तेज रफ्तारधारी कोरोना - हम कहाँ ???

भारत में मार्च २२ को जनता कर्फ्यू के बाद २४ मार्च से २१ दिन का पहला लॉकडाउन शुरू हुआ था जो कमो बेश मई माह तक तो लगातार चलता रहा।मेरी समझ से जब पहला लाकडाउन हुआ था तो १००० से भी कम मरीज थे। उस समय जब लाकडाउन हुआ तो अचानक होने की वजह से लोगों को संभलने का मौका भी नहीं मिला था , जिसके कारण कई मुश्किलों का सामना आम लोगों को करना पड़ा था,कहीं-कहीं तो काफी भैयावह स्थिति  उत्पन्न हो गयी थी। ,लेकिन जान है तो जहान है सबने लाकडाउन में जीना सीख लिया था।



                            आज जब अपने देश में कोरोना की स्तिथि देखते हैं तो एक सिहरन सी हो जाती है ,विश्व के देशों से तुलना करने पर यह पता चलता हैकि हम दूसरे पायदान पर पहुंचने वाले हैं ,अमेरिका के बाद अपने देश का ही नंबर होगा। जहाँ देश में ३० से ४० हजार मरीज बढ़ रहे थे वहीँ पर अब ७० से लेकर ८० हजार से ऊपर मरीज प्रतिदिन बढ़ रहे हैं ,संख्या में कमी होता दिखाई ही नहीं पढ़ रहा है ,इसका एक कारण परीक्षण ज्यादा होना हो सकता है ,तो इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता की परीक्षण यदि और बड़ा दिया जाये तो नंबर और ज्यादा बढ़ सकते हैं।सबसे बड़ी समस्या जो आम आदमी के लिए बना है ,वो है सरकारी हॉस्पिटल में इलाज की व्यवस्था ,जिसे लेकर लोग कोरोना से ज्यादा भयग्रस्त हैं ,आये  दिन तरह-तरह की खबर सरकारी हॉस्पिटल के बारे में आ जाती है जो और चिंतित कर देती है। 

                                  आज इस परिस्थिति को देखते हुए क्या एक बार एक सप्ताह ही सही पुनः लाकडाउन पर विचार करने की जरुरत नहीं है ,क्या हम केवल यह देखते हुए की मृत्यु दर कम है और रिकवरी  रेट ज्यादा है इस कारण से लाकडाउन पर विचार नहीं करेंगे ,आखिर मर तो हमारे ही भाई-बंधू रहे हैं। यदि लाकडाउन किया जाता है तो इसका सदुपयोग ये  और न तेजी से बड़े इसपर किया जा सकता है ,बड़े शहरों या वे जहाँ तेजी से बढ़ रहे हैं वहां कई सेक्टर बनाकर घर-घर जरुरी साजो-सामान के साथ परीक्षण कराया जा सकता है ,जिसमे ऑक्सीमीटर का प्रयोग भी जरुरी है ,साथ ही घर-घर जागरूकता के साथ एक पम्पलेट के रूप में ये भी दिया जाये की क्या सावधानी बरतें और सामान्य लक्षण दिखने पर और उससे पूर्व बचने के लिए क्या लेना आवश्यक है क्या नहीं ,किसे कितनी मात्रा में कब तक लेना चाहिए ,ये सब जानकारी दी जाये ,क्यूंकि हो ये रहा है की हर घर में तरह-तरह के काढ़े का और दवा का प्रयोग किया जा रहा है ,जो जैसा पढ़ ये कहीं देख ले रहा है वैसा ही करने लग रहा है। जिसमे ये भी सम्भावना बनी रहती है कि किसी चीज कि इतनी अधिक मात्रा न लेली जाये कि   नाजानकारी में कि बाद में उससे नुक्सान पहुंचे। ऑक्सीमीटर  जैसी चीज जिसे आम आदमी भी इस्तेमाल आसानी से कर सकता है ,उसे जिसकी स्थिति खरीदने का हो उसे पैसे से बाकी को कुछ समय के लिए सरकार से उपलब्ध करा देना उचित हो सकता है।ये कटु सत्य है जिसे हम सभी स्वीकार करेंगे कि शासन चलाने के लिए धन कि आवश्यकता पड़ती है,जिसके लिए लॉक डाउन सकारात्मक नहीं माना जायेगा ,लेकिन एक सप्ताह या दस दिन में क्या दिक्कत है ,मर तो लोग रहे हीं हैं ,अब आंकड़ों से न इसे मापा जाये ,आंकड़ेबाजी में तो कई दिक्कते आती हैं ,कई  बार आंकड़ा एकदम शुद्ध नहीं होता है।जहाँ तक जो प्राइवेट हॉस्पिटल बनाये गए हैं ,वो आम आदमी के बजट से कोसों दूर है।  

                               मात्रा कुछ चैनलों ने कुछ एक्सपर्ट डॉक्टरों का साछात्कार कराकर लोगों को जागरूक किया है ,यद्यपि उनका प्रयास अच्छा है ,पर ये नाकाफी है ,इसे व्यापक रूप देने कि और एकबार पुनः लॉक डाउन पर विचार करने कि जरुरत है।क्यूंकि मेरे परिचित ही चाहे वो नौजवान क्यों न हों कोरोना पॉज़िटिव होते ही घबड़ा जा रहे हैं ,मानसिक रूप से डिप्रेस हो जा रहें है ,सरकारी हॉस्पिटल में जाने से कतरा रहे हैं ,इन सबको देखते हुए एक बार ही सही विचार जरूर करना चाहिए।

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