हाय सच्चाई -हाय सच्चाई

सुनता और पड़ता चला आ रहा हूँ की सत्य के आगे  बड़ा से बड़ा झूठ पराजित हो जाता है और झूठ कभी भी सर नहीं उठा पाता  है ,सत्य सत्य ही होता है,सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं ,सत्य के   बारे में इतना प्रचार इतनी प्रसिद्धि सुन रखा था की मुझे  भी  लगने लगा की सत्य का मार्ग सबसे उत्तम है ,इसी पर चलना और अमल करना श्रेयस्कर  होगा ,और अंदर से एक सुखद अनुभूति हुई की मैंने सही रास्ता चुना है |राजा हरिश्चंद्र की कथा भी पढ़  चूका  था जो सत्य को प्रतिस्थापित करने के लिए त्याग और कष्ट सहने की पराकाष्ठा का उदाहरण पेश किये थे ,आज भी सत्य की बात  जहाँ  भी  होती  है उनका नाम बरबस आ ही  जाता है,लेकिन  हकीकत की दुनिया  से रूबरू  होना  जब शुरू  हुआ,धरातल पर जब जीना शुरू किया तो दिल और दिमाग दोनों चकरा  गया ,मेरा विश्वास हिलने ही नहीं  लगा बल्कि दहल आया स्थिति देखकर ,की क्या यही सत्य है,क्या जो मैने  पढ़ा और सुना वो यही है,बिलकुल ही कन्फ्यूज हो गया |यहाँतो माजरा ही उल्टा था झूठ अट्ठाहस लगा रहा था और सत्य मिमिया रहा था,ऐसा लग रहा था की सत्य ही झूठ  है और झूठ ही सत्य है ,झूठ  की वकालत करने वालों की भीड़ थी और सत्य अकेला ही  खड़ा था,झूठ के पाँव मजबूती से जमीन पर टिका था और सत्य का पाँव ही लड़खड़ा रहा था |



                            आज ऊपर से लेकर नीचे तक झूठ का ही तानाबाना बनाया  जा रहा  है और हम सब उसी तानेबाने में उलझते  चले जा रहें हैं,और उनके द्वारा दिखाए गए सत्य जो की  वास्तव में झूठ  है,उसी को हम भी सत्य मानने की गलती किये जा  रहे हैं |यही कारण है की झूठ को सत्य बनाने वाले लोग मौज कर रहे  हैं  और सत्य का  पालन करने वाले लोग राजा हरिश्चंद्र की तरह बनवास झेल रहे हैं ,जिन्हे  सुखी होना चाहिए वो दुखी हैं  और जिन्हे सुख  का कोई अधिकार नहीं होना  चाहिए वो सुख में गोते लगा रहे हैं |

                        एक  आपको  रोचक चीज   देखने  को मिलेगी की आप कही भी चले जाइए , चलिए किसी भी सरकारी दफ्तर में ही चले जाइये,वहां पर सरकारी कर्मचारी,अधिकारी पहली बार ऐसे नियम और कायदे की बात करेगा की लगेगा की राजा हरिश्चंद्र के   वंशज ये  ही है,जब की पहले वह आपको भांपता  है की आप  सूखा -सूखा    काम  कराने आये  हो  या  फिर  है कुछ  जेब  में  दाम,यदि  नहीं  है  तो  ज्ञान  की पुस्तकों  का  भण्डार खोल देगा और इतने पटलों पर जाने को कह देगा की आप घूमते ही रह जोओगे ,लेकिन यदि सुविधा शुल्क देंगे तो बहुत आसानी से काम हो जायेगा ,हाँ ये इसपर जरूर निर्भर करता है की किता आप दे रहे हो,अब झूठों के दरबार में रिश्वत सुविधा शुल्क बन गया है। बुद्धिमान अधिकारी और कर्मचारी वही है जो वेतन को सुरक्षित रखे,ऊपरी मलाई  से काम चलाये ।यदि को सच्चा अधिकारी या कर्मचारी है तो वो देख-देख कुढ़ता रहे की ये गलत हो रहा है।आज झूठ के समुन्द्र में सच नदी बनता जा रहा है जो उस समुन्द्र में अपना अस्तित्व खोता जा रहा है,अब ये पड़ने और लिखने के काम आ रही है की सत्य की जीत हमेशा होती है,धन के खेल ने सत्य का अस्तित्व डांवाडोल कर दिया है,झूठ हवाई सफर कर रहा है और सच जमीन पर ऐंडिआ रगड़ रहा है,अजब ज़माने का गजब खेल चल रहा है ''धन की लूट मची है लूट सके तो लूट करने वाला कोई नहीं है छक के लूट''।यहाँ झूट सच से कह रहा है की ''मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम है जो है झूठा उसी का बड़ा नाम है''।अब स्थिति ये आ गयी की झूठों की भीड़ में कितने के खिलाफ कार्यवाही करेंगे,थक जाएंगे,अब कोई चमत्कार की ही उम्मीद की जा सकती है। 

                          हाय सच्चाई हाय सच्चाई तू कहाँ से आयी 

                          झूठों का यहाँ दरबार सजा है  

                          फरेबी यहाँ पहरेदार बने हैं 

                          कुछ थानेदार साझीदार बने हैं 

                          बड़े-बड़े हिस्सेदार बने हैं 

                          तू इनके बीच कहाँ से आई

                         हाय सच्चाई ----------

                         फरेबी काट रहे हैं दूध और मलाई 

                        दो जून के निवाले के लाले पड़ गए

                        सच्चाई के पैर में छाले पड़ गए 

                        गरीबों के भाग्य अमीरों के हवाले हो गए

                        जनता बेचारी थी बेचारी रह गई 

                       हाय सच्चाई ---------------

                       अब राम और कृष्णा की पुकार कर ले 

                       वामन या नारशिमभा का अवतार ले ले 

                        तभी तू इनका संहार कर पायेगा 

                       नहीं तो उलटी रीत चल जाएगी 

                         झूठ के बाजार में सच्चाई नंगा हो जायेगा 

                         हाय सच्चाई ---------------                         

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