दमकते नेता जी - समझाविश बाबू - [ हिंदी ब्लॉग ]

आज बहुत दिनों बाद फुर्सत में था तो मन कर गया पुराने दिनों को याद करने का और मम्फोर्डगंज के फव्वारा चौराहे पर पैदल ही निकल गया चाय पीने के लिए।वहां पर बैठते ही एक दम से  दिल में  अजीब सी हलचल होने लगी, पुरानी यादें आँखों में झिलमिलाने लगी,वो भी क्या दिन थे जब नौकरी के लिए विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते थे और अक्सर इसी चाय की दुकान पर मित्रो के साथ आकर बैठ जाते थे और दुनिया जहान की बाते किया करते थे,उस समय सच मानिये तो हमलोगों से बड़ा फिलॉस्फर कोई नहीं होता था।जितनी देर में चाय पीते थे उतनी देर में कई देशों की राजनीत की पोस्टमार्टम कर दिया करते थे,एक मन में ये गुमान भी बड़े शिद्दत से पाले रहते थे कि हम इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र हैं तो हम स्वयं में एक्स्ट्रा आर्डिनरी छात्र हैं,हमसे तर्कों में कोई नहीं जीत सकता है।

चाय की  चुस्कियों में ही पूरे दुनिया  जहान का दर्द बयां हो जाता था,सबसे बड़ी बात ये होती थी कि चाय वाला भी बीच-बीच में स्पेशल कमेंट दिया करता था और कभी-कभी हमें भी मात दे दिया करता था।ये पल हमारे संघर्ष के दिनों में टॉनिक का काम करते थे जो दिन भर ऊर्जावान बनाये रहते थे।साला इलाहाबाद में चाय पीने का नशा अफीमचियों कि तरह होता था,कभी-कभी तो रात के १-२ बजे ऐसी तलब  लगती थी कि पैदल ही हमलोग प्रयाग स्टेशन या फिर मनमोहन पार्क चौराहे पर निकल पड़ते थे,एक ऐसा जूनून रहता था कि बिना चाय पिए मन मानता ही नहीं था,यही कारण था कि आज जीवन के इस पड़ाव पर मन कर गया और फिर से उसी दुकान पर आकर बैठ गए। 

                                 अभी मैं चाय कि चुस्कियों में खोया हुआ था और अपने उन यारों को और उनदिनों को याद ही कर रहा था,कि एक सफ़ेद रंग कि चमचमाती इनोवा कार आकर रुकी ,उसमे से एक खादी सिल्क के कुर्ते पैजामे और सदरी में एक हष्ट-पुष्ट व्यक्ति उतरा जो रेबैन का काला चस्मा लगाकर कुछ अलग दिख रहा था,उसके चारोओर लोग इकठ्ठा होने लगे कोई नमस्कार,कोई सलाम तो कोई पैर छू रहा था और वो अपनी आज कि नेता वाली अदाएं दे रहा था।मुझे भी उसका चेहरा कुछ पहचाना लग रहा था,मैं भी अपने दिमाग पर जोर दे रहा था,जब याद नहीं कर पाया तो चाय वाले से पूछ बैठा कि यार ये कौन शख्स  हैं,उसने तपाक  से बोला अरे भैया ये रमन नेता हैं जिसे सभीलोग रम्मांवा बुलाते थे,इतना सुनते ही मेरी आंखे फटी की  फटी रह गयी मैं भी अवाक् रह गया,वो दिन याद आने लगे जब हमलोग पड़ने वाले दिनों में चाय पीने आते थे तो एक दुबला-पतला व्यक्ति फटे कॉलर की कुर्ता और पैजामा पहने दीन-हीन की तरह चाय की दुकान पर बैठा रहता था,हमलोगों के साथ चाय पीने में अक्सर शरीक हो जाया करता था और अपने अजब-गजब ज्ञान की पोटली खोलता रहता था।उसका पूरा दिन चाय के ही दुकान पर ही कट जाया करता था क्यूंकि वहां चाय पिलाने  वाले अक्सर मिल जाया करते थे,उसका टाइम बकैती में ही कट जाया करता था।पर आज का नजारा एकदम बदला हुआ था,कहीं से विश्वास ही नहीं हो रहा था की ये वही नेताजी हैं जो हमलोगों के साथ बैठकर चाय पिया करते थे और ये इन्तजार करते थे की चाय का पेमेंट हममें में से किसी ने कर दिया या नहीं।दुकान वाले ने ही बताया की अब कहीं के चेयरमैन हो गए हैं बड़ा जलवा है,तीन-चार गाड़ियां है बड़ा बंगला है शायद पेट्रोलपंप भी खोलने जा रहे हैं।

