मुझे शर्म आती है उन्हें --?
महिला हो या पुरुष शर्म,संकोच,शील एक ऐसा सुन्दर गहना है जिसकी तुलना किसी भी चीज से नहीं की जा सकती है,ये एक ऐसा शस्त्र है की बड़े से बड़े मामले को भी या जहाँ आपस में किसी बात को लेकर नाराजगी है चंद समय में ही निपट जाता है।यदि किसी गलती पर अगर आप पश्चाताप या दिल से शर्म महसूस करते हैं तो आगे से इसकी सम्भावना कम हो जाती है,समस्याएं भी कम हो जाती है।इतिहास उठा के देख लीजिये जहाँ पश्चाताप नहीं हुआ वहां राम-रावण युद्ध और महाभारत की परिणीत हुई,जो आज तक और जब तक ये समाज है एक प्रेरणात्मक उदाहरण बना रहेगा।वर्तमान में देख लीजिये जहाँ कोई देश अपनी गलती को नहीं मानता है और उसे शर्म भी नहीं आती है तो युद्ध की परिणीत हो जाती है।
अब वर्तमान में अपने देश और प्रदेश की परिस्थितियों पर विचार करिये,आज शर्म खुदी शर्मा रहा है बेशर्मी शर्म का लबादा ओड लिए है।आये दिन ऐसी-ऐसी घटनाएं घटित हो रही है की पूरी मनष्युता ही शर्मसार हो जाये पर ऐसा नहीं हो रहा है,बेशर्मी का चादर ओड कर शर्म का दिखावा करने में लगे हैं।अपनी स्वतंत्रता के अधिकार का बेजा इस्तमाल करके क्या-क्या किस विषय पर बोल जा रहें हैं की सुनने वाला शर्मा जाये पर उन्हें तो इसमें महारत हासिल है की,बेशर्मी में पी एच डी किये हुए हैं तो उन्हें शर्म आने से रही।बलात्कार,मर्डर की ऐसी-ऐसी थेवरी देंगे की सुनने वाला शर्मा जाये।कोई बचाव में तो कोई विरोध में ऐसे-ऐसे उपमा देगा की डिक्शनरी से भी काम न चले।दोनों पक्ष आंकड़े पर आंकड़े देते जायेंगे,एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ मची रहेगी,दोनों का मकसद अपना नम्बर बढ़ाने में रहता है,उसके दर्द को ये महसूस नहीं कर सकते जिसने अपनों के जाने का गम लिए बैठा है।इन घटनाओं पर केवल और केवल राजनीत होती रहती है।हद तो तब हो जाती है की इस अपराध को रोकने वाले जिम्मेदार लोग जो अच्छी खासी वेतन और सुविधावों का उपभोग कर रहे हैं वो भी गैरजिम्मेदाराना बयान दे देते हैं।ऐसे-ऐसे प्रकरण सामने आ रहे हैं की जिम्मेदार या यूँ कहें रक्षक ही भक्षक की भूमिका में आ जा रहे हैं।जिस बेशर्मी से रिश्वतखोरी,भ्रष्टाचार,में ये सलिंप्त हो रहे हैं ये अब शर्म कहाँ महसूस कर सकते हैं।कुछ समय के लिए निलंबन आदि की कार्यवाही हो जाती है,फिर धीरे-धीरे सब विस्मृत हो जाता है और पुनः आकर दूने उत्साह से अपने कारनामो में जुट जाते हैं।क्या कारण है की ये भ्रष्ट प्रवत्ति के लोग काल कोई भी हो मौज में रह रहे हैं ?पहले पैसा पीछे काम वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है ?जहाँ ये तैनात रहते हैं वहां इनकी खुशबू या यों कहें बदबू पुरे हवा में तैरता रहता है,पर जिम्मेदार लोग कैसे नहीं देख पाते समझ से परे है।आजकल दो शब्द बहुत प्रचलित हो गया है जो बहुत पहले से भी है,पहला प्राइम पोस्टिंग,दूसरा पनिशमेंट पोस्टिंग,शाब्दिक अर्थो में कहिये तो मलाईदार और सूखी पोस्टिंग।इसी को पाने के लिए जमीर को ताक पर रख दिए हैं,उनका मोटो है की ''हर जुगाड़ हम करेंगे अये पोस्टिंग तेरे लिए वसूल दिया है जमीर भी देंगे -----''।
जिस तरह से समाज में विकृतियां तेजी से बढ़ रही है और गलत को सही दिखाने की प्रवित्ति बढ़ रही है ये बहुत ही अशुभ संकेत है,इसकी सबसे बड़ा प्रभाव ये है की पिसती तो जनता ही है,जिसका कोई पालनहार नहीं दिख रहा है।आज हम सबको सभी संकीर्णता से ऊपर उठ कर इन भ्रष्टाचारियों और रिश्वखोरों का डट के सामना करना पड़ेगा और वो माहौल बनाना पड़ेगा की इस तरह के लोग जो जिलों में जिम्मेदारी निभा रहें हैं वो ऐसा करने का साहस न कर पाएं,हमें किसी के बरगलाने में भी नहीं आना है हमें तो जनता की शक्ति को पहचानना है और इन भ्रष्टों को भी सबक सीखना है तभी एक स्वस्थ और अच्छा समाज बन पायेगा,अन्यथा बस भगवान् भरोसे बैठिये और मातम मनाते रहिये।
जय हिन्द जय समाज ।।



👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
जवाब देंहटाएं