दर्द के लिबास में कब तक लिपटेंगी बिटिया
आज आदिम समाज से प्रगति करते हुए हम अत्य आधुनिक समाज में आ गए हैं,आदिम समाज में हम वस्त्र जरूर नहीं पहनते थे,शरीर नंगा जरूर था पर मन नंगा नहीं था।हम ही ढोल पीट-पीट कर कह रहे हैं की हम बहुत ही आधुनिक हो गए हैं,बहुत ही प्रगति कर लिए हैं हमारा विश्व में कोई शानी नहीं है,हम ये भी सीना पीट-पीट कर चिल्लाते हैं की हमने विश्व को सभ्यता सिखाई है,पर जो समाज का हाल बनाते जा रहे हैं उससे हम कौन सा सन्देश दे रहें हैं,बेटियों और महिलाओं के मामले में तो हम आदिम समाज का भी कान काट रहे हैं,हैवानियत में तो हम जंगली हिंसक पशुओं को भी शर्मिंदा कर दे रहे हैं,जंगली पशुओं को भी प्यार कर दुलार कर पालतू बना दिया जाता है,लेकिन लगता है इन हैवानो के लिए कोई भी प्यार-मोहब्बत की भाषा बनी ही नहीं है।
हमने सिंधुघाटी की सभ्यता भी पढ़ी है जहाँ मातृ सत्तात्मक सभ्यता थी जहाँ पुरषों को भी पहचान माँ से मिलती थी,हमने धीरे-धीरे इसे समाप्त करते हुए पितृ सत्तात्मक सत्ता तो स्थापित कर दिया पर महिलाओं के प्रति हमारी विचारधारा संकुचित होती चली गयी,महिलाएं डरी सहमी सी जीवन जीने के लिए मजबूर होती रहीं।स्थिति में सुधार न होने का एक और कारण रहा की इनके हक़ की लड़ाई के लिए भी जब भी बात चली तो उसमे भी पुरुष ही अगुआ बनने की कोशिस किये,जब पुरुष अगुआ बनने की कोशिस किये तो सफलता मिलने का सवाल ही नहीं था,हीरे महिलाएं जागरूक हुईं और अपने हक़ के लिए आवाज उठाना शुरू किया तो सरकारों ने भी काफी नियमों और कानून में बदलाव लाया ,जिससे बहुत ही मदद मिली,जो एक सम्पति के तरह कुछ लोग समझते थे उन्हें भी कानून ने बाँधा।समय-समय पर कठोर कानून बनाये गए पर समाज में अपेक्षाकृत परिणाम नहीं मिल प् रहा है,आखिर क्यों?
क्या कारण है कि शक्त से शक्त कानून बन जाने के बाद भी बेटियों के प्रति हैवानियत,क्रूरता थम नहीं रही है?मेरी समझ से तीन कारण प्रमुख है।पहला कि अपने थाने कि साफ छवि रखने के लिए घटना को दबाये रखना,त्वरित ऍफ़ आई आर दर्ज कर कार्यवाही न करना,उच्चाधिकारियों द्वारा प्रथम स्तर पर लीपा-पोती का प्रयास करना,कई बार थाने स्तर पर ही समझौते के द्वारा मामले को रफा-दफा करने का प्रयास करना,दूसरा लम्बी क़ानूनी प्रक्रिया जिसमे धन और श्रम दोनों लगते हैं,तीसरा लोक-लाज के व दबंगई के भय से घटना को सीने में ही दफ़न कर देना।
यहाँ पर उन जिम्मेदार लोग वो चाहे किसी भी पद पर बैठे हों उन्हें एक बार हैवानियत कि शिकार मासूम बेटियों के चेहरे में अपनी बेटी का प्रतबिम्ब रखकर सोचना चाहिए,मेरा दावा है कि वो घटना में लीपा-पोती के बारे में सोच ही नहीं सकते।दूसरे हर जिले में एक त्वरित न्यायालय का गठन होना चाहिए,जो अधिकतम ६ माह में निर्णय दे दे,साथ ही एक निशुल्क चार वकीलों का पैनल होना चाहिए जो उन पीड़िताओं का मुकदमा लड़े इसके अतिरिक्त कोशिश ये रहे कि इससे सम्बंधित अपराधी उस जिले के जेल में बंद न हो जिस जिले में मुकदमा चल रहा है और ये जबतक मुकदमा फाइनल न हो जाये कहीं भी निर्वाचन या नौकरी में भाग न ले सके और न ही किसी सरकारी लाभ का पात्र समझा जाये।
अपने सफ़ेद शर्त के लिए बेबस बेटियों के आँशु कि कीमत न ली जाये,असहनीय शारीरिक व मानसिक तथा सामाजिक पीड़ा सहने वाली बेटियों को साहस और अपने समर्थन से नैतिक बल प्रदान किया जाये,बहिष्कार तो उनका होना चाहिए जो अपनी जिम्मेदारियों को ताक पर रहकर उन हैवनियतों को परोक्ष रूप से मदद करते हैं।एक काम और होना चाहिए कि जैसे ही जांच में तथ्य संज्ञान में आ जाये कि अमुक थानेदार या उससे बड़ा अधिकारी पूरी तरह दोषी है तो उसके बर्खास्ती तक कि कार्यवाही करनी चाहिए जो नजीर बन जाये दूसरों के लिए।बाद में आकर बड़े अधिकारीयों द्वारा कुछ भी कहा जायेगा तो वो बिलकुल गलत और भ्रामक ही लगेगा और लगे भी क्यों न,जब समय से कार्यवाही करने में आना-कानी की जाएगी |ऐसी घटना क्यों बार- बार घटती है,क्यों हर बार वही कहानी दोहरानी पड़ती है ?अब इस पर कोई ठोस एक्शन लेने की जरुरत है |आज बिटियों की स्तिथि क्यों ऐसी हो गयी है ----------
सूरज तेरे उजाले में
मेरी इज्जत तार-तार की गयी
चंदा तेरी चांदनी में
मैं क्रूरता की शिकार हुई
अब आ रहीं हूँ तेरे पास
यहाँ न मिल पायेगा इन्साफ
हैवानियत का मैं इस तरह शिकार हुई
पल -पल जिंदगी से लड़ती रही
पर मौत से न लड़ पायी
चंदा तू मेरे माँ से कहना
मेरे बेबस पिता को भी समझाना
मेरे भैया से भी कहना
राखी जो रखा है सहेज कर
उसे ही फिर बांध लेगा
उदास न हो मुझे न बचा पाया
पर एक वादा कर दे जरूर
अब न कोई बहन न कोई बेटी
इस तरह क्रूरता की शिकार होगी
न कोई इज्जत तार-तार होगी
मैं तो चली अब दूसरे देश
मेरे साथ इन्साफ हो इन्साफ हो..
अब तो जुर्म हो रहा है लिखना की खिल रहीं हैं कलियाँ
अब तो वक्त की पाटी में मुरझा रहीं हैं कलियाँ ..



acha lekh regular muddo pe likhte rahen
जवाब देंहटाएंdhanyavaad,prayas karunga
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