शिक्षण संस्थाओं में चुनाव! - कैसा हो ? - समझाविश बाबू
किसी भी समाज के विकास के लिए सबसे अहम् शिक्षा का महत्व होता है ,शिक्षित व्यक्ति ही एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना भी कर सकता है और निर्माण भी कर सकता है ,इसका यह तात्पर्य बिलकुल नहीं है की जो अशिक्षित हैं वो एक स्वस्थ समाज के निर्माण नहीं कर सकते ,यहाँ शिक्षा के साथ यदि संस्कार और नैतिकता भी जुड़ जाये तो उसमे चार चाँद लग जाता है। जो शिक्षित नहीं हैं उनमे नैतिकता और संस्कार है तो वो भी स्वस्थ समाज के निर्माण में अच्छा योगदान कर सकते हैं ,हाँ ये अवश्य है की ऐसी व्यवस्था हो की वो भी शिक्षित हो जाएँ। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही गुरुओं का बहुत महत्व रहा है , गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है ,''गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु ---'', ''गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागूं पांव ----'',
ये सब दोहे गुरु की ही महिमा में कहे गए हैं । यह सौ प्रतिशत सच है की माता-पिता के बाद बच्चों को युवा अवस्था तक निखारने और कुम्हार की तरह सांचे में ढालने का काम गुरु ही करता है।
गुरु छात्र का रिश्ता माँ-बाप से भी ज्यादा प्रगाढ़ हुआ करता था ,शिक्षक यदि किसी अपने विद्यार्थी को दंड भी देता था तो उसका अंतर्मन से यही उद्देश्य होता था कि उसके छात्र का भविष्य उज्जवल हो कोई द्वेष भावना नहीं रहता था। माता-पिता अपने जिगर के टुकड़े को गुरु को बड़े ही विश्वास से सौंप देते थे कि अब इसका भविष्य बेहतर होगा और बड़ा होकर एक योग्य व्यक्ति के रूप में समाज के काम आएगा। लेकिन जैसे -जैसे अर्थ शिक्षा में भी हावी होता गया वैसे-वैसे गुरु-शिष्य कि परंपरा भी प्रभावित होती गयी ,एक समय था जब कोचिंग को लोग जानते नहीं थे गुरुजी विद्यालयों में इतनी बेहतरीन और अपनत्व भरे माहौल में पढ़ाते थे कि किसी कोचिंग कि आवश्कयता ही नहीं पड़ती थी ,सभी विद्यार्थियों पर ध्यान ही नहीं देते थे बल्कि कमजोर पर ज्यादा समय देते थे। पर अब जो शिक्षा का स्तर होता जा रहा है वो किसी से छुपा नहीं है ,लेकिन इस पर विस्तार से चर्चा अलग से करना ही बेहतर होगा।
आजादी के पूर्व या फिर आजादी के बाद जितने भी परिवर्तनकारी आंदोलन हुए हैं ,उन सबमे छात्रों का बहुत योगदान रहा है १८४८ में दादा भाई नौरोजी ने ''स्टूडेंट सइंस्टीफिक एंड हिस्टोरिक सोसाइटी ''कि स्थापना छात्र मंच के रूप में की थी। छात्रों ने परिवर्तनकारी आंदोलनों में हमेशा बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया वो चाहे १९१३ का लाहौर में अंग्रेजी छात्रों और भारतीय छात्रों के बीच अकादमिक भेदभाव के विरोध में हड़ताल रहा हो ,चाहे स्वदेशी आंदोलन रहा हो या १९४२ का भारत छोड़ो आंदोलन या फिर स्वंत्रता दिलाने का संघर्ष या फिर आजादी के बाद का जयप्रकाश नारायण जी का आंदोलन रहा हो। ये सभी एक स्वस्थ परम्परा और एक सार्थक विषयों का आंदोलन था। जिन लोगों ने नेतृत्व किया उनका नाम आज भी श्रद्धा से लिया जाता है।
