क्या पढ़ें क्या देखें क्या समझें ????????
आजकल का जो वातावरण चल रहा है ,उसमे जो पढ़ रहें हैं या देख रहें है उससे क्या समझें यही बहुत मुश्किल हो रहा है ,कोई कुछ लिख रहा है कोई कुछ दिखा रहा है ,हम उसी में उलझते जा रहें हैं सार्थक निष्कर्ष नहीं निकल पता है ,और हम झूठ-सच के बीच में उलझते रहते हैं ,कई बार सच्चाई की जगह झूठ को ही सच मानने की गलती कर बैठते है। आज हर चीज सीधे-सीधे धन से जुड़ता जा रहा है ,अपनी चीज ऐसा प्रस्तुत करो कि मार्केट वैल्यू का ग्राफ तेजी से बढ़ता जाये और सबको पीछे छोड़ दे ,इसके लिए साम-दाम दंड -भेद सब कुछ अपनाना जायज होता जा रहा है।
कल्पना करें यदि रामायण और महाभारत काल में यदि टी वी चैनल होते तो क्या स्थिति होती ,टी आर पी के चक्कर में किस-किस तरह घटना को प्रस्तुत किया जाता कि उस काल के मर्यादित योद्धा भी पशोपेस में पढ़ जाते क्या किया जाये ,अभी युद्ध कि वो रणनीती सोच भी नहीं पाते और चैनल वाले उनकी पूरी रणनीती कि कल्पना बाहर साकार कर देते।एक-एक योद्धा मारे जाते और चैनल में गजब का विश्लेषण चलता रहता ,कई चैनल तो यह कहते देखिये सीधे लंका से या कुरुछेत्र से सीधे लाइव टेलीकास्ट देखिये ,किसी ने नहीं दिखाया होगा पहली बार हमारा रिपोर्टर युद्धस्थल पर पहुंचा है देखिए तीर पर तीर चलाये जा रहे हैं ,कोई पीछे हटने को तैयार नहीं है ,मेरा रिपोर्टर जान जोखिम में डालकर कवरेज करने का प्रयास कर रहे हैं। उसके बाद चैनल पुरे युद्ध और उसके अंत तक कि भविष्यवाणी कर देते। लेकिन मेरा मस्तिष्क यह नहीं समझ पा रहा है कि रिपोर्टिंग के लिए रिपोर्टर द्रोणागिरी पर्वत पर कैसे पहुंचते।आज जितनी आसानी से हम उस काल कि सत्यता को स्वीकार करते हैं आज के काल में तो कौन चैनल क्या बताता हम समझी न पाते।कितने एंगल से विश्लेषण होता पैनल में बैठे लोग बात को कहाँ से कहाँ ले जाते किस -किस समीकरण से जोड़ते और एंकर कैसे उसको हवा देता कि टी आर पी हाई पहुँच जाये इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं।युद्ध के क्या-क्या माने निकाले जाते उसके विषय में हम सोच भी नहीं सकते।युद्ध के लिए शिविर से निकलते ही कैमरे के घेरे में आ जाते ,अभी कौन क्या करेगा या क्या परिस्थिति आएगी शायद उन योद्धा को एकबार न पता होता पर ये ऐसा बताते की जैसे इनको सब पता हो
आज की स्थिति क्या हैं? टी वी खोलिये एक ही घटना का विश्लेषण विभिन्न तरीके से होता मिल जायेगा ,यह सही हैं की किसी भी घटना की सत्यता सामने आना चाहिए ,लेकिन ये भी उतना ही सत्य हैं की अन्य घटनाएँ कहीं विलुप्त न हो जाये। साथ ही यह नहीं समझ में आता की सत्यता हर चैनल पर भिन्न कैसे हो जाती हैं ,सत्य तो एक ही हो सकता हैं ,आज यूट्यूब खोलिये तरह-तरह के विश्लेषण मिल जायेगा ,जो दिखाया जा रहा हैं उससे इतर भी मिल जायेगा। मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ की सत्य अलग-अलग कैसे हो सकता हैं ,चैनलों पर डिबेट में अब मर्यादा की बात करना भी बेमानी है।
पहले कवियों के लिए ये कहावत सुना था की जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि ,लेकिन अब इसे बदलना होगा की जहाँ न पहुंचे कोई वहां पहुंचे चैनल। इसको सकारत्मक रूप में ले लिया जाये फिर भी मेरा ये मानना है कि टी आर पी और धनार्जन के चक्कर में कहीं हम सत्यता से विमुख न होते जाएँ और आप कि तरफ जिस आशा से जनता देखती है वह भ्रम टूट न जाये। क्यूंकि ये एक ऐसा समाज का जरिया है जो जनता को न्याय दिलाने में एक सशक्त माध्यम बन सकता है ,तो उसे न केवल बनाये रखा जाये बल्कि दिन-प्रतिदिन उसकी विश्वसनीयता और बड़े इसका प्रयास होना चाहिए ,पर ऐसा दिख नहीं रहा है ये एक चिंता का विषय है ,जो डिबेट होते हैं वहां यह होना चाहिए कि ''ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोए -----'' पर हो रहा इसका उल्ट '' ऐसी कटु बानी बोलिये की दूसरा आपा खोए फिर मर्यादा तोड़ कर हम विजयी हो जाएँ ,हमें न चिंता परिणाम की अपने यहाँ इमेज बन जाये ''
अभी समय है ऐसा वातावरण बनायें की आपकी टी आर पी भी बनी रहे और सत्य और मर्यादा भी बनी रहे ,क्यूंकि आप एक ऐसे स्तम्भ हैं की वर्तमान में आप सत्य की रक्षा की सबसे कारगर और प्रभावशाली कड़ी बन सकते हैं ,एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सबसे अच्छा योगदान आप ही कर सकते हैं।



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