मेरे नैना सावन भादो - समझाविश बाबू

सभी मनुष्य संरचना में एक समान होते हैं ,अपवाद छोड़कर सभी के आँख ,कान ,नाक ,हाथ ,पैर आदि होते हैं। सभी जब वयस्क होते हैं तो एक अच्छा जीवन जीना चाहते हैं। अपना देश विविधताओं का देश है ,यहाँ विभिन्न धर्म,संप्रदाय ,भाषा के लोग रहते हैं और इस तरह रहते हैं जैसे की एक माला में पिरोये गए हैं ,आपस में मतभेद हो सकते हैं ,होते भी हैं लेकिन जब राष्ट्र की बात आती है तो हम एकजुट होकर एकसाथ खड़े होते हैं और इतनी मजबूती से खड़े होते हैं की दुश्मन देश के पसीने  छूट  जाते हैं।हमारा देश सोने की चिड़िया कहा जाता था ,इसी कारण यहाँ तमाम आताताई आए और लूट कर चले गए। पर यहाँ एक बात आज तक नहीं समझ में आ पायी कि हमारे देश को आजाद हुए ७३ साल बीत चुके हैं  किन्तु जो अमीर और गरीब के बीच कि खाई कम नहीं हो पा रही है ,कितने नारे आये जिसमे शुरू में काफी प्रचलित हुआ था ''गरीबी हटाओ ''। लेकिन वो सिर्फ नारा ही साबित हुआ।क्यूंकि गरीबों कि स्थिति पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। 



हमारी व्यवस्था कब सुधरेगी और हम कब इस स्थिति में आएंगे कि मुफ्त कि सुविधा उपलध कराने के स्थान पर हम ऐसा कोई स्थायी समाधान करेंगे कि उन्हे मुफ्त के चीज के आसरे न बैठना पड़े। कबतक ये व्यवस्था हम अपनाते रहेंगे ? आज या पूर्व कि स्थिति यही रही है कि देश के चंद अमीर व्यक्ति ही और अमीर होते जा रहे हैं ,चंद नाम उसमे नए  जुड़ जाते हैं ,बाकी उनकी संख्या नगण्य ही रहती है पर देश पे वही प्रभावी रहते हैं ,और लगता है कि वही चंद लोग रहेंगे भी।73 वर्ष आजादी के हो गए पर आज भी हम गरीबी ही हटा रहे हैं ,सभी यही कहते हैं कि अब  कोई गरीब नहीं रहेगा हम ऐसी नीति  लाएंगे ,पर परिणाम कुछ नहीं होता है।हम केवल यही पढ़ कर खुस होते हैं कि हमारे देश के चंद अमीर विश्व के अमीरों में शामिल हो गए हैं और उच्च स्थान भी प्राप्त किये हैं ,हम बस उनके रहन-सहन ,घरों व खान-पान के बारे में  पढ़कर बस सोचते ही रह जाते हैं कि इतनी असमानता जिसकी कोई सीमा ही नहीं है ,कैसे है ? हम केवल स्वप्न ही देखते थे और लगता है स्वप्न में अच्छे जीवन जीते रहेंगे। क्यूंकि मुझे लगता है कि हमारे देश में स्वप्न ही एक ऐसा माध्यम है जिसमे हम थोड़ी देर ही सही खुशफहमी में जी लेते हैं। कारण भी है हमे हमेशा सपना ही दिखाया गया है और उसी भ्रमजाल में हम हमेशा फंसते रहे हैं। यहाँ तो मौज उन्ही का है जो अमीर से और अधिक अमीर होते जा रहे हैं या फिर कहीं से निकलते हैं और अमीरी कि दुनिया में छा जाते हैं ,या फिर उन रिश्वतखोरों ,भ्रष्टाचारियों का है जो अपने सीटों पर बैठकर अपने दायित्यों का निर्वहन न कर केवल अपने सूटकेस भरने में लगे हैं।

                    शीर्षक लिखने का तात्पर्य ये है कि सावन कि हरियाली सभी को अच्छी लगती है ,सभी के नैनों में उसी प्रकार कि खुशियों कि अभिलाषा रहती है पर उसके लिए तो यही गीत चरितार्थ होता है कि''मेरे नैना सावन भादो फिर भी मेरा मन प्यासा '',लेकिन कबतक यही गीत चरितार्थ होता रहेगा ,कबतक स्थिति सुधरेगी ,कब तक लॉलीपाप थमाया  जाता  रहेगा?क्या  गरीबों  को यही गाना  पड़ेगा  ''गैरों  पे करम  अपनों  पे सितम ''। 

                            आज समय आ गया है कि एक ठोस नीति इनके लिए बनायीं जाये जो वास्तविक धरातल पर हो और इस तरह लागू हो कि वास्तविक स्तिथि इनकी  सुधरे ,और इसमें बीच में कोई भ्रष्टाचार का शिकार न बनाये।जो भी नीति बने वो ए सी वाले बंद कमरे में मनन करके न बने बल्कि धरातल पर जाकर फील्ड पर जाकर समस्याओं का गहन अध्ययन करके बने और लोक सेवक शासक की भूमिका में नहीं अपितु जनता कि सेवक की भूमिका में काम करे ,केवल लोक लुभावन नारे न हो बल्कि जो कहा जाये वो सार्थक हो एकबार फिर सभी ये गीत गुनगुनायें कि ''मेरे देश कि धरती सोना उगले उगले ही मोती ''। केवल बातें न हो क्रियान्वन बहुत ही जरुरी है उसकी मॉनिटरिंग भी ठीक ढंग से हो।

                            दुनिया बनाने वाले कैसी ये दुनिया बनायीं 

                            बहुतों के हिस्से में आयी सूखी रोटी 

                            और कुछ के ही हाथ लगी मलाई 

                            कैसी ये  दुनिया बनाई तूने ---

                            तूने तो दिया एक ही तन और एक ही मन 

                            यहाँ तो आकर कर रहे कपट और  बेईमानी 

                            कैसे करे इनका मान -मर्दन 

                            ये तो अपनों के ही काटे  हैं गर्दन 

                            कैसी ये दुनिया बनाइए तूने ------------

                            राम और कृष्ण का कर रहे इन्तजार 

                            कई दुर्योधन और रावण हैं यहाँ तैयार 

                            अब तो भेजो  यहाँ बना के किसी को अवतार 

                            जो करे इस पाप का संहार 

                            तभी तो हम कह पाएंगे हर बार 

                            तू ही रखे सबका ख्याल  

                            तूने एक अच्छी दुनिया बनाई।।       

टिप्पणियाँ

  1. आपका विचार बहुत सराहनीय है इसमें कोई शक नहीं पर आज हमारे देश की सरकार लोगों को बस धर्म के नाम पर लड़ाना जानती है और हममें से कुछ लोग सरकार की इस चाल को कामयाब भी कर देते हैं वे यह नहीं जानते कि इसके माध्यम से सरकार हमारा धयान आवश्यक मुद्दों से हटाती है जैसे गरीबी, शिक्षा और बेरोजगारी आदि। कयोंकि सरकार को तो बस बैठकर तमाशा देखना है और अपनी जेबें भरना है।

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  2. kABEER SINGH
    अति आवश्यक लेख

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