जिंदगी कर रहा हूँ तेरा इन्तजार - (हिंदी कविता) - समझाविश बाबू
जिंदगी कर रहा हूँ तेरा इन्तजार
तेरे देखे हैं सपने हजार
कर रहा हूँ तेरा इन्तजार
कई बार तुझे हँसते हुए देखा
रोते बिलखते और तड़पते हुए देखा
सिसकियाँ लेता कई बार
जिंदगी कर ---------------।।
खुशियों की मेले कहीं गम की बदली देखी
कहीं तुझे महलों में कहीं ठोकरों में देखा
कही लुटाते तो कहीं लुटते हुए देखा
दरबारों में मरते देखा तुझे कई बार
जिंदगी कर --------------।।
चौराहों बाजारों मंजिलों में हो तुम
घर महल दरबार और सलाखों में भी तुम हो
हर जगह तेरा ही बसेरा है
पर मौत ने ही तुझे घेरा है
फिर क्यों फरेब होता हरबार
जिंदगी कर ----------।।
कट रहे हैं दिन लग रहा अब डर
कब तू छोड़ के साथ चली जाएगी
लौट के तू दुबारा कहाँ आएगी
अभी न जिया तुझे एक बार
जिंदगी कर ------------।।



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