प्रभुजी कब आओगे - समझाविश बाबू
आज चारो ओर जिस तरह का माहौल बना है भ्रष्टाचार,रिश्वतखोरी,अपराध,जाति-धर्म का विद्वेष,राजनीति की कुटिल बिसात उस पर से चीन और पाकिस्तान की मक्कारी भरे कारनामे ,इन सबको देखते हुए बरबस मन से पुकार लग गया प्रभुजी कब आओगे?
आज कुछ बड़े लोगों पर और कुछ बड़ी बातों पर ही वाक्युद्ध छिड़ा हुआ है ,रोज नित नए बिंदु जोड़कर वाद-विवाद का चक्र चल रहा है ,कुछ ऐसे स्वप्नलोक बना दिए गए हैं जिनकेी छोटी से छोटी बातें राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय लेवल का समाचार बन जाता है,उनके कहे हुए वाक्य सूक्त वाक्य की तरह चलने लगते हैं,उसी पर लाइक की भरमार हो जाती है,पर हमारे कर्णधार जो देश को रोटी देते हैं उन पर गाहे-बगाहे ही चर्चा होती है ,बातें तो खूब की जाती हैं पर उनकी और गरीब तबके की स्थिति सुधारने का नाम ही नहीं लेती।
आज जो स्थिति चल रही है क्या ये भी दिन देखना था की कप्तान,इंस्पेक्टर किसी हत्या के ३०२ के मुल्जिम बन जाएँ और उन्हे भी फरार होना पड़े ,यदि रक्षा करने वाला इस रूप में आ जायेगा ,तो फिर समाज को सुरक्षित कौन रखेगा ? आज भी हमारी पहचान जाति और धर्म से की जा रही है ,हम कब एक मनुष्य के रूप में जाने जायेंगे ?आज रक्षक के भक्षक बनने के कई उदाहरण सामने आने लगे हैं ,क्या अपराधी,माफिया कम थे समाज को दूषित करने के लिए ,की इनकी भी जरुरत पड़ गयी। आज जिस कदर रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार बड़ रहा है की ये स्थिति हो रही है की ईमानदार ही कुंठित हो रहे हैं।जब इंसानियत की जरुरत और ईमानदारी की दरकार जिम्मेदार लोगों से रहती है तो उन दायित्वों को न निभाकर विपदा में भी अवसर तलाश लेते हैं ,उन्हें किसी की जान की परवाह भी नहीं रहती उन्हें तो सिर्फ और सिर्फ अपना घर भरना रहता है ,यही कारण है की आज दुर्योधन ,कंस और रावण की फ़ौज मिल जाएगी। सबसे बड़ी त्रासदी तो ये है की इस आधुनिक समाज में भी इनके जयकारे लगाने वालों की फ़ौज मिल जाएगी ,और ऐसे महिमा मंडित करेंगे की जैसे ये कोई महापुरुष हों,हद तो तब हों जाती है जब ये अनेक मंचो को साझा ही नहीं ही नहीं करते बल्कि उन मंचो से भी उन्हें महिमामंडित करने का प्रयास किया जाता है ,और इन्ही सब वजहों से ये देश का सबसे पवित्र मंदिर समझे जाने वाले संसद और राज्य के विधानसभाओं के सम्मानित सदस्य बन जाते हैं।तर्क ये दिया जाता है की अभी न्यायालयों से इन्हे सजा नहीं मिली है ,अब खुद सोचिये की जिसे सभी लोग अपराधी के रूप में जानते और पहचानते हैं ,जिसे पुलिस भी उसी दृष्टि से देखती और कार्यवाही करती है बाद में उन्ही को सैलूट करती है। ऐसी परिस्थिति में किस न्याय की बात हम करेंगे ?यही कारण है की नए-नए अपराधियों के वे रोल मॉडल बन जाते हैं। और ये एक सबसे शॉर्टकट रास्ता बन गया है समाज में ऐशो-आराम से जीने और स्टेटस उठाने का। दुःख तो तब होता है की जब इनके खिलाफ कभी कार्यवाही होती है तो कुछ लोग इसे जाति -धर्म के चश्मे से देखने लगते हैं ,इसीलिए मुझे पूर्व वैदिक काल की सभ्यता अच्छी लगने लगती है जब जाति कर्म से आँकी जाती थी। आज अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार बैठे हैं ,रिश्तों का ही गला काटने को तैयार हैं तो फिर जिनसे रिश्ता नहीं है उनकी तो बात ही छोड़िये।महिलाओं का सम्मान तो छोड़िये उसकी इज्जत को तार-तार कर देते हैं और शर्म नहीं आती है। प्रभु महाभारतकाल में तो एक दुशासन था जिसे सब पहचानते थे ,लेकिन अब तो कितने दुशासन हैं इसकी गड़ना करना मुश्किल है। आज जिन -जिन शब्दों का प्रयोग खुले आम होता है उसे सुनकर आप भी शर्मा जाएँ।
इसीलिए पुकार है की कब आओगे कहीं देर न हों जाये ,अपनी एक झलक दिखलाओ प्रभु क्यूंकि जो भ्रष्टाचार,रिश्वतखोरी,अपराधगिरी में लिप्त हैं उनको ये भय लगना तो शुरू हों की उन्हें दंड मिलेगा,जो अपने को ही स्वयंभू समझ बैठे हैं उनको एक बिजली जैसा झटका तो लगे ,अब तो यही गाने की इच्छा है कि ----
कब आओगे कब आओगे ..



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