गद्दार की परिभाषा बदलनी चाहिए --???? समझाविश बाबू

राष्ट्र को सर्वोपरि मानना ,राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव और राष्ट्र की अस्मिता के लिए कुछ भी कर गुजरने की ललक ही राष्ट्र भक्ति है। इसके मध्य न तो कोई जाति,धर्म,सम्प्रदाय ,भाषा या क्षेत्रवाद आता है ,ये इन सबसे ऊपर है इसीलिए राष्ट्र की अखंडता और अक्षुड़ता बनी रहती है।किसी समुदाय ,धर्म, जाति के व्यक्तिगत हितों को राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाये रखने के लिए तिलांजलि देनी ही गौरवमयी राष्ट्र का प्रतीक है। हमारे देश में राष्टीयता ,राष्ट्रभक्ति पर अक्सर चर्चा होने लगती है जब की ये एक गंभीर विषय है ,इसपर चर्चा-परिचर्चा का बहुत मतलब नहीं है,जो अपने देश का नागरिक है उसे राष्ट्रभक्त होना ही चाहिए क्यूंकि यदि राष्ट्र है तो ही उसका वजूद है अन्यथा कुछ भी नहीं है। हाँ ये अवश्य है कि किसी को यह बताने की जरुरत नहीं है की किसकी राष्ट्रभक्ति सर्वश्रेष्ठ है ? जिस तरह से ईश्वर के सम्मुख सभी एक हैं ,उसी प्रकार राष्ट्र के लिए सब नागरिक एक हैं। इस पर जब वाद-विवाद चलता है और उसमे मर्यादायें तार-तार की जाती हैं ,भाषाएँ अपनी सीमा लांघ जाती हैं ,तो वास्तव में बहुत दुःख होता है। उसी में कभी जब किसी के द्वारा ये कहा जाता है की ये देश रहने लायक नहीं रह गया है तो बहुत दुःख होता है ,किसी दल या किसी व्यक्ति या फिर विचार से किसी का मतभेद हो सकता है ,लेकिन इसके मध्य राष्ट्र को लाना कहाँ तक उचित है। मेरा स्पष्ट मानना है कि किसी की भी राष्ट्र के प्रति प्रेम या भक्ति इतनी कमजोर नहीं होना चाहिए की वो राष्ट्र को ही रहने लायक न बताये ,इसमे राष्ट्र का क्या दोष ? किसी व्यक्ति या दल या किसी विशेष के विचार से ऱाष्ट्र के प्रति प्रेम कम नहीं होता ,यदि ऐसा कहा जाता है तो राष्ट्रप्रेम के प्रति कमजोरी को कहीं न कहीं झलकाता है। इस तरह के विचार दूसरों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। आपका दलीय हित क्या है क्या नहीं इससे राष्ट्रप्रेम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए और ये ध्रुव सत्य है कि दुनिया का कोई भी राष्ट्र इतनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, रहने की आजादी अपने धर्म के प्रति लगाव की स्वतंत्रता नहीं दे सकता जितनी की अपने गौरवशाली राष्ट्र में है।

                              इसी राष्ट्र से जब कोई विश्वासघात करता है या फिर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त हो जाता है और अपने ही देश में रहकर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को अपनाता है तो सीधी भाषा में उसे गद्दार कहा जाता है और समाज में वह सबसे निम्न दृष्टि से देखा जाता है ,क्यूंकि हमारे राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए सबसे बड़ी चुनौती होते हैं। कुछ तो दूसरे देश के भाड़े के टट्टू होते हैं जिनकी अपनी बुद्धि शून्य होती है और केवल विध्वंस फैलाना ही उनका मकसद होता है ,हाँ ये अवश्य है की जब भी इन गद्दारों का सामना हमारे वीर जवानो से हो जाता है तो जहाँ उनकी जगह है वहाँ पहुंचा दिया जाता है। देश के प्रगति के लिए ये बाधक बने रहते हैं। 

                              ये तो देश के प्रति विश्वासघात  करने वालों की बात हो गयी जिन्हे पहचान लिया जाता है लेकिन जो देश की विभिन्न पदों पर या प्रदेश के विभिन्न जिलों में अनेको जिम्मेदार पदों पर बैठें हैं और वहां बैठकर रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार में लिप्त हैं इन्हे किस श्रेणी में रखा जाये ? ये भी हमारे देश-प्रदेश के विकास को अत्यंत प्रभावित करते हैं। सड़कें बनती हैं और कितनी जल्दी गड्ढा युक्त हो जाती हैं पता ही नहीं लगता ,बांधें ,पुलें तक बह जाती हैं ,जो सरकारी बिल्डिंगे बनायीं जाती हैं ,रंग-पोत कर चमकाकर खड़ा कर दिया जाता है लेकिन बहुत जल्दी ही अपनी असलियत बताने लगती हैं। गरीबों के अनाज से लेकर आवास तक युवाओं के रोजगार से लेकर शासन द्वारा मुहैया कराई गयीं सुविधावों तक पर डाका डाला जाता है। शासन द्वारा ग्राम सभाओं तक को जो बजट उपलब्ध कराया जाता है , यदि सभी को जोड़कर आकलन किया जाये तो समझ में आएगा की यदि सभी का प्रयोग हो जाता तो सभी ग्रामो का कायापलट हो जाता। गरीबों के पेंशन तक से छेड़-छाड़ कर दिया जाता है। ये देश-प्रदेश के विकास में बाधक बनते हैं और सफेदपोश बनकर टहलते हैं, अपनी सुख-सुविधावों से लैश रहते हैं दूसरों  के हक़ पर डाका डालकर। मजेदार बात यह है की ये बेफिक्र होकर इसतरह समाज में रहते हैं की जैसे सबसे बड़े देश के चिंतक हैं। बोल-चाल में इनसे अधिक ईमानदारी कहीं नहीं झलक सकती। ये देश के प्रगति को दीमक की तरह या यों कहें गेहूं में घुन की तरह नुकसान पहुंचा रहे हैं और बहुत ही निश्चिंतता से रह रहे हैं ,इन्हे किस श्रेणी में रखा जाये जो अपना घर भर कर अपनी सुख सुविधावों में बेतहाशा वृद्धि कर मौज ले रहें हैं ,उन्हे क्या कहा जाये ? ये ही समाज में ऐसा तबका है जो जुगाड़ में सिद्धहस्त होता है ,सत्ता किसी का हो ये अपना रास्ता बनाने में माहिर होते हैं, इनका सिद्धांत ये होता है की

''अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता" यह ध्रुव सत्य है की यदि इन पर व्यापक और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले समय में ये कैंसर और कोरोना वायरस से  भी अधिक खतरनाक रूप लेलेगा। समय रहते इसका इलाज बहुत जरुरी हो गया है।  

                                 

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट