कुंठित युवा -बेरोजगारी ? - समझाविश बाबू

आजकल बेरोजगारी की चर्चा सभी जगह हो रहा है ,चारो ओर इसी की चर्चा इस समय चल रहा है।इसके लिए कुछ अन्य तथ्यों को जानना भी जरुरी है ,सबसे पहले शिक्षा भी कुछ हद तक इसके लिए जिम्मेदार है। यदि देखा जाये तो श्रमिक में दो प्रकार के अकुशल  श्रमिक और कुशल श्रमिक,शिक्षित में ट्रेंड और अनट्रेंड। शिक्षा के लिए तो तमाम विद्यालय बन गए हैं कई जिलों में तो इतने विद्यालय बन गए हैं की इसकी उपयोगिता ही समझ में नहीं आती ,तहसीलों में इनमे से कई विद्यालयों का निरिक्षण किया जाये तो ये पाया जायेगा की यहाँ पढ़ाई का केवल दिखावा मात्र होता है ,केवल डिग्री का एक साधन मात्र बन कर रह गया है। यहाँ से डिग्री लेकर निकलने वाले कई विद्यार्थी तो ऐसे होते हैं जिन्हे अपने सब्जेक्ट के विषय में ही सही जानकारी नहीं होती है,अब ऐसे तो संख्या मात्र ही शिक्षित की बढ़ती है योग्यता नहीं। तमाम इंजीनयरिंग कॉलेज भी खुली हुई हैं किन्तु ये जो प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों में वो बात क्यों नहीं आ पति जो आई आई टी अदि में है। डिग्री कॉलेजों की तो कई जगह भरमार है पर ज्यादातर इन प्राइवेट कॉलेजों में केवल डिग्रीयां बाटना ही उद्देश्य हो गया है ,ये सभी एक व्यवसाय की तरह ही चलते हैं ,इनका मूल उद्देश्य धनार्जन का होता है।प्राइमरी स्कूलों का हाल भी बेहाल है जहाँ से बीज पौधे का शक्ल लेता है ,यदि वहां शिक्षा का स्टार  ही ख़राब है तो आगे चलकर उनसे क्या उम्मीद करेंगे। 



                                      जितनी भी सरकारें आईं हैं किसी ने इसे बेहतर करने का बहुत ही सुदृण प्रयास नहीं किया और न ही इसे रोजगारपरक बनाने का प्रयास किया। ऐसे में हम क्या उम्मीद कर सकते हैं ,सबने बड़े-बड़े सपने दिखाए और धरातल पर परिणाम सुण्या  के बराबर रहा। इसका एक कारण यह भी है की जो नीति  बनाने वाले लोग होते हैं वो बंद ए सी कमरे में अपनी सोच से नीत बना देते हैं और सोचते हैं की बहुत बड़ा अब तीर मार लिया जायेगा ,पर होता कुछ नहीं है। इन्ही वादों के मायाजाल में हमारा युवा फंसा रहता है और दर-दर की ठोकरे खाता  है।कोई भी सरकार  अपना दोष नहीं मानती है ,जिसका खामियाजा हमारा युवा झेलता है। 

                       वर्तमान में लाकडाउन अचानक घोषित होने से स्थिति थोड़ी और ख़राब हो गयी ,रोजगार के अवसर घटने की खबरें चारोओर फ़ैल रही है ,साथ ही निकालने और सेवानिवृत भी करने की खबरे खूब चल रही है ,आज जिम्मेदार लोगों का कर्त्तव्य है की वो सामने आकर ये आंकड़ें सहित बताएं की कितने रोजगार किस विभाग में कब तक निकाले जाएंगे,कोई रोजगार का अवसर घटाया नहीं जायेगा ,साथ ही ये भी प्रयास हो की जिले स्तर पर हमारे जो श्रमिक हों उन्हें रोजगार न मिलने के कारण रोजी रोटी की समस्या न आये। जो तरह-तरह की भ्रांतियां फ़ैल रही हैं इसे दूर किया जाये।

                                     आज समय है एक ठोस विजन के साथ आगे आने का क्यूंकि यदि हमारा युवा ही कुंठित हो गया तो हम विकसित हो ही नहीं सकते और हमें अच्छा कहलाने का हक़ भी नहीं रह जायेगा ,ये अत्यंत दुखद रहा है की एक नौकरी के आस में युवा प्रौढ़ अवस्था को भी पार कर जाता है ,उसके जीवन के अनमोल समय ऐसे ही जाया हो जाते है। 

                       रोजगारपरक शिक्षा बनाना होगा ,शिक्षा की स्थिति सुधारनी होगी ,शिक्षा और रोजगार के अवसर में घोटाले और माफियागिरी को समाप्त करना होगा ,तभी हम बेरोजगारी की समस्या को कुछ हद तक नियंत्रित कर पाएंगे ,केवल सुनहरे सपने दिखाने  और आंकड़ेबाजी से ये दूर नहीं होने वाली है ,बरबस ये कविता लिखना पड़ रहा है ----

        

 ये मत सोच हर उजाले क बाद अँधेरा है 

                सोच ये रख की हर अँधेरे क बाद उजाला हैं 

 रात कितनी भी लम्बी क्यों न हो 

            कट ही जाती है सुबह को कभी नहीं रोक पाती है

 माना की दुश्वारियां तो बहुत है 

                         पग पग पर तेरे कांटे बिछे है 
  मगर पाँव झटकने की ताक़त रख दूर हो जाएँगी 

               कब तक इनकी और नज़रें उठा के देखेगा 

  ये सब तो मतलब के यार हैं 

                    तुझे बहलायेंगे और फुसलायेंगे भी 

  और बीच रस्ते पर ही छोड़ जायेंगे 

                    कर हिम्मत व् जोश अपने में पैदा

   तू तो ताक़त रखता है ताज बदलने की 

                 तो अपनी किस्मत भी खुद बदल सकता है।।  

                                   

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