आज जो छात्र संघ का स्वरुप इण्टर और डिग्री कॉलेजों में विशेष तौर से डिग्री कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में जो चुनाव हो रहा जिस ढंग से कैम्पेनिंग कि जाती है क्या वो सही है ,क्यूंकि यहीं छात्र न केवल हमे देश के उज्जवल भविष्य हैं बल्कि इन्ही पर देश कि जिम्मेदारी भी है ,युवा ही सक्षम हैं वो चाहे छात्र हों या छात्राएं दोनों ही देश कि दशा और दिशा दोनों बदलने में सक्षम हैं। बस उनको सही दिशा देने कि जरुरत है ,छात्र-संघ कि स्थापना होना इसलिए आवश्यक है कि एक स्वस्थ शैक्षणिक माहौल कैंपस में बनाने और छात्रों के हित के लिए स्वस्थ तरीके से संघर्ष करने का एक विकल्प रहता है। किन्तु आज जब देखा जाता है विश्वविद्यालयों ,कॉलेजों में भी जब चुनाव आता है तो प्रत्याशी बड़ी -बड़ी गाड़ियों का काफिला लेकर जुलूस के रूप में चलते हैं और किसी न किसी राजनितिक पार्टी का लेवल भी लगा लेते हैं। जब कि होना ये चाहिए कि उनकी योग्यता और व्यक्तित्व के आधार पर उनके पीछे स्वयं उनके ही कॉलेजों के छात्र चलें न कि कोई और। कैम्पस उनका है उन्हे अपने परिवार के साथ मिलकर चलना ही नहीं है अपितु एक अच्छा वातावरण भी देना है ,पर दुःख होता है कि यह भी चुनाव एक तरह से शुद्ध राजनितिक रूप ले रहा है यहाँ भी राजनितिक पार्टियों कि तरह धन का प्रयोग अधिक मात्रा में होने लगा है , ये मेरे विचार से कहीं से उचित नहीं है एक स्वस्थ शैक्षणिक माहौल और छात्र -छात्राओं को सुविधा दिलाने के साथ गुरु और शिस्य कि स्वस्थ परंपरा को स्थापित भी करना है। इसके अलावा जो भी शिक्षक क्लास लेने से कतराए उन्हे ये प्रेरित करना है कि क्लास रेगुलर चले ,और एक स्वस्थ और उपयोगी वातावरण बनाये जिसमे छात्र-छात्राएं को ये दिल से लगे की हम एक ऐसे शिक्षण संस्था में अध्ययन के लिए आएं हैं और गर्व महसूस करें। जब वो अपने शिक्षण संसथान से निकलें तो एक मधुर याद के साथ एक उपयोगी ज्ञान लेकर भी जाएँ। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में जब अराजकता का माहौल पनपता है और ऐसी ख़बरें आती हैं तो अत्यंत ही दुःख होता है क्यूंकि शिक्षण संस्थान में इसका प्रवेश बिलकुल ही वर्जित है। छात्रसंघ के चुनाव में लगभग सभी राजनितिक दल अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से छात्र राजनीत में भाग लेने लगे हैं यही कारण है की वहां भी चुनाव उसी तरह प्रचार के ताम-झाम में उलझ गया है ,प्रदर्शन ज्यादा हो गया है। शैक्षणिक संस्थाओं में केवल और केवल एक विचारधारा चलना चाहिए वह है शिक्षा का अच्छा माहौल और गुणवत्ता और शिक्षा को कैसे सही दिशा दिया जाये ,एक पारिवारिक वातावरण बनाना ,साथ ही शिक्षक और विद्यार्थी में एक आदर और अपनत्व का भाव उपजे।
कॉलेजों ,विश्वविद्यालयों में चुनाव आवश्यक है तो उसके साथ इसे वाह्य राजनीत से जोड़ना और उसी के अनरूप ढल जाना क्या उचित है ? चुनाव में धन के प्रयोग की अधिकता ,बड़े-बड़े गाड़ियों का काफिला क्या उचित है ?बाहरी लोगों का इन्वॉल्वमेंट क्या उचित है ? आज जो गिरता शैक्षिक माहौल बन रहा है उसे सुधारने की प्रथम जिम्मेदारी छात्रसंघ का होना चाहिए ,जो छात्रों को लेकर एक बेहतर वातावरण बनायें। छात्र संघ का गठन बेहतर शिक्षा और बेहतर अध्ययन का माहौल बनाने के लिए होना चाहिए और ये स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के लिए होना चाहिए की हमारा शैक्षणिक संसथान न केवल जिलें में बल्कि प्रदेश और देश में उत्तम शैक्षणिक संसथान के रूप में जाना जाए।आपराधिक तत्त्वों से छात्र संघ का दूर दूर से नाता न हो तभी स्वस्थ छात्र संघ का महत्व है अन्यथा बेमानी हैं।



RAVI ANURAGI
जवाब देंहटाएंJabse chatra sangh chunav band ho gye h tabse shanti h thodi wrna toh bhot avyavastha thi
sahi kah rahe hain
हटाएंamit bhatti
जवाब देंहटाएंJabse chatra sangha chunav band huye h tbse yah koi mudda hi nhi reh gya h
Wese lekh acha h aapka
Nice��
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