कोरोना --द्वितीय स्थान - हिंदी कविता [POEM] - समझाविश बाबू [SAMJHAVISH BABU] - ★Trending Hindi Blog
हवा में चारो ओर जहर घुला है
विष तेजी से फैलता ही जा रहा
कोई उपाय भी नहीं सूझ रहा
वो रोज अपनी संख्या बड़ा रहा
बाहर निकलने से भी लग रहा डर
न कोई बेहतर है इलाज न मुकम्मल दवा
कुछ लोग मास्क और दुरी भूल गए हैं
अपनों के साथ दूसरों का जीवन भी दांव पर लगा दिए हैं
जिसको लग जा रहा है ये रोग
वो सोच-सोच के कहाँ जाएँ हो रहा बेहाल
क्यूंकि सरकारी अस्पताल भी नहीं चल रहा अपनी चाल
फिरभी वो कह रहें की सब्र करो सब्र करो
पर मेरा मन कह रहा रहम करो रहम करो
भले चाहे फिर एक बार लॉकडाउन ही करो
वो सोच सोच के हो जा रहा बेहाल
क्यूंकि सरकारी अस्पताल भी नहीं चल रहा अपनी चाल
फिर भी वो कह रहें सब्र करो सब्र करो ..



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