरी का कार्ड भी खूब खेला जाता है,कोई संकोच नहीं किया जाता है यहाँ एक और प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है अपनी रसूख का इस्तेमाल करते हुए अपने पुत्र को भी राजनीत में उतारने की चाहे योग्यता हो या न हो,लेकिन यहाँ तो मैं खुद ही गलत हूँ,राजनीति ही तो एक ऐसी जगह है जहाँ योग्यता कोई पैमाना नहीं है बल्कि समाज में जो पैमाना अयोग्यता के लिए दिया गया है वो वहां पर योग्य हो जाते है।ख़ुशी तब मिलती है जब ऐसे लोग चुनाव हार जाते हैं,अगर जीत जाते हैं तो हम कुछ न करके केवल ईश्वर पर दोष मड देते हैं।दुनिया की कोई भी ऐसी फैक्ट्री शायद ही होगी जहाँ पर वेस्टेज भी उपयोगी होता होगा राजनीति ही एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ सभी हाथ आजमा सकते हैं,बहुत ही काम न के बराबर होंगे जो भाग नहीं ले सकते हैं। 


                           अभी कई राज्यों में चुनाव था, मुख्यरूप से बिहार राज्य का था,शेष जगह तो उपचुनाव था,परिणाम आ गया।यहाँ सबसे भद्दा लगता है की परिणाम आने के बाद भी उसे न स्वीकारना और किसी न किसी पर दोष मड देना,सबसे आसान ई वी एम् मशीन है,अगर इतना ही अविश्वास है तो चुनाव के पहले साक्ष्य दीजिये और सार्वजानिक कीजिये,लेकिन भ्रम फैलाकर जनता को भ्रमित मत कीजिये,और ये भी कारण स्पष्ट कीजिये की जहाँ से आप जीतते हैं वहां का ई वी एम् कोई स्पेशल रहता है क्या या आप उसका किसी अन्य तरीके से परिक्षण करते हैं।आप के पास  भी विशेषज्ञ हैं तो बताइये न जनता के बीच डेमो करके की कैसे ई वी एम् में गड़बड़ी हो सकती है केवल कहकर भ्रम फ़ैलाने से क्या हासिल होता है सिवाय लोकतंत्र का मजाक उड़ने के और देश की छवि ख़राब होने के,मेरे खुद ये आजतक नहीं समझ में आता है कि कैसे ई वी एम् मशीन में गड़बड़ी की  जाती है,यदि किसी प्रकार से ये संभव भी हो तो जनता के बीच में बताया जाय कि कैसे ये संभव होता है,अब ये स्पष्ट होना ही चाहिए कि ई वी एम् कि सत्यता क्या है,रोज-रोज कि चिकचिक अच्छा नहीं है ,दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए,संदेह मिटना चाहिए ये जनहित और राष्ट्रहित में भी ये जरुरी है।अन्यथा बिना मतलब का प्रलाप उचित नहीं है,ये स्वस्थ परंपरा को ख़त्म कर देता है।कोई भी संदेह जो उत्पन्न करता है उसकी जिम्मेदारी है कि वो स्पष्ट करे कि हाँ ये जो मैं कह रहा हूँ वो दावे के साथ सही है,अगर नहीं तो मात्र प्रलाप करने से कोई फ़ायदा नहीं है क्यूंकि जनता भी इसे केवल प्रपंच ही मान लेगी।इसलिए इसे या तो साबित करें या फिर इस विषय को छोड़ें।आज यह सोचें की क्या जनता के लिए आवश्यक है उसके लिए क्या-क्या किया जा सकता है उसे दिलाने का प्रयास करे। ,केवल आप चुनाव को एक अवसर समझेंगे तो कोई जरुरी नहीं की आप कामयाब हो जाएँ।केवल भीड़ और लुभावने वादे आपको मंजिल नहीं दिला सकते,मात्र एक व्यक्ति का विरोध सभी जुटकर तथ्यों सहित नहीं करेंगे केवल विरोध करेंगे,और कुछ भी कहेंगे तो जनता विशवास नहीं करेगी,लेकिन चंद लोगों को ये बात नहीं समझ में आती है,विशेष तौर से एक व्यक्ति को जो केवल और केवल व्यक्ति विशेष को ही बुरा भला कहने में ही अपना सारा समय व्यतीत कर देते हैं,इससे वे अपने साथ उन सभी का भी  नुक्सान करते हैं जो उनके साथ जुड़ते हैं।इस तथ्य को सभी को समझना पड़ेगा।केवल गाली  देने  से और मात्र विरोध के लिए विरोध करने से  कुछ हासिल कोई नहीं कर सकता है,यही  सन्देश  ये चुनाव दे  गया  है।आज ये भी समझने की आवश्यकता है की कोई भी चीज करें तो कोरोना महामारी का सबसे पहले ध्यान रखा जाये,जिस तरह से दिल्ली आदि में ये खतरा बढ़ रहा है वो हमारी सबसे प्रथम प्राथिमकता होना चाहिए,साथ ही प्रदुषण भी जिस तरह हमको घेरे में ले रहा है वो दिन दूर नहीं होगा जब ये भी समाज के लिए बहुत घातक हो जायेगा,आज जिस तरह से भीड़ जुट जा रही है और कोरोना के प्रति लोग एकदम से बेफिक्र होते जा रहे हैं,कहीं इसका दुष्परिणाम न भुगतना पड़े।कोरोना के लिए यदि लाकडाउन जैसा कठोर कदम कुछ दिन के लिए ही उठाना पड़े तो जरूर उठाना चाहिए।किसी प्रकार का इजहार कोरोना को ध्यान में रख कर ही करना चाहिए।
अपने आस-पास देखने से ऐसा लगता है की कोरोना को हलके में लेना शुरू कर दिया गया है,मात्र आंकड़े से इसे समझाना या समझना कतई उचित नहीं है सरकारी आंकड़े किस तरह बताये या बनाये जाते हैं ये सभी भली-भांति जानते हैं,यह भी देखना जरुरी है की कितनी जांचे हो रही है प्रतिदिन,जब जांचे ज्यादा नहीं होगी तो सच्चाई भी स्पष्ट नहीं हो पायेगा,इसमें एक चीज ये भी देखना होगा की कोई इसे छुपाने का प्रयास न करे।जिस तरह से लोग सभाओं,बैठकों में,बाजारों,सड़कों पे इकठ्ठा हो रहे हैं उसे देखकर डर लगता है,कहीं दिल्ली जैसी स्थिति सभी जगह न हो। इसलिए कोई न कोई ठोस निर्णय लेना होगा।जिस तरह से लोग त्योहारों में उमड़ रहे हैं इसे भी देखना होगा।जान है तो जहाँ है समझना होगा । 

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