कोरोना की भयावता - क्या करें ! - समझाविश बाबू
दिन-प्रतिदिन जिस तेजी से कोरोना के मरीज बढ़ रहे हैं उसे देखकर सभी को घबड़ाहट हो रही है ,पिछले २४ घंटे में ६१००० से अधिक पॉजिटिव केस आये हैं , कई जिलों में बेड का टोटा है ,घरेलु इलाज में काढ़े के अलावा कुछ नहीं है।
सरकारी हॉस्पिटलों में जो व्यवस्था है उसे बताने की कोई जरुरत नहीं है इसी लिए सक्षम लोग प्राइवेट हॉस्पिटलों का रुख कर रहें हैं ,सरकारें भी देश की गिरती अर्थ व्यवस्था को देखते हुए अब पूर्ण लॉकडाउन करने के मूड में नहीं है ,उनके तरफ से ये आंकड़ा ज्यादा जोर देकर बताया जाता है कि स्वस्थ ज्यादा लोग हो रहें हैं और मृत्यु दर कम है। बाजार में या घर से बाहर निकलिये या हमारे घर कोई आता है तो सभी संदेह से देखे जातें हैं ,यहाँ तक की किसी को सामान्य छींके या खांसी आ गयी तो अछूत की दृष्टि से देखा जा रहा है। कब कौन कोरोना के चपेट में आ जाये कोई भरोसा नहीं है। निम्न और मध्यम वर्गीय व्यक्तिओं को तो मज़बूरी में घर से निकलना है ,और निकलने में वह हाई रिस्क में जीता है कब वह कोरोना के चपेट में आ जायेगा वह खुद नहीं जानता है ,अभी भी जो आंकड़े हमे डरा रहे हैं वो कम ही है क्यूंकि अभी उतनी रफ़्तार से जांचे नहीं हो पा रही हैं ,सच पूछिए तो अभी कितने ऐसे लोग घूम रहें हैं जिनको खुद नहीं पता की वो भी कोरोना से ग्रसित हैं ,ये तो हम मानते हैं की ये वैश्विक महामारी है जिस पर कोई बस नहीं है पर कुछ चीजों पर तो हम नियंत्रण कर सकते हैं जो हमारे पहुँच में है।
यहाँ सबसे महत्वपूर्ण है की ये माना जा रहा है कि कोरोना किसी को भी हो सकता है लेकिन आम आदमी को अगर दिमागी रूप से यह सुनिश्चितता रहे की सरकारी हॉस्पिटलों में जाने पर उसका हर संभव बड़ियाँ इलाज होगा और उसे कोई कठिनाई नहीं होगी तो वो भी सुकून में रहेगा।लेकिन लाख दावों के बाद भी ऐसा नहीं हो पा रहा है। तमाम जगहों से ऐसी खबरे आती हैं जो नकारात्मकता फैलाती है। यह बिलकुल सत्य है कि आम आदमी महंगे प्राइवेट हॉस्पिटलों का खर्चा वहन नहीं कर सकता ,इसलिए उसके मन में विश्वास पैदा करना सबसे बड़ी चुनौती है जिसे करना ही होगा। आम आदमी में अधिकांशतया इस महामारी में मज़बूरी में निकलता है। हाँ यह अवश्य है कि जो व्यक्ति सड़कों,बाजारों आदि में निकलकर सोशल डिस्टैन्सिंग व मास्क का प्रयोग नहीं कर रहे हैं वो अपने साथ सभी को खतरे में डाल रहें हैं और यह सही भी है कि अधिक संख्या में लोग ऐसा कर रहें हैं। इसलिए यह मेरे विचार से आवश्यक लग रहा है कि भले एक सप्ताह ही यदि समूर्ण लॉकडाउन पर विचार कर लिया जाये तो कुछ बेहतर हो सकता है और उस पीरियड में ज्यादा से ज्यादा टेस्ट हो और कुछ बड़े विद्यालयों ,प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों ,इंजीनियरिंग कॉलेजों को अस्थायी हॉस्पिटलों में परिवर्तित कर वहां पर एक जिम्मेदार अधिकारी नोडल अफसर के रूप में तैनात हो ,तो ज्यादा उत्तम होगा। अन्यथा तो हम सभी इस आशा में बैठें ही हैं कि धीरे-धीरे ये अपने आप ख़तम हो जायेगा क्यूंकि हम ईश्वरवादी और आशावादी दोनों हैं।



जवाब देंहटाएंबड़ी खराब स्थिति आदमी घर पे ऐशो आराम से है तोह अच्छा गार्डनिंग कर सकता है खुले में व्यायाम कर सकता है स्वस्थ रह सकता है और सभी सदस्य अपने अपने शयन कक्ष में मानसिक तनाव से डोर रह सकते है।
ji sahi hai
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जवाब देंहटाएंसही कहा राहुल जी आपने फ्लैट्स व मध्यम वर्ग के कमरों में बस मानसिक तनावत है खुलापन अपना स्पेस न होने पे इस बीमारी में सिर्फ बड़े घर वाले ही सुखी जीवन मे बाकी सब मानसिकता विकार से ग्रसित हो रहे है।
वेक्सीन आने की भी कोई उम्मीद नही दिख रही
yes
हटाएंBahut shi lockdown chahiye ab
जवाब देंहटाएंyes
जवाब देंहटाएंLockdown to hona hai chaiye
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