                                ये ताम-झाम,ये शान-शौकत देखकर हमें भी मिलने की इच्छा हो गयी,मैं अपने को रोक  नहीं सका और उठकर उनके पास जाने की कोशिस करने लगा,किसी तरह पास पहुंचकर मैंने तपाक से बोला रमन जी नमस्कार,पर मुझे एक झटका लगा की अभी वो पहचानने की कोशिस कर रहे हैं,मन आया की कह  दे कसमें भूल गए पुराने दिन जब देखकर लपककर हमारे पास चाय पीने के बहाने  आ जाते थे,पर कह नहीं पाया। कुछ देर बाद उनके जुबान से निकला अरे श्रीवास्तव कैसे हो,मुझे थोड़ा भद्दा लगा नाम से बुला सकते थे पर नेताओं की आदत में सुमार तरीके को ही अपनाया और जाति का संबोधन इस्तेमाल किया,मैं भी अपने पर काबू रखकर चाय के लिए आमंत्रित कर दिया,पर बड़े ही अदा से अभी मैं एक गोष्ठी में जा रहा हूँ टाइम बिलकुल नहीं है ये तो जनता का प्यार देखकर रुक गया,मैंने भी जिज्ञासा वश पूछ लिया की किस चीज की गोष्ठी है,बड़े गर्व से बताया की युवाओं की गोष्ठी है जिसमे रोजगार के विषय में बताना है कैसे वो बेरोजगारी से निकल जाएंगे और उनकी स्थिति सुधर जाएगी।

                                    ये सारी चीजों को देखकर मेरे मन में ख्याल आया की नेताजी को गोष्ठी में बोलने की क्या जरुरत खड़े हो जायेंगे तो युवाओं को रोजगार की परिभाषा स्वयं समझ में आ जाएगी,अगर फिर भी न आये तो ये बताना चाहिए की उनका कौन सा रोजगार है जो एक चाय पीने के लिए भी किसी के इन्तजार में काट देने की स्थिति से आज करोड़पति की स्थिति में पहुंचा दिया,अपना ही सिद्धांत पढ़ाइये की ''कलम घिस-घिस हम मरे रोजगार मिला न कोई, चार आखर बोलकर आप करोड़पति होए''।पता नहीं ये लोग क्यों बड़ी-बड़ी बातें करते हैं बेरोजगारी मिटाने की,अपना तरीका बताएं न आसान टिकाऊ कैसे दिन दूनी रात चौगुनी आय बढ़ती है,कैसे हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा हो जाता है।फर्श से अर्श पर कैसे पहुँच जाते हैं।इन नेताओं की एक चीज और समझ में नहीं आती है की ये ज्यादातर सम्बोधन जाती से ही क्यों करते हैं नाम से क्यों नहीं,समाज की बुराइयों में और खाद-पानी देने का काम क्यों करते हैं ?

                               ये हमारे नेता अपना तरीका रोजगार का क्यों नहीं सिखाते हैं,कौन सी ऐसी जी डी पी का सिद्धांत लागू होता है की इतनी तेजी से बढ़ता है की उसे रोकना ही मुश्किल होता है,देश की जी डी पी नाजुक स्थिति में पहुँच जाये,कोरोना से तमाम लोगों को रोजी-रोटी का संकट आ जाये,पर इनकी स्थिति चमाचम बनी रहती है,ऐसा कौन सा मैथमैटिक्स का फार्मूला लागू होता है की गरीबी रेखा से नीचे से जीवन शुरू करने वाले नेताजी बिना किसी रोजगार के करोड़ों के मालिक बन बैठते हैं।देश के युवाओं को वही रोजगार बताया जाये।हमें आप को अब इसपर ध्यान देना होगा,या यूँ कहें की इसे रोकना होगा अन्यथा हमें किसी बड़े चमत्कार की आशा नहीं करना चाहिए।

                                जय हिन्द जय समाज ।।     

                                      

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