मैं भ्रमित हूँ ? - समझाविश बाबू

 संसार में सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य माना जाता है ,ऐसा हम सभी मानव मानते हैं और कई लोग तो इसे गर्व से कहते भी हैं ,क्यूंकि मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसके पास सोचने समझने की शक्ति होती है और बुद्धि भी उसी में होती है ,इन्ही में से कई अपने बुद्धि और मेहनत से छोटे से लेकर बड़े पदों पर आसीन हो जाते हैं ,कुछ बड़े और छोटे पूंजीपति हो जाते हैं ,कुछ अपने  बुद्धि चातुर्य और कूटनीति  का सहारा लेकर राजनीत में छोटे से लेकर शीर्ष स्थान प्राप्त करते हैं। कुछ इसी में बुद्धि और वाकनिपुड़ता के कारण मीडिया में आ जाते हैं।


यह अवश्य है कि सभी वर्गों में कुछ बहुत ही अच्छे लोग होते हैं जो अपनी-अपनी जगह अपने दायित्यों और कर्तव्यों को सही और निस्वार्थ ढंग से निर्वहन करते हैं जिनका नाम उनके क्षेत्र में आदर से लिया लता है और ऐसे लोग सदैव आदर के पात्र बने रहेंगे। इसके अतरिक्त हमारे मेहनती किसान का वर्ग होता है जो अपनी भुजाओं पर विश्वास कर हाड़-तोड़ मेहनत कर हमारे लिए अन्न  उपजाता है।            । सबसे ज्यादा प्रकृति की मार भी इसी को झेलनी होती है। 

                                ये सभी वर्ग किसान को छोड़ कर क्यूंकि वो तो अपना काम बड़ी ईमानदारी और लगन से करता है ,लेकिन और सभी इसी तरह से कार्य करें तो एक सुन्दर समाज बनने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती।लेकिन आजकल समाचार-पात्र पढ़िए ,चैनलों के डिबेट सुनिए ,यूट्यूब देखिये ऐसे-ऐसे विश्लेषण आएंगे की समझ में नहीं आता है की क्या सही है क्या गलत है। अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति को पूरा करने के उद्देश्य से अपने पदों पर बैठे लोग इतनी अच्छी और बड़ी-बड़ी बातें करेंगे की लगने लगेगा की बस अब तो हमारा सब काम ठीक हो जाएगा पर हम भ्रम ही फंसे रह जाते हैं ,इसी प्रकार सत्ता में बैठे कुछ लोग या फिर सत्ता में आने का प्रयास करने वाले कुछलोग जो बड़ी-बड़ी बातें करेंगे लगेगा की अब सब कुछ अतिसुन्दर हो जायेगा ,पर ये भी पढ़ कर और सोच कर हम भ्रमित ही रहते हैं।आंकड़ों  की  बाजीगरी ,वादों के मायाजाल में कब तक उलझते रहेंगे ,अपने को सबसे सभ्य और बुद्धिमान कहलाना पसंद करने के बाद भी कब तक हम जाति-जाति , धर्म-धर्म खेलते रहेंगे ? हमे सचेत रहना होगा की हम किसी के बहकावे में मत आयें और न ही किसी के हाथों की कठपुतली बने ,ये तथ्य अच्छे से समझना होगा की भूख ,प्यास ,गरीबी सब की एक  सामान होती है है ये चीजें जाति और धर्म देखकर नहीं आती है। हम एक दूसरे के सुख-दुःख में काम आयें ,ये ही समाज का मूल मंत्र है। एक दुर्दांत अपराधी या फिर आतंकवादी के लिए आंसू बहाना या चीखना -चिल्लाना मेरी समझ में कतई उचित नहीं है ,इसमे भी हम भ्रमित होकर राजनीती के शिकार हो जाते हैं।अब हर घटित घटना का ऐसा ट्रायल होता है की हम वास्तविकता के नजदीक पहुंचने की जगह भ्रम में ही फंसे रह जाते हैं,स्वस्थ डिबेट की जगह आक्रामकता ने ले लिया है ऐसा लगता है किसी फिल्म का रिहर्सल चल रहा हो और हम दर्शक उसका ट्रेलर देख रहे हों। आज चौथा स्तम्भ सबसे महत्वपूर्ण हो गया है स्वस्थ समाज के लिए आवश्यक भी है ,लेकिन निष्पक्षता से यदि कार्य किया जाये तो ,क्यूंकि ये क्षेत्र ऐसा है जहाँ १००% निष्पक्षता जरुरी है। लेकिन आज-कल तो आरोप-प्रत्यारोप कुछ इतना ज्यादा हो गया है की भ्रम के अलावा कुछ हासिल नहीं होता है। कभी-कभी तो इन डिबेटों में मर्यादायों  की सारी सीमा लाँघ दी जाती है देखने पर भी शर्म ही हाथ लगती है और एक भ्रम ही उत्पन्न हो जाता है। बड़े-बड़े वादे नारे समाज में आये दिन तैरते रहते हैं जो हमे खुशफहमी का भ्रम दे जाते हैं।एक वो भी नारे हुआ करते थे ,''तुम मुझे खून दो ,मई तुम्हे आजादी दूंगा '' ,इंकलाब जिंदाबाद ;;,जय जवान -जय किसान '',आजकल के नारों का क्या उल्लेख करें।  कोई जातिगत तो कोई धर्मगत तो कोई और भ्रम फैलाता रहता हैं ,आज कुछ चीजों को समझने की खास आवश्यकता हैं की देश विरोधी ,समाज विरोधी कार्य करने वालों का कोई धर्म नहीं होता जैसे की आतंकवादी एक हैवानियत की पराकाष्ठा अपनाते हैं तो इमका कोई भी धर्म या मजहब नहीं हो सकता। इसी प्रकार दुर्दांत अपराधी का भी कोई धर्म या मजहब नहीं होता ,इसपर भी भ्रम की राजनीत हनी लगती हैं।।     

                              ७३ वर्ष की आजादी के बाद आज भी हम धर्म और जाति में उलझे रहें क्या ये उचित हैं ?क्या पहला धर्म हमारा मानव धर्म नहीं हैं ? क्या यदि समाज में मानवता मर जाएगी तो हमारी धर्म और जाती जीवित रहेगी ? क्या जो प्रत्येक फील्ड में जिम्मेदार जगह पर बैठे हैं ,उन्हे व्यवसायिकता को मात्र केवल ध्यान में न रखकर सच्चे मन से अपना काम करना चाहिए ? क्या सबसे महत्वपूर्ण अब केवल अर्थ ही रह जायेगा ? अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए क्या भ्रम-जाल फैलाना उचित हैं ? आइये हम सब मिलकर एक नया समाज बनाने का प्रयास करे ,हमारे देश के युवा और युवतियां आगे आयें और इस ओर सार्थक पहल करना सुरु करें और जहाँ भी गलत होता दिखाई दे उसका गाँधीवादी तरीके से विरोध करें तभी एक स्वस्थ भारत का निर्माण होगा। आज भी वो भजन एकदम प्रासंगिक हैं कि ''इतनी शक्ति हमें देना दाता कि मन का विश्वास कमजोर हो न ,हम चलें नेक रास्ते पर भूल कर भी कोई भूल न हो ''।। 

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